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उत्तर प्रदेश में संगीत कला का विकास
उत्तर वेदिककालीन सामवेद से उत्तर प्रदेश में संगीत कला के विकास का प्राचीनतम प्रमाण प्राप्त होता है। महात्मा बुद्ध के समकालीन कौशांबी नरेश जातक ग्रंथ के अनुसार वीणा के निपुण वादक थे। देश में छठी शताब्दी से 12वीं शताब्दी के बीच संगीत कला के विकास में कश्यप, दतिल शार्दुल, मातगम,अभिनवगुप्त हरीपाल जैसे प्रख्यात संगीतज्ञों का उल्लेखनीय योगदान है।
भक्ति आंदोलन के समय भक्ति संगीत का प्रादुर्भाव हो गया था। स्वामी हरिदास जी जो महान संगीतज्ञ, ध्रुपद-धमार के प्रवर्तक थे, वृंदावन के निधिवन में निवास करते थे। अकबर के दरबारी कवि व संगीतकार तानसेन का संबंध भक्ति रस से था। बड़ा ख्याल के प्रवर्तक जौनपुर के शासक सुल्तान हुर्सन शर्क़ी बड़ा ख्याल के प्रवर्तक तथा एक महान संगीतज्ञ थे। प्रख्यात संगीतकार जगन्नाथ को शाहजहाँ के शासनकाल में पण्डितराज की उपाधि से सम्मानित किया गया था। 19वीं शताब्दी के रसिया वाजिद अली शाह के समय में ठ्मुरी का चलन अत्यधिक हुआ ।
शास्त्रीय संगीत की राज्य में वाराणसी, लखनऊ, आगरा यदि नगरों के घरानो में ऊंचाइयों तक पहुंचाया गया। इन घरानों ने देश को अनेक महान संगीत प्रेमी दिए जिन्होंने गायन, वादन तथा नृत्य के द्वारा संगीत के इतिहास में राज्य का ही नहीं अपितु देश का भी नाम रोशन किया ।
राज्य के प्रमुख संगीतज्ञ
तबला वादक | पंडित राम सहाय, कंठे महाराज, किशन महाराज, पण्डित सामता प्रसाद उर्फ गुदई महाराज, शरद महाराज, पंडित रामजी मिश्र |
वायलिन वादक | पंडित ओकारनाथ ठाकुर ,डॉ एन राजम |
सितार वादक | पंडित रविशंकर |
सारंगी वादक | पण्डित गोपाल जी मिश्र |
बांसुरी वादक | पंडित रवि शंकर |
पखावज वादक | कुदउ सिंह |
शहनाई वादक | उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ |