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मध्यकाल का इतिहास उत्तर प्रदेश

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मध्यकाल का इतिहास उत्तर प्रदेश

त्रिकोणीय संघर्ष (अस्थिरता का काल)

यशोवर्मन ने आठवीं सदी के प्रथम चतुर्थांश में हर्षवर्धन की मृत्यु उपरांत कन्नौज में अपना अधिपत्य जमा लिया था, उसने लगभग पूरे भारत को जीत लिया, और कन्नौज को फिर से वैभवशाली नगर बना दिया था. यशोवर्मन ने कश्मीर के ललितादित्य मुक्त पीड के सहयोग से तिब्बत में भी सेना भेजी और सफलता पाई थी. परंतु बाद में ललितदित्य ने यसोवर्मन को गद्दी से उतार दिया और 740 ई. में मार डाला.

बंगाल के पाल, दक्षिण के राष्ट्रकूट तथा पश्चिमी भारत के गुर्जर प्रतिहारों के बीच आयुधवशीय राजाओं के काल में कन्नौज पर आधिपत्य स्थापित करने के लिए बहुत है दिनों तक प्रतिस्पर्धा चली, जिसमें अंतिम सफलता गुर्जर प्रतिहारों को मिली. इन लोगों ने जो साम्राज्य स्थापित किया वह विस्तार और ख्याति की दृष्टि से किसी भी गुप्त-वंशीय राजा या सम्राट हर्ष के साम्राज्य से कम नहीं था गुर्जर प्रतिहारों कौन नवी एवं 10 वीं शताब्दी में उत्तर भारत पर आधिपत्य कायम रहा. सन 1018-19 में मोहम्मद गजनवी ने गुर्जर प्रतिहारों को परास्त किया.

चंदेल राजाओं ने जिला भुक्ति या वर्तमान बुंदेलखंड ने मोहम्मद गजनवी के आक्रमण का सफलतापूर्वक मुकाबला किया था. उनका गढ़ कालिंजर अजय बना रहा. इन लडाईयों में धगा और विद्याधर नमक दोनों चंदेल शासकों का योगदान सराहनीय था. प्रतिहारों के पराजय के बाद मध्य प्रदेश में फिर से अराजकता फैल गई, किंतु इसी समय गहडवाल राजावंश के उदय शांति एवं सुव्यवस्था पुन: स्थापित हुई तथा क्षेत्र में समृद्धि का नया युग प्रारंभ हुआ.

गोविंद चंद्र (1104 से 1154 तक) और जयचंद (सन 1170 से सन 1193 तक) दो प्रमुख गहडवाल राजा थे. जयचंद की अदूरदृष्टि से चौहान राजा पृथ्वीराज तृतीय अगले वर्ष जयचंद स्वयं भी छ्न्द्वारा युद्ध में मारा गया. इसके बाद मेरठ, कोईल (अलीगढ़), असनी, कन्नौज, और वाराणसी शीघ्र ही आक्रमणकारियों से शिकार हुए. 1203 में जेजाकभूक्ति में चंदेल राजा परमार्दिदेव (लोक गाथाओं का वीर प्रमाल)एक यूद्ध में कुतुबुद्दीन ऐबक से हार गया और मारा गया. चंदेलो ने बाद में स्थिति संभाली और लगभग 2 शताब्दी से भी अधिक समय तक राज करते रहे परंतु उसका राज्य क्षेत्र छोटा हो गया था.

सल्तनत काल

कुतुबुद्दीन ऐबक सन 1206 में दिल्ली के सिंहासन पर बैठा और वहीं से गुलाम वंश का प्रारंभ हुआ. गुलाम वंश के राजाओं और उनके बाद खिलजियो तथा तुगलक वंश के बाद सामने धीरे-धीरे दिल्ली बादशाहत कि सीमा बढ़ाई. लगभग प्रारंभ से ही वर्तमान उत्तर प्रदेश का क्षेत्र इन लोगों के साम्राज्य का अंग रहा. प्रमुख जागीरदार को संभल, कड़ा और बदायूं सौंप दिए गए थे, तथापि पूरा प्रदेश प्राय दिल्ली के सुल्तानों का विरोध करता रहा. इस सिलसिले में कटेहर, भोजपुर और पटियाली के नाम उल्लेखनीय है.

मध्य प्रदेश का इतिहास के 13वीं और 14वीं शताब्दी में शौर्य पूर्ण प्रतिरोध और बर्बरतापूर्ण दमन का इतिहास रहा जिसकी झाँकियाँ उस समय के इतिहासकारों की कृतियों में दिखाई देती है. दिल्ली के तुगलकों का सम्राज्य इस अवधि के समाप्त होने से पहले ही तेजी से विघटीत होने लगा था और इस क्षेत्र के पूर्वांचल मिशन 1394 में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की गई. यह साम्राज्य था और इसकी स्थापना जौनपुर में सूबेदार मलिक सरोवर ख्वाजजहाँ ने की थी. जो नसीरुद्दीन तुगलक के विद्रोही थे. 84 वर्षों तक शर्की शासकों ने दिल्ली की बादशाहत का जमकर प्रतिरोध किया और कन्नौज एवं अन्य सीमांत जिलों पर दिल्ली का प्रभुत्व नहीं माना.

1398 में जौनपुर के पृथक हो जाने के 4 वर्ष बाद भारत पर समरकंद के एक चुग़ताई तुर्क ने जिसे तैमूरलंग या तेमरलन कहा जाता है, आक्रमण किया. यद्यपि तैमूर लंग की बर्बरता तथा पाशविकता का शिकार मुख्य रूप से दिल्ली और पंजाब का क्षेत्र बना, किंतु दोआब का क्षेत्र भी अछूता नहीं बचा. उदाहरण के लिए मेरठ, हरिद्वार, तथा कटेहर को भी इस आक्रमण की कूटता का अनुभव हुआ.

तैमूर के आक्रमण ने तुगलक वंश का शासन समाप्त कर दिया. अंतिम तुगलक बादशाह मोहम्मद है तुगलक की सन 1412 में मृत्यु हो गई और उसी समय से दिल्ली में तुगलक राजवंश की समाप्ति हो गई.

दिल्ली में तुगलक साम्राज्य के बचे खुचे भाग पर सन 1414 से 1526 तक सैयद और लोदीयों ने राज्य किया. संत 1478 में लोदी राजवंश के संस्थापक बहलोल ने जौनपुर पर अधिकार कर लिया, किंतु जवाब का अधिकार क्षेत्र अनेक हिंदू और मुसलमान सरदारों के अधीनस्थ बना रहा. सन 1506 में सिकंदर लोदी ने आगरा शहर की स्थापना की तथा उसे अपने उप राजधानी बनाया.

उत्तर प्रदेश में सल्तनतकालीन प्रमुख स्थापत्य निर्माण

निर्माण निर्माता
जामा मस्जिद (बदायूं) इल्तुतमिश
झंझरी मस्जिद (जौनपुर) इब्राहिम शाह शर्की
अटाला मस्जिद (जौनपुर) इब्राहिम शहर शर्की
लाल दरवाजा (जौनपुर) हुसैन शाह शर्की
आगरा शहर सिकंदर लोदी
जौनपुर नगर फिरोजशाह तुगलक
जामा मस्जिद हुसैन शाह शर्की

मुगल काल

सन 1526 में बाबर ने पानीपत की लड़ाई में लोदीयों के अंतिम बादशाह इब्राहिम लोदी को परास्त कर आगरा पर अधिकार कर लिया किंतु इसके बाद भी अफगानों ने गंगा की घाटी में संभल, जौनपुर, गाजीपुर, कालपी, इटावा और कन्नौज में अपना प्रतिरोध जारी रखा तथा कड़ी लड़ाई के बाद ही आत्मसमर्पण किया.

बाबर ने मुगल साम्राज्य की नींव रखी किंतु अफगान शेरशाह के हाथों उसके पुत्र हुमायु को करारी हार खानी पड़ी थी. शेरशाह मुगलों के विरुद्ध भारतीय मुसलमानों के विरोध का प्रतीक था. चुनार, चौसा, तथा बिलग्राम मुगलों और शेरशाह के बीच मूवी लड़ाई हो में प्रमुख रणस्थल थे. सन 1545 में शेरशाह सुरी कालिंजर के प्रसिद्ध किले पर अधिकार करने के प्रयास में चंदेलों से लड़ते हुए मारा गया

इसके उपरांत महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिला शुरू हुआ. हुमायू फिर से दिल्ली के तख्त पर बैठा तथा उसकी मृत्यु के बाद पानीपत की दूसरी लड़ाई हुई. संत 1556 में खबर दिल्ली की गद्दी पर बैठा और भारतीय इतिहास में एक नवीन युग आरंभ हुआ. यह युग शांति, समृद्धि, सुदृढ़, प्रशासन, उदारता और हिंदू मुसलमान संस्कृतियों के समन्वय का युग था.

अकबर के उतराधिकारियों, जहांगीर शाहजहां के समय में भी समन्वय कि यह प्रकृति चलती रही. उत्कर्ष के इस युग में हिंदुस्तान का, जैसा कि तत्कालीन समाज इतिहास का उत्तर प्रदेश को कहते थे, महत्वपूर्ण अंशदान रहा है. अकबर के दो प्रसिद्ध मंत्री, टोडरमल और बीरबल क्षेत्र के थे, और जब तक  शाहजहां के समय में दिल्ली को राजधानी नहीं बनाया गया था तब तक आगरा ही मुगल साम्राज्य की राजधानी रही.

मुगल साम्राज्य को औरंगजेब द्वारा उदारता की नीति का परित्याग करने से भारी धक्का लगा और उसका परिणाम यह हुआ कि उसकी मृत्यु के कुछ दशकों में शक्तिशाली मुगल साम्राज्य नष्ट हो गया. बुंदेलखंड में औरंगजेब के शासनकाल में ही वीर छत्रसाल के नेतृत्व में विद्रोह का बिगुल बजा दिया था. बुंदेलों की यह लड़ाई रुक रुक कर लगभग 50 वर्षों तक चली.

छत्रसाल को पेशवा बाजीराव की सहायता स्वीकार करनी पड़ी और इस प्रकार उत्तर प्रदेश में मराठों के पैर जमे. 1732 में अवध का स्थानीय सूबेदार शहादत खान स्वतंत्र हो गया और उसके बाद सन 1856 तक उसके उत्तराधिकारी राज्य करते रहे. लगभग इसी समय रुहेलो ने भी स्वतंत्र राज्य कायम कर लिया था और संग 1774 तक रूहेलखंड की अधिपति बनी रहे.

उक्त वर्ष ईस्ट इंडिया कंपनी की सहायता से अवध के नवाब ने उन्हें पराश्त किया. कुछ समय तक गंगा-यमुना दोआब पर मराठों ने अपना अधिपत्य जमाने के प्रयास किए. किंतु सन 1761 में पानीपत में हुई हार ने उनकी इस विस्तार-भावना का अंत कर दिया. इस अवसर से लाभ उठाकर अंग्रेजों ने जवाब में अपनी स्थिति सुदृढ़ बना ली थी.

राज्य में मुगल कालीन स्थापत्य कला के नमूने

स्थापत्य निर्माण  निर्माता
जामा मस्जिद (सम्भल) बाबरी मस्जिद (अयोध्या) बाबर
फतेहपुर सीकरी शहर अकबर
आगरा का किला,  इलाहाबाद का किला अकबर
जहांगीर महल (आगरा) अकबर
शेख सलीम चिश्ती का मकबरा (फतेहपुर सिकरी) अकबर
बुलंद दरवाजा (फतेहपुर सीकरी) अकबर
फतेहपुर सीकरी का पंचमहल, खास महल, जोधाबाई महल, बीरबल महल तथा जमा मस्जिद अकबर
एतमादउददौला का मकबरा (आगरा) नूरजहां
अकबर का मकबरा (सिकंदरा) जहांगीर
मरियम उज्जमानी का मकबरा (सिकंदरा) जहांगीर
ताजमहल (आगरा) शाहजहां
आगरा में किले में दीवाने आम, दीवाने खास तथा मोती मस्जिद शाहजहां

अवध के नवाब

शहादत का बुरहान-उल-मुल्क (सन 1732-1739)

सआदत खां सन 1732 में अवध का नवाब बना. 1732 में ही उसने एक स्वायत्त राज्य के रूप में अवध की स्थापना की. सन 1733 में सआदत ने किसानों को जमीदारी शोषण से बचाने हेतु अवध में नए भू-राजस्व एवं भू-लगान व्यवस्था की शुरुआत की. 1739 में नादिरशाह के विरुद्ध लड़ाई में दिल्ली में उसे बंदी बना लिया गया तथा उसने आत्महत्या कर ली.

सफदर जंग (सन 1739-1754)

सफदर सन 1739 में अवध का नवाब बना. सन 1748 में उसे मुगल सम्राज्य का वजीर बनाया गया तथा इलाहाबाद का प्रांत भी सौंप दिया गया. सफदर जंग के उत्तराधिकारी नवाब वजीर कहलाने लगे.

शुजाउददौला (सन 1754-1775)

शुजाउददौला सन 1754 अवध का नवाब वजीर बना. उसने मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय के साथ सन 1764 में हुए बक्सर के युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध युद्ध किया. शुजाउददौला ने सन 1773 में वारेन हेस्टिंग्स के साथ बनारस की संधि की. इस संधि के तहत उसने इलाहाबाद एवं कड़ा पुन: खरीदा तथा ब्रिटिश सेना को अवध में रखने हेतु सहमति प्रदान की. उसने अंग्रेजों की मदद से सन 1774 में रोहेलखंड को अवध में ले लिया.

आसफुद्दौला (सन 1775-1779)

आसफुद्दौला ने सन 1775 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ फैजाबाद की संधि की. इस संधि के तहत उसने कंपनी के ऋण को बढ़ा लिया. आसफुद्दौला मैं अवध की राजधानी फैजाबाद से स्थानांतरित कर लखनऊ में स्थापित की.

वाजिद अली शाह (सन 1847-1856)

वाजिद अली शाह अवध का अंतिम नवाब था. लॉर्ड डलहौजी नेशन 1856 में अवध को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया तथा नवाब को पेंशन देकर कोलकाता निर्वासित कर दिया.

महत्वपूर्ण स्मरणीय तथ्य

  • मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने आगरा को अपनी राजधानी बनाया था.
  • शाहजहां द्वारा निर्मित आगरा में ताजमहल तथा मोती मस्जिद स्थापत्य कला के श्रेष्ठ प्रतीक है.
  • भगत संत मलूकदास की जन्म स्थली कड़ा थी.
  • मुगल सम्राट अकबर ने 1569 ई. में कालीजर के शासक रामचंद्र को पराजित कर अधिपत्य स्थापित कर लिया.
  • कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1192 ई. में कोईल पर अधिकार स्थापित कर लिया था.
  • पृथ्वीराज चौहान के समय गढ़कुंडार का चंदेल शासक प्रमाल था.
  • 1531 ई. में गढ़कुंडार बुंदेलॉ की राजधानी तरह थी.
  • अटाला मस्जिद शर्की स्थापत्य कला की श्रेष्ठ प्रतीक है.
  • जौनपुर को शिराज ए हिंद कहा जाता था.
  • झांसी में लक्ष्मी बाई का महल, महादेव मंदिर, मेहंदी बाग आज भी विद्यमान है.
  • सलीम (जहांगीर) का जन्म फतेहपुर सीकरी में शेख सलीम के खानकाह में हुआ था.
  • संभल में मुगल बादशाह बाबर ने मस्जिद का निर्माण करवाया था.
  • सिकंदरा में मुगल सम्राट अकबर ने अपना मकबरा बनवाया था, जिसे 1613 ई. में सम्राट जहांगीर ने पूर्ण कराया था.
  • कन्नौज से संबंधित त्रिपक्षीय संघर्ष पाल गुर्जर प्रतिहार एवं राष्ट्रकूटों के बीच हुआ था, जिसमें विजय गुर्जर प्रतिहार रहे थे.
  • अकबर ने 1572 में फतेहपुर सिकरी नगर की स्थापना की थी.
  • मलिक सरवर ख्वाजाजहां जौनपुर में 1394 में शर्कों साम्राज्य की स्थापना की थी.

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