उत्तराखंड में प्रचुर वन संपदा होने से यहां वनों पर आधारित उद्योगों का विकास है संभव है। यहां कुटीर उद्योग के विकास की उत्तम संभावना विद्यमान है। देहरादून में चीनी उद्योग, वस्त्रोद्योग, चूने की भटियाँ, बल्ब, चाय, कागज की लुगदी, चिराई उद्योग,वैज्ञानिक उपकरण, एंटीबायोटिक दवाई आदि के बड़े और छोटे उद्योग स्थापित है। यहां परिवहन, प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण, पर्यटन हेतु प्रचार, ऊंची-नीची भूमि आदि के कारण उद्योगों का विकास नहीं हो सका है।
मध्य हिमाचल में स्थित उत्तराखंड की एक विशिष्ट भौगोलिक, सामाजिक व आर्थिक पहचान है। यहां की अर्थव्यवस्था को एक नवीन रूप एवं आधार प्रदान करने के लिए सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर स्थानीय परिवेश आवश्यकताओं व समग्र विकास की संभावनाओं में उसके अनुरूप औद्योगिक विकास के नए आयामों की खोज काफी लंबे अंतराल से चल रही थी। विकास की गति को तीव्र करने के संकल्प के साथ ही गत जुलाई माह के प्रथम सप्ताह में (6 जुलाई 2001) उत्तराखंड राज्य की बहुप्रतीक्षित उद्योग नीति को मंजूरी प्रदान कर दी गई है। सरकारी घोषणा में बताया गया है कि नवसृजित राज्य की उद्योग नीति को ध्यान में रखकर व्यापक विचार-विमर्श तथा देश के दूसरे राज्यों की औद्योगिक नीतियों का गहन परीक्षण करने के बाद अंतिम रूप दिया गया। विकास की दौड़ में उत्तराखंड अभी तक के कछुए की भूमिका में ही नजर आया है। क्या राज्य की औद्योगिक नीति यहां की अर्थव्यवस्था की कमजोर बुनियाद के लिए स्थायी खड़ा करेगी? इस उद्योग नीति की मूलभूत बातें इस लेख का मुख्य सार है।
औद्योगिक विकास में विगत एक दशक के दौरान ( विशेषकर 1991 के उदारीकरण प्रक्रिया के बाद) गुणात्मक बढ़ोतरी अवश्य हुई है लेकिन उदारीकरण नीति के दूरगामी निषेधात्मक प्रभावों की काली छाया स्वदेशी उद्योगों के विकास पर पड़ने लगी है। उद्योगों में विनिवेश नीति का पदार्पण भी जारी है। ऐसे में सरकार भी अपनी नीतियों के पक्ष को रखने में देश के सम्मुख मूकदर्शक बनी हुई है। यदि नवसृजित प्रदेशों में वहां के परंपरागत उद्योगों की अनदेखी करके भूमंडलीकरण और वैश्वीकरण की दौड़ में सम्मिलित उद्योगपतियों व चयनित उद्योगों को प्रमुखता दी गई है। इन राज्यों में औद्योगिक विकास की परिकल्पना मात्र स्वपन ही रह जाएगी। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह गांधी के इस देश में लघु व कुटीर उद्योगों को जिन्हें की उद्योगों की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है पर अपना ध्यान निश्चित रूप से केंद्रित करें। ऐसे उद्योगों को पुनर्जीवित करके आम आदमी कि पेशेवर व व्यवसायिक क्षमता को सुविधा प्रदान करें।
उत्तराखंड सरकार की संकल्प की अभिव्यक्ति यदि कार्यान्वित होती है तो राज्य में उद्योगोन्मुखी वातावरण बनने से आर्थिक संपन्नता पर्याप्त बेरोजगार, प्रतिव्यक्ति आय में बढ़ोतरी, पर्यटन विकास यातायात सुविधाओं का विस्तार, उद्यमिता विकास कार्यक्रमों का नेटवर्क इत्यादि मूलभूत सुविधाओं का विस्तार होगा।
राज्य में उद्योग मित्र की स्थापना मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित किया गया है जो राज्य की विभिन्न उद्योग संगठनों से सीधे रुप से वार्ता के लिए बनाई गई है। वर्ष 2008-2009 में औद्योगिक प्रोत्साहन, मेला, प्रदर्शनी, ₹2 लाख का प्रावधान राज्य सरकार ने दिया है। राज्य में नई औद्योगिक क्षेत्र को बनाने के लिए औद्योगिक विकास को कांर्पोरेशन की स्थापना की गई है। वर्तमान में राज्य में लघु इकाई उद्योग की कुल संख्या 42,340 है।
राज्य की औद्योगिक नीति की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि इसके क्रियान्वयन को सरकारी क्षेत्र का कितना सहयोग उद्यमियों को मिलता है, क्योंकि वर्तमान में औद्योगिक वातावरण तैयार करने के लिए प्रवासी उत्तराखंडवासियों की पूंजी को भी आकर्षित करने के लिए उन्हें पर्याप्त ध्यान देना आवश्यक होगा, साथ साथ देश के अन्य भागों के उद्यमियों में विदेशी उद्यमियों को भी और हित उद्योगों की स्थापना हेतु निवेशक को भी आकर्षित करना होगा, जिसके फलस्वरूप सभी प्रकार के उद्योग परंपरागत लघु, मध्यमवर्ग प्रकार के उद्योगों का विकास किया जा सके।
उद्योगों की स्थापना में क्षेत्रीय विषमता को भी ध्यान में रखना होगा। राज्य के तराई क्षेत्र में जहां पहले से ही उद्योग स्थापित है। अब मांग के अनुसार औद्योगिक दृष्टि से पिछड़े जिलों\क्षेत्रों में उद्योग की स्थापना कच्चे माल की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए करानी होगी, ताकि उद्योगों की स्थापना के बाद कच्चे माल की समस्या से उद्योगों को पलायन से बचाया जा सके। परंपरागत उद्योगों के सरंक्षण और विकास के साथ ही मध्य हुए बड़े उद्योगों की स्थापना भी राज्य में करनी होगी, CST में कमी कराने से यहां पलायन कर रहे उद्योगों को भी रोका जा सकेगा. वहीं कृषि आधारित उद्योगों को भी उक्त राहत के दायरे में लाना होगा।
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