आज इस आर्टिकल में हम आपको वहावी आंदोलन का इतिहास के बारे में बताने जा रहे है.
वहावी मत के आदि प्रवर्तक अरब का अब्दुल अल वहाब (1703- 87) था. उन्हीं के नाम पर इस आंदोलन का नाम वहाबी आंदोलन पड़ा. भारतवर्ष में इस आंदोलन के जन्मदाता और आदि प्रचारक उत्तर प्रदेश के रायबरेली में 1786 ईसवी में पैदा हुए सैयद अहमद बरेलवी थे. पहली बार पटना आने पर सैयद अहमद ने मोहम्मद हुसैन को अपना मुख्य प्रतिनिधि नियुक्त किया था. दोबारा 1821 ईसवी में आने पर उन्होंने यहां चार खलीफा नियुक्त किए, जिनके नाम थे- मोहम्मद हुसैन, विलायत अली, इनायत अली और फरहत अली.
1831 ईसवी में बालकोट की लड़ाई में सिक्खों के खिलाफ लड़ते हुए शहीद अहमद की मृत्यु हो गई. इस लड़ाई में सिक्खों का सेनापति शेर सिंह था. सैयद अहमद की मृत्यु के बाद उनका उत्तराधिकारी तो दिल्ली के मोहम्मद नसरुद्दीन को मिला, किंतु आंदोलन का व्यवहारिक नेतृत्व विलायत अली के पास रहा. वहाबी आंदोलन मूलतः मुस्लिम समाज में एक सुधार आंदोलन था. इस ब्रिटिश विरोधी आंदोलन के दो मुख्य केंद्र थे.
पश्चिमोत्तर सीमांत के अफगान कबीलों की मदद से वहाबीयों ने सितना में एक स्वतंत्र राज्य का गठन किया, जहां सैनिक और आर्थिक साधन पहुंचाने के लिए पटना में एक केंद्र बनवाया गया. यहां से धन और स्वयंसेवक सितना भेजे जाते थे. बंगाल का फरायजी आंदोलन आंदोलन से प्रेरित था, जिसके नेता हाजी शरीयतूल्लाह थे और 1828 ईसवी से 1868 का प्रमुख केंद्र था. 1857 के विद्रोह के समय पटना के वहाबी आंदोलनकर्मी काफी सक्रिय रहे.
बिहार में वहाबी आंदोलन का दमन करने के उद्देश्य से 1863 में अम्बेला और 1865 में पटना में वहाबीयों पर राजद्रोह के मुकदमे चलाए गए और अनेक नेताओं को कारावास की सजा दी गई.
1868 ईसवी में पटना में चुन्नी एवं मो. इस्माइल को गिरफ्तार किया गया. 1869 ई. आमिर खा एवं उसके साथियों को आजीवन काला पानी की सजा देकर अंडमान भेज दिया गया. हालांकि इसके बाद ही है आंदोलन शिथिल पड़ता गया. परंतु ब्रिटिश शासन के विरुद्ध यह भी एक महत्वपूर्ण विद्रोह था.
वहाबीयों ने ब्रिटिश संस्थानों के बहिष्कार का पहला उदाहरण प्रस्तुत किया, इसे राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं ने भी अपनाया. वहाबी आंदोलन केवल धार्मिक आंदोलन नहीं था, बल्कि यह साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई थी. इस के अनुयाई अपने आपको अहले हदीस कहते थे.
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