दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं एक-दूसरे को काटती नहीं है, यदि वे ऐसा करती है तो इसका अर्थ है होगा कि एक ही बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दो दिशाएं है, जो संभव नहीं है।
चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को उस दिशा के रूप में लिया जाता है जिस दिशा में विकसित चक्का उतरी ध्रुव चुंबकीय क्षेत्र में गति करता है। चुंबकीय दिक् सूचक की सहायता से चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को ज्ञात किया जा सकता है। परिपाटी (सुविधा के लिए) ऐसा मान लिया जाता है कि क्षेत्र रेखाएं उत्तरी ध्रुव से निकलती है तथा दक्षिणी ध्रुव में समा जाती है। ये बंद वक्र के रूप में होती है। चुंबक के अंदर बल रेखाओं की दिशा दक्षिण ध्रुव से उतरी ध्रुव की ओर होती है।
किसी धारावाही चालक द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता बढ़ जाती है जब हम धारा के मान को बढ़ाते हैं। जब हम धरा के मान को कम करते हैं, तब चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता कम हो जाती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता चालक ने प्रभावित धारा के मान के समानुपाती होती है।
चुंबकीय क्षेत्र चुंबक के ध्रुवों के पास अधिकतम होता है। इसलिए चुंबक के पास चुंबकत्व क्षेत्र की शक्ति अधिकतम होती है। जैसे-जैसे हम चुंबक से दूर जाते हैं, चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता कम होती चली जाती है। अत: यह दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम के द्वारा धारावाही चालक के चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात की जा सकती है।
दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम- इस नियम के अनुसार, यदि हम अपने दाहिने हाथ में विद्युत धारावाही चालक को इस प्रकार पकड़ते हैं कि हमारा अंगूठा विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करता है तो हमारी उंगलियां चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में लिपटी होगी।
विद्युत चुंबक को परिनलिका का उपयोग करके बनाया जाता है। जब हम परिनालिका में विद्युत धारा प्रवाहित करते हैं, तो परिनालिका के अंदर तथा चारों और चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। जब परिनलिका के अंदर हम नरम लोहे का टुकड़ा/छड़ रखते हैं, तो परिनलिका में प्रबल चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। जिसका उपयोग लोहे के टुकड़े को चुंबक बनाने के लिए किया जाता है। इस प्रकार बने चुंबक को हम विद्युत चुंबक कहते हैं।
युक्तियां जो धारावाही चालकों तथा चुंबकीय क्षेत्र का प्रयोग करती है- विद्युत मोटर, विद्युत जनित्र, लाउड स्पीकर/स्पीकर, माइक्रोफोन, मापक यंत्र।
चिकित्सा में चुंबकत्व का उपयोग-
युक्तियां जो विद्युत मोटर का उपयोग करती है- विद्युत पंखे, रेफ्रिजरेटर, मिक्सर, वॉशिंग मशीन, कंप्यूटर, DVD प्लेयर आदि।
कुंडली में धारा का मान बढ़ा कर, चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता बढ़ाकर, कुंडली में फेरों की संख्या बढ़ाकर।
विभक्त वलय कुंडली में प्रवाहित धारा की दिशा को उत्क्रमित कर देते हैं। यह दिकपरिवर्तक के रूप में कार्य करते हैं।
कार्बन ब्रुश का कार्य घूर्णन करते हुए विभक्त वलय ( दिक् परिवर्तक) के साथ संपर्क बनाना है तथा कुंडली को धारा सप्लाई करना है।
जब हम किसी परिनलिका में चुंबक को अंदर बाहर लेकर जाते हैं तो विद्युत धारा उत्पन्न होती है।इसका अर्थ यह है कि गतिशील चुंबक विद्युत धारा उत्पन्न करता है। इस प्रघटना को विद्युत चुंबकीय प्रेरण कहते हैं। कुंडली के संदर्भ में चुंबक की गति प्रेरित विभवांतर (वोल्टेज) उत्पन्न करती है, जो परिपथ में प्रेरित धारा उत्पन्न करता है।
AC | DC |
धारा निश्चित समय के पश्चात अपनी दिशा बदलती रहती है ( जैसे 1/100s के बाद)। | धारा अपनी दिशा नहीं बदलती है बल्कि एक ही दिशा में प्रवाहित होती रहती है। |
धारा, ac जनित्र द्वारा बहते हुए पानी से उत्पादित की जाती है। | यह किसी से लिया बैटरी द्वारा रासायनिक ऊर्जा को विद्युत में परिवर्तित करके उत्पन्न होती है। |
DC जनित्र में हम कुंडली को घुमाते हैं तथा DC धारा उत्पन्न करते हैं। इससे धारा उत्पन्न होती है। मोटर में हम धारा सप्लाई करते हैं तथा कुंडली को घुमाते हैं। यह धारा/ ऊर्जा का प्रयोग करती है।
तांबे की एक प्लेट, एक मोटी तांबे की तार, एक विद्युत अपघटय (लवण) तथा कोक। पृथ्वी में 10 फुट की गहराई से अधिक एक छेद किया जाता है यहां तक जहां पर मिट्टी गीली रहती है। छेद में विद्युत अपघटन तथा कोक डाला जाता है। तांबे की प्लेट को तांबे की तार से जोड़ा/वेल्ड किया जाता है तथा प्लेट को विद्युत अपघटय में रख देते हैं। लवण की चालकता बढ़ाने के लिए उसमें कुछ पानी डाला जाता है। तार के दूसरे सिरे को विद्युत साधित्र धात्विक आवरण से जोड़ा जाता है।
घरेलू विद्युत साधित्रों को समांतर क्रम में इसलिए जोड़ा जाता है क्योंकि-
अतिभारण का अर्थ है, परिपथ में से उसकी क्षमता से अधिक धारा को प्राप्त करना। इससे परिपथ की तारे गर्म हो जाती है।
फ्यूज सुरक्षा की एक युक्ति है, जिसे विद्यून्मय तार में श्रेणी क्रम में जोड़ा जाता है।
फ्यूज के लाभ-
पतले तार का प्रतिरोध मोटी तार की अपेक्षा कहीं अधिक होता है। यदि धारा या वोल्टेज अधिक है तो यह गर्म हो जाती है और पिघल जाती है। इसलिए परिपथ टूटने के कारण तारे सुरक्षित बच जाती है लेकिन यदि हम मोटी तार का प्रयोग करते हैं, तो उसका प्रतिरोध कम होता है। यह अपने गालनांक तक आसानी से गर्म नहीं होती है। इसलिए मोटे तार को फ्यूज के रूप में प्रयोग करना उचित नहीं है।
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