यहाँ पर हम आपको नखासपिंड आंदोलन का इतिहास के बारे में बताने जा रहे है जो आपको एग्जाम में हेल्प करेंगे.
नखासपिंड आंदोलन का योगदान विशेष रूप से सविनय अवज्ञा आंदोलन के दिनों में नमक कानून भंग करने में रहा है.
नखासपिंड नामक स्थान पटना जिले में है जिसे नमक कानून भंग करने के लिए चुना गया था.
पटना में 16 से 21 अप्रैल, 1930 के बीच नखासपिंड चलो का नारा गूंजा करता था. यहां के लोगों ने महात्मा गांधी के आह्वान पर नमक सत्याग्रह चलाते रहने का दृढ़ संकल्प लिया और पुलिस के जुल्म के आगे कभी नहीं झुके.
16 अप्रैल 1930 को सर्चलाइट के मैनेजर और पटना नगर कांग्रेस कमेटी के सचिव अंबिका कांत सिंह के नेतृत्व में लोगों का एक जत्था पटना के नखासपिंडा नामक स्थान की और नमक कानून भंग करने के लिए चला.
परंतु पुलिस द्वारा इसे रास्ते में ही रोककर कुछ लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया गया. इससे लोगों में उत्तेजना फैल गई और पुलिस से उनका संघर्ष हुआ. इसी बीच दूसरी तरफ से कुछ जत्थे नखासपिंड पहुंच गए और नमक बनाकर नमक कानून भंग किया. इस आंदोलन में बिहार के अनेक प्रमुख नेताओं ने भाग लिया था, जिसमें प्रमुख है- प्रों अब्दुल बारी, राजेंद्र प्रसाद, आचार्य जे बी कृपलानी आदि.
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