असहयोग आंदोलन का इतिहास

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आज इस आर्टिकल में हम आपको असहयोग आंदोलन का इतिहास के बारे में बताने जा रहे है.

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असहयोग आंदोलन का इतिहास

असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में सितंबर 1920 में पारित हुआ, किंतु इसके पूर्व ही बिहार में ऐसे का प्रस्ताव पारित हो चुका था और राष्ट्रवादी ने सरकार से असहयोग आरंभ कर दिया था. 29 अगस्त, 1918 को कांग्रेस ने अपने मुंबई अधिवेशन में मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड पर विचार किया, जिसकी अध्यक्षता बिहार में प्रसिद्ध बैरिस्टर हसन इमाम ने की.

अधिवेशन में रिपोर्ट पर असंतोष जाहिर करते हुए ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालने के लिए हसन इमाम के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल को इंग्लैंड भेजने का प्रस्ताव किया गया. इस बीच क्रांतिकारियों के दमन के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा रोलेट एक्ट के कुछ उपबधों का इस्तेमाल किया गया.

इस काले कानून के खिलाफ गांधी जी के नेतृत्व में पूरे देश में जनआदोलन छिड गया. बिहार में 6 अप्रैल, 1919 को हड़ताल हुई. असहयोग आंदोलन के क्रम में मजहरुल हक, डॉ राजेंद्र प्रसाद, ब्रज किशोर प्रसाद, मोहम्मद रफी और अन्य नेताओं ने विधायिका के चुनाव से अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली.

महेंद्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह तथा बृज नंदन प्रसाद आदि ने अदालतों का बहिष्कार किया. छात्रों को वैकल्पिक शिक्षा प्रदान करने के लिए पटना-गया रोड पर एक राष्ट्रीय महाविद्यालय की स्थापना की गई. इस राष्ट्रीय महाविद्यालय के ही प्रांगण में बिहार विद्यापीठ का उद्घाटन 6 फरवरी 1921 को गांधी जी द्वारा किया गया.

मजहरुल हक इस  के कुलाधिपति, ब्रज किशोर प्रसाद कुलपति तथा डॉ राजेंद्र प्रसाद महाविद्यालय के प्राचार्य  बने. 30 सितंबर, 1921 को मजहरुल हक ने सदाकत आश्रम से दी मदरलैंड नामक अखबार निकालना प्रारंभ किया.

22 दिसंबर, 1921 को ब्रिटेन के युवराज का पटना आगमन हुआ. इस दिन पूरे शहर में हड़ताल रखी गई. असहयोग आंदोलन अपने चरम पर  था कि 5 फरवरी, 1922 को चौरी चौरा कांड के फलस्वरूप गांधी जी ने आंदोलन स्थगित कर दिया. इसके बाद 10 मार्च, 1922 को गांधीजी गिरफ्तार कर लिए गए. इन घटनाओं का असर बिहार पर भी हुआ तथा असहयोग आंदोलन का प्रभाव समाप्त होने लगा.

खिलाफत आंदोलन एवं असहयोग आंदोलन में बिहार में राजनीतिक चेतना जगाने में निर्णायक भूमिका निभाई. बिहार अब पूरी तरह राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्य धारा से जुड़ गया. आंदोलन का सबसे व्यापक प्रभाव तत्कालीन मुजफ्फरपुर जिलों और शाहाबाद जिलों में देखा गया.

आरा, गया, रांची, गिरिडीह, मुंगेर, किशनगंज, और पूर्णिया के नगर भी इसमें प्रभावित हुए. पटना इसका मुख्य केंद्र रहा. मुसलमानों में भी एक नई चेतना जागी. ब्रिटिश सरकार के असहयोगकर्म में ही फुलवारीशरीफ में मौलाना सज्जाद द्वारा इमारते-शरिया संस्था का गठन हुआ जो अभी भी सक्रिय है.

इसका कार्य क्षेत्र बिहार एवं उड़ीसा था और इसके माध्यम से मुसलमानों द्वारा सभी धार्मिक और सामाजिक मामलों में सरकारी संस्थाओं की सहायता के बिना निर्णय लेने और उनका सावधान करने की व्यवस्था की गई थी.

0 thoughts on “असहयोग आंदोलन का इतिहास”

  1. असहयोग आंदोलन चौरी चौरा कांड के कारण रुक गया था लेकिन बाद में इसे सविनय अवज्ञा के नाम से शुरू किया गया
    इन सभी आंदोलनों ने अंग्रेज़ो की ईंट से ईट बाजा दी थी
    इसकी जानकारी आज के युवा को होनी चाहिए
    आप आज के समय में अपने बच्चो को देश का इतिहास बता सकते हैं
    जिससे उन्हे देशभक्ति का भाव समझ आयेगा

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