वेल्डन शाला में काम करने के लिए विभिन्न प्रकार के औज़ार प्रयोग किए जाते हैं। वे निम्नलिखित है-
कर्तन औजार धातुओं के कर्तन करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं यह कर्तन औजार अनुसार निम्नलिखित हैं-
वेल्डन प्राय: तीन प्रकार की छैनिया प्रयोग करते है-
ये छैनिया ढ़लवा इस्पात की बनी होती है तथा सख्त की हुई तथा पानी चढी (टेंम्पर्ड) होती है। इसके काट का कोण 60 डिग्री से 70 डिग्री के बीच होता है। चपटी छेनी को ग्राइंड करते समय उसकी धार का बीच का भाग कुछ बाहर निकला (उत्तल) होता है ताकि काटते समय छेनी के किनारे धातु में फंसकर गड्ढा न बना दे।
इसके द्वारा रगड़कर सतहों पर से धातु उतारी जाती है। रेतिया कई मापो व आकृतियों की होती है जो निम्नलिखित है-
यह हाथ से चलाकर बांक में बनी धातुओं को काटने के लिए प्रयोग की होती है। इसका ढांचा साधारण नर्म इस्पात का बना होता है. यह आरी 200 मिमी से, 250 मिमी तथा 300 मिमी मानक लंबाई की मिलती है। ढांचा में कठोर की हुई इस्पात की भी ब्लेड लगती है। महीन दांतों वाली ब्लेड से 22 से 32 दांते प्रति 25 मिपी में बने होते हैं। सख्त धातुओं को काटने के लिए ब्लेड में 14 से 18 दातें प्रति 25 मिमी में कटे होते है। इस आरी द्वारा कटाई आगे की ओर जाने में होती है, इसलिए ब्लेड लगाते समय सदैव उसके आगे की तरफ ही झुके होने चाहिए।
ये बेदाग इस्पात का बना। यह कई आकारों और आशंकानों में प्राप्त होते हैं जिनमें 150 मिमी तथा 30 मिमी वाले प्रमुख है। इसमें पृष्ठ की एक कोर की ओर इंची तथा दूसरी कोर की ओर सेमी व मिमी में निशान खुदे होते हैं। यथार्थ नाप लेना सिरे से प्रारम्भ करके नहीं नापना चाहिए क्योंकि सिरे के घिस जाने से कभी-कभी पहला भाग छोटा हो जाता है।
यह जंग-रोधी इस्पात का व दो नुकीली तथा परस्पर ढीली जुड़ी हुई भुजाओं वाला औजार होता है। यह साधारण तथा कमानी दोनों ही प्रकार की होती हैं-
कैलीपर्स यह दोनों प्रकार की होती हैं
यह बाहरी व्यास तथा कार की मोटाई तथा चौड़ाई नापने के लिए प्रयोग किए जाते है.
यह अंदर का व्यास या अन्य आंतरिक नाप लेने के लिए प्रयोग किए जाते है।
यह कोरों के समांतर रेखाएं तथा बैलकार कार्य का केंद्र ज्ञात करने के लिए विशेष रूप से प्रयोग किए जाते हैं.
कोई भी कैलिपर्स सीधे ही दूरी नहीं नापते बल्कि नापी जाने वाले दूरी को टांगों के बीच में भरकर फिर उसे वाछित पैमाने पर रखकर वांछित दूरी पढ़ ली जाती है।
इसके द्वारा किसी भी सतह की चोरसता जांचने के लिए उक्त सतह पर गुनिया का ब्लेड स्टाकर खड़ा करके आगे पीछे खिसखाते हुए दूसरी ओर से आने वाले प्रकाश को देखा जाता है। यदि प्रकाश नहीं दिखता है तो सतह चोरस है। ब्लेड की जिस स्थिति में प्रकाश दिखाई दे वहीं ब्लेड के सारे उभरे बिंदु होते हैं। जिन्हें घिसकर पुन: उसी प्रकार से जांच कार्य दोहराया जाता है।
इसमें पेंसिल की तरह धातुखडो पर खरोंच कर निशान बनाए जाते हैं। ये एक लंबा व नुकीला कठोर इस्पात का मोटा तार होता है। यह दो प्रकार के होते हैं इसमें एक खरोंची में एक और नुकीला बिंदु तथा दूसरी ओर छल्ला बना होता है। दूसरे प्रकार की खरोंची में एक सीधा सीधा तथा दूसरा समकोण पर मोड़ दिया जाता है। जिनमें 1 स्थान पर भी निशान खरोंचे जा सके जहां सीधा सीधा नहीं पहुंच सकता। खरोंची लगभग 20 मिमी लंबी तथा 5 मिमी व्यास की होती है जिसके लिए लगभग 15 डिग्री पर घिसकर नुकीले किए जाते हैं।
इसमें मशीनों के आधार का लेवल देखा जाता। इसमें कई बार छोटा लेवल बड़े लेवल के साथ 90 डिग्री के कोण पर फिट होता है जो सतह के लंबवत में होने को चेक करता है।
यह अलग अलग मापन औजारों का सयोग होता है। इसमें एक साधारण अंशाकीत पैमाना होता है। जिसके पीछे थोड़ा गहरा कुल लंबाई में एक खाचा कटा होता है जिसकी सहायता से पैमाने के ऊपर अन्य भाग आगे पीछे चलाएं तथा किसी भी स्थान पर बद्ध किए जा सकते हैं। यह जंग रोधी इस्पात का बना होता है। इसके निम्न भाग है –
यह चिन्ह औज़ार है जिसका प्रयोग भी वेल्डन संरचना को उधर्व रूप से जांचने में किया जाता है, यह इस्पात या पीतल का बना होता है।
इन गेजों का प्रयोग जोड़ में भरी गई पूरक धातु की मोटाई आदि मापने के लिए किया जाता है। विभिन्न आकार की पटियाँ एक रिवेट द्वारा होल्ड में फिट होती है। यह पतियां क्रोममियम इस्पात की बनाई जाती है तथा प्रत्येक पत्ती पर उसका आकार लिखा होता है इसकी सहायता से फिलेट जोड़ को जांच लिया जाता है।
इसमें मुख्य रूप से हथोड़े का प्रयोग किया जाता है। ये निम्न प्रकार की होते है-
ये तीन प्रकार के होते हैं
इसको घन भी कहते हैं। इसका उपयोग अधिक भारी चोट लगाने के लिए होता है। कारीगर अपने छोटे हथोड़े से कार्य सतह पर चोट देकर अपने सहायक स्थान पर चोट लगाने के लिए इशारा करता रहता है। इसके दोनों फेश फ्लेट होते हैं। इसका भारत 9 कि.ग्रा. के आसपास रहता है।
जब भारी या बड़े पैमाने पर कार्य किया जाता है तो शक्ति से चलने वाले घनों का प्रयोग किया जाता है।
इन औजारों की सहायता से कार्य जकड़ कर पकड़ा जाता है। इसके अंतर्गत निम्न औजार आते हैं
यह कई प्रकार की होती है। वैल्डनशाला में बेंच बॉक मुख्य रूप से प्रयोग की जाती है।
इसका मुख्य ढांचा ढलवा लोहे का बना होता है तथा दो भागों में होता है। अचल भाग जो नट व बोल्ट की सहायता बैंच में कस दिया जाता है तथा दूसरा चल भाग एक चूड़ी कटे मृदू इस्पात के बने तुर्क तथा हत्थे की सहायता से आगे पीछे चल सकता है। ये तुर्क अचल हिस्से के अंदर स्थिर नट में होकर गुजरता है। इस नट को साधारणत बोक्स नट कहते हैं । जो पीतल या बंदूक धातु की बनाई जाती है। बांक का आकार उसके जबड़ों की चौड़ाई तथा जबड़ों के खुलने की अधिकतम दूरी से आँका जाता है। साधारणत 8 सेमी से 15 सेंटीमीटर तक चौड़े जबड़ों वाली तथा 10 सेंटीमीटर से 15 सेंटीमीटर तक खुलने वाली बेंच वाइस होती है।
बेंच बाँक के भाग | धातु का नाम जिसका भाग बना है |
स्थिर जबड़ा | ढलवां लोहा |
चल जबड़ा | ढलवां लोहा |
जबड़ा प्लेट | औज़ार इस्पात |
स्पीण्डल | नर्म इस्पात |
हत्था | नर्म इस्पात |
गाइड | पीतल, टॉप धातु ढलवां लोहा |
इसका कार्य गर्म को पकड़ने के लिए किया जाता है यह निम्न प्रकार की होती है-
इसके द्वारा कार्य खंड की सही स्थिति में पकड़ कर रखा जाता है ताकि सफलतापूर्वक वेल्डिंग की जा सकती है।
यह कार्य खंड को वेल्डिंग करने से पूर्व सीध मे रखने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
वेल्डर के लिए आंखों की रक्षा करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि आंखें बहुत कीमती है। उसे गोगल्स के चयन में काफी सतर्कता अपनानी चाहिए। अच्छे गोगल्स का रंग गहरा लाल एवं हरा होता है।
यह प्राय: क्रोम चमड़े का बना होता है जिसे सामने की ओर लटका कर कमर तथा गर्दन के चारों और बांधते हैं, यह वेल्डर के कपड़ों को केवल चिंगारियों से ही नहीं बचाता वरन यह आर्क की गर्मी के अतिरिक्त आर्क की हानिकारक किरणों से भी बचाता है।
इन्हें वेल्डर अपने हाथों तथा कुहानियों को वेल्डिंग की गर्मी तथा धातु के कणों के छिड़काव से बचने के लिए पहनते हैं। यह दस्ताने प्राय क्रोम चमड़े के बने होते हैं। परंतु कैनवास तथा एस्बेस्टस के बने दस्ताने अपेक्षाकृत हल्के होते हैं। जिन्हें पकड़कर वेल्डिंग टॉर्च को पकड़ने में कठिनाई नहीं होती है।
वेल्डर को पैर से ऊपर तक उनके टॉप वाले जूते पहनने चाहिए क्योंकि साधारण जूतों में पिघले धातु के कण अंदर जा सकते हैं।
यह एक तरफ से नुकीली छोटी हथौड़ी होती है जिसके द्वारा वेल्डिंग पर जमा धातुमल पीटकर हटाया जाता है।
यह स्टील के तारों द्वारा बना एक ब्रुश है जिसे वेल्ड को साफ करने के काम में लाते हैं।
इसमें 120 से 140 किमी\सेमी2 दाब की दर से गैस भरी जाती है, इसलिए यह सिलेंडर शक्तिशाली इस्पात प्लेट का बना होता है। इसके चेहरे पर तेल या गैस का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऑक्सीजन इस के संपर्क में आते ही प्रज्वलित हो उठती है। ऑक्सीजन सिलेंडर को एसिटिलीन जरनेटर के कमरे में कभी नहीं रखना चाहिए।
एसिटिलीन सिलेंडर को डिजोल्वड सिलेंडर कहते हैं। इसका कारण यह है कि यदि शुद्ध एसिटिलीन को 16 किलोग्राम\वर्ग सेंटीमीटर पर सिलेंडर में भरा जाए तो वह है सिलेंडर को बर्स्ट कर देगी। इसलिए सिलेंडर में डिजोल्वड और एसिटिलीन ही भरी जाती है।
सिंगल स्टेप रेगुलेटर टू स्टेज रेगुलेटर
सिलेंडर ट्राली और मैनीफोल्ड सिस्टम
इसे वेल्डिंग टॉर्च भी कहते हैं इसमें एसिटिलीन एवं ऑक्सीजन गैस जो पृथक पृथक पाइप द्वारा प्रवेश करती है। इनकी सप्लाई को रेगुलेटर वाल्वों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। यह निम्न प्रकार से वर्गीकृत किए जाते हैं-
यह दो प्रकार के होते हैं
वेल्डिंग के दौरान टिप मे काठ आदि मेल जमा हो जाता है, जिससे उसके सुराख बंद हो जाते हैं। उसे नर्म तांबे के बारीक तार द्वारा साफ करते हैं।
गैस वेल्डिंग तकनीक जिसमें लाट जोड़ पूरी होने की दिशा में रखा जाता है।
वह वेल्डिंग जो लोहार अपनी भट्टी की सहायता से करता है।
आर्क जलाते समय इलेक्ट्रोड का बेस धातु से जुड़ जाना।
एक सेकंड में धारा की दिशा बदलने की मात्रा।
ढालना अथवा पिघलाना, बिजली के उपकरणों की सुरक्षा के लिए प्रयोग किया जाने वाला विशेष साधन।
सुविधा जिसस कोई वस्तु पिघलाई जा सकती है।
वैल्ड धातु में गैसों के कारण खाली बचा स्थान।
रंगदान शीशे की ऐनके
धातु के महीने कण।
झिरी के तलों का केंद्रीय कोण।
विशेष प्रकार की झिरियों में वैल्ड धातु भरना।
फ़ोर्ज वेल्डिंग को ही हैमर वेल्डिंग कहा जाता है।
वेल्डिंग क्रिया द्वारा वस्तुओं के ऊपरी तलों को कठोर करना।
वह स्थान जिस पर वेल्डिंग ताप का कुप्रभाव हो चुका हो।
ताप सुचालकता का गुण।
थर्मिट वेल्डिंग के सांचे में बाघ को गर्म करने के लिए रखा गया स्थान।
इसके कारण धातु गर्म होकर भूरभूरी हो जाती है। यह अधिक सल्फर तथा फास्फोरस की मात्रा के कारण होती है।
यह चोट को सहन करने की शक्ति को प्रकट करता है।
वेल्डिंग के समय उपयुक्त भाग पकड़ने का विशेष सावधान जो काम के भिन्न-भिन्न भागों को ठीक स्थिति तथा सीध में पकड़ कर रखता है।
अर्थात जोड़ जहां किसी भाग के जुड़ने वाले तल मिलते हैं।
कार्य की इकाई एक ओह्रा कि रजिस्टेंस में 1 एंपियर का करंट एक सेकेंड के लिए गुजारने के लिए लगाई शक्ति।
वह जोड़ जिसकी अलग-अलग भाग वेल्डिंग के समय चलने के लिए स्वतंत्र हो।
लोहे को स्टेनलेस स्टील बनाने के लिए प्रयुक्त धातु।
गैस वेल्डिंग की वह लाट जिसमें ऑक्सीजन अथवा एसिटिलीन की मात्रा आवश्यकता से अधिक न हो।
2\3 भाग निकील तथा 1\3 भाग तांबे को मिला कर बनाई गई मिश्रित धातु।
वेल्डिंग टॉर्च अथवा ब्लो पाइप का वह भाग जहां गैस जलने से पूर्व आपस में मिलती है।
वेल्ड धातु को पिघलाने की गति।
वह वैल्ड जो वेल्डिंग रॉड अथवा टॉर्च के हाथ से चला कर पूरा किया जाता है।
अनेक वह मुहँ वाला सिर, जिससे कई सिलेंडर अथवा टॉर्च जोड़ी जा सकती है।
लंबाई की और पूरा किया जोड़।
कट की चौड़ाई को कर्फ़ कहते हैं।
बिजली की शक्ति की इकाई = 1000 वाट
पर्तों में जोड़ी सीटें
वैल्ड दो भागों के किनारों को कुछ मात्रा में एक दूसरे पर चढ़ाकर वैल्ड करना।
वैल्ड धातु की जमाई हुई एक पर्त।
फिलिट के समकोण पक्षों की लंबाई।
नीली सफेद झलक वाली दानेदार धातु।
यील्ड प्वाइंट तथा मापी गई शक्ति तथा स्ट्रेस।
स्ट्रैस कि वह सीमा जहां लोड को बढ़ाएं बिना ही इसकी विरुपता अथवा लंबाई बढ़ती जाती है ।
वह जुड़ा हुआ भाग जिसके जोड़ वेल्डिंग से पूरे किए जाएं।
धातु की ठीक प्रकार वैल्ड हों जाने की सामर्थय
वह धातु जो फिलर मेटल तथा ठोस मेटल के पिघल कर मिलने के कारण बनती है।
इलेक्ट्रोड चलाने की विशेष विधि जिसमें बीड की चौड़ाई बढ़ाई जा सकती है।
पावर की इकाई, 1 जूल प्रति सेकंड।
घूम जाना, अपनी रेखा से टेढ़ा हो जाना आदि।
जोड़ की जड़ को रुट कहते हैं।
यह रूट का बाहरी किनारा होता है।
यह रूट की लंबाई की और खड़ा तल है।
यह रूट के ऊपरी तलों पर दी गई गोलाई का अर्ध व्यास है।
मेल की परत।
जोड़ के तिरछे किए तल।
वह वैल्ड जो जोड़ को टाइट करने के लिए पूरा किया जाता है।
वेल्डिंग जोड़ की रेखा अथवा जोड़कर किनारों की लंबाई।
वैल्ड धातु पर जमी फ्लक्स की परत।
वेल्डिंग आरंभ करने से पूर्व काम को गर्म करने की क्रिया।
उचित वार्ता प्रत्यक्ष वाट का अनुपात।
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