आज इस आर्टिकल में हम आपको 1857 का विद्रोह का इतिहास के बारे में बताने जा रहे है.

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1857 का विद्रोह का इतिहास
1857 की क्रांति की शुरुआत बिहार में 7-12 जून, 1857 ई. को देवघर जिले (जो अब झारखंड में) के रोहिणी गांव में सैनिकों के विद्रोह से हुई. इस विद्रोह में लेफ्टिनेंट नॉरमल लेस्ली एवं सहायक सर्जन डॉक्टर ग्रांट मारे गए.
इस विद्रोह को मेजर मैकडोनाल्ड द्वारा सख्ती से कुचल डाला गया तथा विद्रोह में शामिल तीनों सैनिकों को 16 जून को फांसी दे दी गई. 3 जुलाई, 1857 को पटना सिटी के एक पुस्तक विक्रेता पीर अली के नेतृत्व में अंग्रेजो के विरुद्ध संघर्ष हुआ. पटना सिटी के चौक तक के इलाके को विद्रोहियों ने अपने कब्जे में ले लिया.
इस विद्रोह में अफीम के व्यापार का एजेंट आर. लायल मारा गया. परंतु कमिशनर टेलर ने इस विद्रोह को बलपूर्वक दबा दिया. पीर अली के घर को नष्ट कर दिया गया तथा पीर अली समेत 17 व्यक्तियों को फांसी दे दी गई.
25 जुलाई, 1857 को मुजफ्फरपुर में असंतुष्ट सैनिकों ने कुछ अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर दी. उसी दिन दानापुर के 3 रेजीमेंटों के सैनिक विद्रोह हो गए और उन्होंने शाहाबाद जिले में पहुंचकर जगदीशपुर के जमीदार बाबू कुंवर सिंह से मिलकर विप्लव प्रारंभ किया. कुंवर सिंह ने कमिश्नर टेलर के आगरा को ठुकरा कर अपने 4000 सैनिकों के सहयोग से संघर्ष प्रारंभ किया. सबसे पहले उन्होंने 27 जुलाई को आरा पर नियंत्रण कर लिया.
आरा में हुए युद्ध में कैप्टन डनबर सहित कई अंग्रेज सैनिक मारे गए. 30 जुलाई, 1857 ई. को सरकार ने तत्कालीन सारण, तिरहुत, चंपारण और पटना जिलों में सैनिक शासन लागू कर दिया गया. कुंवर सिंह को आरा छोड़ना पड़ा. इसके बाद कुंवर सिंह ने नाना साहिब से मिलकर 26 मार्च 18 को आजमगढ़ में अंग्रेजों को हराया.
23 अप्रैल, 1858 ई. को कैप्टन ली ग्रांड के नेतृत्व में आए ब्रिटिश सेना को कुंवर सिंह ने पराजित किया. लेकिन इस लड़ाई शिवपुर घाट पर नदी पार करते समय ब्रिगेडियर डगलस के तोप के गोले से उनका बायाँ हाथ बुरी तरह घायल हो गया और 2 दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई.
संघर्ष का क्रम उनके भाई अमर सिंह ने आगे बढ़ाया. शाहाबाद में उनका नियंत्रण बना रहा. 9 नवंबर 1858 ई. तक अंग्रेजों का क्षेत्र पर अधिकार नहीं हो सका. महारानी द्वारा क्षमादान की घोषणा के बाद ही इस क्षेत्र में विद्रोहियों ने हथियार डाले.
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