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अलैंगिक जनन के विभिन्न प्रकार कौन से हैं?

अलैंगिक जनन के विभिन्न प्रकार कौन से हैं?, कायिक जनन के प्रकार, वर्धी प्रजनन क्या है, मानव जनन कैसे करता है।, निषेचन के प्रकार, प्रजनन कितने प्रकार के होते हैं, पुष्पी पादपों में जनन, कवक में जनन, euglena में प्रजनन

अलैंगिक जनन के विभिन्न प्रकार कौन से हैं?

अलैंगिक जनन में नर तथा मादा दोनों जीवो की आवश्यकता नहीं होती है। इसमें युग्मक नहीं बनते हैं। इस विधि में नर या मादा जीव अपनी संख्या बढ़ाते हैं। अलैंगिक जनन की विभिन्न विधियां निम्नलिखित है-

द्विविखंडन

जब विखंडन प्रक्रिया द्वारा एक जीव से दो जीव बनते हैं, तो इस प्रक्रिया को द्विविखंडन कहते हैं। पहले जीव-कोशिका को केंद्र की विभाजित होता है तथा उसके बाद जीवद्रव्य होता है।

बहुखंडन

इस विधि में पूर्ण विकसित जीव को केंद्रक अनेक केंद्रको में समसूत्री विभाजन द्वारा विभक्त हो जाता है। इसके परिणाम स्वरूप अनेक केंद्रक बनते हैं। इसके पश्चात प्रत्येक केंद्र थोड़े-थोड़े जीव द्रव्य द्वारा घिर जाता हैं और अनेक संतति कोशिकाएं बनती है। उदाहरण प्लाज्मोडीयम

मुकुलन

पूर्ण विकसित पादप/जंतु के शरीर में से एक उभार-सा विकसित होता है, जिसे मुकुल कहते हैं। मुकुल के साथ वाली कायिक कोशिका से केंद्र के दो भागों में विभक्त हो जाता है तथा 1 केंद्रक मुकुल में प्रवेश करता है। मुकुल जीव के शरीर से अलग हो जाती है तथा पूर्ण रूप में विकसित होती है। उदाहरण- हाइड्रा, यीस्ट

बीजाणुओं द्वारा

यह प्रक्रिया कवक तथा जीवाणुओं में होती है। इनसे विकसित बीजाणुधानी में अनगिनत बीजाणु होते हैं। बीजाणुधानी के अंदर केंद्रक अनेक बार विभक्त होकर बीजाणु बनाता है। यह बीजाणु जब किसी नमी युक्त स्थान पर गिरते हैं तो अंकुरित होकर थैलस (कवक) बनाते हैं। उदाहरण के लिए- राइजोपस, म्यूकर, पैनिसिलियम आदि।

पुनरुदभवन

किसी जीव के शरीर के टूटे हुए या छोटे से भाग से पूर्ण जीव के विकसित होने की प्रक्रिया जा अंग के विकास की प्रक्रिया को पुनरुदभवन कहते हैं। उदाहरण- पुनरुदभवन की प्रक्रिया हाइड्रा, प्लेनेरिया तथा स्पंज में होती है।

कायिक प्रवर्धन

पौधे के किसी का एक भाग से पौधा उगाने की प्रक्रिया, कायिक प्रवधन कहलाती है। इस जनन में बीजों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। यह मुख्यतः दो प्रकार का होता है- प्राकृतिक, कुत्रिम।

प्राकृतिक कायिक प्रवधन

पौधे के शरीर पर उपस्थित कलिकाओं से पौधा प्राप्त करने की क्रिया, प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन कहलाती है। यह कलिकाएँ पौधे के तने, जड़ तथा पत्तों पर हो सकती है- जैसे तना, जड़, पत्ती, इत्यादि।

कृत्रिम कायिक प्रवर्धन

मनुष्य स्वयं कर्म द्वारा परतन रोपण द्वारा पौधे तैयार कर सकता है। इस विधि को कृत्रिम कायिक प्रवर्धन कहते हैं, जैसे- आम, सेब।

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