आज इस आर्टिकल में हम आपको बहमनी साम्राज्य से जुड़ी जानकारी देने जा रहे है जो निम्नलिखित प्रकार से है-
बहमनी साम्राज्य से जुड़ी जानकारी

बहमनी साम्राज्य
अल्लाउद्दीन बहमन शाह ने 1327 ईस्वी में बहमनी राज्य की स्थापना की तथा गुलबर्गा को अपनी राजधानी बनाया. हुमायूं सहाय 1458 ईस्वी में बहमनी का शासक बना, जिसे जालिम शासक के रूप में जाना जाता है. मोहम्मद गवाने रोजलिन साथ था, दीवान-ए-असर नामक दो प्रसिद्ध रचनाएं की. 1538 ईस्वी में कलीमुल्ला की मृत्यु के बाद बहमनी 5 मुस्लिम राज्यों में विभक्त हो गया.
सूफी आंदोलन
सूफी मत के आध्यात्मिक प्रवर्तक को पीर था शीशे को मुरीद कहते हैं. प्रत्येक पीर अपना एक अनुत्तर नामाकित करता था, जिसे वर्ली कहा जाता था. सूफियों के आश्रम खान कहा कहलाते थे. सूफी मत के 12 सिलसिले विद्यमान थे, जिनमें प्रमुख सिलसिले जो भारत में विद्यमान थे, वही चिश्ती, नकशाबंदी, सुहार वर्दी, फिरदौसी, कादिरी इत्यादि.
चिश्ती संप्रदाय
1192 ईस्वी में मोहम्मद गौरी के साथ ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भारत आए, इन्होंने यहां चिश्ती परंपरा की शुरुआत की. चिश्ती परंपरा का मुख्य केंद्र अजमेर था. मोदी जी के शिष्य ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी तथा बख्तियार काकी के शिष्य बाबा फरीद थे.
सुहरावर्दी संप्रदाय
इसके संस्थापक शहाबुद्दीन सवार वर्दी थे. सुहरावर्दी धर्म संघ के अन्य प्रमुख संत थे – बहाउद्दीन जकारिया, हमीदुद्दीन नागौरी, अलाउद्दीन तबरीजी, बुरहान आदि.
नक्शबंदी संप्रदाय
इसकी स्थापना कब आ जा अब्दुल्ला ने की, भारत में इसकी स्थापना कब आ जा बाकी बिल्लाह द्वारा की गई. शेख अहमद सर हिंदी इस संप्रदाय के प्रमुख संत थे, जिन्हें जहांगीर ने कैद किया था.
अन्य संप्रदाय
शेख अब्दुल्ला सतारी ने सतवारी सूफी सिलसिले की स्थापना की. छतारी सिलसिले का मुख्य केंद्र बिहार था. कादरी संप्रदाय का संस्थापक अब्दुल कादिर जिलानी था. भारत में इस संप्रदाय की स्थापना का श्रेय मोहम्मद गौस को शाहजहां का पुत्र दारा शिकोह कादरी संप्रदाय के मूल्य शाह का शिष्य था.
सूफीमत एवं उनके प्रवर्तक
सूफी मत | प्रवर्तक |
चिश्ती | मोइनुद्दीन चिश्ती |
सुहरावर्दी | शहाबुद्दीन सुहरावर्दी |
नक्शबंदी | ख्वाजा बाकी बिल्लाह |
कादरी | अब्दुल कादिर जिलानी |
सतारी | शेख बदरुद्दीन |
फिरदौसी | शरीफ उद्दीन |
ऋषि | शेख नूरुद्दीन |
भक्ति आंदोलन
भक्ति आंदोलन का आरंभ दक्षिण भारत से हुआ. 17 तारीख के अद्वैतवाद की प्रतिक्रिया में भक्ति संतों ने दार्शनिक विचारों का प्रतिपादन किया. दक्षिण भारत में भक्ति आंदोलन के प्रसार का सरिया 12 अलवार तथा श्रेष्ठ नयनार संतो को है. अलवार वैष्णव तथा नयनार शैव संत थे.
रामानुजाचार्य
रामानुजाचार्य का जन्म 1017 ईस्वी में पेरंबूर में हुआ. उन्होंने विशिष्टाद्वैत का दर्शन दिया. प्रसिद्ध वैष्णव संत रामानंद उनके शिष्य थे.
रामानंद
रामानंद का जन्म 1299 इसमें प्रयाग में हुआ, वह रामानुजाचार्य के शिष्य थे. उन्होंने भक्ति साधना को मोक्ष का मार्ग बताया.
कबीर दास
कबीर दास जन्म 1425 वाराणसी के निकट लहरतारा के पास हुआ था. रामानंद के शिष्य थे. कबीर दास निर्गुण भक्ति का प्रसार किया. उनके अनुयायी कबीरपंथी कहलाए. उनकी वाणी बीजक नामक ग्रंथ में संकलित है.
गुरु नानक
गुरु नानक का जन्म पंजाब की तलवंडी नामक स्थान में 1469 ईस्वी में हुआ था. नानक ने सिख धर्म की स्थापना की. सूफी संत बाबा फरीद से प्रभावित थे. नानक की वाणी गुरु ग्रंथ साहब में संकलित है.
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चैतन्य
जिनका जन्म 286 ईस्वी में बंगाल के नदिया जिले में हुआ था. उन्होंने गोसाई संघ की स्थापना की तथा कीर्तन प्रथा का प्रचलन किया एवं कृष्ण भक्ति पर जोर दिया. चीते ने आदित्य भेदाभेदवादर्शन का प्रतिपादन किया.
तुलसीदास
तुलसीदास का जन्म बांदा के राजपुर गांव में 1554 ई. में हुआ.अकबर के समकालीन थे. तुलसीदास ने अवधि में रामचरितमानस की रचना की तथा राम भक्ति को प्रसिद्धि प्रदान की.
रैदास
रैदास रामचंद्र के शिष्य थे, उन्होंने हरिदासी संप्रदाय की स्थापना की. मीराबाई ने रैदास को अपना गुरु बनाया था.