बस्तर संभाग
भ्रमर कोट\चक्रकोट
जगदलपुर
4052.15 वर्ग किमी
7 (जगदलपुर, बस्तर, बकावंड, लोहड़िगुड, तोकापाल, दरभा, वास्तानार)
606
07
317
01
0
8
01
8,34,375
4,13,706
4,20,669
1,26,892
63,877
63,015
53.15 प्रतिशत
63.02 प्रतिशत है
43.49 प्रतिशत
130 प्रति वर्ग किमी
1000:1017
05
13
23
पर्यटन स्थल | पर्यटन स्थल की श्रेणी | मुख्य दर्शनीय स्थल |
जगदलपुर | ऐतिहासिक, धार्मिक | दंतेश्वरी मंदिर, राजमहल, दलपत सागर, संग्रहालय |
कोंडागांव | सांस्कृतिक | शिल्पग्राम |
बस्तर | पुरातात्विक | शिल्पग्राम, संग्रहालय |
केशकाल | प्राकृतिक | घाटी, तेलीनमाता का मंदिर |
नारायण पाल | पुरातात्विक | विष्णु मंदिर एवं भद्रकाली मंदिर |
भोंगापाल | पुरातात्विक | बौद्ध विहार |
चित्रकोट | प्राकृतिक | जलप्रपात |
कांगेरघाटी | राष्ट्रीय उद्यान | जलप्रपात, गुफाएँ |
गढ़घनोरा | पुरातात्विक | प्राचीन शिव, विष्णु, नरसिंह मंदिरों का समूह |
माचकोट | प्राकृतिक | आरक्षित वन |
अबूझमाढ | प्राकृतिक | पाषाणयुगीन और |
लाल एवं पीली मिट्टी।
चावल, गेहूं, बाजरा, तिलहन, गन्ना
कांकेर घाटी, राष्ट्रीय पार्क।
इंद्रावती
बॉक्साइट, मैग्नीज, लोहा अयस्क, तांबा, चूना-पत्थर, डोलोमाइट, अभ्रक, ग्रेफाइट, हीरा, सिलीमेंनाइट एस्बेस्टस, कोरंडम, टिन अयस्क, सोना, बेरिल, संगमरमर
दशहरा मेला, फूल पदर, (होली पर्व पर), गडई मेला।
काजू संवर्धन इकाई, जय बजरंग सीमेंट प्रा. लिमिटेड, रेशम उद्योग।
गोंड, भतरा, मडिया, मुंडिया, भैना, पारधी, गाड़ाबा।
16, 43, 200, 221।
बकावांड -(बस्तर)
बस्तर विश्वविद्यालय, जगदलपुर (2008)।
देवरली मंदिर, चंद्रादित्य मंदिर, मामा-भांजा मंदिर, बत्तीसा मंदिर।
गुढ़ियारी मंदिर ( केसरपाल, बस्तर) ।
नाम | नदी | स्थान |
चित्रकूट | इंद्रावती | जगदलपुर (बस्तर) |
तीरथगढ़ | मूंगाबहरा | जगदलपुर (बस्तर) |
सातधारा | इंद्रावती | जगदलपुर (बस्तर) |
महादेव धुमर | इंद्रावती | जगदलपुर (बस्तर) |
कांगेर धारा | कांगेर | जगदलपुर (बस्तर) |
चर्रेचर्रे-चर्रे झरना | – | अंतागढ़ (बस्तर) |
गुप्तेश्वर | शबरी नदी | माचकोट ( बस्तर) |
खुसेल झरना | शबरी नदी | नारायणपुर ( बस्तर) |
मल्हेर इदूल | सल्गेर नदी | कोंटा( बस्तर) |
मील कुलवाड़ा | इंद्रावती | अबूझमार ( बस्तर) |
तामड़ा घूमर | पर्वतीय प्रपात | चित्रकूट (जगदलपुर, बस्तर ) |
चित्रधारा | – | मावली भाठा ( जगदलपुर, बस्तर) |
नलपल्ली, कोरर ( बस्तर), कैलाश गुफा, कुटुमसर गुफा , (जगदलपुर)।
कक्सार ,गौरी सिंह नृत्य।
मुरिया जनजाति के घोटुल प्रथा का अध्ययन वैरियर एल्विन ने किया।
बस्तर जिले को कहा जाता है।
7112.397 वर्ग किमी।
सन 1972 में स्थापित इस संग्रहालय का मूल उद्देश्य बस्तर तथा सीमा से लगे रायपुर-दुर्ग जिलो सहित आंध्र प्रदेश ओडिशा एवं महाराष्ट्र के आदिवासी जनजीवन के आपसी प्रभाव का अध्यन करना है। संग्रहालय में बस्तर की विभिन्न जाति-जनजाति के लोगों के दैनिक जीवन में उपयोगी वस्तुओं सहित संस्कृति संस्कारों और भावनाओं और मनोरंजन के रूप में काम आने वाली वस्तुओं को प्रत्यक्ष एवं छायाचित्रों के माध्यम से देखा जा सकता है। इसके अलावा बस्तर की पुरातत्व संपदा को संग्रहित करने के उद्देश्य से प्रदेश शासन के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने फरवरी 1988 में जिला पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना की है। संग्रहालय में मुख्य रूप से प्रतिमाओं सहित शिलालेखों का संग्रह है।
तत्कालीन अभिलेखों से विदित होता है कि 11वीं शताब्दी में इस क्षेत्र को चक्रकूट या भ्रमर कोट्स कहा जाता था। बारसूर में नागयुगीय अवशेषों से ऐसा प्रतीत होता है कि इस काल में धर्म दर्शन तथा स्थापत्यकला की अत्यधिक उन्नति हुई थी ऐसा मानना है कि बारसूर में 147 मंदिर एवं इतने ही तालाब थे\, किंतु आज यहां नागयूगिन 3 मंदिर मामा-भांजा मंदिर, बत्तीसा मंदिर, चंद्रादितेश्वर मंदिर यथावत दृष्टि से इन ध्वंस मंदिरों की वास्तु सरंचना एवं कला शैली अद्वितीय है। यहां एक पुरातत्व संग्रहालय है। जिसमें बारसूर के आसपास खुदाई से प्राप्त प्राचीन पूरावशेष रखे हैं।
जगदलपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर इंद्रावती नदी के तट पर नारायणपाल एक गांव है। नारायणपाल में दो मंदिर स्थित है – विष्णु मंदिर तथा भद्रकाली का मंदिर’। वर्तमान में जो विष्णु मंदिर है, वस्तुतः शिव मंदिर है, परवर्तीकाल में इसमें विष्णु की प्रतिमा प्रतिष्ठित कराई गई है। बेसरशैली के उच्चशिखर वाले, ऊंची जगती पर बने इस मंदिर का द्वार अलंकृत है। इस मंदिर में लगे दो शिलालेखों से पता चलता है कि विष्णु मंदिर एवं भद्रकाली मंदिर 11वीं शताब्दी के वास्तुशिल्प के उत्कृष्ट उदाहरण है।
कोंडागांव से 51 किमी पर नारायणपुर (तहसील) से 25 किमी दूर भोगापाल गांव स्थित है जहाँ ईंटों से निर्मित एक टीला विद्यमान है जो संभवत मौर्यकालीन है जिससे बुद्ध की गुप्तकालीन (5-6 वी सदी) आसनस्थ प्रभामंडल युक्त प्रतिमा प्राप्त हुई है। इसी टीले के समीप नाले के दूसरी तरफ सप्तमातृ की प्रतिमा प्राप्त हुई है जो कुषाणकालीन प्रतीत होता है। संभवत स्थल पर सिरपुर की तरह बौद्ध विहार रहा होगा।
केशकाल की घाटी राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 43 पर कांकेर से जगदलपुर की ओर बढ़ने पर लगभग 5 किमी की घाटी पड़ती है जिसे बस्तर का प्रवेश द्वार कहा जाता है। यह घाटी समुंद्र से 728 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसके नाम के संबंध में एक तरक यह है कि जीवन और मृत्यु के मध्य केस (बाल) की दूरी रहने के कारण इस घाटी का नाम केशकाल पड़ा है। सूर्य की रोशनी में घाटी का विहंगम दृश्य या चांदनी रात में घाटी पर वाहन द्वारा ऊंची पर्वत श्रेणी है और गहराई के मध्य सर्पाकार मार्ग में चढ़ना रोमांचकारी एवं अद्वितीय होता है। घाटी के मध्य में तेलीन माता का मंदिर है जहां यात्रियों को रुकना आवश्यक होता है।
गढ़ घन्नौर में ऐसे कई मंदिरों का पता चला है, जो पूर्ण रूपेण से भूमिगत थे। उत्खनन पश्चात ज्ञात हुआ है कि यहां भूमि में स्थापत्य का अपार भंडार छिपा पड़ा है। बस्तर रियासत के तृतीय प्रशासक रायबहादुर बैजनाथ पंडा (1908-10) ने यहाँ टीले पर मलवा सफाई करवाकर इंटो का शिव मंदिर प्राप्त किया था। तत्पश्चात पुरातत्व विभाग ने यहां प्राचीन मंदिरों के अनेक समूहों मलवा सफाई पर प्राप्त किए जिनमें शिव मंदिर समूह विष्णु मंदिर समूह है, मोबरहीनपारा मंदिर समूह बंजारिन मंदिर समूह आदि प्रमुख है।
छत्तीसगढ़ के 03 राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है – कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान जो बस्तर जिले में स्थित है। समुद्र तल से 38 से 781 मीटर ऊंचाई तक 200 वर्ग किमी भू-भाग में गहन वनों से आच्छादित चोटियों, खाइयों गुफाओं जलप्रपातों से युक्त राष्ट्रीय उद्यान बर्हा प्रभाव से अछूता है। यहां शेर,तेंदुआ,चीतल,सांभर,हिरण,भालू,सिंगिंग हील मीणा एवं विविध सरीसृप मिलते हैं। कांगेर घाटी में ही कांगेर खोलाब के संगम पर भेसादरहा मगर सरंक्षण क्षेत्र घोषित किया है। उद्यान के प्रमुख पर्यटन, तीरथगढ़, प्रभात, झूलनदारहा, शिवगंगा जलकुंड कांगेर करप्नण गुफा, कोटमसर गुफा,कांगेर धारा झरना, दंडक गुफा, भीम का वृक्ष, हाथी पखना, प्रेवा बाड़ी जल कुंड, देवगिरी गुफा, कैलाश गुफा, कैलाश झील, कोटरी बाहर झील, दीवान डोंगरी, मनोरम दृश्य, कांगेर खूब संगम विहंगम दृश्य आदि।
तिरथगढ़ के पश्चात कांगेर नदी का जल कहां गिर राष्ट्रीय उद्यान के अन्य 8 से 10 स्थानों पर गिरता है और सुंदर जलप्रपात का रूप धारण करता है इनमें से ही एक प्रपात है कांगेर धारा। यह खूबसूरत झरने के रूप में आकर्षण का केंद्र है।
जगदलपुर से दक्षिण पूर्वी दिशा में 42 किलोमीटर दूर कांगेर घाटी में स्थित कांगेर घाटी राष्ट्रीय उधान में भैसादरहा छत्तीसगढ़ में एकमात्र स्थल है जहां प्राकृतिक रूप से आबाद मगरो का संरक्षण किया जा रहा है, भैसादरहा तथा उद्यान की सीमा में कांगेर के जल में वर्ष 1999 की गणना के अनुसार 100 मगर पाए गए हैं। आरक्षित उद्यान क्षेत्र के कक्ष क्रमांक 326 में स्थित इस अंडाकार प्राकृतिक झील का जल क्षेत्र 4 हेक्टेयर में फैला हुआ है जिसकी अब तक ज्ञात अधिकतम गहराई 18 से 20 मीटर है। इस स्थान पर ठहरे जल की गहराई इतनी अधिक है कि भैंसा जैसा कुशल तैराक पशु भी डूब जाता है। इसी कारण इस स्थल का नाम भैसादरहा पड़ा कांगेर नदी का जल घाटी में आने से पहले 300 फुट ऊंचे तीरथगढ़ जलप्रपात एवं कुटुमसर गुफा के निकट कांगेर धारा का निर्माण कर निम्न घाटी में ठहर कर झील की शक्ल ले लेता है। लगभग 5 किमी की इस शांत नदी जल का उपयोग और रोमांचकारी जल पर्यटन के लिए आसानी से किया जा सकता है।
कुटुमसर की गुफा जगदलपुर से दक्षिण दिशा में लगभग 38 किमी दूर कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है। कोटमसर कुटुम्बसर गुपनपाल या राहुड़ नाम से प्रसिद्ध गुफा भारत की प्रथम और विश्व के साथ में भूगर्भित गुफा है। गुफा की तुलना विश्व की सर्वाधिक लंबी भूगर्भित गुफा कार्ल्स बार आवकेव से की जा सकती है। जो अमरीका में है। कुटुंबसर धरातल से 60 से 215 फीट की गहराई तक है। गुफा का प्रथम कदराशास्त्रीय कार्य करने का श्रेय भूगोलविद डॉक्टर शंकर तिवारी को जाता है। जिन्होंने तीन दशक पूर्व इस अज्ञात स्थल को उजागर किया। अंधेरी गुफा में अंधत्व के परिणाम में बदली मछलियां विश्व की अनूठी प्रजाति है, प्राणी जगत के एक नए पुराने लंबी मूंछों वाले झींगुर की प्रजाति को अन्वेषक शंकर के नाम केप्पिओला शंकराई नाम दिया गया है। प्रो. तिवारी गुफा के भीतर खोजबीन, छायांकार करते 4500 फुट दूर कांगेर नाले के समीप गुफा के दूसरे मुहाने से निकल आए थे। यहां गाइड, पेट्रोमैक्स, टॉर्च आदि साथ रखना आवश्यक होता है। कुटुम्बसर की गुफा भ्रमण हेतु नवंबर से लेकर मई तक खुलती है।
जगदलपुर से दक्षिण-पूर्व की ओर फैली तुलसी डोगरी की पहाड़ियों में वन परिक्षेत्र कोलेंग के कक्ष क्रमांक 75 मिल्कुलबाड़ा स्थिल लगभग 250 मीटर लंबी तथा 35 मीटर गहरी कैलाश गुफा कुटुम्बसार गुफा के सदृश्य रहस्य एवं रोमांच से भरी है। गुफा में अनेक स्टेलेग्माइट एवं स्टलेक्टाईट आकृतियां मिलती है। 30 मीटर आगे चलकर गुफा के दो खंड हो गए जिसमें एक और संगीत कक्ष तथा दूसरी और मंदिर से स्थल आदि है। गुफा में जाने हेतु पहाड़ पर चढ़ना होता है। गुफा का प्रवेश द्वार बीच पहाड़ पर एक छोटा खोल है।
जगदलपुर से 38 किलोमीटर दूर तीरथगढ़ एक सुंदर जलप्रपात कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है। यह छत्तीसगढ़ का सबसे ऊंचा प्रपात है। कांगेर नदी का जल लगभग 300 फुट की ऊंचाई से गिरता है। कांगेर नदी की जल धारा घाटी के मध्य से बहती हुई एक ऊंचे कगार से गिरते हुए कई हिस्सों में विभाजित हो जाती है और धुएँ का निर्माण करती है। ऊपर से गिरता प्रपात मोतियों की सफेद चादर-सा प्रतीत होता है। इस स्थल पर नदी दो प्रपात बनाती है। प्रथम बार 300 फुट गिरकर यह पुन: गहराई पर गिरती है और गहरी चट्टानों के मध्य आगे निकल जाती है। मुख्य प्रपात तक जाने हेतु सीढ़ियां बनी हुई है।
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान सीमा में घोषित जीवमंडल क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले जल-प्रपात की ऊंचाई 15- 20 फुट ही है किंतु जल एकदम स्वस्थ रहता है। दूर जंगल से बहता आता कांगेर नदी का जल चट्टानों के मध्य होकर गुजरता है। घाटी में इस नदी के भौसाधारा नामक स्थल पर मगरमच्छ प्राकृतिक रूप से मिलते हैं जिनका संरक्षण वन विभाग द्वारा किया जा रहा है।
कांगेर घाटी के ढाल वाले हिस्से में दक्षिण-पूर्व दिशा में बहती आती है शबरी उर्फ कोलाब नदी का व्यवसाय तो संपूर्ण तट अपने पाषानीय सौंदर्य के लिए ख्याति प्राप्त है किंतु वन परिक्षेत्र माचकोट के तिरिया वन के निकट तट पर गुप्तेश्वर नामक स्थान पर प्राकृतिक रूप से बने झरने का सौंदर्य अप्रीतम है। गुप्तेश्वर राष्ट्रीय राजमार्ग क्रम संख्या 4३ जगदलपुर विजयनगरम पर जगदलपुर से 22 किमी दूर पूर्व दिशा में बसे सीमांत ग्राम धनपूंजी से माचकोट तिरिया वन मार्ग होकर पहुंचा जा सकता है.
बस्तर में चित्रकूट तीर्थगढ़ के अलावा अन्य अनेक ऐसे झरने हैं। इंद्रावती पर जगदलपुर से 118 किलोमीटर तथा बारसूर से मांडर होकर 22 किमी दूर सत्तधारा प्रपात स्थित है। यह नदी पर बहुत घाटी पहाड़ी से गिरते हुए क्रमशः बोधधारा कपिलधारा, पांडवधारा, कृष्ण धारा, शिवधारा, वाणधारा और शिवचित्रधारा आदि सात धारा बनाती है। इन प्रपातों के चारों और घने वन होने से यह क्षेत्र प्राकृतिक रूप से अत्यंत रमणीय एवं पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह विश्व में एकमात्र उदाहरण है जहाँ नदी कुछ ही अंतराल पर सात जलप्रपात बनाती है।
जगदलपुर से लगभग 45 किमी की दूरी पर जगदलपुर-बारसपुर मार्ग पर ग्राम भेद्री के पश्चिम में गहरी खाई है जिसे हाथी दरहा के नाम से जाना जाता है। खाई लगभग 150 से 200 फुट गहरी है जिसका आकार रोमन लिपि के ‘यू’ अक्षर जैसा है वसंत में छोटे रंग-बिरंगे जंगली फूल खाई को रंगीन कर देते हैं। हाथी दरहा का मुख्य आकर्षण यहा 100 फुट से अधिक ऊंचाई से मटनारनील का बना प्रपात है मुख्य पर बात के अलावा गहरी खाई में अनेक स्थानों से पतले पतले प्रपात भी देखे जा सकते हैं हाथी दरहा को भेंदरी धूमर भी कहा जाता है।
बस्तर के दक्षिण पश्चिम में अधिकतम 4000 एवं न्यूनतम 2000 फुट ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं का क्षेत्र अबूझमाड़ कहलाता है। अंडाकार भूभाग के उत्तरी वृत्त को शेष बस्तर से इंद्रावती और माड़ीन नदियां अलग करती है। लगभग 1500 वर्ग मील में फैले क्षेत्र में बीजापुर दंतेवाड़ा और नारायणपुर तहसीलें आती है। यहां जनसंख्या का घनत्व 10 व्यक्ति प्रति किलोमीटर है। इस क्षेत्र के ‘माड़िया’ जनजाति की जीवन पद्धति विश्व प्रसिद्ध है। वेरियर एल्विन ने इस क्षेत्र में विस्तृत शोध किया है।
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