बस्तर
आकाश का नगर, दक्षिण बस्तर जिला
3410.5 वर्ग किलोमीटर
4 ( दंतेवाड़ा, कुंआकोंडा, गीदम, कटेकल्याण )
229
04
124
0
03
02
16
2,83,479
1,40,094
1,43,385
43,378
21,561
21,817
1012 (सर्वाधिक)
48.63 प्रतिशत
58.95 प्रतिशत
38.58 प्रतिशत
83 प्रतिवर्ग किमी
1000:1023
2
16
2
पर्यटन स्थल | पर्यटन स्थल की श्रेणी | मुख्य दर्शनीय स्थल |
दंतेवाडा | धार्मिक, ऐतिहासिक | लोहा अयस्क की खानें |
बैलाडीला | औद्योगिक, प्रकृति के | लोहे अयस्क खानें |
बारसूर | ऐतिहासिक, पुरातात्विक | मामा-भांजा मंदिर, बत्तीस मंदिर, संग्रहालय। |
भैरमगढ़ | पुरातात्विक अभयारण्य | प्राचीन मंदिरों के खंडहर, किले एवं तालाब |
छोटा डोंगर | पुरातात्विक | प्राचीन मंदिर के भग्नावशेष |
इंद्रावती | राष्ट्रीय उद्यान | वन्य प्राणी |
पामेड़ | अभयारण्य | वन्य प्राणी |
लाल एवं पीली मिट्टी
गेहूं, चावल, तिलहन, मक्का
इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान
पामैड़ राष्ट्रीय उद्यान, भैरमगढ़ अभ्यारण्य
डंकिनी शंखिनी, इंद्रावती, गोदावरी, शबरी नदी।
मैगनीज, लोहा अयस्क, तांबा, चूना पत्थर, शीशा सिलीमेनाइट, कोरंडम, क्वार्टरजाईट, टिन
गोंड, हलबा, भात्रा, गडवा, खरिया, खोंड, कोल,
रानी दरहा, बोग्तुम, मल्गेर, पुलपाड़ जल-प्रपात।
दतेशवरी देवी का मंदिर
कटेकल्याण (दांतेवाड़ा)
11312 वर्ग किमी
दांतेवाड़ा (30.01%)
यह बस्तर की प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं में जगदलपुर से 150 किलोमीटर दूर दंतेवाड़ा जिले में समुंद्र सतह से 4160 फुट ऊँचे भू भाग पर स्थित है। बैलाडीला में विश्व प्रसिद्ध लौह अयस्क की खानें है जहां से लौह अयस्क विदेशों को निर्यात ( जापान को) किया जाता है। यहां हेमेटाइट प्रकार का अयस्क है जिसमें लोहे की मात्रा 70% होती है। बैलाडीला पहुंचने के लिए दंतेवाड़ा गीदम होते हुए बेचली पहुंचना पड़ता है। क्योंकि यह नगर पहाड़ी के नीचे हिस्से पर स्थित है अतः इस नगर को आकाश नगर नाम दिया गया है।
नंदीराज बस्तर की सर्वाधिक ऊंची चोटी का नाम है। बस्तर की प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं में समुद्री सतह से सर्वाधिक ऊंचाई नंदीराज की है, जो लगभग 4160 फुट ऊंचा है एवं अपने श्रेष्ठ लौह अयस्क के लिए बैलाडीला के नाम से विश्व विख्यात है। दूसरा स्थान बस्तर जिले में कांगेर घाटी में स्थित तुलसी डोंगरी का है, जिसकी ऊंचाई लगभग 3914 फूट है।
दंतेवाड़ा जिले में दंतेवाड़ा से लगभग 90 किमी दक्षिण-पश्चिम में आंध्र प्रदेश की सीमा से लगा भैरमगढ़ अभ्यारण्य 139 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां पाए जाने वाले प्रमुख वन्य प्राणी-बाघ, तेंदुआ, वन भैंसा एवं सांभर है। इंद्रावती तट के माठवाड़ा, जैगुर और हिंगुम के आसपास का क्षेत्र भैरमगढ़ अभ्यारण्य के रूप में 1983 में अस्तित्व में आया।
यह भी वन भैंसों के संरक्षण हेतु 1983 में स्थापित वस्त्र का दूसरा प्रमुख वन्य प्राणी अभयारण्य है। दंतेवाड़ा जिले में जिला मुख्यालय से 55 किमी की दूरी पर 262 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला जंगली भैंसों के लिए प्रसिद्ध है। यहां जंगली भैंसों के अलावा बाघ, तेंदुआ, चीतल एवं अन्य छोटे-बड़े होने प्राणी भी मिलते हैं। तालपेरू नदी के किनारे पुजारी कांकेर कोत्तापल्ली के आसपास झुण्ड के रूप में वन भैसों को देखा जा सकता है।
जिला मुख्यालय दंतेवाडा से सुकमा जाने वाले मार्ग पर ग्राम नकुलनार के निकट पुलपाड़ ग्राम की पहाड़ियों से गिरते प्रपात को ग्रामीण पुलपाड़ इंदुल के नाम से पुकारते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग 16 जगदलपुर निजामाबाद मार्ग के 16 किमी से विभाजित एक अन्य प्रमुख मार्ग हैदराबाद की ओर जाता है। इसी मार्ग के 22वें किमी से 30 किमी तक लगभग 200 वर्ग किमी गहन वनों के मध्य 3500 फुट ऊंचाई तक कांगेर घाटी फैली है। जिसमें राष्ट्रीय उद्यान सहित ख्याति प्राप्त विश्वविद्यालय भूगर्भित गुफा को कोटमसर एशिया का प्रथम घोषित जीवमंडल तो है ही इसके ऊपर भाग में तीर्थगढ़ कांगेर धारा जलप्रपात है, तो लोअर भाग में गुपतेश्वर जैसा पाषाणीय सौंदर्य से भरपूर झरना भी है।
राष्ट्रीय राजमार्ग क्र. 16 जगदलपुर निजामाबाद पर लगभग 200 किमी दूर बसे ग्राम भोपालपट्टनम के निकट पड़ोसल्ली ग्राम की पहाड़ियों का यह पर्वतीय प्रपात है।
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