बिहार में आधारभूत संरचना, bihar ki aadharbut saranchana, bihar mein bijli priyojna, bihar mein jal privyojna, bihar mein bijli utpaadan
बिहार में आधारभूत सरंजना का तात्पर्य कुछ बुनियादी सुविधाओं, जैसे- बिजली, पानी, (सिंचाई, पेयजल) तथा सड़क है, पुल, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल आदि की सुविधा से. राज्य में विकास के लिए सड़क, सिंचाई और बिजली की स्थिति का मजबूत होना जरूरी है.
बिजली उत्पादन का वितरण व्यवस्था को संविधान की समवर्ती सूची में रखा गया है, स्वतंत्रता के पूर्व बिहार में विद्युत आपूर्ति मुख्यतः निजी ताप-गृह में से होती थी.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात विलंब से विद्युत परिषद का गठन होने तथा अपने संयंत्र स्थापना में पिछड़ जाने से बिहार में परियोजना लागत में भारी वृद्धि हुई और प्रारंभ से ही उत्पादन, वितरण एवं विद्युत मांग का अंतराल बना रहा. बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2015-6 के अनुसार, वर्ष 2018 और 2019 तक राज्य में बिजली की मांग लगभग 8,774 मेगावाट सौर ऊर्जा के वार्षिक 6,175 करोड यूनिट के आसपास होना अनुमानित है.
वर्तमान उत्पादन योजना के मुताबिक 2018-19 तक, 6521.30 मेगा वाट (जिसमें 312 मेगावाट बिजली पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों से तथा 6209.30 मेगा वाट पारंपरिक स्रोतों से प्राप्त होगी) के जुड़ जाने की आशा है. बिहार में उर्जा क्षेत्र में तीन प्रमुख अभिकरण कार्यशील है-
बिहार राज्य विद्युत बोर्ड की मूल रूप में स्थापना विद्युत (आपूर्ति) अधिनियम, 1948 के अनुच्छेद 5 के तहत 1 अप्रैल, 1958 को हुई थी और उसे बिहार में विद्युत उत्पादन, संचरण वितरण तथा संबंधित गतिविधियों के लिए अधिदेशित किया गया था.
नई बिहार राज्य विद्युत सुधार अंतरण योजना, 2012 के तहत बोर्ड को पांच कंपनियों में बांट दिया गया है, जो 1 नवंबर 2012 से प्रभावी है. यह कंपनियां है-
बिहार राज्य जल विद्युत कंपनी लिमिटेड 4 कंपनियों- बिहार राज्य विद्युत उत्पादन लिमिटेड, बिहार राज्य विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड, उत्तर बिहार विद्युत वितरण कंपनीऔर दक्षिण बिहार विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड की होल्डिंग कंपनी है. इसे पूर्ववर्ती बिहार राज्य विद्युत बोर्ड की परिसंपत्तियों का स्वामित्व दिया गया है और संपत्ति के हित, अधिकार और दायित्व सुपुर्द किए गए हैं. कंपनी मुख्य निवेश करने वाली कंपनी होगी. यह उनकी गतिविधियों को समन्वय और विवादों का निपटारा करेगी तथा उन्हें सारा आवश्यक सहयोग उपलब्ध कराएगी.
बिहार राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड उत्पादन केंद्रों के निर्माण, संचालन एवं रखरखाव तथा संबंधित तमाम मामलों में विद्युत उत्पादन में लेगी. अपनी सहायक कंपनियां सहित अन्य कंपनियों का संबंध में सुझाव देने के लिए जवाबदेह है.
बिहार राज्य विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड के लिए जवाबदेह है. उसे पूर्ववर्ती बिहार राज्य विद्युत बोर्ड की संचार विषय परिसंपत्तियों का स्वामित्व दिया गया है और संपत्ति के हित अधिकार और दायित्व सुपुर्द किए गए हैं. यह कंपनी अंतर-राज्य संचरण संबंधी गतिविधियों का योजना निर्माण और समन्वय करेगी और उत्पादन केंद्रों से बाहर केंद्रों तक बिजली के सुगम संसार के लिए अंतर-राज्य संचरण लाइनों की कुशल और किफायती व्यवस्था विकसित करेगी.
उत्तर बिहार बिजली वितरण कंपनी लिमिटेड और दक्षिण बिहार विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड सभी उपभोक्ताओं को बिजली का वितरण, बिजली का व्यापार, ग्रामीण विद्युतीकरण योजनाओं का क्रियान्वयन विद्युत अधिनियम के दिशा निर्देश के अनुसार उपलब्ध शुरू करने का काम करेगी. बिजली की खरीद बिक्री के लिए तथा अन्य स्रोतों के लिए निविदा जारी करेगी, उन्हें अंतिम रूप देगी निष्पादित करेगी.
बिहार में बिजली की समस्या दोहरी है. एक तो बिहार बिजली आपूर्ति के लिए पूरी तरह केंद्र सरकार पर निर्भर है. हालांकि राज्य में दो बड़ी विद्युत उत्पादन इकाइयां हैं. वर्तमान में केंद्रीय कोटा के अंतर्गत बिहार का आवंटन 2810 मेगावाट है, जिसमें से औसतन 2300 से 2600 मेगावाट बिजली उपलब्ध होती है. बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार 2015 में राज्य में बिजली की उपलब्धता 3704.63 मेगा वाट की. राज्य में विद्युत आपूर्ति की स्थिति में सुधार तो हुआ है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. बिहार लगभग पूरी तरह ताप विद्युत पर निर्भर है.
केंद्रों के नाम | क्षमता (मेगा वाट) | मेगा वाट | प्रतिशत |
राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम | |||
फरक्का सुपर ताप विद्युत केंद्र | 1600 | 466.40 | 29.15 |
तलचर सुपर ताप विद्युत केंद्र है | 1000 | 397.90 | 39.79 |
कहलगांव सुपर ताप विद्युत केंद्र-1 | 840 | 338.27 | 40.27 |
कहलगांव सुपर ताप विद्युत केंद्र-2 | 1500 | 100.00 | 6.67 |
पीएचसी | |||
टाला जल विद्युत केंद्र | 1020 | 260.10 | 25.50 |
चुखा जल विद्युत केंद्र है | 270 है | 80.00 | 29.62 |
राष्ट्रीय जल विद्युत निगम | |||
रंगीत जल विद्युत केंद्र | साठ है | 21.00 | 35.00 |
तीस्ता जल विद्युत केंद्र | 510 | 108.43 | 21.26 |
बिहार से झारखंड के अलग होने के बाद बिहार में तीन विद्युत उत्पादन संयंत्र बचे हैं.
बरौनी ताप विद्युत केंद्र राज्य क्षेत्र का अकेला विद्युत केंद्र है. इसका निर्माण तीन चरणों में हुआ था. इसमें 7 इकाई है जिनमें से छठी और सातवीं इकाई ही चलाने के लिए उपलब्ध है.
सम्प्रति जीर्णोद्धार एक आधुनिकरण कार्य के बाद ही कई छ: और सात में से एक इकाई नंबर 2013 में चालू हो गई. 581.2 करोड रुपए के वैसे इनके जीर्णोद्धार एवं आधुनिकीकरण कार्यों की जवाबदेही BHEL (भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड) पर है. इसके अलावा वर्तमान इकाइयों के साथ साथ 250 मेगावाट क्षमता की दो इकाइयों की स्थापना भी प्रस्तावित है.
राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम की पूर्णता अंगीभूत कंपनी कांटी बिजली उत्पादन निगम लिमिटेड ने मुजफ्फरपुर ताप विद्युत केंद्र की 110 मेगा वाट की दो इकाइयों का अधिग्रहण कर लिया है. कांटी बिजली उत्पादन निगम में राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम की 64.57% और बिहार राज्य विद्युत बोर्ड (बिहार राज्य विद्युत होल्डिंग कंपनी) की शेष 35.43% इक्विटी है.
कोसी जल विद्युत केंद्र में 4.8 मेगावाट की 4 इकाइयां हैं. इसका निर्माण 1970-78 के बीच हुआ था और बिहार राज्य जल विद्युत निगम को 2003 में हस्तांतरित किया गया था. राज्य में ऊर्जा की जरूरत निकट भविष्य में तेजी से बढ़ कर 2000 मेगावाट से 6000 मेगावाट तक पहुंच जाने की आशा है. बिहार में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत केवल 117 किलो वाट (राष्ट्रीय औसत प्रति व्यक्ति 813 किलो वाट) है. बिहार के उर्जा के मुख्य स्रोत है- ताप विद्युत एवं जल विद्युत.
बिहार राज्य विद्युत परिषद का दूसरा बड़ा सेंटर बरौनी में स्थापित है. इसकी कुल उत्पादन क्षमता 500 मेगावाट है. इसकी 750 मेगावाट क्षमता विस्तार की प्रक्रिया आरंभ है. इस संयंत्र के द्वारा उतरी बिहार को विद्युत की आपूर्ति की जाती है. फिलहाल में उत्पादन क्षमता का प्रयोग 15% से 20% तक ही हो पाता है.
मुजफ्फरपुर का ताप संयंत्र कांटी नामक स्थान पर स्थापित है. यह बिहार राज्य विद्युत परिषद की 3rd बड़ी इकाई है, जिस की उत्पादन क्षमता 390 मेगावाट है, लेकिन अभी तक 30% से अधिक क्षमता का प्रयोग नहीं हो पाया है. कांटी थर्मल पावर स्टेशन का नया नाम जॉर्ज फर्नांडिस थर्मल पावर स्टेशन होगा.
यह पटना जंक्शन (रेलवे स्टेशन) से दक्षिणी करबिगहिया में स्थापित है, जो राज्य विद्युत परिषद के अधीनस्थ है. तेनुघाट ताप विद्युत परियोजना की स्थापना स्वतंत्र निकाय के रूप में की गई है.
राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम(NTPC) के अधीन भागलपुर के कहलगांव नामक स्थान पर रूस की सहायता से बनाई गई इस ताप विद्युत घर में 1992 से उत्पादन कार्य शुरू है.
एन.टी.पी.सी, बी.एस.ई.बी. और बिहार सरकार के संयुक्त प्रयास से नीवनगर (औरंगाबाद) स्थापित 1,980 मेगावाट की ताप विद्युत गृह की कुल क्षमता बढ़ाने की प्रक्रिया जारी है.
राज्य सरकार द्वारा 1320 मेगावॉट के औरंगाबाद में बिजली घर के प्रस्ताव को दिसंबर, 2009 में मंजूरी प्रदान की गई. हरियाणा की प्राय ट्राईटोन इनर्जी लिमिटेड कंपनी के सहयोग से औरंगाबाद जिले के कोचर गांव के बारुण में स्थापित होने वाला बिजली घर में 660-660 मेगा वाट की दो यूनिटें होगी.
राज्य में जल विद्युत परियोजनाओं का विकास पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत दामोदर घाटी निगम की स्थापना के साथ हुआ. 1953 में तिलैया (अब झारखंड में) में राज्य का पहला जल विद्युत संयंत्र काम करने लगा था. तीसरी पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत कोसी नदी पर भीम नगर के पास स्थित कोसी बैराज के समीप कटेया में 20 मेगावाट क्षमता वाला जल विद्युत गृहस्थापित किया गया.
कोसी जल विद्युत परियोजना वर्तमान बिहार राज्य की एकमात्र जल विद्युत परियोजना है. इस बहुउद्देशीय परियोजना का निर्माण नेपाल तथा भारत के सहयोग से 1953 में किया गया था. इस परियोजना का रख-रखाव राज्य सरकार के अधीन है और यह सुपौल जिले में पूर्वी को स्थापित है.
जल विद्युत निगम लिमिटेड की स्थापना राज्य में जल विद्युत संभावना दोहन के लिए की गई थी. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के प्रथम वर्ष में ही निगम में बड़ी जल विद्युत परियोजना की संभावना चिन्हित की थी.
इस परियोजना के निर्माण के लिए फ्रांसीसी विकास अभिकरण से ऋण लेने का प्रयास किया जा रहा है. इंद्रपुरी जलाशय परियोजना 1987 से ही लंबित है. जल संसाधन विभाग बिहार राज्य जल विद्युत निगम में इस परियोजना पर काम शुरू किया है.
परियोजना का नाम | जिला | स्थापित क्षमता |
पूर्वी गंडक नहर जल विद्युत परियोजना, बाल्मीकि नगर | पश्चिम चंपारण | 15 मेगावाट |
सोन पश्चिम संपर्क नहर जल विद्युत परियोजना, डेहरी | रोहतास | 6.6 मेगा वाट |
सोनपुरी संपर्क नहर जल विद्युत परियोजना, बारून | औरंगाबाद | 3.3 मेगा वाट |
कोसी जल विद्युत केंद्र | सुपौल | 19.2 मेगा वाट |
अगनूर लघु जल विद्युत परियोजना | अरवल | 1 मेगा वाट |
डेलाबाग लघु जल विद्युत परियोजना | हरदा से | 1 मेगा वाट |
नासरीगंज लघु जल विद्युत परियोजना | रोहतास | 1 मेगा वाट |
त्रिवेणी संपर्क नहर जल विद्युत परियोजना | पश्चिम चंपारण | 1 मेगा वाट |
जयनगर लघु जल विद्युत परियोजना | रोहतास | 1 मेगा वाट |
सेवाड़ी लघु जल विद्युत परियोजना | रोहतास | 0.5 मेगा वाट है |
सिरखिंडा लघु जल विद्युत परियोजना | रोहतास | 0.7 मेगा वाट |
अरवल लघु जल विद्युत परियोजना | अरवल | 0.5 मेगा वाट |
त्रिवेणी पनबिजली घर के अतिरिक्त सिरीखिंडा (रोहतास), अगनूर, ढेलाबाग जैननगरा एवं नासरीगंज में प्राय एक एक मेगावाट क्षमता की तीन लघु जल विद्युत परियोजनाएं पूर्ण हो चुकी है.
बिहार स्टेट हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन के तत्वावधान में रोहतास जिला अंतर्गत सिरखिंडा में निर्मित पनबिजली परियोजना का निर्माण फ्रांस के सहयोग से किया गया है, जबकि इसके लिए नाबार्ड ने वित्तीय सहायता प्रदान की है.
विद्युत आपूर्ति का अच्छादन बढ़ाने के लिए चलने वाले केंद्र सरकार के तीन महत्वपूर्ण कार्यक्रम है-
समेकित विद्युत विकास योजना: केंद्र सरकार द्वारा 12वीं और तेरहवीं योजनाओं की निरंतरता में केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित पुनर्गठन त्वरित विद्युत विकास एवं सुधार कार्यक्रम को दिसंबर 2014 में नए शुरू किए गए समेकित विद्युत विकास कार्यक्रम में समाहित कर दिया गया है.
केंद्र सरकार ने दिसंबर 2014 में दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना की शुरुआत की है, जिसके उद्देश्य है-
ग्रामीण क्षेत्र में कृषि और गैर-कृषि फीडरो को अलग करना, कृषि और गैर कृषि उपभोक्ताओं के लिए उचित आपूर्ति बहाल करने में सहयोग करना.
ग्रामीण क्षेत्रों में वितरण ट्रांसफर/फ्रीडरों/उपभोक्ताओं के मैट्रिकिरण सहित उपकरण और वितरण विचरण चना का सुदृढ़ीकरण और क्षमता वृद्धि.
राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के सभी स्वीकृत परिव्यय को दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना अंतरित करके 12वीं और 13वीं योजनाओं के तहत राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के लिए लक्ष्यों को पूरा करने के लिए ग्रामीण विद्युतीकरण है,
12वीं और 13वीं योजना की निरंतरता के लिए राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना की केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृत योजनाओं को इस योजना में ग्रामीण विद्युतीकरण घटक के रुप में समाहित कर दिया गया है.
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 88.7% ग्रामीण आबादी वाला बिहार देश का सबसे अधिक ग्रामीण कृत राज्य बना हुआ है. इस संबंध में राष्ट्रीय औसत 68.9% है. इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत ग्रिड के साथ जुड़ाव में सुधार अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसे देखते हुए राज्य में दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (राजू ग्रामीण विद्युतीकरण योजना) के तहत राज्य के सभी 38 जिलों में ग्रामीण विद्युतीकरण का काम किया जा रहा है
केंद्र सरकार की पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि को विकास के मामले में क्षेत्रीय असंतुलन दूर करने के लिए तैयार किया गया है. यह योजना केंद्र द्वारा पूर्व वित्तपोषित है.
बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 के मुताबिक वर्ष 2014-15 में राज्य में लगभग 160.50 लाख परिवारों के मकान अविद्युतीकृत थे- 157.54 लाख ग्रामीण क्षेत्रों में और 3.06 लाख शहरी क्षेत्रों में.
बिहार राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड ने अगले कुछ वर्षों में पर तूर उत्पादन क्षमता बढ़ाने की महत्वाकांक्षी योजना निर्धारित की है. इसने 2016-17 तक 1330 मेगावाट, 2017-18 तक 3310 मेगावाट और 2021-022 तक 7270 मेगावाट की कुल उत्पादन क्षमता हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है.
बिहार में संचरण नेटवर्क में 6700 एनवीए की कुल रूपांतरण क्षमता वाले 98 ग्रिड स्टेशन और 5,360 मेगावाट रिक्तीकरण क्षमता सहित लगभग 9,304 सर्किट किलोमीटर EHV संचरण लाइनें हैं. चरम अवधि में बिजली की उपलब्धता 2014-15 में 2,831 मेगावाट थी जो अक्टूबर 2015 में 23% बढ़कर 3459 मेगावाट हो गई.
मार्च 2015 तक राज्य में उपलब्ध बिजली की कुल उत्पादन क्षमता 3704.63 मेगावाट थी. इसमें से 83.5% कोयला आधारित ताप विद्युत, 14.12% जल विद्युत और शेष 2.3% है नवीकरणीय स्रोतों से उपलब्ध थी. स्वामित्व के लिहाज से देखें तो सर्वाधिक 77.9 केंद्रीय क्षेत्र का 14.9% निजी क्षेत्र/स्वतंत्र विद्युत उत्पादकों का और 7.4% राज्य क्षेत्र का था.
देश में कोयला संसाधनों की अनुप्रबंधन और कोयले की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय कीमत को देखते हुए ऊर्जा के नवीकरणीय और गैर-पारंपरिक स्त्रोतों की खोज और उनका विकास काफी आवश्यक हो गया है. राज्य में गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के उपयोग वाली परियोजनाओं के विकास का दायित्व बिहार राज्य नवीकरणीय ऊर्जा विकास अभिकरण पर है.
वर्ष 2011-12 में नवीकरणीय ऊर्जा के विकास हेतु बिहार सौर ऊर्जा योजना के तहत 10 प्रखंडों में 2 अश्वशक्ति या 1.8 किलो आवर क्षमता के 560 सौर पंप लगाने का प्रस्ताव था जहां दल स्तर 2 से 5 मीटर के बीच हो.
राज्य में पवन ऊर्जा: की संभावनाओं को सुनिश्चित करने के लिए सिमुलतला (जूमई) और लालगंज (वैशाली) में वायु गति मापन अध्ययन का काम समाप्ति पर है और बोधगया, रक्सौल, अधौरा तथा मुंगेर में काम जारी है.
राज्य में बायोमास ऊर्जा: की भारी संभावना को ध्यान में रखकर निजी उपयोग के लिए शीतगृह और रोलिंग मिलों में लगभग 6 मेगावाट उत्पादन क्षमता के बायोमास गैसीफायर लगाए गए हैं. इसके अलावा 2-3 गांव के संकुलों में सार्वजनिक निजी साझेदारी के आधार पर भी 20 बायोगैस गैसीफायर लगाए गए हैं.
सिंचाई सुविधाओं के अभाव के कारण राज्य में कुल बुवाई क्षेत्र के 57% में ही सिंचाई होती है जो मानसून से प्राप्त जल पर निर्भर है. राज्य में 75 से 80% है वर्षा मानसून के दौरान ही होती है.
राज्य की 63% सिंचाई टूयूबवेल से होती है तथा 30% नहरों से ,जल की 7% चिंताएं की जरूरत अन्य स्रोतों से पूरी होती है. पेयजल की समस्या ना केवल शहरों में बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में, खासकर दक्षिण बिहार के विभिन्न इलाकों में बढ़ती जा रही है. ग्रीष्म काल में, जब नदियों के जल तथा भूमि जल का स्तर नीचे चला जाता है, तो यह समस्या और गंभीर हो जाती है.
बिहार में सड़कों की कुल लंबाई, बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 तक निर्माण विभाग बिहार सरकार के अनुसार, सितंबर 2013 तक है 1,40,220 किलोमीटर थी. बिहार के प्रति एक लाख जनसंख्या पर मात्र 189.5 किलोमीटर लंबी सड़कें हैं, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह औसत 357.8 किलोमीटर प्रति व्यक्ति है. बिहार में प्रति वर्ग किलोमीटर पर सड़कों की लंबाई 209.5 किलोमीटर है, जो राष्ट्रीय औसत 131.8 किलोमीटर प्रति वर्ग किलोमीटर से काफी आगे है.
स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत जो नई लाइनें बिछाई गई है उनमें 7.38% बिहार में लगाई गयी बिहार में ब्रांड गेज वाली लाइनों का हिस्सा (बिहार सरकार, आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार) 84% है, जबकि पूरे भारत में 87% है.
बिहार में रेल मार्ग घनत्व प्रति 1000 वर्ग किलोमीटर पर 38 और संपूर्ण भारत के स्तर पर 20 है. प्रति 1000 आबादी पर रेल मार्ग की लंबाई बिहार में मात्र 0.04 किलोमीटर है जो संपूर्ण भारत के 0.05 किलोमीटर से कम है.
भारत में रेलवे वर्कशॉप की संपूर्ण सुविधा का विकास 8 फरवरी 1862 को मुंगेर जिला जमालपुर (बिहार) में हुआ. जमालपुर वर्कशॉप, मुंगेर (बिहार) में निर्मित प्रथम लोकोमोटिव का नाम था – CA 764 लेडी कर्जन, जिसका निर्माण 1899 में हुआ था.
2003 में भारतीय रेल ने अपनी 150वीं वर्षगांठ मनाया उस समय रेल मंत्री थे- नीतीश कुमार. किसी बड़ी रेल दुर्घटना के बाद अपने पद से इस्तीफा देने वाले देश के दूसरे रेल मंत्री हैं- नीतीश कुमार (इसके पूर्व इस वजह से इस्तीफा देने वाले प्रथम व्यक्ति/रेल मंत्री थे लाल बहादुर शास्त्री).
विश्व की अब तक की सबसे बड़ी रेल दुर्घटना जून 1981 में हुई थी, बिहार में मानसी सहरसा रेल खंड पर बदला घाट और धमारा घाट रेलवे स्टेशन के बीच. एक सवारी गाड़ी के नदी में गिर जाने के कारण हुई इस दुर्घटना में 800 से अधिक लोग मारे गए थे.
सारण (छपरा) जिले के बेलापुर में एक रेल पहिया कारखाना बनकर तैयार है. 258 मिलीयन डॉलर की लागत से तैयार फैक्ट्री में प्रोडक्शन मार्च 2012 में हो चुका है. जमालपुर (मुंगेर) देश के सबसे बड़े इंटीग्रेटेड रेल कारखानों के आधुनिकीकरण रुपए खर्च किए जाएंगे.
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