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बिहार की प्रमुख नदी घाटी परियोजनाएं

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बिहार की प्रमुख नदी घाटी परियोजनाएं

कोसी परियोजना एवं विद्युत गृह

कोसी परियोजना उत्तरी बिहार की प्रमुख बहुउद्देशीय परियोजना है जो 86 करोड रुपए की लागत से पूरी हुई है. इस परियोजना के निर्माण से पूर्व प्रदेश की लगभग 3200 हेक्टेयर कृषि भूमि कोसी नदी के अनिश्चित प्रवाह पथ तथा भयंकर बाढ़ से प्रभावित थे. कोसी परियोजना की स्थापना 1953 में की गई थी. इस परियोजना के लिए नेपाल और भारत के बीच अप्रैल में 1954 में आपसी सहमति हुई थी.

1965 में ही यह परियोजना बनकर तैयार हुई. 1966 में इसमें कुछ संशोधन किया गया. इस परियोजना के अंतर्गत हनुमान नगर बांध, पुश्ते बांध बनाए गए. कोसी परियोजना से पूर्वी कोसी नहर, पश्चिमी कोसी नहर और राजपुर नहर बनाई गई. इस योजना से 3.14 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई संभव है. इस परियोजना के अंतर्गत से कटेया नामक स्थान पर एक जल विद्युत ग्रह स्थापित किया गया.

हनुमान नगर अवरोधक बांध (कोसी बराज)

नेपाल में हिमालय की तराई में चतरा से लगभग 45 किलोमीटर दक्षिण कोसी नदी पर 11 मीटर लंबा तथा बांध भीम नगर के समीप बनाया गया है, जो हनुमान नगर कोसी बराज के नाम से प्रसिद्ध है.

इसके समीप दाएं और भारदा तक 2458 मीटर एवं बाई और भीम नगर तक 1895 मीटर 2 लंबे तटबांधों का निर्माण किया गया है. हनुमान नगर अवरोधक बांध के दोनों किनारों पर जल नि:सरण हेतु ऐसे यंत्रों की व्यवस्था है जिससे दाएं किनारे पर जल का अधिकतम प्रवाह 11.9 किलोलीटर तथा बाएं किनारे पर 28.9 हजार किलोमीटर प्रति मिनट होता है,

बाढ़ तटबंद

हनुमान नगर और अधिक बांध से दोनों और बिहार के मैदानी क्षेत्र में नदी के समांनातर मिट्टी का तटबंध कोसी के निरंतर परिवर्तित मार्ग को स्थिर रखने के लिए निर्मित किया गया है. दाएं किनारे पर भारदा से घोघेपुर तक तटबंध की लंबाई लगभग 124 किलोमीटर है,

निर्मली को बाढ़ मुक्त रखने के लिए एक वृत्ताकार बांध भी निर्मित किया गया है तथा इस अवरोधक बांध से उत्तर की ओर 13 किलोमीटर लंबी एक नियंत्रणत्मक बांध का निर्माण भारदा से भिकुड़ी तक किया गया है. इन बांधों के अतिरिक्त महादेव, मरू, डलवा, तथा निर्मली तटबंध बनाए गए हैं, जो नदी तट के से एवं अपवर्तन के अतिरिक्त लगभग 2.65 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को बाढ़ से सुरक्षा प्रदान करते हैं. परंतु दोनों मुख्य तटबंध के मध्य में स्थित लगभग 300 गांव की लगभग एक लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर त्वरित बाढ़ से प्रभावित होती है.

नहर व्यवस्था

कोसी नदी के पूर्व तथा पश्चिमी किनारों पर नहरों का निर्माण कर बिहार के सहरसा, सुपौल, पूर्णिया, अररिया, कटिहार, दरभंगा, मधुबनी तथा ककड़िया की एवं नेपाल के सप्तरी जिले की लगभग 26 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई की सुविधा प्रदान की जा रही है.

कोसी परियोजना की नहरों को 3 प्रधान वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. पूर्वी कोसी नहर क्रम
  2. पश्चिमी कोसी नहर क्रम
  3. राजपुर नहर क्रम

पूर्वी कोसी नहर क्रम

हनुमान नगर अवरोधक बाँध को बाएं किनारे से निकाली जाने वाली पूर्वी कोसी नहर क्रम के नाम से जानी जाती है जो पूर्णिया, अररिया, सुपौल तथा सहरसा जिले की 5.59 कृषि भूमि को सिंचित करती है.

पूर्वी कोसी नहर की कुल लंबाई यद्यपि 43.5 किलोमीटर है, पर अपनी शाखाओं जैसे- मुरलीगंज, जानकीनगर, पूर्णिया, अन्य दूसरी प्रशाखाओं सहित इसकी कुल लंबाई 3038 किलोमीटर हो जाती है. पूर्वी कोसी नहर क्रम के अंतर्गत फुलकाहा वितरिका शाखा शामिल है. जो मुख्य पूर्वी नहर तथा बिहार नेपाल सीमा के बीच पहले लगभग 1200 हेक्टेयर भूमि को सिंचित करती है.

पश्चिमी कोसी नहर

पश्चिमी कोसी नाहर क्रम का मुख्य उद्देश्य बिहार के दरभंगा एवं बेगूसराय जिले के लगभग 3 लाख 10 हजार हेक्टेयर तथा नेपाल के सप्तरी जिले की 28 हजार हेक्टेयर भूमि को सिंचाई की सुविधा प्रदान करना है. इस काम के लिए 113 किलोमीटर लंबी नहरों का विकास किया गया है.

इस क्रम की मुख्य शाखा हनुमान नगर अवरोधक बांध के दाई ओर से निकाली गई है. किन्नरों के अतिरिक्त नेपाल के भाग जोड़ा के समीप चतरा नामक निकालकर बेगूसराय जिले की 85890 हेक्टेयर भूमि तथा दाहिने किनारे पर पश्चिमी कोसी नहर द्वारा सप्तरी जिले के 28300 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है.

राजपुर नहर क्रम

हनुमान नगर के बाएं किनारे से निकाली जाने वाली इस नहर क्रम का विस्तार पूर्वी कोसी नहर क्रम और पूर्वी बाढ़ तटबंध के मध्यवर्ती क्षेत्र में विस्तृत है.

राजपुर नहर व्यवस्था के अंतर्गत एक शाखा नहर राजपूर तथा चार उपशाखा नहर मधेपुरा, गम्हरिया, सहरसा तथा सुपौल सहित इसकी कुल लंबाई 366 किलोमीटर है. इस नहर व्यवस्था से तटबंध निर्माण के फलस्वरूप सहरसा तथा बेगूसराय जिले की बाढ़ से मुक्त लगभग 4 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई की सुविधा प्राप्त होती है. सिंचाई तथा बाढ़ नियंत्रण की सुविधाओं के अतिरिक्त बाँध के समीप कटिया नामक स्थान पर 20 हजार KW क्षमता वाले जल विद्युत गृह का निर्माण किया गया है. इस विधि में5-5 हजार किलो वाट बिजली उत्पादन करने वाले 4 इकाइयां हैं.

सोन परियोजना

सोन नदी विद्यांचल की पहाड़ियों के उत्तरी पूर्वी डाल से गुजरती हुई बिहार में प्रवेश करती है. बिहार में डेहरी के समीप इसका क्षेत्र लगभग 26,608 वर्ग मील है. इस नदी पर 1968-74 के बीच पहला एनीकट निर्मित किया गया था, जो नहरों को (खासकर रबी फसलों की सिंचाई के लिए भोजपुर, रोहतास, दया, औरंगाबाद तथा पटना जिलों को) जल उपलब्ध कराता है. बाद में डिहरी के समीप बने पहले एनीकट से लगभग इन 12 किलोमीटर दक्षिण इंद्रपुरी नामक स्थान पर एक नया तथा अत्यंत मजबूत बांध बनाया गया है. इस स्थान पर नदी की कुल चौड़ाई 3,81,000 मीटर है परंतु बराज की कुल चौड़ाई मात्र 1412 मीटर ही रखी गई है.

सोन बराज के बायीं और स्लिपवे तथा 8 भूमिगत स्लुइज्वे तथा और चार भूमिगत स्लुइज वे है. इसके अतिरिक्त राजपूत 6.7 मीटर चौड़ी सड़क भी निर्मित की गई है. बराज के दोनों किनारों को निर्मित कर न केवल पश्चिमी तथा पूर्वी सोन नहरों को पर्याप्त की सुविधा दी गई है बल्कि सोन की नहरों में आंतरिक परिवहन व्यवस्था भी सुलभ कराई गई है.

गंडक परियोजना

गंडक परियोजना भारत का नेपाल सरकार की संयुक्त योजना है. गंडक योजना के लिए भारत तथा नेपाल के बीच दिसंबर 1959 में समझौता हुआ. परंतु इस संदर्भ में 1960 में कार्य प्रारंभ किया गया. गंडक योजना यद्यपि बिहार में स्थापित है, परंतु इससे बिहार के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश तथा नेपाल में भी लाभवंती होती है. इस योजना के अंतर्गत बिहार के भौसलोटन नामक स्थान में गंडक नदी पर भारत नेपाल सीमा के समीप सड़क पुल के साथ है 837.8 मीटर लंबा ब्राज निर्मित किया गया है,

इसका लगभग आधा भाग बिहार में तथा आधा भाग नेपाल में पड़ता है. बराज के दोनों किनारों से दो मुख्य नहरे अर्थात पश्चिम तथा पूर्वी ने 1972-73 में खोदी गई. इन दोनों नहरों द्वारा सम्मिलित रूप से भारत तथा नेपाल की कुल 14.8 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकती है.

पश्चिम नहर वस्तुतः नेपाल में प्रारंभ होती है जबकि पूर्वी नहर बिहार में प्रारंभ होती है. पश्चिमी नहर का निर्माण बिहार के सिवान जिले की 5.6 लाख हेक्टेयर तथा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर एवं देवरिया जिलों में 3.2 लाख हैक्टेयर भूमि की सिंचाई के उद्देश्य से किया गया है. पश्चिमी तट से से ही एक और निकाली गई है जो नेपाल के भेरवा जिले में सिंचाई की सुविधा प्रदान करती है.

पश्चिमी मुख्य नहर की कुल लंबाई 192 किलोमीटर है जिसका कुछ हिस्सा नेपाल में तथा बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश और बिहार के सीवान गोपालगंज जिले में पड़ता है. पूर्वी तथा पश्चिमी चंपारण, मुजफ्फरपुर एवं दरभंगा जिले के लगभग 6.8 लाख हेक्टेयर तथा नेपाल के लगभग 40 हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा प्रदान कराने वाली प्रमुख नहर की कुल लंबाई 238 किलोमीटर है.

इसके अतिरिक्त इस योजना के अंतर्गत 2 विद्युत उत्पादन गृह को भी निर्मित किया गया है. एक विद्युत गृह बिहार में तथा दूसरा नेपाल क्षेत्र में प्रमुख पश्चिमी नहर के 12 किलोमीटर पर स्थित है. फिलहाल राज्य के अंतर्गत 18 वृहत परीयोजनाएं अपने निर्माण के विभिन्न चरणों में है,इनमें- पश्चिमी कोसी नहर, अपर किउल जलाशय, अजय बराज, बटेश्वर स्थान फेज 1 आदि शामिल है.

इसके अतिरिक्त अन्तर्राज्यीय योजनाएं भी चल रही है:

  1. छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बिहार के अंतर्गत ए बाणसागर परियोजना (सोन नदी पर)
  2. कदवन जलाशय योजना
  3. कनहर जलाशय योजना
  4. जमनिया पंप नहर योजना
  5. ऊपरी महानंदा सिंचाई योजना

राज्य की सिंचाई कार्यों को दो वर्गों में विभक्त किया गया है- बड़े सिंचाई कार्य और छोटे सिंचाई कार्य. 1978-79 योजना आयोग ने सिंचाई परियोजनाओं का यह नया वर्गीकरण आरंभ किया है.

बड़ी सिंचाई योजनाएं:

परियोजनाएं शामिल की जाती है, जिनके नियंत्रण में 10,000 हेक्टेयर से अधिक कृषि योग्य क्षेत्रफल.

मध्य सिंचाई योजनाएं:

इनमें शामिल की जाती है जिनके नियंत्रण में 2 हजार से 10,000 हेक्टेयर कृषि योग्य क्षेत्रफल हो.

छोटी सिंचाई योजनाएं:

इनमें वो परियोजनाए शामिल की जाती है, जिनके नियंत्रण में दो हजार हेक्टेयर तक का क्षेत्रफल हो .

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