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बिहार की प्रमुख नहरें
प्रमुख नहर | नदी | जिले |
पूर्वी सोन नहर | सोन नदी | पटना, गया, भोजपुर. और औरंगाबाद |
पश्चिम सोन नहर | सोन नदी | भोजपुर, रोहतास, बक्सर |
त्रिवेणी नहर | गंडक नदी | पूर्वी एवं पश्चिमी चंपारण |
कमला नगर | कमला नदी | दरभंगा, मधुबनी |
पूर्वी कोसी नहर | कोसी नदी | पूर्णिया, अररिया, सहरसा, मधेपुरा सुपौल, खगड़िया |
पश्चिमी कोसी नहर | कोसी नदी | बेगूसराय, दरभंगा, मधुबनी |
तिरहुत नहर | गंडक नदी | सारण एवं चंपारण |
तेउर नहर | गंडक नदी | चंपारण |
शकरी नहर | सकरी नदी | मुंगेर, लखीसराय, गया एवं पटना |
बदुआ जलाशय
इसकी स्थापना सन 1965 में बदुआ नदी पर हुई. यह भागलपुर जिले में स्थित है,
चंदन जलाशय
इसकी स्थापना सन 1972 में चंदन नदी पर हुई है. भागलपुर जिले में स्थित है.
दुर्गावती जलाशय
20 अगस्त 1975 को योजना आयोग ने इस परियोजना को मंजूरी दी. जून में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री जगजीवन राम ने 25.3 करोड की योजना का शिलान्यास किया था. वर्तमान में प्रयोजना की कुल लागत 1 हजार 64.20 करोड रुपए हैं.
रोहतास और कैमूर जिले के लिए अति महत्वाकांक्षी दुर्गावती जलाशय परियोजना का उद्घाटन बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने 15 अक्टूबर 2014 को किया. दुर्गावती नदी पर स्थापित इस परियोजना से दोनों जिलों को 386 गांव को सिंचाई का पानी मिलेगा. इसकी जल भंडार क्षमता 287.7 करोड़ क्यूबिक मीटर है.
तालाब
बिहार में सिंचाई के लिए तालाब का उपयोग लगभग सभी जिलों में किया जाता है. प्राचीन समय से ही गड्डेनुमा प्राकृतिक धरातल तथा कृत्रिम तालाब या पोखर को खोदकर जल एकत्रित करें बिहार में सिंचाई की जाती रही है. उत्तर बिहार के मैदान में तालाब द्वारा सिंचित जिलों में गोपालगंज जिला का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है.
कुआँ
बिहार प्राचीन समय से कुआँ द्वारा सिंचाई करता रहा है. यहां के मैदानी भाग की मुलायम मिट्टी वाली भूमि में कुआँ की खुदाई आसानी से हो जाती है. गंगा के मैदान में भूमिगत जल का स्तर भी पर्याप्त ऊंचा है. यहां कई स्थानों पर केवल 7 फीट की गहराई तक जमीन को खोजने पर ही पानी स्रोत निकल आता है. बिहार में कच्चे तथा पक्के दोनों प्रकार के कुआं से सिंचाई की जाती है.
संपूर्ण बिहार में कुआं से सर्वाधिक सिंचाई सारण, सिवान तथा गोपालगंज जिलों में की जाती है, हालांकि बिहार के अन्य जिलों में भी कुआं द्वारा संचाई की जाती है.
नलकूप
बिहार में 15 से 100 मीटर तक या इससे भी अधिक गहरे होते हैं. नलकूप आधुनिक युग का कुआं है, जिसमें भूमि के अंदर काफी गहराई से जल की सथाई संतृपत सीमा तथा खोखला पाईप डालकर डीजल या विद्युत चालित इंजन की सहायता से जल निकाला जाता है, इसलिए इन्हें बिजली के कुआं के नाम से भी पुकारा जाता है.
बिहार में पिछले दो दशकों में चंपारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सहरसा, पूर्णिया, कटिहार, बेगूसराय, सारण और वैशाली में नलकूपों का काफी विस्तार किया गया है. बिहार में भूमिगत जल को शक्ति विद्युत चालित नलकूपों द्वारा खींचकर सिंचाई के लिए उपयोग में लाने का प्रथम प्रयास 1944 से 1945 के आसपास डेहरी सासाराम में किया गया था. बिहार में विद्युत के प्रसार के साथ ही नलकूपों की सिंचाई का महत्व तथा उपयोग का प्रचलन बढ़ता गया. वस्तुतः सिंचाई के साधनों में बिहार में राजकीय नहरों के बाद नलकूपों का ही स्थान है.
दक्षिण बिहार में नालंदा, रोहतास, कैमूर, पटना, गया, मुंगेर तथा भोजपुर जिले में नलकूपों द्वारा प्रमुख रूप से सिंचाई की जाती है. यह कुल सिंचित भूमि का 89% नलकूपों द्वारा संचित होता है. उत्तर बिहार में सारण, सिवान, गोपालगंज, पश्चिमी तथा पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, वैशाली, सीतामढ़ी, समस्तीपुर,मैं नलकूपों द्वारा की जाती है.
अन्य साधन
बिहार में सिंचाई के अन्य साधन पईन ,आहर तथा चौर है. नदियों, नालो या नहरों से सिंचाई के लिए मिट्टी खोदकर बनाई गई एक कुत्रिम नाला प्रणाली है. गया, पटना, मुंगेर और भागलपुर जिलों में पईन निर्माण कर सिंचाई के लिए प्रयोग में लाया जाता है. थोड़ी मात्रा में शाहाबाद, कैमूर, बक्सर, भागलपुर और दरभंगा के क्षेत्रों में भी पईन द्वारा सिंचाई की जाती है.
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