बिहार में पशु और मत्स्य पालन तथा जल संसाधन, bihar mein pashu nasal, bihar mein pashi palan, bihar mein machli paalan, bihar ke jal sansaadhan
बिहार जैसे कृषि प्रधान राज्य की अर्थव्यवस्था में पशुधन का महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि राज्य की प्रचलित और पारंपरिक कृषि अवस्था मूलतः पशुओं पर आधारित है. पशुओं का उपयोग कृषि कार्य में ना केवल हल खींचने के लिए किया जाता है, बल्कि माल ढोने, सिंचाई करने, दौनी करने और खेती की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए गोबर खाद के लिए भी इन की आवश्यकता पड़ती है. पौष्टिक भोजन के लिए दूध, मांस तथा उन प्राप्त करने के उद्देश्य से भी को पशुधन का काफी महत्व है. बिहार के प्रमुख पशुधन में गाय, भैंस, घोड़ा, खच्चर, सूअर, गधा, भेड़, बकरी और कुक्कुट सम्मिलित है.
राज्य में प्रति 30 व्यक्तियों पर एक पशु मिलता है, जबकि देश में प्रति 20 व्यक्तियों पर एक पशु की उपलब्धता का औसत है. राज्य के गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, मधुबनी, पूर्णिया आदि जिलों में पशुधन का घनत्व बहुत अधिक है.अधिक मात्रा में तथा वसा युक्त दूध देने के कारण व्यावसायिक दृष्टि से गाय की तुलना में भैंस का अधिक महत्व है. राज्य में दूध का 60% उत्पादन भेंस से होता है.
राज्य के दुधारू पशुओं में गाय का महत्वपूर्ण स्थान है. गाय मैदानी बिहार में पाई जाती है. बिहार के पशुधन में छोटे कद के चौपाये जैसे- बकरी, भेड़ एवं सूअर का भी विशेष महत्व है. बकरी एवं भेड़ से दूध, मास एवं चमड़ा उपलब्ध होता है.
वर्ष 2012 की पशु गणना के अनुसार राज्य में पशुधन की कुल संख्या 329.39 लाख है. जिसमें तो 54 प्रतिशत दुधारू पशु है. इनमें गायों की संख्या 122.32 लाख, भैंसों की 75.67 लाख है. बकरियों की संख्या 111.49 लाख तथा मुर्गियों व बतखों की संख्या 127.48 लाख है. भेड़ शुष्क जलवायु के पशु है जो चारे पर ही जीते हैं और यह विशेष रूप से दक्षिणी पठार के सीमावर्ती जिला रोहतास, गया नालंदा आदि में पाए जाते हैं.
देशी सूअर का पालन राज्य में हरिजनों एवं मुसहारों द्वारा किया जाता है. मुर्गी तथा बतख का पालन राज्यों के सभी क्षेत्रों में प्रचलित है . ये मुख्यतः पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार, अररिया तथा पटना जिलों में पाई जाती है.
राज्य में बिहार पशुधन विकास एजेंसी (BLDA) का गठन हुआ है,
5 लाख लीटर प्रतिदिन की क्षमता वाला दूध प्रसंस्करण प्लांट कथा 30 MT प्रतिदिन की क्षमता वाला दूध पाउडर प्लांट की स्थापना नालंदा में की गई है. राज्य सरकार ने नस्ल सुधार, स्वास्थ्य एवं पोषण, दुधारू जानवरों के लिए बीमा योजना क्षेत्र के उत्पादों का विपणन जैसी अनेक पहलकदमियाँ की है.
बिहार सरकार ने सभी जिलों में कृत्रिम गर्भाधान केंद्रों को पुनर्जीवित करने के लिए कदम उठाए हैं. राज्य सरकार ने पटना, मुंगेर, भागलपुर, सहरसा, पूर्णिया, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, छपरा, और बांका में कृत्रिम गर्भाधान हेतु तरल नाइट्रोजन के भंडार के लिए भंडार स्थापित की है.
बिहार में गंगा तथा उसकी सहायक नदियों से मछलियां पकड़ी जाती है. इसके अलावा छोटी छोटी नदियों, तालाबों, तालो, पोखरों आदि में भी मत्स्य पालन होता है.
बिहार में 273.3 हजार हेक्टेयर में जल क्षेत्र का और 3200 किलोमीटर लंबाई में नदियों का विस्तार है. साथ ही अनेक जलाशय, ताल, तलैया, मौन, चौर आदि भी है, जो लगभग 1,38 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हैं. परंतु इनमें से मात्र 10% तालाब और पोखर ही वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधित है. राज्य के प्रमुख मछलियों में रोहू, कतला, भाखुर, एवं मांगुर है. इनके अतिरिक्त यहां की बोआरी, टेंगरा, सौराठी, झींगा मछली, बच्चावा, पयास, सिल्वर कारव, सिंगी, गरई आदि मछलियां भी काफी लोकप्रिय है. सम्प्रति राज्य में मत्स्य पालन उद्योग के रूप में अपनाया जा रहा है.
वर्ष 2014 से 2015 में राज्य में मछली का उत्पादन 4.79 लाख टन हुआ. यहां प्रति व्यक्ति मछली की खपत 0.08 से 0.13 किलोग्राम वार्षिक है जो राष्ट्रीय औसत खपत 3.5 किलोग्राम वार्षिक से बहुत कम है.
वैसे तो दरभंगा, मधुबनी, और समस्तीपुर बिहार में मछली के प्रमुख उत्पादक जिले हैं, किंतु वर्ष 2015 से 2015 में मत्स्य उत्पादन में मधुबनी, दरभंगा और पूर्व चंपारण अग्रणी रहे हैं. 129.37 लाख रुपए की लागत से पटना के मीठापुर में मत्स्य अनुसंधान केंद्र की स्थापना प्रस्तावित है, साथ ही 99.68 लाख रुपए की लागत से फतुहा में सोना रो मत्स्य बीज फार्म की स्थापना का भी प्रस्ताव है.
2014-15 में राज्य में रिकॉर्ड 8831.94 लाख में मत्स्य बीजों का उत्पादन एवं वितरण हुआ है. जीरा उत्पादन में 6542.50 लाख जीरा के साथ दरभंगा शीर्ष कर रहा है.
बिहार सरकार ने राज्य में मत्स्य पालन विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है. मत्स्य पालन को राज्य में कृषि का दर्जा प्रदान किया गया है फलत: यह क्षेत्र भी कृषि के लिए उपलब्ध सारी सुविधाओं का उपयोग कर सकता है.
राज्य सरकार ने 3 मई, 2006 को बिहार में जल कर प्रबंधन कानून को सरकारी तालाब वह जिला जो कि पट्टेदारी की स्पष्ट नीति के साथ लागू किया है. सरकारी जलकरो कि बंदोबस्ती को बिहार वाटर बोडिंग मैनेजमेंट एक्ट-2006 के दायरे में लाया गया है. इस कानून के अनुसार जलकरो को पट्टे जारी की व्यवस्था दो प्रकार की होती है-
वर्ष 2011-12 में मत्स्य पालकों के लिए नई बीमा योजना आरंभ की गई है. आधुनिक मत्स्याखेट तकनीकों के उन्नयन के लिए राज्य के मछुआरों को आंध्रप्रदेश और पश्चिम बंगाल भेजा गया है. वर्ष 2012-13 में राज्य में 1552 मछुआरों को प्रशिक्षित किया गया था. वहीं वर्ष 2013-14 में लगभग 2000 अन्य मछुआरों को प्रशिक्षण में शामिल किया गया है.
बिहार में 590 फिशरमैन को ऑपरेटिव्स (मछुआरा सहयोगी संस्थाएं) है. इनमें से केवल 243 को-ऑपरेटिव्स फिलहाल क्रियाशील है.
1.38 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैले तालाब, जलाशय, कृत्रिम झील आदि के रूप में राज्य में मत्स्य पालन हेतु अपार जल संसाधन उपलब्ध है. राज्य में करीब 28,780 जलकर या तालाब तथा 43,000 तालाब एवं जलाशय है, जिनमें अधिकतर राज्य मत्स्य विभाग के अधीन है. इसके अलावा छोटे एवं मझोले आकार के 29 कृत्रिम झील है.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक के अनुसार बिहार में मछली के उत्पादन को 30 से 35 गुना तक बढ़ाया जा सकता है. राज्य से होकर गुजरने वाली प्रमुख नदियां हैं- गंगा, कोसी, सोन, बागमती, गंडक, और पुनपुन जो परग्रहण की संभावनाओं का स्रोत है.
जल का संसाधन के रूप में सर्वोपरि महत्व पेयजल, सिंचाई तथा जल विद्युत उत्पादन में है. इस अतिरिक्त उद्योग, मत्स्य पालन, यातायात, मनोरंजन एवं अन्य जीवों के संरक्षण के लिए जल संसाधन आवश्यक है.
बिहार राज्य में जल संसाधन अनेक नदियों के प्रवाह प्रदेश में भूमिगत तथा धरातलीय जल के बीच घनिष्ठ अंतर्संबंध पाया जाता है. गंगा के उत्तरी भाग में घाघरा, गंडक, बागमती, कमला, कोसी और महानंदा नदियों के आठ प्रधान प्रवाह प्रदेश है.
राज्य की जल संसाधन क्षमता का मूल्यांकन राज्य भूमिगत जल संगठन एवं भू-सर्वेक्षण विभाग द्वारा किया जाता है. संपूर्ण राज्य के धरातलीय तथा भूमिगत जल संसाधन का वर्तमान वितरण असमान है. राज्य के जलोढ़ मैदान में कुल वर्षा का 20 से 22 प्रतिशत जल है भूमिगत जल भंडार की आपूर्ति का स्रोत है.
केंद्रीय भूमिगत जल समिति के अनुसार दरभंगा जिले में 20 मीटर प्रति किलोमीटर उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पश्चिम औसत जलीय प्रवणता का अनुमान लगाया गया है. इस भाग के वार्षिक जलापूर्ति की मात्रा 886 करोड वर्ग मीटर निश्चित की गई है जो भविष्य में विकास के लिए उपलब्ध है.
सीवान जिले में 248 करोड वर्ग मीटर भूमिगत जल प्रतिवर्ष उपयोग के लिए उपलब्ध है. यहां 229 मध्यम से भारी नलकूपों तथा 1600 छिछले नलकूपों का निर्माण किया जा सकता है. बिहार के मैदानी क्षेत्र में जहां सिंचाई की गहनता की उच्चतम सीमा प्रतिवर्ष शुद्ध कृषि भूमि के 140 प्रति वर्ष से ढाई गुना से अधिक सिंचाई का विकास करना है वहां भूमिगत जल का अधिकाधिक उपयोग वांछनीय है.
विभिन्न मौसमों में होने वाली वर्षा को तालाबों, आहर तथा पाइन में संग्रह कर बिहार के कृषि के उसका उपयोग कृषि फसलों की सिंचाई के रूप में करते आ रहे हैं. गंगा के मैदान में भूमिगत जल सिंचाई की आपूर्ति का मुख्य स्रोत है,
बिहार की शुद्ध सिंचित क्षेत्र का 96% भाग में सिंचित है.
बिहार के उन सभी भागों में जहां औसत सालाना वर्षा 1200 मिली मीटर से कम है, सिंचाई की अधिक आवश्यकता रहती है. उतरी बिहार की पूरे वर्ष प्रवाहित होने वाली नदियों के क्षेत्र में सिंचाई के लिए आवश्यक जल हमेशा उपलब्ध रहता है. लेकिन बिहार के दक्षिणी मैदान को, अपेक्षाकृत कम तथा साल के अधिकारों में लगभग सुखी रहने वाली नदियों के कारण, सिंचाई की जरूरत है.
बिहार के 28 जिले बाढ़ पीड़ित है. सभी जिले मुख्य तौर पर गंगा के मैदान में आते हैं. बिहार के 3-4 जिलों के कुछ ऐसे साल-2 साल पर सूखे से पीड़ित हो जाते हैं- जैसे औरंगाबाद, गया, नवादा इत्यादि.
भारत-2016 के अनुसार बिहार में कुल क्षमता 35.36 लाख हेक्टेयर है, जिसमें से, 28.73 लाख हैक्टेयर वृहत एवं मध्यम सिंचाई परियोजनाओं द्वारा तथा 6.63 लाख हेक्टेयर लघु सिंचाई योजनाओं द्वारा खींची जा सकती है. बिहार में नहर, तालाब, नलकूप और कुओं द्वारा सिंचाई की जाती है. सिंचाई के साधनों में नहर और नलकूपों का महत्वपूर्ण स्थान है. वह और तालाबों से अलग क्षेत्र ही सूचित किया जाता है.
बिहार राज्य में नहर सिंचाई का मुख्य साधन है. यहां की कुल सिंचित भूमि का लगभग 37% से अधिक भाग नहरों से सींचा जाता है. नलकूपों से लगभग 30% क्षेत्र की सिंचाई की जाती है. कुआ, तालाबों और अन्य साधनों से संयुक्त रुप से लगभग 30% भूमि की सिंचाई होती है.
बिहार में सिंचाई का प्रमुख साधन नहरें हैं, जो सदा प्रवाहित नदियों के क्षेत्रों में, जहां जमीन की ढाल मंद है, विशेष रूप से प्रयोग में लाई जाती है. जिन क्षेत्रों में मौसमी नदियां प्रवाहित होती है, वहां बरसाती नहर का निर्माण कर सिंचाई की जाती है.
सिंचाई का दूसरा साधन कुआं है. वस्तुतः विद्युत शक्ति के प्रसार के साथ ही बिहार में सिंचाई के साधन के रूप में हुए का महत्व अप्रत्याशित रूप से बढ़ गया है.
सिचांई के साधन | प्रधान क्षेत्र |
नहर | भोजपुर (73.8%) ,औरंगाबाद (71.1%) |
नलकूप | समस्तीपुर (97.6%), सीतामढ़ी (84.8%) |
कुआं | दरभंगा (48.0%), मधुबनी (37.1%) |
बिहार में विद्युत चालित पंप का सर्वप्रथम उपयोग 1945 -46 में डेहरी-सासाराम क्षेत्र में किया गया था. पुणे 1946 में बिहार शरीफ तथा बिहटा के इलाके में विद्युत चालित आरंभ की गई. सिंचाई के साधनों में तालाब, पाइन, आहर तथा चौर भी उल्लेखनीय है.
बिहार में नहरों द्वारा सिंचाई अति महत्वपूर्ण साधन है, यहां के उत्तरी भाग में धरातलीय स्वरूप, मुलायम जलोढ़ चट्टानों की उपस्थिति है, विस्तृत कृषि क्षेत्र तथा नियत वाहिनी नदियों द्वारा जल की आपूर्ति के कारण सिंचाई हेतु नहरों के विकास में विशेष सहायता मिलती है.
बिहार में दो प्रकार की नहरें हैं-
यह वे नहर है जो पुरे वर्ष जल से परिपूर्ण रहती है इन नहरों का उद्गम या तो सतत वाहिनी नदियों से अथवा बांधों पर निर्मित कुत्रीम जलाशयों से होता है. उतरी बिहार की अधिकांश नहरें इसी प्रकार की है.
यह मौसमी नहरे हैं जो सीधी नदियों से निकाली गई है, वर्षा ऋतु में नदियों में बाढ़ के अतिरिक्त जल से यह नहरें प्रवाहित होती है. बिहार में अनित्यवाही नहरों की अपेक्षा नित्यवाही नहरें अधिक उपयोगी है, क्योंकि जब सिंचाई की आवश्यकता महसूस होती है इनके जल का उपयोग सिंचाई के लिए प्रयोग किया जा सकता है. एसी नहरें परिवहन की दृष्टि से भी उपयोगी है. बिहार की कुल सिंचित भूमि का 73% है दक्षिणी मैदान में तथा लगभग 24% उत्तरी मैदान में नहरों द्वारा सिंचित होता है.
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