बिलासपुर
बिलसापुर
5818.98 वर्ग किमी
8 (बिलासपुर, मस्तूरी, पेंड्रा, कोटा, तखतपुर, मरवाही, गोरेला,पेंड्रारोड)
899
17
3
19,61,922
2,87,204
1,46,797
1,40,407
956
72.87 प्रतिशत
83.04 प्रतिशत
62.40 प्रतिशत
337 प्रतिवर्ग किमी
1000 : 970
21
4
8
लाल एवं पीली मिट्टी।
गेहूं, चावल, तिलहन, अरहर, मूंग।
अचानकमार अभ्यारण्य।
अरपा नदी, मनियारी नदी, लीलागर नदी।
मैग्नीज, बॉक्साइट, कोयला, चूना पत्थर, डोलोमाइट, यूरेनियम, क्वार्टज, फेल्सपार, कले.
रतनपुर का मेला, शंकरजी का मेला (कनकी)
रेमंड सीमेंट उद्योग, साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड्स,लि. बिलासपुर, सूती कपड़ा उद्योग, रेशम उद्योग, चावल व दाल मिल, बीड़ी उद्योग, लकड़ी चिरने का उद्योग, कागज कारखाना, उर्वरक उद्योग।
बैगा, कोरबा, कंवर, कमार, भैना, भारिया, धनवार, खैरवार, पारधी, खरिया, गड़ाबा।
111, 200
हसदेव, मनीयारी जलाशय, मिनी माता, अरपा परियोजना।
गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिलासपुर (1983), पंडित सुंदरलाल शर्मा ओपन यूनिवर्सिटी, बिलासपुर (2004), इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बिलासपुर विश्वविद्यालय, बिलासपुर (2012), महरिशी यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी इंस्टिट्यूट (निजी), बिलासपुर (2002), डॉ. सी. वी. रमन विश्वविद्यालय ( निजी), कोटा (2006)।
पर्यटन स्थल | पर्यटन स्थल की श्रेणी | मुख्य दर्शनीय स्थल |
बिलासपुर | धार्मिक, प्राकृतिक | कानन पंडारी, काली मंदिर |
रतनपुर | ऐतिहासिक, धार्मिक | महामाया मंदिर, भैरव मंदिर, किला |
बेलगहना | धार्मिक, प्राकृतिक | सिद्ध बाबा मंदिर\ आश्रम , महाकालेश्वर मंदिर, कारीआम |
खोनमूड़ा | धार्मिक, प्राकृतिक | नर्मदा उद्गम |
अचानकमार | अभयारण्य, प्राकृतिक | वन्य प्राणी |
लोरमी | धार्मिक | महामाया मंदिर |
बेलपान | ऐतिहासिक, पुरातात्विक, धार्मिक | शिवमंदिर, विशालकुंड ( नर्मदा उद्गम) सीताकुंड। |
मल्हार | ऐतिहासिक | पातालेश्वर, दीदनेशवरी मंदिर। |
तालागांव | पुरातात्विक, प्राकृतिक | देवरानी-जेठानी मंदिर, रुद्र शिव प्रतिमा |
लूतरा शरीफ | धार्मिक | हजरत बाबा सैयद इंसान अली की दरगाह |
मुख्यालय का नाम | स्थान |
उच्च न्यायालय | बिलासपुर |
उच्च न्यायालय महाधिवक्ता | बिलासपुर |
पुलिस महानिरीक्षक | बिलासपुर |
वनमंडल | बिलासपुर |
मुख्य निर्वाचन अधिकारी | बिलासपुर |
राजस्व मंडल | बिलासपुर |
जेल | बिलासपुर |
संचालक लोक अभियोजक | बिलासपुर |
जल संसाधन | बिलासपुर |
परिवहन | बिलासपुर |
भंडार गृह निगम | बिलासपुर |
बिलासपुर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर बिलासपुर-कटघोरा मार्ग पर रतनपुरा स्थित है। रतनपुर अनेक तालाबों और मंदिरों से युक्त प्राचीन धार्मिक नगरी है। प्राचीन ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण स्थल है। पहाड़ियों के बीच स्थित रतनपुर प्राचीन छत्तीसगढ़ की राजधानी रहा है । प्राकृतिक दृष्टि से उपयुक्त होने के कारण क्ल्वुरी राजाओं ने इसे अपनी राजधानी बनाया। कुल्वुरिकाल में यह सभी तरह की गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था। इसे रतन देव प्रथम ने बसाया था, जिसके कारण इसका नाम रतनपुर पड़ा। नगर में महामाया का प्रख्यात मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण राजा रतनदेव के द्वारा लगभग 11वीं शताब्दी में कराया गया था। मंदिर के गर्भगृह में देवी महामाया की प्रतिमा स्थित है। महामाया आज भी जागृत सिद्धपीठ है।
बिलासपुर कोरबा मार्ग पर 25 किमी दुरी पर रतनपुर से 8 किमी की दूरी पर खटाघाट (खारंग जलाशय) जलाशय स्थित है। यह जलाशय खारंग नदी पर बाँध बनाकर तैयार किया गया है। बांध की अधिकतम ऊंचाई 21.3 मीटर एवं लंबाई 495 मीटर है। इस बांध का निर्माण सन 1931 में पूर्ण हुआ। इससे दो मुख्य नहरें – बायी तट, दाई तट, सिंचाई हेतु निकाली गई है। जल संग्रह क्षमता 194 मिलियन घनमीटर है। यह जलाशय पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
पाली, बिलासपुर, जिलातर्गत बिलासपुर-अंबिकापुर मार्ग से 55 किमी की दूरी पर स्थित पाली छत्तीसगढ़ के प्राचीन ऐतिहासिक स्थलों में एक महत्वपूर्ण स्थल है। यहां स्थित शिव मंदिर पुरातात्विक महत्व का है। 1000 वर्ष पूर्व का यह प्राचीन मूर्तिकला और इतिहास को अपने गर्भ में समेटे पाली के बाहरी भाग में सरोवर के तट पर स्थित है। खजुराहो, कोर्णाक, भोरमदेव आदि मंदिरों की तरह दक्षिण कोसल की शैली में यहां कामकाल का चित्रण मिलता है। यहां मैथुन मुद्राओं का चित्रण कलात्मकपूर्णक किया गया है। पाली के इस शिव मंदिर का निर्माण बाणवंशीय राजा प्रथम विक्रमादित्य जिसे जयमेऊ भी कहा जाता है। के द्वारा कराया गया था जिनका शासनकाल दक्षिण कोसल पर सन 870 से 895 ई. तक था। तत्पश्चात इस मंदिर का जीर्णोद्धार कल्वुरीवंशीय जाजल्यदेव के समय हुआ था, क्योंकि मंदिर के तीन-चार स्थानों पर श्रीमज्जाजल्ल देवस्य कीर्तिमय खुदा हुआ है। प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ मेला लगता है.
बिलासपुर से लगभग 45 किमी की दूरी पर लाफ़ागढ़ स्थित है, जोकी एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्थल है। गढ़ मंडला के गोंड राजा संग्रामशाह के बावन गढ़ों की सूची में लाफ़ागढ़ (चैतुरगढ़) सम्मिलित रहा है। 15-16 वीं सदी ई. में गोड़ों के साम्राज्य में इस गढ़ का राजनीतिक एवं सामरिक दृष्टि से विशेष महत्व था। दुर्गम पर्वतमाला की समतल चोटी पर लगभग 2000 फुट की ऊंचाई पर अवस्थित लाफ़ागढ़ चैतुरगढ़ के नाम से जाना जाता है। यहां चैतुरगढ़ का किला स्थित है जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से 3240 फुट है। इस किले का निर्माण 14वीं शताब्दी में कलचुरी शासक बाहरसाय के काल में करवाया गया था। इस किले को दुर्गमता तथा सुरक्षा की दृष्टि को देखकर अंग्रेज शासक बेगलर ने कहा था कि मैंने इससे दुर्गम तथा सुरक्षित किला नहीं देखा। किले के अंदर महामाया देवी का मंदिर है। यहां प्रतिवर्ष चैत्र एवं कंवार की नवरात्रि के अवसर पर 9 दिनों का मेला लगता है ।
बिलासपुर से लगभग 20 किमी की दूरी में कोटा मार्ग पर गनियारी स्थित है। यहां 12वीं शताब्दी का एक प्राचीन शिव मंदिर देवर तालाब के किनारे भगनावस्था में स्थित है जो पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। वर्तमान में शिव मंदिर का गर्भगृह ही शेष है। इसके अलावा यहां खुदाई में 11वीं शताब्दी की अनेक मूर्तियां प्राप्त हुई है।
प्राचीन नगर बिलासपुर से बिलासपुर-कटनी रेलमार्ग पर पेंड्रा रोड स्टेशन से 23 किमी की दूरी पर धनपुर नामक प्राचीन ऐतिहासिक नगर है। धनपुर जैन धर्मावलंबियों का अंचल का सबसे बड़ा प्राचीन व्यवसायिक केंद्र था। प्राचीनकाल में प्रमुख व्यापारिक पथ में होने के कारण धनपुर जैन धर्मावलंबियों के वैभवशाली नगर के रूप में प्रसिद्ध हुआ। धनपुर में जैन धर्म के अलावा शैव धर्म से संबंधित अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। धनपुर ग्राम में ऋषभनाथ तालाब स्थित है। जिस के समीप एक पेड़ के नीचे जैन तीर्थकार की प्रतिमा ग्राम देवता के रूप में स्थापित है जबकि बाई और परकोटा खींचकर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की गई है।
यह अभ्यारण्य बिलासपुर से 58 किमी दूर बिलासपुर-पेंड्रा-अमरकंटक मार्ग पर 551 वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत है। घने साल वनों और विविध वन्य प्राणियों के बाहुल्य वाला क्षेत्र अचानकमार अभ्यारण्य प्रकृति प्रेमियों एवं पर्यावरण संरक्षण से जुड़े लोगों के लिए महत्वपूर्ण स्थल है। अचानकमार को सन 1975 में अभयारण्य घोषित किया गया। इस अभ्यारण में बाघ, तेंदुआ, गौर, चितल आदि वन्य प्राणियों के साथ अनेक विविध वन्य जीव पाए जाते हैं। यहां बाघों की संख्या 31 है तथा अभयारण्य में दुर्लभ माउस डियर पाया जाता है।
छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश के मध्य की संस्कृति की विरासत को लेकर आधिपत्य हेतु परस्पर दावे के कारण हाल ही में विवाद का विषय बना अमरकंटक सतपुड़ा-मैकल पर्वतमाला मैकल पठार पर जबलपुर, बिलासपुर एवं रीवा 3 संभाग व बिलासपुर, मंडला तथा शहडोल जिलों के सीमा संगम पर मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में स्थित है। पुण्य सलील नर्मदा सोनभद्र एवं जोहिला नदियों के उद्गम स्थली पवित्र धाम अमरकंटक साल वनों से आच्छादित नैर्स्गिक दृश्यों हेतु प्रसिद्ध है। अपने गर्भ में विपुल खनिज संपदा छिपाये एवं आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से युक्त वनस्पति तथा स्वास्थ्यप्रद जलवायु से परिपूर्ण यह स्थल छत्तीसगढ़ का महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र है।
समुद्र सतह से 3600 फुट की ऊंचाई पर स्थित अमरकंटक प्राचीनकाल से ही पुराणों में तपोस्थली के रूप में वर्णित है। प्राचीन काल में अमरकंटक के अरण्य में कपिल मुनि ने यहां तपस्या कर अपनी तपोस्थली बनाई। कबीर भी यहां पहुंचे थे। मराठा काल में रानी अहिल्याबाई होल्कर ने नर्मदा उद्गम स्थल पर कुंड एवं मंदिर का निर्माण करवाया। मुगल-मराठा काल तक अमरकंटक रतनपुर राज्य के पेंड्रा जमीदारी के अंतर्गत आता था किंतु 1857 की क्रांति में स्वामिभक्ति प्रदर्शित करने के फलस्वरूप यह क्षेत्र रीवा राज्य को पुरस्कार के रूप में अंग्रेजों द्वारा पेंड्रा जमीदारी से लेकर दे दिया गया। मध्यप्रदेश राज्य बनने पर 1965 में यह रीवा संभाग के शहडोल जिले में चला गया और पुन: सन 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य मध्य प्रदेश राज्य का हिस्सा बन गया, किंतु राज्य निर्माण के पश्चात छत्तीसगढ़ द्वारा इस क्षेत्र की मांग की जा रही थी।
दर्शनीय स्थलों के कारण अमरकंटक एक आकर्षक व पर्यटन स्थल है। कबीर चबूतरा, नर्मदा कुंड (नर्मदा उद्गम), कपिलधारा (जलप्रपात), दुग्धधारा (जलप्रपात) सोनमुड़ा (सोनू उदग्म) माई की बगिया, भृगुकमंडल, माई का मंडप, श्री ज्वालेश्वर महादेव (जोहिला नदी यादव नदी के उद्गम स्थल जलेश्वर पर स्थित तथा श्री यंत्र महामेरू मंदिर, आदि मंदिरों के अलावा यहां बॉक्साइट खदान भी लोकप्रिय है ।
बिलासपुर से 30 किमी की दूरी पर मनियारी नदी तट पर तखतपुर से 11 किमी उत्तर की ओर ऐतिहासिक ग्राम बेलापान स्थित है।
शिव मंदिर, विशाल कुंड ( मां नर्मदा का उद्गम स्रोत) सीता कुंड, महात्मा जी की समाधि आदि।
यह स्थान बिलासपुर के दक्षिण-पश्चिम में बिलासपुर से रायगढ़ जाने वाली सड़क मार्ग पर मस्तूरी से लगभग 14 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यहां सागर विश्वविद्यालय एवं पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन कार्य से इस स्थल की प्राचीनतम एवं यहां के प्राचीन वैभवशाली संस्कृति एवं इतिहास की जानकारी प्राप्त हुई है जिसमें यहां ताम्र पाषाण काल से लेकर मध्यकाल तक का क्रमबद्ध इतिहास प्रमाणित हुआ है।
कुल्वरी पृथ्वी देव द्वितीय के शिलालेख में इसका प्राचीन नाम मल्लाह दिया गया है। 1167 ई. का अन्य कुल्वरी शिलालेख इसका नाम मल्लालपतन प्रदर्शित करता है। प्रो. के.डी. वाजपेयी एवं डॉ. एस. के. पांडे के अनुसार मल्लाल संभवत: मलारी से बना है जो भगवान शिव की संज्ञा थी। पुराणों में मल्लासुर नामक एक असुर का नाम मिलता है उसके नाशक शिव को मल्लारी कहा गया है। प्राचीन छत्तीसगढ़ अंचल में शिव पूजा के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हो चुके हैं। छत्तीसगढ़ का मल्लालपतन तीन नदियों से घिरा हुआ था – पश्चिम में अरप्पा, पूर्व में लीलागर एवं दक्षिण में शिवनाथ। कल्चुरी शासकों से पहले इस क्षेत्र में कई अभिलेखों में शरभपूर राजवंश के शासन का उल्लेख मिलता है। अंतः खननकर्ता प्रो. वाजेपई एवं डॉ. पांडे इसे ही प्राचीन राजधानी शरभपूर मानते हैं। बाद के शासनकाल में मल्लारी से मल्लाल एवं फिर आधुनिक नाम मल्हार हो गया।
बिलासपुर से 27 किमी की दूरी पर बिलासपुर रायपुर मार्ग पर भोजपुरी ग्राम के समीप मनियारी नदी के तट पर तालागांव नामक स्थान है। तालागांव में लगभग चौथी-पांचवी शताब्दी के पुरातात्विक महत्व के दो मंदिर तथा अद्भुत रौद्रशिव की प्रतिमा उल्लेखनीय है। सर्वप्रथम बिलासपुर के तत्कालीन कमिश्नर मिस्टर फिशर ने पुरातत्ववेता जे.डी. बेगलर को इन पुरावशेषों की सूचना 1873-74 में दी इसके बाद 20वीं शताब्दी में पंडित लोचन प्रसाद पांडय ने छठे दशक में इसे चिन्हित किया, किंतु सातवें दशक में डॉक्टर विष्णु सिंह ठाकुर ने इनकी जानकारी सार्वजनिक की। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 1980 में अमरीकी शोधार्थी डोनाल्ड स्टेडनर ताला के देवरानी मंदिर का प्रकाशन छायाचित्रों सहित कराया इसके बाद राज्य शासन के पुरातत्व विभाग में अधिग्रहित कर इनके संरक्षण की व्यवस्था की।
तालागांव में मनियारी नदी के किनारे दो मंदिर स्थित है। संयुक्त नाम देवरानी/जेठानी मंदिर ग्रामीणों द्वारा इनकी स्थिति के कारण दिया गया है। बाएँ जेठानी तथा दाहिने पार्श्व पर देवरानी मंदिर स्थित है। यह गुप्तकालीन शिल्प स्थापत्यकला का प्रतिनिधित्व करता है। यह जलेश्वर शिव का मंदिर है। इसका शिल्प सौंदर्य, सुक्षमता की दृष्टि से गुप्तकाल में मंदिरों की ज्ञात शृंखला में अद्भुत है। देवरानी मंदिर की बाई और जेठानी मंदिर स्थित है। यह मंदिर भग्नावस्था में है, किंतु कुछ मूर्तियां एवं फलक प्रतिमाएं अच्छी स्थिति में है। यह कुषाण शिल्प स्थापत्यकला का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें स्थूल और विशालकाय मूर्तियां का ढेर है। देवरानी और जेठानी मंदिर के निर्माण काल में लगभग 50 से 60 वर्षों का अंतर है। यह दोनों मंदिर चौथी एवं पांचवीं शताब्दी के मध्य निर्मित हुए हैं।
तालागांव के देवरानी मंदिर के द्वार पर उत्खनन के दौरान शिव के रौद्र रूप की अनुपम कृतियुक्त एक प्रतिमा टीले में दबी हुई प्राप्त हुई है। जिसका नामकरण एवं अभिज्ञान आज तक नहीं हो सका है इसे सन् 1987 में निकाला गया था। यह 7 फुट ऊंची, 4 फुट चौड़ी तथा 6 टन वजन की लाल बलुआ पत्थर की बनी है। इस प्रतिमा को अभी तक रूद्रशिव, महारुद्र, पशुपति, अंघोरेश्वर, महायज्ञ विरूपेस्वर, यज्ञ आदि नाम दिए जा चुके हैं। संभवत: पांचवीं-छठी सदी की यह कलाकृति सरभपुरी शासकों के काल की अनुमानित है, क्योंकि यहां छठी सदी के शरभपुरीय शासक प्रश्नमात्र का उभारदार रजीत सिक्का भी मिला है, साथ ही कल्चुरी रतनदेव प्रथम व प्रतापमल्ल की एक रजत मुद्रा भी प्राप्त है। मूल प्रतिमा देवरानी मंदिर तालागांव परिसर में सुरक्षित है।
बिलासपुर बलौदा मार्ग पर लगभग 32 किमी की दूरी पर प्रसिद्ध मुस्लिम धार्मिक स्थल लूतरा शरीफ स्थित है। यहां प्रसिद्ध मुस्लिम संत हजरत बाबा सैयद इंसान की दरगाह स्थित है। सभी धर्मों के लोग बाबा की दरगाह पर आकर मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं। यहां वर्ष में उर्स का आयोजन होता है।
आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएँगे की अपने डॉक्यूमेंट किससे Attest करवाए - List…
निर्देश : (प्र. 1-3) नीचे दिए गये प्रश्नों में, दो कथन S1 व S2 तथा…
1. रतनपुर के कलचुरिशासक पृथ्वी देव प्रथम के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन सा…
आज इस आर्टिकल में हम आपको Haryana Group D Important Question Hindi के बारे में…
अगर आपका selection HSSC group D में हुआ है और आपको कौन सा पद और…
आज इस आर्टिकल में हम आपको HSSC Group D Syllabus & Exam Pattern - Haryana…