खून हमारे बॉडी में जरुरी पोषक तत्व और दूसरी चीजे पहुँचाने के लिए में सहयोग देता है. धमनियों में बहने वाले खून का रंग हल्का लाल होता है और शिराओं में बहने वाला खून गहरा लाल होता है. खून को चार वर्ग में बाँटा गया है और इसकी खोज 1902 में कार्ल लैंडस्टीनर ने की थी.
कार्ल लैंडस्टीनर को 1930 में नोबेल पुरस्कार भी मिल चूका है.
मानव खून के RBC की कोशाकला और खून के प्लाज्मा में प्रोटीन पाया जाता है.
एंटीजन RBC यानि लाल रक्त कणिकाओं में होता है.
एंटीबाडी यानि प्रतिरक्षी खून के प्लाज्मा में पाया जाता है.
एंटीजन A और B दो प्रकार के होते है.
एंटीबॉडी a और b दो प्रकार के होते है.
एंटीजन A और एंटीबॉडी a तथा एंटीजन B और एंटीबाडी b दोनों एक साथ नही रह सकते क्योंकि ये आपस में मिलकर ज्यादा चिपचिपे हो जाते है जिससे खून नष्ट होने लगता है.
AB ग्रुप वाले खून में कोई एंटीबाडी नही होता इसी लिए यह सभी ब्लड ग्रुप वालों से खून ले सकता है. इसकी वजह से इसको सर्वग्राही कहा जाता है.
O ब्लड ग्रुप में कोई एंटीजन नही होता है इसीलिए यह सभी ब्लड ग्रुप को खून दे सकते है. इसकी वजह से इसको सर्वदाता कहा जाता है. ब्लड बैंक में खून सिर्फ 30 दिनों तक रखा जा सकता है.
प्लाज्मा को सुखाकर इसका पाउडर को ज्यादा दिनों तक रखा जा सकता है. जब खून की जरूरत पड़े तो इस पाउडर में पानी मिला कर दोबारा खून बनाया जा सकता है.
आजकल मानव निर्मित खून भी बनाया जाता है. यह खोज चीन के वैज्ञानिकों द्वारा तरल परफ्लू को कार्बन से तैयार किया जाता है. खून में मुत्रामल की मात्रा ज्यादा हो जाने से गठिया रोग हो जाता है.
RBC की मदद से खून के द्वारा ऑक्सीजन ले जाया जाता है.
खून में 7% प्रोटीन, 0.9% लवण और 0.1% ग्लूकोज होता है.
खून में रुधिराणु 3 प्रकार के होते है.
RBC
WBC
प्लेटलेट्स या थ्रम्बोसाइट्स
RBC
खून में यह रुधिराणु 99% होते है. यह अस्थिमज्जा में बनता है. RBC में हिमोग्लोबिन नाम का प्रोटीन होता है. इसका जीवन काल 20 दिन से लेकर 120 दिन का होता है.
इसका अंत लीवर और प्लीहा में होता है इसीलिए लीवर और प्लीहा को RBC का कब्र कहा जाता है.
इसकी संख्या का पता हीमोसाइटोमीटर है. यह ऑक्सीजन को मानव शरीर के सभी हिस्सों में पहुँचाता है और कार्बन डाईऑक्साइड को बाहर ले जाता है.
WBC
WBC को ल्यूकोसाइट्स भी कहते है. इसका जीवन काल 2 से 4 दिन का होता है. RBC और WBC का अनुपात 600:1 होता है. इसका निर्माण अस्थिमज्जा, लिम्फनोड और कभी कभार लीवर और प्लीहा में होता है.
श्वेत रक्त कणिकाओं का काम शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करना और इसपर कार्य करना है.
प्लेटलेट्स
यह सिर्फ स्तनधारी प्राणियों में होता है. इसका जीवनकाल 3 से 5 दिन का होता है.
इसका काम शरीर के किसी हिस्से के कट जाने पर वहन पर वहां पर खून को रोकने के लिए होता है ताकि शरीर में खून की कमी ना हो. इसीलिए यह खून का थक्का ज़माने में मदद करता है. इसका अंत प्लीहा में होता है और यह अस्थिमज्जा में बनता है.
लसिका
यह खून में बिना रंग वाला द्रव पदार्थ होता है. इसमें लसीक कणिकाएं और ग्रेनुलोसाइट होते है. इसमें बहुत ही कम मात्रा में ऑक्सीजन होता है.
इसका काम कार्बनिक अम्ल को शरीर के हर अंग तक पहुँचाना है. यह दुसरे अंगो से दिल की तरफ संवहन करता है.
रुधिराणु के बारे में कुछ तथ्य
खून में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है.
लसिका में सबसे कम प्रोटीन होता है.
खून में फाईब्रिनोजन और प्रोथ्रोम्बिन प्रोटीन पाया जाता है. ये दोनों प्रोटीन लीवर में बनता है.
खून में हिपौरिन नामक प्रतिजन पदार्थ लिक्विड रहता है. इसको एंटी थ्रोम्बिन कहते है.
हिपौरिन खून को नसों में जमने नही देता.
रक्तदाब
खून का दवाब जो धमनियों और नसों पर पड़ता है उसको रक्तदाब कहते है. जब धमनियां संकुचित होती है उस समय रक्तदाब ज्यादा होता है
इसको सिस्टोलिक कहा जाता है. और जब धमनियों का फैलाव ज्यादा होता है तो खून का दवाब कम हो जाता है जिसको डायस्टोलिक कहते है.
सिस्टोलिक में रक्तदाब 100-130 मिमी Hg होता है.
डायस्टोलिक में रक्तदाब 70-80 मिमी Hg होता है.
खून के दवाब यानी ब्लड प्रेशर (BP) को मापने के लिए सिफ्ग्नोमेनोमीटर का इस्तेमाल किया जाता है.
जब हम सोते है तो उस समय हम RBC 5% कम हो जाता है. और जो लूग ज्यादा ऊँचे इलाके में रहते है उनका RBC 30% बढ़ जाता है. खून के दाब को एड्रिनल ग्रन्थि नियंत्रित करती है.
डायलिसिस खून साफ़ करने की कृत्रिम विधि है. इसको तब इस्तेमाल किया जाता है जब रोगी के गुर्दे खराब हो जाते है.
जब मानव शरीर में खून की कमी हो जाती है तो इसे इस्कीमिया कहा जाता है. इसमें सभी टिश्यू तक खाना नही पहुँचता जिसकी वजह से टिश्यू टूटने लगते है.
खून में से कणिका को निकालने के बाद बचे लिक्विड को सीरम कहते है.