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छत्तीसगढ़ के पर्यटन एवं दर्शनीय स्थल

पर्यटन की दृष्टि से छत्तीसगढ़ नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर है यहाँ प्राचीन गुफाएं, ऐतिहासिक दुर्ग, समाधि व मकबरे, धार्मिक तीर्थस्थल, प्राकृतिक रमणीक स्थल तथा राष्ट्रीय उद्यान है जिनका विवरण नीचे दिया जा रहा है-

राजिम

रायपुर से 48 किलोमीटर दूर महानदी, पैरी  तथा सोंदुल, नदियों के संगम पर स्थित है। इसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग महातीर्थ व छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी कहा जाता है। इसका प्राचीन नाम कमला क्षेत्र या पदमपुर था। यहां भगवान राजीव लोचन का प्राचीन मंदिर है। यहां के मंदिरों में प्रमुख है – कुलेश्वर महादेव (14वीं शती का) राजेश्वर मंदिर ,रामचंद्र जगन्नाथ मंदिर, खंडोबा तुलजा भवानी का नवीन मंदिर प्रमुख है। लोमष ऋषि आश्रम, भूतेश्वरनाथ पंचेश्वरनाथ मंदिर, राधाकृष्ण मंदिर, महामाया मंदिर, कालभैरव, विश्वकर्मा मंदिर, दत्तात्रेय मंदिर, सोमेश्वर मंदिर, शीतला मंदिर, पंचकोषी यात्रा आदि दर्शनीय है।

डोंगरगढ़

डोंगरगढ़ हावड़ा-मुंबई रेलवे मार्ग पर स्थित राजनंदा गांव से 59 किलोमीटर दूर है। यहां पहाड़ी के ऊपर मां बमलेश्वरी का विशाल मंदिर है। नवरात्रि में यहां अपार जनसमूह दर्शनार्थ आते हैं। इस मंदिर का निर्माण राजा कांसेन ने करवाया था।

रतनपुर

बिलासपुर से 25 किलोमीटर दूर रतनपुर एक धार्मिक व ऐतिहासिक स्थल है। रतनपुर कलचुरी और मराठों की प्राचीन राजधानी रही  यहां प्रमुख दर्शनीय स्थल महामाया मंदिर महामाया मंदिर, किला तथा रामटेक मंदिर है। महामाया मंदिर का निर्माण कलचुरी राजा रतनसेन ने करवाया था। रामटेक मंदिर मराठा शासक बिम्बाजी भोसले द्वारा बनवाया गया। पहाड़ी पर स्थित राम का मंदिर व समीप ही किले का भग्नावशेष है जिसे बादल-महल के नाम से जाना जाता है। खडोबा तुलजा भवानी का मंदिर, विदेश्वरनाथ महादेव एवं अन्य मंदिर दर्शनीय है। कलिंग राजा के पुत्र रतनदेव ने रतनपुर की नींव डाली थी। यहां 126 तालाब थे जिसमें से अधिकांश आज भी विद्यमान है। रतनपुर को तालाबों की नगरी कहा जाता है ।

चंपारण्य

रायपुर से 60 किलोमीटर दूर चाम्पारण्य वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक वल्लभाचार्यजी की जन्मस्थली होने के कारण यह उनके अनुयायियों का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। यहां चपकेश्वर महादेव का पुराना मंदिर है। इस मंदिर के शिवलिंग के मध्य रेखाएं हैं। जिससे शिवलिंग तीन भागों में बांट गया है जो क्रमश: गणेश, पार्वती व स्वयं शिव का प्रतिनिधित्व करते हैं।

सिरपुर

महासमुंद से 36 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक नगरी सिरपुर पांचवी से आठवीं शती के मध्य दक्षिण कोसल की राजधानी रहा है। 6वीं से 10वीं शती के मध्य यह नगरी बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र था। ईंटों से निर्मित लक्ष्मण मंदिर व बौद्धों का आनंद प्रभु कुटीर विहार यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल है। लक्ष्मण मंदिर विष्णु को समर्पित सोमवंशी राजा हर्षगुप्त की विधवा रानी वासटा द्वारा बनाया गया । संपूर्ण छत्तीसगढ़ में अपने ढंग का यह अद्वितीय मंदिर है इसके अलावा यहां सोमवंशी राजाओं की वंशावली दर्शाने वाले गंधेश्वर महादेव मंदिर, राधाकृष्ण मंदिर, स्वास्तिक विहार, चंडी मंदिर आदि दर्शनीय है। सिरपुर में शैव, वैष्णव, जैन एवं बौद्ध धर्म की प्रतिमाएं एक साथ प्राप्त हुई है। प्रसिद्ध चीनी यात्री हेनसांग यहां आए थे।

आरंग

छत्तीसगढ़ में आरंग को मंदिरों का नगर कहते हैं। रायपुर से 36 किलोमीटर दूर बसी इस प्राचीन नगरी का उल्लेख महाभारत में प्राप्त होता है। भांडदेव मंदिर (11 वीं-12 वीं शताब्दी में निर्मित मंदिर) महामाया मंदिर बाघ देवल यहां के प्रमुख मंदिर है। माडदेवल मंदिर में जैन तीर्थकर नेमिनाथ, अजीत नाथ श्रेन्याश की सात फुट ऊंची विराट काले पत्थर से बनी मूर्तियां है। महामाया मंदिर में एक पत्थर फलक पर 24 जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं उकेरी गई है। अन्य मंदिरों में दंतेश्वरी मंदिर, चंडी मंदिर, पंचमुखी महादेव में पंचमुखी हनुमान मंदिर प्रमुख है।

शिवनारायण

जनश्रुति के अनुसार वनवास के समय श्रीराम ने शबरी के झूठे बेर उसी स्थान पर खाए थे। बिलासपुर से 65 किलोमीटर है दूर धार्मिक महत्व का स्थल शिवरीनारायण के समीप महानदी शिवनाथ जोक नदियों का पवित्र संगम है।  यहां म्रायन मंदिर चंद्रबुद्धेश्वर मंदिर लखनेश्वर शिव मंदिर प्रमुख दर्शनीय है।

बारसूर

बस्तर में स्थित बारसूर नामक गांव में 11वीं-12वीं सदी की देवरली मंदिर, चंद्रादित्य मंदिर, मामा-भांजा मंदिर, बत्तीसा मंदिर में गणेशजी की विशाल प्रतिमा का मंदिर यहां की प्रमुख धरोहर है। बारसूर से 8 किलोमीटर दूर इंद्रावती के बोधघाट पर सत-धारा जलप्रपात है।

भिलाई

दुर्ग से 10 किलोमीटर दूर भिलाई एक औद्योगिक नगरी है। देश का पहला सार्वजनिक इस्पात कारखाना अपनी उन्नत तकनीकी कौशल के उपकरणों के कारण विशेष दर्शनीय है। भिलाई में 100 एकड़ में एक अत्यंत सुंदर उद्यान व चिड़िया घर में मेत्रीभाग पर्यटकों को रोमांचित करता है।

मंडवा महल

भोरमदेव से आधा किलोमीटर दूर चौराग्राम के पास पत्थरों से निर्मित शिव मंदिर है। यह 14वीं शताब्दी का जीर्ण-शीर्ण मंदिर है। इसके बाह्य दीवारों पर मिथुन मूर्तियां बनी है।

मल्हार

बिलासपुर जिले में स्थित पुरातात्विक महत्व का ग्राम है।  उत्खनन से प्राप्त देउरी मंदिर, पातालेश्वरी, डिंडेश्वरी मंदिर, उल्लेखनीय है। देश की प्राचीनतम चतुर्भुज विष्णु-प्रतिमा भी यहाँ देखने को मिलती है।

तालागांव- छत्तीसगढ़ के प्रमुख पुरातात्विक स्थल में एक तालाग्राम बिलासपुर से 30 किलोमीटर दूर मनियारी नदी तट पर अवस्थित है। देवरानी-जेठानी मंदिर के अलावा अशोक यहाँ विश्व की एक विलक्षण प्रतिमा प्राप्त हुई है जिसके प्रत्येक अंग में थल-चर, नभ-चर व जल-चर प्राणियों को दर्शाया गया है।

मैनपाट

मैनपाट को छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है। यह सरगुजा जिले में स्थित एक पठार है। यह प्राकृतिक रूप में अत्यधिक समृद्ध है। तिब्बती शरणार्थियों के एक बड़े समुदाय को यहां सन 1962 में बसाया गया है

भोरमदेव

रायपुर-जबलपुर सड़क मार्ग पर कवर्धा से 18 किलोमीटर दूर भोरमदेव स्थित है। यह भोरमदेव के प्राचीन मंदिर इतिहास, पुरातत्व एवं धार्मिक महत्व का स्थल है, चारों ओर से सुरम्य पहाड़ नदी एवं वनस्थली की प्राकृतिक शोभा के मध्य स्थित यह मंदिर अगाधि शांति का केंद्र है। यह मंदिर 11वीं शताब्दी का चंदेल शैली में बना है। इसका निर्माण नागवंशी राजा रामचंद्र ने कराया था। भोरमदेव मंदिर को उत्कृष्ट कला शिल्प व भव्यता के कारण छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है।

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