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उत्तराखंड का इतिहास

प्रकृति की अमूल्य कृति हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड एक ऐसी देवभूमि है, जहां पुरातन काल से देवगण, ऋषि मुनि आदि का निवास स्थल एवं तपोभूमि रहा है। यही राजा भरत की जन्म स्थली है। इसी सत्र को पुराणों में मानस केदारखंड एवं कुर्माचल नाम दिया गया है।

उत्तराखंड देश का रमणीक पर्यटन स्थल है। ऐतिहासिक व पौराणिक स्थल एवं प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर क्षेत्र है। यह क्षेत्र वर्षों से सामाजिक संस्कृति का वाहक रहा है। पुरातात्विक खोजों के अनुसार गढ़वाल एवं कुमाऊ पूर्व में मौर्य साम्राज्य का अंग था। ऐतिहासिक खोजों से कुशल और उम्मीदों का यहां शासन होने के प्रमाण मिलते हैं। छठवीं शताब्दी में यह पूर्व वंश के शासनधिन था। सातवीं शताब्दी में यहां कत्यूरी राजवंश का उदय हुआ। जिसने पूरे उत्तराखंड क्षेत्र को मिला कर अपने साम्राज्य की स्थापना की जो 12वीं शताब्दी तक रहा। इससे पूर्व शताब्दी काल में प्रसिद्ध चीनी यात्री हेनसांग भी यहां आया था। कत्यूर वंश के पतन के फलस्वरुप यह क्षेत्र चंद और पवार शासकों के अधीन रहा, इसी बीच कुमाऊं और गढ़वाल के रूप में इसका विभाजन हो गया। 16वीं शताब्दी में गढ़वाल में पवार और कुमाऊं में चंद्रा जोड़ों का एकछत्र शासन था। सन 1771 में प्रधुमन साहा का गढ़वाल और कुमाऊं सहित संपूर्ण उत्तरांचल(उत्तराखंड) क्षेत्र पर अधिकार हो गया।

उत्तराखंड का अंतिम शासक प्रद्यूमन शाह को ही माना जाता है। सन 1790 में कुमाऊं नेपाली गोरखाओ के अधीन हो गया तथा सन 1803 तक इसने गढ़वाल पर भी अपना अधिपत्य कर लिया। 1814 व 1815 के वर्षों में गोरखाओ ने उत्तराखंड पर अनेक अत्याचार किए, जिसे अंग्रेजों का ध्यान इस ओर गया। सन 1815 में अंग्रेजों ने गोरखाओं को परास्त कर उत्तराखंड को अपने अधीन कर लिया, सन 1815 में उत्तराखंड ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन हो गया। इसके बाद हर्ष देव जोशी ने तत्कालीन उत्तराखंड क्षेत्र के लिए विशेष अधिकार और रियायतों की मांग की। इस शताब्दी में ब्रिटिश सरकार ने भूमि बंदोबस्त के द्वारा सार्वजनिक वन भूमि को अपने अधिकार में लेना प्रारंभ कर दिया। इसी काल में प्रेस, पत्रकारिता और स्थानीय संगठनों का अभ्यूदय हुआ। अंग्रेजों द्वारा प्राकृतिक स्वतंत्रता तथा संपदा के पारंपरिक अधिकार में दखल देने से स्थानीय विरोध भी हुआ। सन 1816 में अंग्रेजों और गोरखाओं के बीच संगोली संधि हुई। संधि के अनुसार टिहरी रियासत सुदर्शन शाह को प्रदान की गई और शेष क्षेत्र को नाम रेगुलेशन प्रात बनाया गया। जो उतरी पूर्व का ही भाग रहा। नॉन रेगुलेशन प्रांत सन 1891 में खत्म कर दिया गया। सन 1901 में जब संयुक्त प्रांत आगरा एवं अवध बना, उत्तराखंड क्षेत्र का विलय उसमे कर दिया गया।

सन 1928 में इस क्षेत्र के प्रबुद्ध लोगों ने लेफ्टिनेंट गवर्नर को एक प्रतिवेदन दिया, जिसमें सन 1814 से पूर्व कुमाऊं को स्वतंत्रता बताते हुए ब्रिटिश हुकूमत से स्वायत बनाने की मांग की थी। 5 और 6 मई 1938 में श्रीनगर (गढ़वाल) में आयोजित कांग्रेस की विशेष सभा (उत्तराखंड) क्षेत्र को स्वायत्तता देने की बात कही गई।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात आगरा एवं अवध प्रांत (पूर्व में इसी राज्य में उत्तराखंड का विलय हुआ था) उत्तर प्रदेश राज्य कहलाया। सन 1939 में टिहरी रियासत का विलय भारत में नहीं हुआ। सन 1948 में हुई जन क्रांति के समय सामंतशाही का तख्ता पलटने के पश्चात इस रियायत का भारत में विलय हुआ।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अविस्मरणीय योगदान करने वाले उत्तराखंड के यशस्वी सपूत चंद्र सिंह गढ़वाली ने पेशावर में 23 अप्रैल, 1948 में हुई क्रांति सूत्रपात किया वह पेशावर कांड आजादी के इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ है। पेशावर कांड की घटना से प्रभावित होकर मोतीलाल नेहरू ने संपूर्ण देश में गढ़वाल दिवस मनाने की घोषणा की थी।

स्वतंत्रता संग्राम में उत्तराखंड का योगदान स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। आजाद हिंद फौज की संख्या 40000 थी उसमें 2500 गढ़वाली थे। आजादी के बाद हुए युद्ध में संपूर्ण उत्तर प्रदेश के 2334 जवान शहीद हुए जिसमें आधे से अधिक 1234 उत्तराखंड से थे।  उत्तराखंड के 3,00,000 से अधिक भूतपूर्व सैनिक है। उत्तराखंड की ही दो रेजीमेंट है- गढ़वाल और कुमाऊं बनी है।

50 के दशक में जब कांग्रेस ने उत्तराखंड राज्य की मांग की, तो उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के प्रभावशाली नेता पंडित गोविंद बल्लभ पंत के जबरदस्त विरोध के फल स्वरुप यह मांग पूरी नहीं हो सकी।  श्री पंत ने यह कहकर विरोध किया कि इसके पास खर्च करने के लिए संसाधन तक नहीं है। पर्वतीय निवासियों के रोष को ध्यान में रखते हुए इस क्षेत्र के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 1974 में पर्वतीय विकास परिषद की स्थापना की, सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1974 में ही निर्णय दिया कि आर्थिक सामाजिक और शैक्षिक विकास में यह क्षेत्र पिछड़ा हुआ है। इसलिए उत्तराखंड क्षेत्रों को मेडिकल एवं इंजीनियरिंग कॉलेजों में 2% आरक्षण दिया जाए।

वर्ष 1980 में उत्तराखंड में वन अधिनियम लागू कर, इस क्षेत्र को शून्य प्रदूषण क्षेत्र घोषित कर दिया गया। इसी अधिनियम के अंतर्गत बिना केंद्र सरकार की अनुमति के पेड़ काटना और खनिजों की खुदाई का कार्य करना गैर कानूनी है। इसके फलस्वरूप पर्वतीय लोग जो वनों पर आधारित रोजगार पर निर्भर थे, ने बेरोजगार होकर अन्यत्र शहरॉ की ओर पलायन करना प्रारंभ कर दिया। इसी दौरान उत्तराखंड के पृथक राज्य की मांग पुन जोर पकड़ने लगी। प्रदूषण रहित क्षेत्र होने की वजह से उद्योग धंधे लगाने पर प्रतिबंध लग गया और यह क्षेत्र पिछड़पन का शिकार हो गया।

देश का यह प्रमुख प्राकृतिक सौंदर्य स्थल पिछले 5 दशकों से लगातार अशांत रहा है। एकमात्र उद्देश्य पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर पृथक उत्तराखंड राज्य की आकांक्षा रखते हुए दर्जनों लोग मौत के मुंह में गए और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं। उत्तराखंड उत्तर प्रदेश के सर्वांगीण विकास के लिए महत्वपूर्ण योगदान देता रहा है, परंतु यह क्षेत्र सदैव विकास से वंचित रहा है, जबकि उत्तर प्रदेश के अनेक प्रभावशाली नेता जैसे पंडित गोविंद बल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी, कृष्ण चंद्र पंत आदि क्षेत्र की देन है।

अन्य तथ्य

  • सकंद पुराण में केदारखंड तथा मानस खंड का वर्णन किया गया है।
  • कालसी में अशोक कालीन शिलालेख मिला है।
  • गढ़वाल राज्य की नींव डालने वाला प्रथम राजा अजय पाल था।
  • वेद काल में उत्तराखंड का हेमवंत नाम से अभिहित किया गया है।
  • कालिदास की रचनाओं में वर्णित कण्व आश्रम मालिनी नदी के तट पर स्थित है।
  • प्रसिद्ध गुफा शैल चित्र स्थल लखु उडयार अल्मोड़ा में स्थित है ।
  • केदारनाथ के प्राचीन ग्रंथों में भृंगतुग कहा गया है।
  • चंद राजाओं का राज्य चिन्ह – गाय।
  • परमार शासकों को शाह की उपाधि लोदियों द्वारा दी गई थी।
  • उत्तराखंड का बारदोली सल्ट स्थान को कहा जाता है।
  • रवाई कांड तिलाड़ी (टिहरी) में हुआ था।
  • गढ़ के असली नाम से अनुसूइया प्रसाद बहुगुणा (स्वतंत्रता सेनानी) प्रसिद्ध थे।
  • भारत के स्वतंत्रता होने के समय गढ़वाल के राजा मानवेंद्र शाह आए थे।
  • श्रीदेव सुमन 25 जुलाई 1944 को शहीद हुए थे।
  • डोला पालकी आंदोलन शिल्पकारों से संबंधित था।
  • भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान गांधीजी कौसानी में बहुत दिनों तक रुके थे।
  • टिहरी गढ़वाल में ठंडक आंदोलन मजदूरों से संबंधित था।
  • गढ़वाल के इतिहास में नक्कटी राणी के नाम से कर्णावती रानी विख्यात है।
  • उत्तराखंड पृथक राज्य की मांग सर्वप्रथम 1938 में उठाई गई।

उत्तराखंड से संबंधित प्रमुख साहित्य कृतियां

  • उत्तराखंड का इतिहास (21 भाग) – डबराल चारण
  • अलकानंद उपत्यका – चारण
  • रुद्रप्रयाग का आदमखोर बाघ – जिम कार्बेट
  • हिमालय की लोक कथाएं – ओकले तारादत
  • कुमाउनी लोकगाथाएँ – डॉ प्रयाग जोशी  1971
  • प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी – धर्मपाल मनराल 1977
  • बलीवीरों का देश गढ़वाल – पूर्ण सिंह नेगी 1977
  • गढ़वाल के लोक नृत्य गीत – शिवानंद नौटियाल 1981
  • कुमाऊ का लोक साहित्य – कृष्ण आनंद जोशी यूनिवर्सिटी
  • पर्वतीय लोक गाथाएं – पुष्पा भट्ट
  • गढ़वाली लोकगीत –  गोविंद चातक
  • तीतु शैतली- विमल साहित्य रतन
  • मध्य हिमालय – भजन सिंह सिंह
  • श्मोला – डॉ कृष्णानंद  जोशी ‘
  • गोरख वाणी – पीतांबर दत्त बथ्वाल
  • उत्तराखंड आर्य संस्कृति का मूल स्रोत –  गिरिराज सिंह
  • ब्रिटिश कुमाऊ गढ़वाल –  डाक्टर आरएस टोलिया
  • कुमाऊ का चित्रकला –  यशोधर मठपाल
  • हमारा उत्तराखंड – केसी पुरोहित

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