ऐतिहासिक विकास क्रम – प्राचीन छत्तीसगढ़ में पंचायती राज व्यवस्था के लिए पंचप्रधान की व्यवस्था सर्वप्रथम 1224 ई. में लागू की गई थी। पंच प्रधान या पंचो की महापंचायत का प्रथम चंद्रकोट प्राचीन बस्तर के नृपति जयसिंह देव के सोनारपाल अभिलेख में मिलता है। भूमि संबंधित सभी विवादों में पंचप्रधान का निर्णय अंतिम होता है। गांव की सभी प्रकार की सूचनाएं ग्राम नायक के माध्यम से पंच प्रधान को मिलती थी। 13वीं शताब्दी से वर्तमान तक बस्तर में उक्त व्यवस्था जीवित है। ग्राम भूमि की अपनी स्वतंत्र सता शताब्दी तथा वे पंचायतों द्वारा शासित थे। जोकी स्वसाशित इकाईया थी। प्रत्येक ग्राम की अपनी परिषद अथवा सभा होती थी जिसमें गांव के बड़े बुजुर्ग लोग सार्वजनिक प्रश्नों पर चर्चा तथा विचार करने के लिए एकत्र होते थे। गांव के पंच प्रधान लोगों द्वारा दिया गया निर्णय उतना ही पवित्र तथा मान्यता जितना कि आज न्यायालयों के निर्णय को माना जाता है।
छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश के निर्माण से पूर्व मध्य भारत मे सन 1947 से पंचायत विधान लागू किया गया है। इसमें यहां की आदिम जनजातियों के लिए अलग पंचायतों की व्यवस्था की गई है। मध्य प्रदेश से अपने निर्माण के पूर्व 44 घटकों में विभाजित था – महाकौशल मध्य भारत भोपाल और विंध्य प्रदेश। मध्य प्रदेश के पुनर्गठन के पूर्व इन पंचायतों की कार्यप्रणाली, अधिकार एवं कार्य क्षेत्र पृथक पृथक थे। 1 नवंबर 1956 को मध्यप्रदेश के पुनर्गठन के पश्चात इन प्रतिकर अधिनियम के एकीकरण और समान उद्देश्य से मध्य प्रदेश पंचायत अधिनियम 1962 लागू किया गया। छत्तीसगढ़ में परंपरा से पंचायतों द्वारा न्याय प्राप्त करने का कार्य होता आया था। सबसे निचले स्तर पर स्वच्छता को बढ़ावा देने और ग्राम सभा से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों के क्रियान्वयन एवं पहचान करने में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु 73वां संविधान संशोधन अधिनियम 1922 लागू किया गया। संविधान के अनुच्छेद 243 के प्रावधानों के अधीन राज्य विधानमंडल विधि द्वारा पंचायतों को ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान कर सकेगा जो उन्हें स्वायत्त संस्थाओं के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हो और ऐसी किसी विधि में पंचायतों को अधिकार एवं शक्तियों के हस्तांतरण हेतु संबंधित प्रावधान विंनिदृष्टि किया जाना चाहिए।
मध्य प्रदेश पंचायती राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम, 1933 द्वारा राज्य में पंचायती राज संस्थाओं हेतु त्रिस्तरीय प्रणाली स्थापित की गई थी। जो कि जनवरी 1994 से अस्तित्व में आई और छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य के पश्चात 7 जून 2001 को छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम 1993 के रूप में अपनाया गया। छत्तीसगढ़ एकीकृत मध्य प्रदेश का प्रथम राज्य था। जहां 73वें एवं 74वें सविधान संशोधन के अनुरूप पंचायती राज व्यवस्था एवं नगरीय स्वशासन की व्यवस्था लागू की गई।
विवरण | इकाई | राज्य के आंकड़े | संपूर्ण देश के आंकड़े |
जनसंख्या | करोड़ | 2.55 | 121.08 |
देश की जनसंख्या में हिस्सा | प्रतिशत | 2.11 | 100 |
ग्रामीण जनसंख्या | करोड़ | 1.96 | 83.37 |
ग्रामीण जनसंख्या का हिस्सा | प्रतिशत | 76.86 | 68.86 |
साक्षरता दर | प्रतिशत | 70.3 | 73 |
लिंग अनुपात (स्त्री प्रति हजार पुरुषों) | अनुपात | 991\1000 | 943\100 |
ग्रामीण लिंगानुपात (स्त्री प्रति हजार पुरुषों) | अनुपात | 1001\1000 | 949\1000 |
जिला पंचायत | संख्या | 27 | 543 |
जनपद पंचायत | संख्या | 146 | 6087 |
ग्राम पंचायत | संख्या | 10971 | 239432 |
ग्राम पंचायत, जनपद पंचायतों एवं जिला पंचायतों के लिए पिछला आम चुनाव जनवरी और फरवरी 2015 के दौरान कराया गया. 2011 जनगणना के अनुसार राज्य की कुल जनसंख्या लगभग 2.55 करोड़ थी, जिसमें से 1.96 करोड लोग ग्रामीण क्षेत्र में निवासरत है, जो कुल जनसंख्या का 76.86 प्रतिशत है. ग्राम पंचायतों का जनसंख्यावार वर्गीकरण तालिका में दिया गया है.
विवरण | ग्राम पंचायतों की संख्या |
1000 तक | 459 |
1001 से 2000 | 7616 |
2001 से 3000 | 2114 |
3001 से 4000 | 496 |
4000 से अधिक | 286 |
योग | 10971 |
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग छत्तीसगढ़ शासन के प्रशासनिक नियंत्रण अंतर्गत पंचायत राज संस्थाएं हैं. पंचायती राज संस्थाओं के प्रशासन के संचालन हेतु कार्यपालिक\प्रशासनिक के साथ-साथ निर्वाचित निकायों के कर्तव्यों का निर्वहन के लिए उसके अंतर्गत अधिनियम तथा नियम\उप-नियम बनाए गए हैं.
प्रदेश में पंचायती राज का त्रिस्तरीय ढांचा है है. जिलों में जिला पंचायत, प्रत्येक विकासखंड में जनपद पंचायत और एक अथवा अधिक गांवों को मिलाकर 1 ग्राम पंचायत का निर्माण होता है.
सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने एवं आर्थिक विकास से संबंधित कृतियों को पंचायतीराज संस्थाओं को सौंपने के उद्देश्य से जिला पंचायतों, जनपद पंचायतों तथा ग्राम पंचायतों के क्रियाकलापों का उल्लेख राज्य सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम (सी जी पी आर ए) 1993 (अधिनियम) की धारा 52, 50 तथा 49 के अंतर्गत किया गया है. उन्हें पंचायती राज संस्थाओं की शक्तियों को अधिनियम की धारा 68 के अंतर्गत वर्णित किया गया है. इनका सारस निम्नलिखित है-
जिला स्तर पंचायत का प्रथम सत्र जिला पंचायत है, अधिनियम की धारा 29 के अनुसार प्रत्येक जिला पंचायत निर्वाचन क्षेत्रों से निर्वाचित सदस्यों, जो एक अध्यक्ष एवं एक उपाध्यक्ष चुनने के लिए सशक्त (धारा 32) होते हैं, से मिलकर बनेगा। अधिनियम की धारा 52 के अंतर्गत अध्यक्ष जिला पंचायत के संकल्प के क्रियाकलापों, राज्य शासन द्वारा जारी सभी निर्देशों एवं जिला पंचायत को सौंपे गए सभी कृत्यों के निर्वहन के लिए उत्तरदाई होगा। वह अभिलेखों एवं पशुओं के उचित रखरखाव, अधिकृत भुगतान, चेक निर्गत एवं प्रति दाई आदेशों निश्चित है करने के लिए उत्तरदाई होगा।
पंचायती राज मे राज्य सूची का विषय है।
73वा संविधान संशोधन की समय पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे.
73वां संविधान संशोधन के तहत भाग- 9 में पंचायत को जोड़ा गया है। इसके अंतर्गत अनुच्छेद 243 में पंचायत से संबंधित प्रावधान किए गए जो कि अनुच्छेद 73 से अनुच्छेद 243 के रूप में विस्तार किया गया, इसके अंतर्गत निम्नलिखित प्रावधान है-
किंतु पंचायती राज अधिनियम के तहत किसी निर्वाचन को याचिका पेश कर प्रश्नगत किया जा सकता है।
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