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हिमाचल प्रदेश में कृषि एवं बागवानी से जुडी जानकारी

आज इस आर्टिकल में हम आपको हिमाचल प्रदेश में कृषि एवं बागवानी से जुडी जानकारी देने जा रहे है जिसकी मदद से आप हिमाचल प्रदेश के एग्जाम की तैयारी आसानी से कर सकते है.

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कृषि

कृषि हिमाचल प्रदेश के लोगों का प्रमुख व्यवसाय है। प्रदेश की 89.96% प्रतिशत जनता प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है और प्रदेश की अर्थव्यवस्था में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। प्रदेश में कुल कामगारों में से 70% श्रमिकों को कृषि से ही रोजगार उपलब्ध होता है। प्रदेश के उत्तर में एकफसली कृषि की जाती है।

प्रदेश के कुल राज्य घरेलू उत्पाद का लगभग 14% कृषि तथा इससे संबंधित क्षेत्रों से प्राप्त होता है। प्रदेश के कुल 55.67 लाख हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र में से 9.55 लाख हेक्टेयर क्षेत्र 9.61 लाख किसानों द्वारा जोता जाता है। राज्य में औसतन जोत एक हेक्टेयर है। कृषि जनगणना 2005-06 के अनुसार भू- जोतों के वितरण संबंधित नीचे दी गई सारणी से स्पष्ट है कि कुल जोतों में से 87.95% जोते लघु व सीमांत किसानों की है। लगभग 11.71% अर्ध-मध्यम/मध्यम व 0.34% जोतें बड़े किसानों की है।

भू- जोतों का वर्गीकरण

जोतों का आकार हेक्टेयर में वर्ग किसान जोतों की संख्या लाख
क्षेत्र लाख हेक्टेयर जोत  का औसत आकार ( हेक्टेयर)
1.0 से कम सीमांत 6.36 (68.17%) 2.58

(26.65%)

0.41
1.0-2.0 लघु 1.76 2.45

(25.31% )

1.39
2.0-4.0 अर्ध माध्यम 0.88

(9.43%)

2.40

(24.79%)

2.72
4.0-10.0 मध्यम 0.29

(3.11%)

1.65

(17.05%)

5.61
10.0 व अधिक बड़े 0.04

(0.43%)

0.60

(6.20%)

17.00
जोड़ 9.61 9.55 1.00

प्रदेश में कुल जोते गया क्षेत्रों में से 81.5% क्षेत्र वर्षा पर आधारित है। चावल, गेहूं तथा मक्की प्रदेश की प्रमुख खाद्य फसल हैं। मूंगफली, सोयाबीन, तथा सूरजमुखी खरीफ मौसम।  की तथा तिल, सरसों और तोरिया रबी मौसम के प्रमुख तिलहनी फसलें हैं। उड़द, बीन, मूंग, राजमस प्रदेश में खरीफ मौसम की तथा तिल चना, मसुर, रवि की प्रमुख दाले हैं। कृषि जलवायु के अनुसार हिमाचल प्रदेश को चार क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. उपोष्णीय उपपर्वतीय निचले पहाड़ी क्षेत्र।
  2. उप-समशीतोष्ण नमी वाले मध्य पर्वतीय क्षेत्र।
  3. नमी वाले ऊँचे पर्वतीय छेत्र।
  4. शुष्क तापमान वाले ऊँचे पर्वतीय क्षेत्र व शीत मरुस्थल।

राज्य की कृषि जलवायु आलू, अदरक तथा बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन की दृष्टि से बहुत ही उपयुक्त है।

प्रदेश सरकार खद्यान्न के अतिरिक्त समयानुसार प्रचुर मात्रा में कृषि संसाधनों की उपलब्धता, उन्नत कृषि तकनीकी जानकारी, पुराने किस्म के बीजों को बदलकर एकीकृत, कीटाणु प्रबंध को उन्नतकर तथा जल संरक्षण बेकार जमीन के विकास के उपायों द्वारा बेमौसमी सब्जियों आलू, अदरक, दाल और तिलहन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। प्रदेश में वर्षा के अनुसार चार विभिन्न मौसम है। लगभग आधी वर्षा बरसात में ही होती है तथा शेष बाकी मौसमों ही होती है। प्रदेश में औसतन 1,435 मिमी वार्षिक वर्षा होती है। सबसे अधिक वर्षा कांगड़ा जिले (1251 मीमी) में होती है और उसके बाद सिरमौर, मंडी और चंबा जिला में होती है।

फसल उत्पादन 2013-14

हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था मुख्यत: कृषि पर निर्भर करती है तथा अभी तक प्रदेश की अर्थव्यवस्था में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। वर्ष 2013-14 में कृषि तथा उससे संबंधित क्षेत्रों का कुल राज्य घरेलू उत्पाद से लगभग 14% का योगदान है। खाद्यान्न उत्पादन में तनिक भी उतार-चढ़ाव अर्थव्यवस्था को बहुत प्रभावित करता है। 11वीं पंचवर्षीय योजना, 2007-12 के दौरान प्रदेश में बेमौसमी सब्जियां, आलू, दालों, तिलहनी फसलों व खाद्यान्न फसलों के उत्पादन पर पर्याप्त आदान आपूर्ति, सिंचाई के अंतर्गत क्षेत्र लाकर, जल संरक्षण विकास तथा सुधरी कृषि प्रौद्योगिकी के प्रभाव कारी विशेष महत्व दिया जा रहा है।  वर्ष 2013-14 में कृषि के लिए अनुस्मारक होने की वजह से खाद्यान्न उत्पादन वर्ष 2012-14 के 15.76% लाख मीट्रिक टन की तुलना में वर्ष 2013-14 में 15.41% लाख मीट्रिक टन रहने की संभावना है। वर्ष 2012-13 के 2.05 लाख मीट्रिक टन आलू उत्पादन की तुलना में वर्ष 2013-14 में आलू उत्पादन 1.83 लाख मीट्रिक था।  सब्जियों का संभावित उत्पादन वर्ष 2012-13 के 13.98 लाख मीट्रिक टन की तुलना में 2013-14 में 14.30 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हुआ है।

2014 से 2015 के अनुमान

वर्ष 2014-15 में कुल उत्पादन 16.41 लाख मीट्रिक टन होने की संभावना है। खरीफ उत्पादन मुख्यत: दक्षिण पश्चिम मानसून पर निर्भर करता है। क्योंकि प्रदेश के कुल जोते गए क्षेत्र में से लगभग 80.0% क्षेत्र वर्षा पर निर्भर करता है। खरीफ सीजन 2014 में उत्पादन 15.76 लाख मीट्रिक टन लक्ष्य के तुलना में खरीफ उत्पादन लगभग है 15.41 लाख मीट्रिक टन होने की संभावना है। राज्य में वर्ष 2011-12 से 2012-13 का वास्तविक खाद्यान्न उत्पादन, वर्ष 2013-14 का संभावित, वर्ष 2014-15 का अनुमानित उत्पादन एवं वर्ष 2015-16 के लक्ष्य सारणी में प्रदर्शित किए गए हैं।

खाद्यान्न उत्पादन का विकास

क्षेत्र विस्तार द्वारा उत्पाद बढ़ाने की भी सीमाएं हैं। जहां तक कृषि योग्य भूमि का प्रश्न है सारे देश की तरह भी ऐसी स्थिति में पहुंच गया है जहां भूमि को इस उद्देश्य हेतु बढ़ाया नहीं जा सकता। अंत: उत्पादकता स्तर को बढ़ाने के साथ विविधतापूर्ण उच्च मूल्य वाली फसलों को अपनाने का प्रयास आवश्यक है। नगदी फसलों की तरह बदलते हुए रुझान की वजह से खाद्यान्न फसलों के अंतर्गत क्षेत्र शनै: शनै: कम होता जा रहा है। जैसाकि यह 2004-05 में 811.04 हजार हेक्टेयर था, जो घटते हुए वर्ष 2014-15 में 811.53 हजार हेक्टेयर रह गया। प्रदेश में बढ़ता हुआ उत्पादन, उत्पादकता दर में वृद्धि को सारणी से प्रमाणित होता है।

खाद्यान्न के अंतर्गत क्षेत्र तथा उत्पादन

वर्ष क्षेत्र (हेक्टेयर) उत्पादन (मीटर टन) प्रति हेक्टेयर उत्पादन मीटर टन
2007-08 811.98 1440.66 1.77
2008-09 789.01 1399.56 1,77
2009-10 750.24 956.38 1.41
2010-11 795.18 1493.87 1.88
2011-12 790.70 1554.38 1.96
2013-14 793.80 1619.77 1.99
2014-15 811.53 1619.77 1.99

अधिक उपज देने वाली फसलों की किस्में संबंधित कार्यक्रम (एच.वाई.वी. पी.)

राज्य सरकार खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने हेतु किसानों को अधिक उपज देने वाले बीजों के वितरण पर जोर दे रही है. अधिक उपज देने वाली मुख्य फसलों- जैसे- मक्की, धान, गेहूं के अंतर्गत एक पिछले 5 वर्षों में लाया गया क्षेत्र, वर्ष 2013-14 का संभावित क्षेत्र तथा 2014 से 2015 के लिए लक्ष्य रखा गया जो सारणी में दर्शाया गया है.

अधिक उपज देने वाली फसल के अंतर्गत क्षेत्र

वर्ष मक्की धान गेहूं
2004-05 242.76 75.21 353.29
2005-06 273.14 70.94 346.15
2006-07 280.61 72.65 349.60
2007-08 280.31 73.56 332.09
2008-09 280.51 74.61 325.22
2009-10 286.50 75.00 328.00
2010-11 278.65 75.20 327.00
2011-12 279.05 75.08 330.35
2012-13 279.69 76.90 336.56
2013-14 285.05 76.05 341.35
2014-15 279.80 76.00 358.00

हिमाचल प्रदेश में बीज उत्पादन के 21 फार्म केंद्र स्थापित किए गए हैं. जिनसे किसानों को बीज उपलब्ध करवाया जाता है. इसके अतिरिक्त राज्य में 14 आलू विकास केंद्र, 3 सब्जी विकास केंद्र, तथा एक अदरक विकास केंद्र भी खोले गए हैं।

पौधा संरक्षण कार्यक्रम

प्रदेश में फसलों की पैदावार बढ़ाने के उद्देश्य से पौध संरक्षण उपायों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है। प्रत्येक मौसम में फसलों की बीमारियों, इंसेक्ट टूथपेस्ट इत्यादि से लड़ने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं। अनुसूचित जाति\ अनुसूचित जनजाति, आई.आर.डी.पी. परिवारों, पिछड़े क्षेत्र के किसानों तथा सीमांत और लघु किसानों को प्रदर्शन उपकरण 50% कीमत पर दिए जाते हैं। अक्टूबर 1998 से राज्य में किसानों को इस सम्मान के लिए 30% उत्पादन दे रही है। संभावित एवं प्रस्तावित लक्ष्य अग्रलिखित है।  

संभावित एवं प्रस्तावित लक्ष्य

वर्ष पौध संरक्षण के अधीन लाया गया क्षेत्र (हेक्टेयर) रसायनों का वितरण ( मीटर टन)
2012-13 92.00 161.189
2013-14 120.514 210.900
2014-15 98.00 170.00

मिट्टी की जांच कार्यक्रम

राज्य में प्रत्येक मौसम में मिट्टी की उर्वरकता को बनाए रखने के लिए किसानों से मिट्टी के नमूने इकट्ठे किए जाते हैं तथा मिट्टी जांच प्रयोगशाला में इनका विश्लेषण किया जाता है। प्रदेश के सभी जिलों में मिट्टी जांच प्रयोगशाला स्थापित की गई है, जबकि दो चलते-फिरते वाहन जिसमें से एक जनजातीय क्षेत्र के लिए तैनात किए गए हैं जो साइट पर मिट्टी की जांच करते रहते हैं प्रतिवर्ष लगभग 80 से 90 हजार मिट्टी के नमूने की जांच की जाती है।

बायोगैस विकास कार्यक्रम

प्रदेश में पारंपरिक ईंधन, जैसे जलावन लकड़ी की उपलब्धता के कम होने से बायोगैस संयंत्रओं ने राज्य के निचले तथा मध्य पहाड़ी क्षेत्रों में महता प्रताप प्राप्त की है। इस कार्यक्रम के शुरू होने से मार्च 2014 तक राज्य में 44,403 बायोगैस संयंत्र स्थापित किए गए हैं। हिमालय क्षेत्र के कुल बायोगैस उत्पादन में से लगभग 90.86% अकेले हिमाचल प्रदेश में ही होता है। वर्ष 2014-15 में राज्य में 300 बायोगैस संयंत्र लक्ष्य के मुकाबले लगाए गए तथा वर्ष 2014-15 में 81 बायोगैस संयंत्र लगाने के लक्ष्य में से दिसंबर 2014 तक 300 बायोगैस संयंत्र स्थापित किए गए हैं।

उर्वरक उपभोग तथा उत्पादन

उर्वरक ही एक ऐसा इनपुट है जो काफी हद तक उत्पादन को बढ़ाने में योगदान देता है। 50वें दशक के अंत में तथा 80वें दशक के शुरू में प्रदेश में उर्वरक के प्रदर्शन शुरू हुई तब से उर्वरक का उपभोग लगातार बढ़ता गया। उर्वरक उपभोक्ता 17 वर्ष 1985-86 के 23,664 टन स्तर से बढ़कर वर्ष 2013-14 में 50,160 टन हो गया। प्रदेश सरकार की एक जैसी कीमत रखने के लिए सभी प्रकार के उर्वरकों की ढुलाई के लिए 100% उत्पादन देती है। प्रदेश सरकार कैन यू रिया तथा अमोनियम सल्फेट पर ₹200 प्रति मैट्रिक टन तथा मिश्रित उर्वरक एनपीके 12 :  32: 16: 10: 26: 26 डीएपी के रूपा त्वरित एनपी के 15 : 15: 15 : के अनुपात ₹500 प्रति मेट्रिक टन उत्पादन देती है। उर्वरक उपभोग अगर लिखित सारणी में प्रदर्शित किया गया है।

उर्वरक उपभोग

वर्ष नाइट्रोजन जीनीयस( एन) फास्फेट टिक ( पी) पोटाश ( के) कुल ( एन पी के)
2004-05 30694 8528 7031 46253
2005-06 30375 98736 7862 47973
2006-07 30794 10225  7262 48981
2007-08 32338 8908 8708 49954
2008-09 35462 10703 11198 57363
2009-10 31319 10901 11018 53239
2010-11 32594 10728 11811 55133
2011-12 32802 9701 8922 51425
2012-13 34182 6821 7126 48129
2013-14  33306 8261 8593 50160
2014-15 ( लक्ष्य) 33000 8000 7500  48500

कृषि ऋण

ग्रामीण परिवारों की विभिन्न सामाजिक आर्थिक स्थिति के कारण पारंपरिक विधि के गैर संस्थागत स्रोत हि ऋण के प्रमुख संसाधन है. इनमें से कुछ से एक बहुत ऊंची ब्याज दर पर ध्यान देते हैं और गरीब लोगों के पास बहुत कम संपत्ति होने के कारण उनके लिए समानांतर जमानत जूठा पानी के अभाव में वित्तीय संस्थाओं से ऋण मिलना काफी कठिन है।  राज्य सरकार ग्रामीण परिवारों को कम दर पर संस्थागत ऋण उपलब्ध कराने के प्रयास कर रही है। किसानों की इस प्रवृत्ति के मध्य नजर, जो कि अधिकतर समान तथा छोटे किसान हैं। उनको इनपुट की खरीद के लिए ऋण को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है। संस्थागत ऋण व्यापक रूप से बांट रहे हैं, परंतु उसके कार्यक्षेत्र को विशेषकर फसलों में जो कि बीमा योजना के अंतर्गत आते हैं बढ़ाने की आवश्यकता है।  श्रीमान तथा लघु किसानों और अन्य पिछड़े वर्ग को संस्थागत ऋण सही तरीके से दिलवाना और उनके दौरा नवीनतम तकनीकी तथा सुधरे कृषि तरीकों को अपनाना सरकार का प्रमुख उद्देश्य है।

किसान क्रेडिट कार्ड (के.सी.सी.)

प्रदेश में यह योजना पिछले 10 वर्षों में बहुत ही कारगर सिद्ध हुई है।  1924 से भी अधिक बैंक शाखाएं इस योजना को लागू कर रही है। सितंबर 2014 तक 643355  किसान क्रेडिट कार्ड बैंकों द्वारा जारी किए गए हैं। जब रुपए 3809.05 करोड़ की ऋण बांटे हैं।

फसल बीमा योजना

प्रदेश सरकार ने सभी फसलों तथा सभी किसानों को बीमा योजना के अंतर्गत लाने के लिए वर्ष 1999-2000 के रबी मौसम से राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना शुरू की। आरंभ में मक्की, चावल, जौं तथा आलू की फसलों को इस योजना के अंतर्गत लाया गया है। लघु एवं सीमांत किसानों को बीमा क़िस्त पर छूट संन-सैट के आधार पर प्रदान की जाएगी। यह परियोजना ऋणी किसानों के लिए आवश्यक एवं गैर-ऋणी किसानों के लिए उनकी इच्छा पर निर्भर है। इस परियोजना को भारत को कृषि बीमा कंपनी प्रारंभ कर चुकी है। फसलों के नुकसान के कारण किस्तों पर छूट की भरपाई को भारत सरकार और राज्य सरकार दोनों मिलकर समान रूप से वहन करेगी। खरीफ फसल 2009 के दौरान सिरमौर जिला की अदरक की फसल को पायलट के आधार पर मिलकर सम्मिलित किया गया है। रबी फसल 2011-12 के दौरान यह योजना प्रगति पर है।

बीज प्रमाणीकरण

प्रदेश में कृषि मौसमिय की स्थिति बीज उत्पादन के लिए काफी उपयुक्त है। बीज की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए तथा उत्पादकों को बीज की कीमतें देने के लिए बीज प्रमाणीकरण योजना को काफी महत्व दिया जा रहा। प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में बीज उत्पादन तथा उनके उत्पादन के प्रमाणीकरण के लिए बीज रासायनिक खाद उत्पादन प्रमाणीकरण एजेंसी उत्पादकों को रजिस्टर कर रही है।

कृषि विपणन

राज्य में कृषि विपणन तथा कृषि उत्पादन को व्यवस्थित करने के लिए हिमाचल प्रदेश कृषि वानिकी उत्पादन विपणन एक्ट, 2005 से लागू किया गया है। इस एक्ट के अंतर्गत राज्य पर स्तर हिमाचल प्रदेश विपणन बोर्ड की स्थापना की गई है। संपूर्ण हिमाचल प्रदेश 10 अधिसूचित विपणन क्षेत्रों में विभाजित किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य कृषक समुदाय के अधिकार को सुरक्षित रखा है। व्यवस्थित स्थापित मंडियों किसानों को लाभदायक सेवाएँ करवा रही है। सोलन में कृषि उत्पादन हेतु एक आधुनिक मंडी ने कार्य करना शुरू कर दिया है तथा अन्य स्थानों पर मार्केट यार्डों का निर्माण किया गया है। किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए मार्केट फ़ीस 2% से 1% की गई.  इस अधिनियम के अंतर्गत जो राजस्व प्राप्त होगा उसे मूलभूत सुविधाओं के उनयन तथा कृषि उत्पाद के लाभकारी कार्यक्रम को सुनिश्चित करना है। हिमालय प्रदेश कृषि उपज मार्केट अधिनियम को आदर्श अधिनियम में दर्ज किया गया जिसको भारत सरकार ने शुरू किया है। इस अधिनियम के अंतर्गत निजी मार्केट की स्थापना करना, सीधे तौर पर विपणन, ठेके पर कृषि एवं एक बिंदु पर प्रवेश शुल्क की उगाही मंडियों का कंप्यूटरीकरण भी शुरू किया जा रहा है। विपणन बोर्ड बिना किसी योजना सहायता के स्वयं अपनी संपत्ति से सभी कार्यकलापों को संचालित कर रही है।

चाय विकास

राज्य में चाय उत्पादन के अंतर्गत 2300 हेक्टेयर क्षेत्र है जिसमें 1500000 किलो ग्राम चाय का उत्पादन होता है। लघु एवं सीमांत आय पैदावार करने वालों को कृषि औजारों पर 50% अनुदान दिया जाता है। कुछ वर्षों से मंडी में गिरावट की वजह से चाय उद्योग पर विपरीत असर पड़ा है। उत्पादकों को चाय उत्पादन के अच्छे दाम दिलवाने पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।

कृषि का मशीनीकरण

प्रदेश में किसानों को नए कृषि औजार/मशीनों को लोकप्रिय बनाने के लिए इस योजना के अंतर्गत नई मशीनों का परीक्षण किया गया है। विभाग का प्रस्ताव पहाड़ी स्थिति के अनुकूल छोटे ईंधन से चलने वाले हल एवं औजारों को लोकप्रियता दिलाने का है।

कृषि विकास के लिए सूक्ष्म प्रबंधन दृष्टिकोण

हिमाचल प्रदेश में विगत में भारत सरकार द्वारा प्रारंभ की गई केंद्रीय प्रायोजित योजना को समरूप से संगठित किया गया था। और बहुत से मामलों में स्थिति राज्य की स्थिति के अनुकूल नहीं थी। प्रदेश सरकार ने इन मुश्किलातों को केंद्र प्रायोजित योजनाओं में कुछ लचीलापन लाने हेतु त्वरित कृषि विकास में नए प्रयोगात्मक दृष्टिकोण हेतु भारत सरकार के समक्ष रखा इस दृष्टिकोण के आधार पर प्रदेश सरकार ने जो कार्य योजना प्रस्तुत की उसके हिसाब से प्रदेश को 90% केंद्रीय सहायता (80% अनुदान तथा 20% ऋण) रूप में मिलेगा तथा 10% हिस्सा राज्य योजना का होगा। इस योजना के अंतर्गत मुख्य प्राथमिकता अनाज की फसलों की बेहतरी, प्रौद्योगिकी के स्थानांतरण, पानी के संग्रहण के टैंकों का स्थानांतरण, पानी के संग्रहण के टैंकों का निर्माण, बे मौसमी सब्जियों के विकास, मसाले, उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उनयन, एकीकृत पोषण प्रबंधन एवं सीधे तौर पर कृषि से जुड़ी महिलाओं के मध्य सामंजस्य स्थापित करने को प्रदान की जाएगी

भू एवं जल संरक्षण

राज्य में 2011-12 के दौरान 511 टैंक सिंचाई योजनाएं, 60 जल हार्वेस्टिंग योजनाएं तथा 770 स्प्रिंकलर सिंचाई योजना लागू की जाएगी।  इसके प्रत्येक किसान को 25% उत्पादन दिया जाएगा। इसके अलावा 3 करोड रुपए की अनुमानित राशि से 40 वाट अरशद विकास योजनाएं जिनके अंतर्गत 3300 हेक्टेयर क्षेत्र लाया जाएगा स्वीकृत की गई है। इन परियोजनाओं से एवं जल संरक्षण तथा फार्म स्तर में रोजगार के अवसर अर्जित करने पर अधिक बल दिया जाएगा।

वर्ष 2011-12 के दौरान आर.आई.डी.एफ. के अंतर्गत 4 करोड रुपए बजट प्रावधान से 32 लघु सिंचाई परियोजनाएं पूरी की जाएगी। इसी वर्ष के दौरान 800 हेक्टेयर क्षेत्र अतिरिक्त संभावित सिंचाई के अंतर्गत लाया जाएगा। इन योजनाओं को कृषक विकास संघ द्वारा संचालित किया जा रहा है।

खेती के लिए पौली गृह परियोजना

इस परियोजना का उद्देश्य अधिक पैदावार और क्षेत्र की इकाई के आधार पर आय, प्राकृतिक संसाधनों जैसे- जल एवं जमीन का सही उपयोग संपूर्ण वर्ष आश्रितों की उपलब्धता, पैदा की गई फसलों की गुणवत्ता एवं निवेश में कार्यक्षमता को बढ़ावा देना है। नाबार्ड ने इस परियोजना को आई. आर. डी. एफ. XIV के आधार पर 154.92 करोड़ रुपए की सहायता से स्वीकृत की है जिसे इस वित्तीय वर्ष 2008-09 से प्रारंभ करके 4 वर्षों में कार्यन्वित कर दिया जाएगा।

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना

राज्य में भारत सरकार ने राष्ट्रीय कृषि योजना लागू की है। इसका उद्देश्य 11वीं योजना के दौरान कृषि क्षेत्र में 4% की वार्षिक वृद्धि एवं कृषि एवं संबंधित क्षेत्र में संपूर्ण विकास करना है। भारत सरकार ने कृषि को बढ़ावा देने के साथ उधान, पशुपालन, मत्स्य पालन एवं ग्रामीण विकास के लिए वर्ष 2014-15 में ₹86.11 करोड़ का प्रावधान किया है।

उद्यान (बागवानी)

हिमाचल प्रदेश की विविध जलवायु, भौगोलिक क्षेत्र तथा उनकी स्थिति में भिन्नता, उपजाऊ, गहन तथा उचित जल निकास व्यवस्था वाली भूमि समशीतोष्ण तथा उष्णकटिबंधीय फलों की खेती के लिए काफी अनुकूल है। यह क्षेत्र अन्य गौण उद्यान उत्पादन जैसे- फूल,  मशरूम, शहद, एवं हौप्स की खेती के लिए भी बहुत अनुकूल है।

राज्य की इस अच्छी स्थिति के परिणामस्वरुप पिछले कुछ दशकों में भूमि उपयोग अब कृषि से फलोत्पादन की और स्थानांतरित होता जा रहा है। वर्ष 1950-51 में फलों के अधीन कुल क्षेत्र 792 हेक्टेयर था। जिसमें कुल उत्पादन 1200 टन हुआ था। यह बढ़कर वर्ष 2013-14 में 2,20,706 हेक्टेयर क्षेत्र हो गया है तथा कुल फल उत्पादन 8.66 लाख टन हुआ है। वर्ष 2013-14 में दिसंबर 2014 तक कुल फल उत्पादन 6.53 लाख टन आंका गया है। 2012-13 में 4000 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को फल पौधों के अंतर्गत लाने के लक्ष्य की तुलना में कितनी दिसंबर 2014 तक 3447.25 हेक्टेयर क्षेत्र को पौधारोपण के अंतर्गत लाया गया है तथा विभिन्न फलों के 9.59 लाख पौधरोपण हेड बांटे गए हैं।

प्रदेश में फलोत्पादन में सेब का सर्वप्रमुख स्थान है जिसके अंतर्गत फलों के अधीन कुल क्षेत्र का लगभग 48% है तथा उत्पादन कुल फल उत्पादन का लगभग 84% है। वर्ष 1950-51 में सेबों के अंतर्गत 400 हेक्टेयर क्षेत्र था जोकि वर्ष 1960-61 में बढ़कर 3,025 हेक्टेयर तथा वर्ष 2013-14 में 1.,07,686 हेक्टेयर हो गया है।

सेब के अलावा समशीतोष्ण फलों के अंतर्गत वर्ष 1960-61 में 900 हेक्टेयर क्षेत्र में बढ़कर वर्ष 2013-14 में 27,792 हेक्टेयर हो गया। सूखे फल तथा मेवों का क्षेत्र वर्ष 1960-61 के 231 हेक्टेयर से बढ़कर वर्ष 2013-14 में 10,819 हेक्टेयर हो गया तथा नींबू प्रजाति एवं उपोष्ण देशीय फलों का क्षेत्र वर्ष 1960-61 के 1,225 हेक्टेयर तथा 623 हेक्टेयर से बढ़कर वर्ष 2013-14 में क्रमश: 23,110 हेक्टेयर तथा 51,299 हेक्टेयर हो गया। अन्य फलों के उत्पादन में पिछले वर्षों में कोई अधिक परिवर्तन नहीं हुआ है।

प्रतिकूल मौसम व बाजार में आने वाले उतार-चढ़ाव के करण सेब उत्पादन में आ रही है अस्थिरता विकास के मार्ग में बाधक हो रही है। विश्व व्यापार संगठन व जी. ए. टी.टी. तथा अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के परिणामस्वरुप भी राज्य में सेब जो फल उद्योग की प्रभुता पर अपना स्थान बनाए रखने में कई चुनौतियां पेश आ रही है। पिछले कुछ वर्षों में सेब उत्पादन में आ रहे उतार-चढ़ाव ने प्रदेश सरकार का ध्यान अपनी ओर खींचा है। प्रदेश के विशाल का उत्पादन क्षमता के पूर्ण दोहन के लिए अब विभिन्न कृषि क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के फलों के उत्पादन को बढ़ावा देने की मेहती आवश्यकता है।

फलोंउद्यान विकास योजनाओं का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं के विकास एवं रख-रखाव में निवेश करके सभी फसलों को गति प्रदान करना है। इस परियोजना के अंतर्गत विभिन्न कार्यक्रम जैसे- फलोत्पादन विकास कार्यक्रम, क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम, नई तकनीकों की जानकारी एवं अखरोट, हैजनलट, पिस्ता, आम तथा लीची विकास कार्यक्रम, स्ट्रॉबेरी कार्यक्रम, औषधीय एवं सुगंधित पौध कार्यक्रम एवं छोटी अवधि के अनुसंधान कार्यक्रम इत्यादि चलाए जा रहे हैं। अभी हाल ही में एक मुख्य फसल के रूप में उभरा है। कुछ क्षेत्रों में लीची भी महत्व प्राप्त कर रही है। आम तथा लीची की बेहतर कीमतें प्राप्त हो रही है। मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में नए फलों जैसे- कीवी, जैतून, पीकेन तथा स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए कृषि मौसम बिल्कुल अनुकूल है। पिछले 3 वर्षों में चालू वित्त वर्ष के दिसंबर, 2014 तक के फल उत्पादन के आंकड़े अग्रलिखित सारणी में प्रदर्शित किए गए हैं-

फल उत्पादन

मद 2011-12 2012-13 2013-14 2014-15 (दिसंबर 2015 तक)
1 2 3 4 5
सेब 275.04  412.39 738.72 580.52
अन्य
समशीतोष्ण
फल 31.18 55.02 66.13 33.16
सूखे मेवे 2.40 2.81 3.48 1.47
निम्बू प्रजाति 25.03 22.27 22.27 9.46
अन्य
उपोष्ण
फल 39.08 61.16 35.73 28.74
कुल 372.81 555.70 866.33 653.35

फल उत्पादकों को उनके फलों को पैक करने की सामग्री उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाने के लिए व्यापक कदम उठाए गए हैं. सरकार द्वारा यह निश्चय किया गया है कि प्रगतिनगर जिला शिमला में स्थापित कार्टन फैक्ट्री को लीज पर दे दिया जाए तथा यह भी फैसला किया गया है कि एच.पी.एम.सी, ए.आई.सी, हिमफैड और किनफैड (केवल किन्नौर जिला के लिए) बागवानों को परषेण (कंसाइनमेंट) के आधार पर बिना किसी उपदान के कार्टन की सिल्लाई करेंगे। पापुलर यूकेलिप्टस के वृक्षों के लगभग 400000 बक्से भी उत्पादकों द्वारा अन्य दूसरे राज्यों से लाए गए हैं।

बागवानी को बढ़ावा देने हेतु कुल 420 हेक्टेयर क्षेत्र का फूलों की खेती के अंतर्गत 31 दिसंबर, 2014 तक लाया गया है। राज्य में 48 फूल उत्पादक सहकारी समितियां कार्य कर रही है। खूम्ब उत्पादन, मधुमक्खी पालन उत्पादन को बढ़ावा दे कर उद्योग में विजेता लाई जा रही है। वर्ष 2009-10 में दिसंबर, 2009 तक चंबाघाट तथा पालमपुर स्थिति दो विभागीय मशरूम विकास परियोजना में 335.00 मीट्रिक टन पाश्चराइज्ड आद्यार कर्म फल उत्पादकों को बांटी गई है। जिससे 239.00 मैट्रिक तक मशरूम का उत्पादन हुआ है। मधुमक्खी पालन विकास कार्यक्रम के अंतर्गत दिसंबर 2014 तक लाया गया है। राज्य में 48 फूल उत्पादक सहकारी समितियां कार्य कर रही है। खुम्ब उत्पादन, मधुमक्खी पालन उत्पादन को बढ़ावा देकर उद्योग में यह विविधता लाई जा रही है। वर्ष 2009 और 2010 में दिसंबर 2009 तक तंबा घाट तथा पालनपुर स्थित है दो विभागीय मशरूम विकास की योजनाओं में 335.00मीट्रिक पाश्चराइज्ड आजत यार कर मशरूम उत्पादकों को बांटी गई। जिसे 239.00 मैट्रिक टन मशरूम का उत्पादन हुआ है। मधुमक्खी पालन विकास कार्यक्रम के अंतर्गत 31 दिसंबर 2014 तक है 5125.51 मैट्रिक के अनुसार उत्पादन के लक्ष्य की तुलना में 700.63 मैट्रिक टन शहद का उत्पादन हुआ है।

फलोद्यान के क्षेत्र में सरकार द्वारा चलाए गए विभिन्न कार्यक्रमों में समन्वय व सहयोग लाने हेतु प्रदेश में 115.50 कार्यक्रमों में समन्यवय व सहयोग लाने हेतु प्रदेश मकें 115.50 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता डे उद्यान तकनीकी मिशन को प्रारंभ किया गया है ताकि उत्पादन, उत्पादन और आपात प्रबंधन उपभोग और उदाहरण विकास हेतु निर्मित निवेश सरंचना से अधिक से अधिक आर्थिक पर्यावरण संबंधी और सामाजिक लाभ प्राप्त किए जा सकें। अधिक उत्पाद मूल्य को प्राप्त करने के लिए स्थिर पर्यावरण में गहनता का विकास, आर्थिक रूप से कुशल रोजगार का वाछिंत विभाजन, पौधारोपण का विकास और पारंपरिक के बुद्धिमता तथा तकनीकी ज्ञान का नवीनतम तकनीकी ज्ञान जैसे- जैव प्रौद्योगिकी सूचना प्रौद्योगिकी तथा आकाशीय तकनीकी का सम्मिश्रण की और पर्याप्त व समय अनुसार और निरंतर ध्यान दिया जा सके तथा उन कार्यक्रमों के चतुर्मुखी व व्यापक तादात्म्य से उद्यान क्षेत्र का विकास किया जा सके। वर्ष 2009-10 के दौरान भारत सरकार द्वारा उद्यान तकनीकी मिशन योजना के अंतर्गत ₹200000000 की योजना स्वीकृत की गई है। इसी प्रकार इस परियोजना के अंतर्गत वर्ष 2009 और 2010 में भारत सरकार धारा 13 करोड की राशि तीन किश्तों में राज्य सरकार को प्रदान की जा चुकी है.

एच.पी.एम.सी. हिमाचल प्रदेश का एक सार्वजनिक उपक्रम है जिसकी स्थापना ताजे फलों व सब्जियों के विपणन जो बाजार तक नहीं पहुंच सके उनके विधायन तथा तैयार किए गए उत्पादों के विपणन के उद्देश्य से की गई थी। एच.पी.एम.सी शुरू से ही बागवानों को उनके उत्पादन कि लाभप्रद प्राप्तियां में मुख्य भूमिका निभा रही है।

वर्ष 2014 में नवंबर 2014 तक एच.पी.एम.सी. ने 1457.09 लाख रुपए के अपने सयंत्रों में तैयार उत्पादों को घरेलू बाजार में विक्रय किया है। मंडी मध्यस्थ योजना के अंतर्गत एच.पी.एम.सी. ने 527.04 मैट्रिक टन सेबों की खरीद की। कॉर्पोरेशन ने इस योजना के अंतर्गत 425 किलोग्राम आमों का भी अपने संयंत्रों में विधायन किया एवं 53.84 मीट्रिक टन नींबू प्रजाति के फलों की खरीद की गई जो अभी तक चालू है। एच.पी.एम.सी. अपने उत्पादों को इंडियन एयरलाइन, रेलवे, उत्तरी कमान, हेडक्वार्टर उद्यमपुर तथा पारले के लिए भेज रही है। 15.01.2015 तक एच.पी.एम.सी ने इस संस्थानों के लिए 253 लाख रुपए के उत्पाद बेचे हैं। एच.पी.एम.सी. अपने उत्पादों को आई.टी.डी.सी. के होटलों एवं स्थानों को जो मेट्रो सिटीज दिल्ली, मुंबई और चंडीगढ़ में है लगातार विक्रय कर रहा है। एच.पी.एम.सी ने इन संस्थानों के लिए 31.12. 2014 तक 443.27 लाख रुपए के फल एवं सब्जियां भेजी है।

हिमाचल प्रदेश की कृषि से जुड़े तथ्य

  • हिमाचल प्रदेश के सभी दून क्षेत्र कृषि के लिए उपयुक्त है। हिमाचल प्रदेश के कृषकों की जनसंख्या इन्ही क्षेत्रों में निवास करती है।
  • हिमाचल प्रदेश का लगभग 11% क्षेत्र खेती के योग्य है, जबकि पूरे देश के लिए यह अनुपात 35% है।
  • गेहूं, हिमाचल प्रदेश में बोए जाने वाले खदानों में गेहूं का प्रथम स्थान है। यह रबी की फसल है जो अक्टूबर से नवंबर में बोई जाती है और अप्रैल से मई में काट ली जाती है।
  • प्रदेश के ऊपरी भाग के कुछ ठंडे क्षेत्रों में यह जून तक ही पकती है और जून में ही काट ली जाती है। गेहूं लगभग संपूर्ण हिमाचल प्रदेश में बोया जाता है।
  • प्रदेश के कुल कृषि क्षेत्र 20% से लेकर 40% क्षेत्र में गेहूं की खेती की जाती है।
  • प्रदेश के कांगड़ा मंडी व कुल्लू में गेहूं उत्पादन क्षेत्र 1\3 भाग घेरते हैं। प्रदेश के कुल गेहूं क्षेत्र का 19% मंडी, 18 प्रतिशत कुल्लू एवं 10% चंबा में है।
  • प्रदेश में गेहूं उत्पादन के 32% क्षेत्र निम्न एवं उच्च जोत के तथा 29% क्षेत्र निम्न व मध्यम जोत के हैं/
  • धान, (चावल)- इस प्रदेश की खरीद की दूसरी मुख्य फसल है। धान को सीधा बोया जाता है या पौधा तैयार कर इसे 21 से 25 दिन की अवस्था में खेत में पाटी लगाकर तथा जुताई करके रोपा जाता है।
  • हिमाचल प्रदेश का बासमती चावल बहुत प्रसिद्ध है। प्रदेश के कुल 10% क्षेत्र में धान की खेती की जाती है।
  • प्रदेश के लाहौल स्पीति व किन्नौर के क्षेत्रों को छोड़कर प्रदेश के बाकी पहाड़ी क्षेत्रों में धान बोया जाता है।
  • प्रदेश के कांगड़ा जिले में सबसे अधिक धान का उत्पादन होता है। इस क्षेत्र में 20% भू-भाग पर धान की कृषि की जाती है।
  • जौं, हिमाचल प्रदेश की दूसरी मुख्य रबी की फसल है। जौं का उत्पादन मध्य प्रदेश के लाहौल स्पीति और  किन्नौर जिलों में अधिक होता है।
  • प्रदेश के जौं कुल उत्पादन का 70% लाहौल स्पीति तथा किन्नौर जिले मैं पैदा किया जाता है।
  • प्रदेश के कुल कृषि उत्पादन में जौं की भागीदारी 5% है।
  • प्रदेश में मोहन मीकिन बेवरेज ने जौं उत्पादन को काफी बढ़ाया है।
  • प्रदेश में जौं का उपयोग सत्तू बनाने तथा भोजन में भी किया जाता है।
  • मक्का, यह खरीफ की प्रमुख फसल है। प्रदेश में इस फसल का उत्पादन मानसूनी वर्षा के दौरान होता है। वर्षा पूर्व इस फसल के लिए दो-तीन चिंताई आवश्यक होती है।
  • मक्का की बुवाई जून से लेकर मध्य जुलाई तक होती है।
  • मक्का की अच्छी फसल के लिए 6:0 से लेकर 8.0 PH मान वाली मिट्टी सर्वथा उपयुक्त है। इसके लिए न्यूनतम तापमान 13 डिग्री सेल्सियस की आवश्यकता होती है।
  • हिमाचल प्रदेश के संपूर्ण कृषि क्षेत्र के करीब 26 प्रतिशत भाग पर मक्का की पैदावार होती है।
  • मक्का का उत्पादन प्रदेश के सोलन, शिमला, कांगड़ा, हमीरपुर, सिरमौर, ऊना, मंडी, चंबा, कुल्लू, बिलासपुर जिलों में मुख्य रूप से होती है। थोड़ी मात्रा में मक्का का उत्पादन लाहौल-स्पीति व किन्नौर जिलों में भी होता है।
  • चना व दलहन, यह भी रबी की मुख्य फसलों में सम्मिलित है।
  • प्रदेश में मुख्य रुप से पैदा की जाने वाली दलहनी फसलें हैं- उड़द, कोल्थ, मूंग, रागी, चना, काले चने, मसूर एवं मटर।
  • प्रदेश के नालागढ़ आदि क्षेत्रों में अरहर की खेती की जाती है। वर्ष में अरहर की खेती की जाती है वर्ष औसतन 12,000 टन दालों का उत्पादन हिमाचल प्रदेश में किया जाता है।
  • छोटे अनाज, प्रदेश में छोटे अनाजों का उत्पादन राज्य के किन्नौर जिले में होता है। इस जिले के कुल 54% भाग में छोटे अनाज का उत्पादन किया जाता है।
  • तिलहन, राज्य में तिलहनी फसलों को पहाड़ी क्षेत्र के निचले भू-भागों पर बोया जाता है। इनमें सरसों, अलसी, तारामीरा, तोरिया आदि प्रमुख है।
  • गन्ना, प्रदेश में गन्ने का उत्पादन राज्य के सोलन, ऊना, कांगड़ा एवं सिरमौर जिलों में किया जाता है।
  • गन्ने के उत्पादन के लिए मिट्टी का उपयुक्त PH मान 7.00 होना चाहिए।
  • आलू, प्रदेश के शिमला और लाहौल स्पीति जिलों में बहुत अच्छे किस्म का बीज का आलू उत्पादित किया जाता है। जिसकी देश के मैदानी भागों में काफी मांग है।
  • आलू मुख्य रूप से खरीफ की फसल है, परंतु जहां सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध है। वहां इसे रबी की फसल के रूप में बोया जाता है।
  • प्रदेश में आलू की अच्छी किस्मों में कुफरी-जीवन, कुफ़री-चंद्रमुखी, कुफरी-ज्योति, कुफरी-अलंकार आदि प्रसिद्ध है।
  • प्रदेश में वर्ष 2007-08 में आलू का उत्पादन लगभग 1.55 लाख मीट्रिक टन हुआ था।
  • अदरक, हिमाचल प्रदेश का अधिक उत्पादन में केरल राज्य के पश्चात द्वितीय स्थान है।
  • प्रदेश में इस समय अदरक का लगभग 9000 टन उत्पादन हुआ है।
  • अभ्रक उत्पादक जिले हैं-  सोलन, शिमला, बिलासपुर, सिरमौर आदि।
  • सब्जियां, प्रदेश में विभिन्न प्रकार की सब्जियां बड़ी मात्रा में उगाई जाती है। इनमें गोभी, टमाटर, बींस, की पैदावार बड़े पैमाने पर की जाती है।
  • हिमाचल प्रदेश से पंजाब, दिल्ली, चंडीगढ, हरियाणा आदि राज्यों को सब्जियों का निर्यात किया जाता है।
  • चुकंदर, प्रदेश में चुकंदर की पैदावार केवल राज्य के किन्नौर जिले में होती है। यहां से चकुंदर का अच्छी किस्म का बीज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
  • मशरूम, प्रदेश में मशरूम का उत्पादन शिमला और सोलन जिलों में ही किया जाता है।
  • प्रदेश में मशरूम का उत्पादन लगभग 350 टन प्रतिवर्ष है। यहां पर मशरूम को वाणिज्यक फसल के रूप में विकसित किया जा रहा है।
  • काला जीरा, प्रदेश के लाहौल स्पीति एवं किन्नौर जिलों में ही पैदा किया जाता है। काला जीरा यहां की नकदी फसल है।
  • कूठ, इसकी पैदावार राज्य के लाहौल स्पीति घाटी, कुल्लू एवं किन्नौर में थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पैदा की जाने वाली यह जड़ी-बूटी है। कूठ प्रदेश के सौ हेक्टेयर क्षेत्र में बोयी जाती है।
  • कुठ का इस्तेमाल कास्मेटिक दवाई, कीटनाशक या नशीली दवा के रूप में किया जाता है।

बागवानी

  • सेबों की बगीचा सर्वप्रथम हिमाचल प्रदेश के कुल्लू घाटी के बुन्दरोल में कैप्टन ए.ए.ली. नामक एक अंग्रेज ने लगवाया था.
  • शिमला की पहाड़ियों में एक अंग्रेज जिसका नाम अलैक्जेंडर काउंट था ने 1887 ई. में पहला सेब का बगीचा मशोबरा क्षेत्र में लगाया था। वर्तमान में इस बगीचे में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र है।
  • हिमाचल प्रदेश में सेब की वास्तविक खेती 1918 ई. में आरम्भ हुए जब सैमुअल इवान्स स्टोक्स ने अमरीका से लाकर कोटगढ़ में सेब की मीठी किस्में उगाई
  • सेब की पैदावार में बढ़ोतरी से उत्साहित स्टोक्स महोदय ने स्थानीय लोगों को सेब के पौधे मुफ्त में वितरित किए और इस प्रकार उन्हें सेब के बगीचे लगाने के लिए प्रोत्साहित किया।
  • प्रदेश में सेब उत्पादन करने वाले 2 जिले हैं-  कुल्लू व शिमला है। इन दोनों जिलों से हिमाचल प्रदेश के सेब के कुल उत्पादन का 80% से प्राप्त होता है।
  • कुल्लू घाटी की प्रमुख सेब की किस्में- गोल्डन डेलिशस, वाल्डविन बेन डेविस है।
  • शिमला की पहाड़ियों में उगाई जाने वाली सेब की कुछ खास किसमें है-  टॉमब्यूटी, रेड डेलीशस,ब्यूटी ऑफ बाघ, जौनंथान, अर्ली, शान बरी, एव आरगेन,स्पर सिल्वर इत्यादि।
  • हिमाचल प्रदेश में हाल ही में आम एक मुख्य फल के रूप में उभरा है।
  • कुछ क्षेत्रों में लीची भी महत्व प्राप्त कर रही है
  • नए फलों में कीवी, जैतून, पीकैन, एवं स्ट्रॉबेरी की फसल के लिए कृषि मौसम बिल्कुल उपयुक्त है।

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