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हिमाचल प्रदेश में मिट्टियों के प्रकार

हिमाचल प्रदेश की स्थलाकृति, ऊंचाई और जलवायु के अनुसार यहां पर मिट्टी भी कई प्रकार की पाई जाती है। मिट्टी की परत कुल मिलाकर पतली होती है। मोटी परतें वादियों में या पहाड़ों के ढालों पर पाई जाती है।

हिमाचल प्रदेश नवीन मिट्टी की भूमि है। यहां भूमि की भीतरी बनावट और जलवायु में भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। इसमें गहराई की रूपरेखा और ढलान की बनावट के साथ-साथ बदलाव आ जाता है। भूमि की बनावट के क्षेत्र में मैदानी क्षेत्र की समतल भूमि की बजाय पहाड़ी ऊंचाई के क्षेत्र में भू-संरक्षण से संबंधित अनुसंधान किए गए हैं। इन अनुसंधानों के आधार पर पहाड़ी मिट्टी को दो भागों में बांटा जा सकता है।

अवशिष्ट मिट्टी

वह मिट्टी जो चट्टानों से टूट-फूटकर बनने के बाद वहीं रह जाती है और उसमें वनस्पति का सड़ा गला अंश वहीं रहते-रहते मिल जाता है।

दूसरी मिट्टी जल

इस तरह की मिट्टी हिमनद और हवा के द्वारा व चट्टानों को तोड़कर और क्षरण के परिणामस्वरुप  बनती है। यह प्रक्रिया चट्टानों के कंकड़ों को मूल चट्टान के स्थान से बहुत दूर ले जाती है। इस प्रकार की मिट्टी को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है।

काँप मिट्टी

यह मीठी नदियों द्वारा अपने साथ बहाकर लाए गए पदार्थों से बनी हुई होती है।

तिल मिट्टी

इस प्रकार की मिट्टी का बाहुल्य हिम प्रवाह क्षेत्र में दृष्टिगोचर होता है। तिल मिट्टी के कण बड़े मोटे और कड़े होते हैं।

लोएस मिट्टी

इस प्रकार की मिट्टी हवा द्वारा उड़ाकर लाई हुई होती है। साधारणतया फसलों की उपज भूमि की गहराई और सिंचाई तथा जल की उपलब्धता पर निर्भर करती है।

  • हिमाचल प्रदेश के राजस्व विभाग ने इन्हीं दो आधारों पर भूमि का वर्गीकरण किया है। इसी वजह से उच्च श्रेणी की घाटियों की भूमि गहरी, समतल और अधिक उर्वरा होती है। इस तरह की भूमि की सिंचाई सुगमता से हो जाती है।
  • दूसरी श्रेणी की भूमि ढलानों पर देखने में आती है। इसमें प्राय: भूस्खलन नहीं होता। इस प्रकार की मिट्टी के लिए उपयुक्त खेती की आवश्यकता रहती है।
  • तृतीय श्रेणी की भूमि में फसलों की बारी बारी से खेती करना आसान होता है।
  • चौथी श्रेणी की भूमिका खेती की दृष्टि से अधिक उपयोगी नहीं है उनमें घास या झाड़ियां ही उग सकती है। शेष प्रकार की भूमि की खेती के उपयुक्त नहीं है। उसमें केवल पशुओं को चराने और वन उगाने के कार्य किए जा सकते हैं। इस प्रकार की भूमि पर भूस्खलन होता रहता है। क्योंकि यह भूमि पहाड़ों के बिल्कुल तिरछे ढलान पर है। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों की भूमि वन्य जीवों के लिए अनुकूल है।
  • पहाड़ी मिट्टी प्रदेश शुष्क समुद्र तल से प्राय: 2,500 मीटर से ऊपर ऊंचाई वाले भाग में आते हैं। जिसमें पांगी, किन्नौर एवं लाहौल स्पीति क्षेत्र शामिल है।
  • चूंकि इस क्षेत्र में मानसूनी वर्षा कम होती है। इसलिए इस क्षेत्र की मिट्टी उसर प्रकार की होती है। इसमे नमी की मात्रा बहुत कम होती है ।
  • उपरोक्त प्रकार की मिट्टी में रासायनिक व जैविक तत्वों का बिल्कुल अभाव होता है। ढालो कि दोमट मिट्टियाँ अपेक्षाकृत अधिक उपजाऊ है। ये क्षेत्र शुष्क फलों की पैदावार के लिए उपयोगी है।
  • नहरी मिट्टी, इसे दो भागों में बांटा गया है- पहले प्रकार की मिट्टी की सिंचाई प्राकृतिक नहरों द्वारा की जाती है, जो समीप स्थित होती है। दूसरे प्रकार की मिट्टी की सिंचाई ही बरसाती पानी से की जाती है।
  • नाद, इस प्रकार की मिट्टी में केवल धान उगाया जाता है।
  • एक फसली इस प्रकार की मिट्टी में वर्ष में एक फसल उगाई जाती है।
  • द्विफसली, इस प्रकार की मिट्टी में दो बार फसलें उगाई जाती है।
  • ऊसर, इस प्रकार की मिट्टी में केवल कंटीली झाड़ियां मिलती है और कृषि नहीं की जाती है।
  • बंजर, इस प्रकार की मिट्टी में दो या तीन वर्षों में एक फसल उगाई जाती है।
  • पर्वतीय मिट्टी समुद्र तल से 2,100 से 3,500 मीटर की ऊंचाई वाले भागों में मिलती है। जिनमें शिमला सिरमौर एवं चंबा के ऊपरी भाग के क्षेत्र आते हैं। इस क्षेत्र की मिट्टी गाद भरी दोमट प्रकार की है।
  • यह की मिट्टी का गुण अम्लीय होता है। इसमें जैविक तत्वों की मात्रा 2.5 मीटर से 3.5 के बीच परिवर्तित होती रहती है। इसमें रासायनिक तत्व उच्च से माध्यम मात्रा में पाए जाते हैं। इस क्षेत्र की मिट्टी कृषि की दृष्टि से उपयुक्त नहीं है। मिट्टी की परत भी अपेक्षाकृत गहरी है।
  • उच्च पहाड़ी मिट्टी के क्षेत्र हिमाचल प्रदेश में समुद्रतल से 1,500 से 2,100 मीटर की ऊंचाई वाले भाग जिनमें सिरमौर, पहवद और रेणुका के ऊपरी भाग, सोलन का उपरी भाग, शिमला के क्षेत्र, मंडी जिले के सांचौर और करसोंग के क्षेत्र, कांगड़ा के पूर्वी भाग के क्षेत्र और चंबा के ऊपरी चिराह व कुल्लू के क्षेत्र आते हैं।
  • इस क्षेत्र की मिट्टी बलुई, दोमट या चिकनी दोमट प्रकार की है तथा इसका रंग गहरा भूरा होता है।
  • इस मिट्टी की परत मोटी होती है। इस मिट्टी में रसायनों की मात्रा अधिक होती है।
  • इस मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा उच्च मध्यम श्रेणी की होती है। जबकि पोटाश की मात्रा मध्यम श्रेणी की होती है।
  • निम्न पहाड़ी मिट्टी क्षेत्र समुद्रतल से 1,000 मीटर की ऊंचाई वाले भागों में दिन में जिनमें सिरमौर, पोंटा घाटी, नाहन तहसील, बिलासपुर ऊना, हमीरपुर एवं कांगड़ा के पश्चिम भाग के क्षेत्र चंबा का निम्न क्षेत्र भटियात मंडी की बल्ह घाटी आदि क्षेत्र आते हैं।
  • इस क्षेत्र में मिट्टी की परत ज्यादा गहरी नहीं है। इस क्षेत्र की मिट्टी मुलायम और चट्टानों से निर्मित है। मिट्टी के साथ-साथ छोटे-छोटे कण भी पाए जाते हैं।
  • मृदा संरक्षण हेतु प्रदेश के खेतों के बांधों को उच्च बनाया जा रहा है। वृक्ष लगाए जा रहे हैं। जिससे वायु की गति को धीमा करके वायु द्वारा भूमि अपरदन रोका जा सके।
  • प्रदेश की मिट्टी के नमूनों की जांच के लिए प्रयोगशाला में प्रतिवर्ष 70-80 हजार मिट्टी के नमूनों का विश्लेषण किया जाता है।

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