हिमाचल प्रदेश में 20% परिवार पशु पालते हैं और उनका जीवन कृषि पर आधारित है.पशुधन विकास ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग है. प्रदेश में पशुधन एवं फसलो तथा सांझी संपत्ति साधनों (जैसे- वन, पानी, चरने योग्य भूमि) में बहुत गहरा संबंध है। पशु अधिकतर उस चारे में घास जोकि साझीं संपत्ति साधनों तथा फसलों व फसल अवशेषों से प्राप्त होती है पर निर्भर करते हैं। उसी प्रकार पशु सांझी संपत्ति साधनों के लिए चारा घास तथा फसल अवधेश प्रदान है जोकि खेतों में खाद के काम आता है तथा सूखे के लिए अधिक आवश्यक शक्ति प्रदान करते हैं।
प्रदेश में पशुधन अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ रखने में सहायक है। वर्ष 2013-14 में 11.51 लाख मीट्रिक टन दूध, 1,657 मीट्रिक टन ऊन 107.548 मिलियन अंडे 3,986 मीट्रिक टन मीट का उत्पादन हुआ है। वर्ष 2014-15 में क्रमश: 11.70 लाख मैट्रिक टन दूध, 1,661 टन ऊन, 109.00 मिलियन अंडे तथा 4,000 मीट्रिक टन मीट का उत्पादन होने की संभावना है। सारणी में दूध उत्पादन तथा प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता प्रदर्शित है।
उत्पादन तथा प्रति व्यक्ति उपलब्धता
वर्ष | दूध उत्पादन (लाख टन) | प्रतिव्यक्ति उपलब्धता (ग्राम\दिन) |
2013-14 | 11.51 | 460 |
2014-15 | 11.70 | 468 |
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को उभारने में पशुपालन का महत्वपूर्ण भूमिका रही है तथा राज्य में पशुधन विकास कार्यक्रम में-
- पशु स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण
- गोजातीय विकास
- भेड़ प्रजनन तथा ऊन विकास
- कुक्कुट विकास
- पशु आहार व चारा विकास
- पशु स्वास्थ्य संबंधित शिक्षा, तथा पशु गणना पर ध्यान दिया जा रहा है।
वर्ष 31.12. 2014 तक पशु स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत प्रदेश में 7 पोलीक्लीनिक, 282 पशु चिकित्सालय, 49 केंद्रीय पशु औषधालय तथा 1,765 पशु औषधालय एवं 6 पशु चेक पोस्ट कार्य कर रहे हैं। जो तुरंत पशु चिकित्सा सहायता प्रदान करवाते हैं।
प्रदर्शन में भेड़ व ऊन विकास हेतु सरकारी भेड़ प्रजनन फार्म ज्यूरी (शिमला) सरोल (चंबा) नगवाई मंडी, ताल (हमीरपुर), कड़छम (किन्नौर) द्वारा भेड़ पालकों को उन्नत किस्म की भेड़ें उपलब्ध कराई जा रही है। वर्ष 2013-14 में इन फार्मो में 1251 भेड़ें पाली गई और 248 नर मेंढ़े भेड़ पालकों को वितरित किए गए साथ ही ₹ 1.70 लाख भी।
खरगोशों के प्रजनन के लिए खरगोश उपलब्ध कराने हेतु जिला कांगड़ा में कंदबाडी तथा जिला मंडी में नगवाई में अंगोरा खरगोश फार्म कार्य कर रहा है।
प्रदेश में डेयरी विकास, पशुपालन का एक अभिन्न हिस्सा है तथा छोटे व सीमांत किसानों की आय वृद्धि में इसकी प्रमुख भूमिका है। पिछले वर्षों में बाजार प्रेरित अर्थव्यवस्था के अंतर्गत दुग्ध उत्पादन विशेषकर उन क्षेत्रों में जोकि शहरी उपभोक्ता केंद्रों के दायरे में आते हैं, विशेष महत्व प्राप्त हुआ है। इससे किसानों को पुरानी स्थानीय नस्ल की गायों को क्रॉसवीड गायो में बदलने के लिए प्रोत्साहन मिला है। क्रॉसब्रीड गायों को बेहतर समझा जाता है। क्योंकि यह गायें अधिक समय तक व अधिक दूध देती है, इस कारण पशुपालन से संबंधित ढांचे जैसे पशु संस्थान तथा दुग्ध फेडरेशन में वृद्धि हुई है। पहाड़ी नस्ल की गायों को जर्सी तथा होलस्टेन नस्ल में क्रॉस ब्रीडिंग (स्करीत) द्वारा विकसित किया जा रहा है। भैंसों को भी अधिक दूध देने वाली क्रॉसब्रीडिंग नस्ल द्वारा विकसित किया जा रहा है। आधुनिक तकनीक द्वारा जमे हुए वीर्य स्ट्रा से गाय तथा भैंसों में कृत्रिम गर्भाधान प्रणाली को अपनाया जाता है। वर्ष 2013-14 में कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा प्रदान करवाई गयी है वर्ष 2011-12 में 8.6 लाख गायों के व 2.3 लाख वर्क वीर्य तृणोका उत्पादन होने की संभावना है। वर्ष 2012-13 में 8.40 लाख गायों में तथा 2.30 लाख भेसों में कृत्रिम गर्भाधान 1.10 लाख लिटर तरल नत्रजन उत्पादन होने का लक्ष्य प्राप्त होने की आशा है।
दूध पर आधारित उद्योग
हिमाचल प्रदेश दुग्ध फेडरेशन ने 800 समितियां गठित की है। इन समितियों के सदस्यों की कुल संख्या 36,503 है। जिसमें 179 महिला डेयरी सहकारी समितियां भी कार्य कर रही है। डेरी सहकारी समितियों द्वारा दुग्ध उत्पादकों से गावों का अंतिरिक्त दूध एकत्रित किया जाता है तथा दुग्ध फेडरेशन इसे बाजार में उपलब्ध करवाता है। वर्तमान में दुग्ध फेडरेशन 23 दुग्ध ठंडा करने के केंद्र संचालित कर रहा है। जिनकी कुल क्षमता 75,500 लीटर दूध प्रतिदिन है और 5 दुग्ध प्रसकरण प्लांट जिनकी कुल क्षमता 85,500 लीटर दूध प्रतिदिन है। दुग्ध फेडरेशन प्रतिदिन लगभग 25,000 लीटर दूध की आपूर्ति कर रहा है। जिसमें सैनिक यूनिट डगशाई, शिमला, पालमपुर, ओर योल सम्मिलित है। पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष मिल्कफेड रोजाना औसतन 67,000 लीटर दूध प्रतिदिन इकट्ठा कर रहा है जिसकी विकास दर 2011-12 में 12% थी।
दूध पर आधारित उद्योग का उत्पाद
मद | यूनिट | 2013-14 | 2014-15 |
संगठित समितियां | संख्या | 822 | 845 |
सदस्यता | संख्या | 37945 | 38740 |
दुग्ध इकट्ठा किया गया | लाख लीटर | 219.68 | 165.00 |
दुग्ध बेचा गया | लाख लीटर | 67.92 | 55.00 |
घी बेचा गया | मीटर टन | 199.24 | 107.00 |
पनीर बेचा गया | मीटर टन | 61.12 | 61.12 |
मक्खन बेचा गया | मीटर टन | 21.76 | 22.00 |
दही बेचा गया | मीटर टन | 161.20 | 115.00 |
पशु चारा | किंवटलों में | 28680.76 | 19334.00 |
मत्स्य पालन
हिमाचल प्रदेश भारतवर्ष के उन राज्यों में से जिन्हें प्रकृति द्वारा पहाड़ों से निकलने वाली बर्फानी नदियों का जाल प्रदान किया गया है जोकि प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों, अर्ध मैदानी और मैदानी क्षेत्रों से होती हुई पंजाब, जम्मू कश्मीर, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर जाती है।’ राज्य में सदानीर नदियां व्यास, सतलुज, यमुना और रावी नदी बहती है जिनमें मत्सयिक की शीतल जलीय प्रजातियां जैसे गूगली (साइजोथरैक्स) सुनहरी महाशीर व ट्राउंट प्रचुर पाई जाती है। शीतल जलीय मात्स्यिक संसाधनों के दोहन के लिए महत्वाकांक्षी इंडो नार्वेजन ट्रांउट फॉर्मिंग परियोजना के प्रदेश में सफल कार्यन्वयन से राज्य ने वाणिज्यक ट्राउट पालन को निजी क्षेत्र में हासिल करने का गौरव हासिल किया है। प्रदेश के दो बड़े जलाशय गोविंद सागर व पोंग डैम में उत्पादित व्यवसायिक तौर पर महत्वपूर्ण मत्स्य प्रजातियां क्षेत्रीय लोगों के आर्थिक उत्थान एवं जीविका का मुख्य साधन बन गई है। प्रदेश में लगभग 4,000 मछुआरे अपनी रोजी-रोटी के लिए जलाशयों के मछली व्यवसाय पर प्रत्यक्ष रूप से आश्रित हैं। वर्ष 2013-14 के दौरान दिसंबर 2014 तक प्रदेश के विभिन्न जलाशयों में 6479.22 मीट्रिक टन मछली उत्पादन किया है जिसका मूल्य 5474.03 लाख रुपए है। हिमाचल प्रदेश के जलाशयों को गोविंद सागर को देशभर में सर्वाधिक प्रति हेक्टेयर मत्सय उत्पादन तथा पोंग डैम को मछलियों का सर्वोच्च विक्रय मूल्य का गर्व प्राप्त है। इन दोनों जलाशयों में दिसंबर 2014 तक है 1,108.096 मीटर टन उत्पादन हुआ जिसका मूल्य 943.40 लाख रूपय आंका गया है। गोविंद सागर में प्रति हेक्टेयर जलाशय को वर्ष के दौरान दिसंबर 2014 तक राज्य में फार्मो से 8.61 टन ट्राउंट मछली उत्पादन से 81.95 लाख रूपये का राजस्व प्राप्त हुआ है। जो निम्नलिखित सारणी में दर्शाया गया है
ट्राउंट उत्पादन
वर्ष | उत्पादन टन | राजस्व लाख रुपए में |
2005-06 | 13.96 | 35.67 |
2006-07 | 16.57 | 52.21 |
2007-08 | 14.98 | 67.96 |
2008-09 | 14.00 | 69.11 |
2009-10 | 15.20 | 74.25 |
2010-11 | 19.07 | 89.26 |
2011-12 | 17.98 | 83.01 |
2012-13 | 19.18 | 98.48 |
2013-14 | 13.81 | 115.41 |
2004-15 दिसंबर 2014 तक | 8. 61 | 81.95 |
राज्य में मत्स्य कृषको, ग्रामीण तालाबों और जलाशयों की मांग को पूरा करने के लिए मत्स्य विभाग द्वारा कार्प तथा ट्रांउट फॉर्मों कि सरकारी तथा निजी क्षेत्रों में स्थापना की गई है। कार्प फार्म बीज का उत्पादन वर्ष 2013-14 में 222.12 लाख तथा 2014-15 में 106.52 लाख (दिसंबर 2014 तक) राज्य सरकार के प्रस्ताव के आधार पर उत्पाद प्रक्रिया प्रणाली सुदृढ़ीकरण नामक 79.00 लाख रुपए की नई परियोजना केंद्रीय सरकार से शत प्रतिशत स्वीकृत हो चुकी है जिसके लिए सरकार को 50.00 लाख रुपए प्राप्त हो चुके हैं इस योजना के अंतर्गत प्रदेश में मत्स्य तीन बर्फ उत्पादन संयंत्र तथा 200 इंसुलेटीड डिब्बे क्रय किए जाएंगे। राष्ट्रीय कृषि योजना के अंतर्गत 100 ट्राउट मतस्य पालन इकाइयों की स्थापना व प्रथम वर्षीय आदान तथा 100 सामुदायिक तालाबों के निर्माण के लिए विभाग को मू. ₹6500000 की योजना स्वीकृत हुई है जिसके कार्यान्वयन हेतु विभाग को पहली किस्त के रूप में 1164.00 लाख रुपए की स्वीकृति प्राप्त हो गई है।
विभाग द्वारा जलाशय मछली दोहन में लगे मछुआरों एवं मत्स्य पालन के आर्थिक उत्थान के लिए बहुत सी कल्याणकारी योजनाएं शुरू की गई है। मछुआरों को अब दुर्घटना बीमा योजना के अंतर्गत मृत्यु की दशा में संत्पत परिवार को ₹1,00,000 तथा अपंगता की स्थिति में ₹50000 बीमा राशि के तौर पर प्रदान किए जाएंगे। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाओं के कारण बताते उपकरणों के नुकसान की भरपाई के लिए कुल लागत का 33% प्रदान किया जाएगा। मत्स्य पालन विभाग ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में अपना विशेष सहयोग प्रदान कर रहा है तथा विभाग द्वारा बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए बहुत-सी योजनाएं चलाई जा रही है जिसके अंतर्गत विभाग द्वारा अब तक 197 स्व-रोजगार के अवसर पैदा की है। हिमाचल प्रदेश देश का प्रथम राज्य है जहां बांध विस्थापितों के उत्थान के लिए उन्हें सरकारी सभा के रूप में संगठित करके जलाशय के दोहन हेतु प्रेरित किया जा रहा है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- हिमाचल प्रदेश में मछलियों के विकास के लिए नदियों, तालाब, जलाशय आदि मुख्य साधन है।
- मत्स्य बीज तैयार करने के लिए सरकार ने दयोली (बिलासपुर) जगतखाना (नालागढ़) अलासु (मंडी), मिलवा (कांगड़ा) में मत्स्य प्रजनन केंद्र खोले हैं।
- दयोली एशिया का सबसे बड़ा मत्स्य प्रजनन केंद्र है।।
- प्रदेश में ट्राउंट नाम की मछली पाई जाती है जो सिर्फ ठंडे इलाकों में ही होती है।
- प्रदेश में पायी जाने वाली मछली की प्रसिद्ध किस्में- लोबिया, महाशी, मीटर कार्प ट्राउट आदि है।
- उद्यान विभाग ने बड़े-बड़े बगीचों के साथ ऐसे मधुमक्खी केंद्र खोले हैं और बागवानों को भी मधुमक्खी के डिब्बे किराए पर दिए जाते हैं। शहद तैयार करने के लिए मधुमक्खी पालन पर प्रदेश सरकार विशेष ध्यान दे रही है।
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