G.K

झारखंड का इतिहास

झारखंड के नाम से बनने वाला यह 28वां राज्य देश के मानचित्र पर राज्य के रूप में 14-15 नवंबर 2000 की रात्रि को अस्तित्व में आया, यह राज्य अपनी खरीद संपदा के कारण देश का समृद्ध एवं राज्य है, वस्तुतः झारखंड क्षेत्र भारत माता का वह वरदहस्त है जिससे हजारों वर्षों से खनिज संपदा सतत झर-झर कर गिर रही है और देश की समृद्धि का ठोस आधार बनी रही है। कुल खनिज संपदा का 35% भाग इसके उदर में समाविष्ट है। इसकी एक नदी स्वर्णरेखा सोने के लिए जानी जाती है। दूसरी नदी दामोदर कोयले के भंडार के लिए प्रसिद्ध है, इसके एक क्षेत्र में तांबा है, तो दूसरे क्षेत्र में लोहा, एक हिस्से में मैगनीज है, तो दूसरे में बॉक्साइट तथा अभ्रक, जादूगोड़ा का यूरेनियम देश की परमाणु ऊर्जा का आधार है, तो इस क्षेत्र में सीमेंट का उत्पादन देश के निर्माण का संबल है। महाभारत काल के पूर्व से ही क्षेत्र का अपना विशिष्ट महत्व बरकरार रहा है। मौर्य काल हो या गुप्तकाल मुस्लिम शासन रहा हो या अंग्रेजी सत्ता, सबकी निगाहों क्षेत्र पर तथा इसके भूगर्भ में छिपी अकूत संपत्ति पर लगी रही। अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में खनिज संपदा के नियोजित दोहन का आधार लिया है।

यदि हम झारखंड आंदोलन के इतिहास पर विचार करें, तो यह आंदोलन देश का ही नहीं विश्व का सबसे पुराना आंदोलन माना जाता है। इसके साथ यदि विशेषण जोड़ना हो तो यह विश्व का सबसे पुराना अहिंसक आंदोलन है जो लगातार जारी है।

झारखंड यानी झाड़ों का प्रदेश बिहार का यह पहाड़ी क्षेत्र एक समय घने वनों का क्षेत्र था और इसमें रहने वाले वनवासी कहे जाते थे। इस क्षेत्र के निवासियों की संस्कृति में वनों का महत्व आज भी दृष्टिगोचर होता है।

आज से 100 वर्ष पूर्व इस प्रकार का झारखंड नहीं था, बाहरी लोगों के लगातार आब्रजन तथा निवास का तथा इस क्षेत्र के लोगों के शिक्षा पर बाहर के लोगों, विशेषकर मशीनरी संस्थाओं का बेहद प्रभाव पड़ा तथा वे देश के अन्य लोगों के साथ चल पाने में सक्षम हो सके। इस क्षेत्र का पूरा सांस्कृतिक इतिहास भी अत्यंत महत्वपूर्ण आ रहा है। एक समय यह झारखंडी संस्कृति वाला झारखंड हत्या के विशाल क्षेत्रफल वाला क्षेत्र माना जाता है। प्रसिद्ध इतिहासकार बुकानन के अनुसार काशी (बनारसी) से लेकर वीरभूम तक का समस्त पठारी क्षेत्र झारखंड कहलाता था। दक्षिणी में वैतरणी नदी इसकी सीमा थी।

इसका पुराना नाम क्या था, इस पर तो एक वृहद शोध की जरूरत है, किंतु एतेरेय ब्राह्मण में उल्लेख है कि इसका नाम पुंडर रहा होगा। राजा बलि ने अपनी पत्नी रानी सुदेशना से ऋषि दीर्घतमा के सयोग से पांच पुत्रों का जन्म कराया था और अपने विशाल राज्य को इन्हीं पांच पुत्रों के नाम पर बांट दिया था। उन पांच पुत्रों व पांच राज्यों के नाम थे- अंग, बग, कलिंग,पुंड्र, तथा सुह्रा, इनमें पुंड्र राज्य की जो सीमा थे। वह बूकान के वर्णन से मेल खाती है। इसके चारों ओर काशी, अंग, बांग, तथा सुह्रा थे। मुसलमान इतिहासकारों ने इस क्षेत्र को कोकरा और झारखंड या झारखंड कहना शुरू किया होगा।

ऐसा अनुमान किया जाता है। इससे पूर्व भी प्राचीन ग्रंथों में झारखंड का नाम आता है। महाभारत में अंगराज कर्ण की दिग्विजय के समय भी इसका उल्लेख मिलता है तब इससे कर्कखंड के नाम से भी जाना जाता था और अर्कखंड के नाम से भी कर्क रेखा रांची के ऊपर से गुजरती है।

इस क्षेत्र में नाग सभ्यता का उल्लेख मिलता है, जिसका संबंध का विस्तार एक समय मोहनजोदड़ो  तथा हड़पा तक माना जाता है। पांडवों उसके जन्मेजय नाम के राजा ने अपने क्षेत्र इंद्रप्रस्थ- हस्तिनापुर में से नागों का जो महासंहार किया था।  उसमें से एक नाग राज कुमार पुंडरीक बचकर इधर पहुंच सका था। उसके साथ काशी की एक ब्राह्मण की पुत्री थी जो इसकी पत्नी थी उन दोनों के यहां आने का उद्देश्य संरक्षण प्राप्त करना ही रहा होगा, परंतु उसकी मृत्यु एक तालाब में डूबने से हो गई। सघप्रसूता पत्नी भी उसी के साथ मर गई। उसका पुत्र रह गया, जो अकेला जमीन पर पड़ा था। कहा जाता है कि धूप से बचने के लिए एक बड़े सांप ने अपने फन की छाया उसको दी बाद में उसे यहां के राजा ने अपने संरक्षण में लेकर पालन पोषण किया तथा उसका फनी मुकुट राय के नाम से जाना गया और इस क्षेत्र में नाग वंश का आदि पुरुष माना गया। उसी के नाम पर यह क्षेत्र नागपुर बाद में छोटानागपुर कर दिया गया वैसे चुटिया राजधानी होने के कारण इसका नाम चुटिया नागपुर था।

चुटिया नागपुर का नाम अंग्रेजी उच्चारण के कारण चुटिया नागपुर बाद में छोटा नागपुर पडा। छोटा नागपुर का राज्य में अत्यंत शक्तिशाली राज्य माना जाता था। बिंबिसार ने इस राज्य के अधिपति नागराज की सहायता से अंगदेश (भागलपुर) के राजा ब्रदत का वध किया था तथा उस राज्य को मगध का करद राज्य बनाया था। मगध राज्य की सीमा झारखंड के दामोदर नदी के उद्गम तक मानी जाती थी जो हजीराबाद जिले में स्थित है।

रामगढ़ से संथाल परगना का क्षेत्र, जिसे सुह्रा कहा जाता था, बाद में इस क्षेत्र का अंग बना. वायु पुराण और विष्णु पुराण में इसे इस के निवासियों और मरुण्ड या मुंडा के नाम पर मर मरुण्ड भी कहा गया। महाभारत में से क्षेत्र में पशुओं की अधिकता के कारण इसे पशु भूमि कहा गया है। चंद्रगुप्त मौर्य के समय क्षेत्र को अटावी क्षेत्र कहा जाता है। चंद्रगुप्त मौर्य ऐसा क्षेत्र को बहुत महत्व देते थे, क्योंकि यहां से इन्हें, सेना के लिए, हाथियों की आपूर्ति होती थी। मौर्य सम्राज्य के पतन के बाद कलिंग (उड़ीसा) के राजा खारवेल ने इसी क्षेत्र के रास्ते से मगध पर आक्रमण किया था।

मौर्य सम्राज्य से पूर्व भी यह क्षेत्र स्वतंत्र क्षेत्र था, मौर्य सम्राज्य के पतन के बाद 12वीं शताब्दी तक यह राज्य अपनी स्वतंत्रता बनाए रहा। 14वीं शताब्दी में पाल व स्नेह छिटपुट कब्जा जरूर किया। अपनी सांस्कृतिक कट्टरता के कारण यह क्षेत्र मुसलमानों के धर्मांतरण तथा राज्य नियंत्रण के प्रयासों का विरोध करता रहा।

मुस्लिम शासकों की सेनाओं को इस क्षेत्र में आने नहीं दिया गया। वे रोहतासगढ़ से आगे नहीं बढ़ सकी। सन 1556 में एक बार अकबर के (यानी नवाब) इब्राहिम खान ने क्षेत्र पर कब्जा किया. अकबर की मृत्यु के बाद स्वतंत्र घोषित कर दिया गया। 1616 में एक बार फिर जहांगीर ने इसे अधीन किया। यह अंग्रेजों के समय तक भी जारी थी। 1779 में रामगढ़ की पहली बटालियन स्थापित की गई तथा चेपमैन को पहला नागरिक प्रशासक नियुक्त किया गया। उस समय रामगढ़ राज्य में कड़ी, कुंडा, छाप, चापि, साराडीह तथा पांचेत के राज्य भी शामिल थे। राज्य का विस्तार 18 वर्ग मील में था। शासन के बावजूद अंग्रेजों और उनसे पहले मुस्लिम शासकों का विरोध है वह विद्रोह लगातार होता रहा मुंडा विद्रोह है. मुंडा विद्रोह(1820-32), कोल विद्रोह (1830-31) आदि विद्रोही हुए तब अंग्रेजों ने इस क्षेत्र को छोटे-छोटे राज्यों में बांटकर शासन प्रारंभ किया। रामगढ़ राज्य को रांची हजारीबाग, गया वह पलामू क्षेत्र में बांट दिया गया तथा स्थानीय लोगों को अपनी सेना में भर्ती करने का क्रम शुरू किया। 1857 में जगदीशपुर के जमीदार बाबू कुंवर सिंह के आहान हजारीबाग था रामगढ़ की सैन्य टुकड़ी या बगावत करके छावनियों से निकल पड़े। 1858 में संतों ने विद्रोह किया जिसे सिख बटालियन के बल पर दबा दिया गया।

पहले यह पूरा क्षेत्र बंगाल के अंतर्गत आता था ओडिशा क्षेत्र के साउथ वेस्ट फ्रंटियर कहा जाता था।  1912 में बिहार में उड़ीसा बंगाल से अलग कर दिए गए। 1936 में उड़ीसा को भी क्षेत्र से अलग कर दिया गया झारखंड भी उन दो विभाजन के कारण चार भागों में बंट गया। इसके पुरुलिया एवं मिदनापुर बंगाल के साथ चले गए, 1936 के विभाजन में सुंदरगढ़, कंयोझर, मयूरभंज तथा सबलपुर को उड़ीसा के साथ कर दिया गया। छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश में मिला दिया गया।

इस तरह भारत की एक लड़ाकू तथा स्वातंत्र्य प्रिय जाति को बांटकर हतोत्साहित कर दिया गया। छत्तीसगढ़ का क्षेत्र ही यदि आज के वनांचल में शामिल कर दिया जाए, तो यह एक विशाल साम्राज्य बन सकता है, फिर पुरा क्षेत्र भी मिला दिया जाए तो कहना ही क्या? अंग्रेजों के बाद में मुस्लिम लीग के साथ मिलकर इस पूरे क्षेत्र को आदिवासी स्थान बनाने तथा उसे पाकिस्तान के समान स्वतंत्र देश बनाने का प्रयास किया पर सफल नहीं हो सके, क्योंकि भारत किसी भी कीमत पर अपना खनिज क्षेत्र छोड़ने को तैयार नहीं था।

भारत सरकार ने भी झारखंड आंदोलन को गंभीरता से तब तक नहीं लिया, जब तक इसके नेता संवर झारखंड की मांग करते रहे। भाजपा ने इस आंदोलन को पुराने क्षेत्र के स्थान पर बिहार से जुड़े छोटानागपुर और संथाल परगना क्षेत्र के वनांचल का नाम दिया और आंदोलन को नया रूप दिया। इसे जनसमर्थन भी मिला और सरकार ने भी इसे स्वीकार किया, परंतु उत्तर बिहार के प्रबल विरोध के कारण वह बार-बार अधर में लटकता रहा। पश्चिम बंगाल तथा उड़ीसा के लोगों ने सम्बद्ध राज्यों से कटकर ऐसा क्षेत्र से जुड़ना नाम दूर कर दिया था और मध्य प्रदेश के क्षेत्र रायगढ़ जिला सरगुजा ने तो अपने लिए अलग छत्तीसगढ़ की मांग को प्राथमिकता दी। 1989 में भारत सरकार ने पहली बार एक समिति, झारखंड विशषयक समिति बनाकर इसे पूरे क्षेत्र का सर्वेक्षण कब नमूना जनमत कराया, तो उक्त निष्कर्ष निकले।

More Important Article

Recent Posts

अपने डॉक्यूमेंट किससे Attest करवाए – List of Gazetted Officer

आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएँगे की अपने डॉक्यूमेंट किससे Attest करवाए - List…

2 weeks ago

CGPSC SSE 09 Feb 2020 Paper – 2 Solved Question Paper

निर्देश : (प्र. 1-3) नीचे दिए गये प्रश्नों में, दो कथन S1 व S2 तथा…

6 months ago

CGPSC SSE 09 Feb 2020 Solved Question Paper

1. रतनपुर के कलचुरिशासक पृथ्वी देव प्रथम के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन सा…

6 months ago

Haryana Group D Important Question Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको Haryana Group D Important Question Hindi के बारे में…

7 months ago

HSSC Group D Allocation List – HSSC Group D Result Posting List

अगर आपका selection HSSC group D में हुआ है और आपको कौन सा पद और…

7 months ago

HSSC Group D Syllabus & Exam Pattern – Haryana Group D

आज इस आर्टिकल में हम आपको HSSC Group D Syllabus & Exam Pattern - Haryana…

7 months ago