झारखंड क्षेत्र में उद्योगों और खनन कार्यों के बावजूद यहां कार्यरत आबादी का 70 फीसदी हिस्सा कृषि पर निर्भर है। कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल 30 लाख हेक्टेयर है। झारखंड राज्य की कृषि पिछड़ी अवस्था में है एवं राज्य अपनी आवश्यकतानुसार उत्पन्न नहीं कर पाता है।
यहां की भूमि समतल एवं ढलुआ है। वर्षा का जल ही राज्य का मुख्य स्रोत है। यहां तो बरसात 1304 मी मी से 1409 मिमी होती है। यहां कुल सिंचित क्षेत्र लगभग 8-10% है है। यहां की लगभग 19 लाख हेक्टेयर भूमि भू-क्षरण से प्रभावित है।
राज्य में वर्ष 2013-14 में 2.38 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कुल खाद्यान्न उत्पादन 26.44 करोड़ टन का उत्पादन किया गया। नगदी फसल में सब्जियों को छोड़ बाकी की उपज काफी कम होती है। जमीन पठारी होने के कारण यहां सिंचाई के साधन उतने कारागार नहीं है, जितने की मैदानी भागों के होते हैं। यहां की कृषि सिंचाई एकमात्र कुआं पर निर्भर है।
झारखंड की कृषि का दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि लगभग सभी फसलों की उत्पादकता भारत और बिहार दोनों की ओर से उत्पादकता से काफी कम है। झारखंड में उर्वरक की खपत भी राष्ट्रीय स्तर से काफी कम है। इस क्षेत्र में होने वाली मुख्य फसलों में उत्पादन तथा उत्पादकता की वृद्धि दर भी काफी धीमी रही है। कुल मिलाकर झारखंड की कृषि काफी पिछड़ी है और उत्पादकता बढ़ाने की यहां असीमित संभावनाएं हैं।
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