चट्टानों के टूटने फूटने तथा उनमें भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन के फलस्वरूप जो तत्व एक अलग रूप ग्रहण करता है वह अवशेषी मिट्टी कहलाता है। झारखंड के छोटा नागपुर पठारी में मुख्यत अवशिष्ट प्रकार की मिट्टी दो विभिन्न खनिजों और चट्टानों के अपक्षय और परिवर्तन से बनी है।
छोटा नागपुर में दामोदर घाटी की गोंडवाना चट्टानों का क्षेत्र तथा ज्वालामुखीय उद्भव के राजमहल उच्च भूमि को छोड़कर संपूर्ण छोटा नागपुर में सामान्यतः लाल मिट्टी का बाहुल्य है. लौह खनिज तत्वों की कमी या आदित्य के अनुसार इस मिट्टी का रंग लाल या पीलापन लिए हुए लालीयुक्त होता है। इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और ह्रामुस कमी रहती है। अंतः उर्वरा शक्ति भी कम होती है।
यह मिट्टी कोडरमा, झुमरीतलैया, मंडू और बड़का गांव में अभ्रक की पट्टी के रूप में विस्तृत है। इसका रंग हल्का गुलाबी है। निम्न प्रदेशों में नमी के कारण इस कारण पीला हो जाता है। यह मिट्टी रेतली है। इसमें अभ्रक के कणों की चमक रहती है. यह मिट्टी उपजाऊ है, लेकिन जल की कमी के कारण इस मिट्टी में कृषि कार्य समुचित रूप से नहीं हो पाता है।
पूर्वी हजारीबाग तथा धनबाद जिले में रवेदार रेतीली मिट्टी पाई जाती है। इस मिट्टी का रंग लाली युक्त, धूसर तथा पीला होता है। यह मिट्टी मोटे अनाजों के उत्पादन के लिए उपयुक्त है।
राजमहल की पहाड़ियों के क्षेत्र में ज्वालामुखी उद्भव वाले क्षेत्र में काली मिट्टी पाई जाती है। जो सुप्रसिद्ध चरनोजम के सम्मान है। यहां बेसाल्ट के अपक्षय से निर्मित है। इसका रंग काला और भूरा होता है। कहीं गई थी लाया लालपन लिए है। यह मीटिंग ग्रेनाइट चट्टानों से बनी है। इस मिट्टी का निर्माण अत्यंत आभारी कणों से हुआ है। अत: पानी पड़ने पर यह अत्यंत लसदार हो जाती है और पैरों से चिपकने लगती है। इस मिट्टी मेल लोहा, चुन्ना मैग्नीशियम और एलोमिना का समिश्रण होता है। इनमें चावल और चने की अच्छी कृषि की जाती है।
झारखंड राज्य में लेटराइट मिट्टी के तीन क्षेत्र है- पश्चिमी रांची और दक्षिणी पलामू, संथाल परगना में राजमहल का पूर्वी भाग, और सिंहभूम में डाल भूमि का दक्षिणी पूर्वी भाग। इस मिट्टी का रंग गहरा लाल होता है। इसमें लोहा ऑक्साइड की प्रधानता होती है। यह मिट्टी कंकरीली होती है।
झारखंड के सुदूर दक्षिण में सिंहभूम क्षेत्र में विभिन्न मूल की चट्टानों के अवशेषों से बनी हुई विषम जातीय मिट्टी पाई जाती है।
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