G.KStudy Material

झारखंड में वन्यजीव अभयारण्य

झारखंड प्राकृतिक वनस्पति की दृष्टि से एक समृद्ध राज्य है. यहां के वनों में भेड़िया, गौर, हाथी, तेंदुए आदि पाए जाते हैं. वन्य जीव संरक्षण हेतु यहां एक राष्ट्रीय उद्यान व 11 अभयारण्य है.

झारखंड में वन्यजीव अभयारण्य

दलमा वन्य प्राणी अभयारण्य

यह अभयारण्य पूर्वी सिंहभूम जिले के मुख्यालय जमशेदपुर से 15-20 किमी दूर 193.22 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है. दलमा वन्य अभ्यारण्य की स्थापना 1978 में की गई थी. यह जंगली जानवरों से भरा पड़ा है. झारखंड के किसी अन्य शहर को यह सौभाग्य प्राप्त है नहीं है, जहाँ इतनी कम दूरी पर हाथियों की चिंघाड़ और तेंदुए की दहाड़ सुनाई दे. यहां एलीफेंट प्रोजेक्ट लागू की गई है. यहाँ लगभग 300 हाथी है.

भगवान बिरसा जैविक उद्यान

26 जनवरी, 1994 को रांची जिले में शहर से 17 किलोमीटर उत्तर में रांची पटना मार्ग के किनारे सपही नदी के तट पर ओरमांझी प्रखंड के चकला गांव में झारखंड के दूसरे वन्य प्राणी उद्यान का उद्घाटन किया गया।  मुख्य मार्ग के दोनों और फैले 104 हेक्टेयर भू-भाग में से 83 हेक्टेयर भूमि में वन्य प्राणी उद्यान है, जब किसी की सेक्टर भू भाग पर वनस्पति उद्यान बनाया गया है। यहां भेड़िया, गौर तथा जंगली कुत्ते के अध्ययन प्रजनन संस्थान तथा सफारी पार्क खोलने की योजना है।  यहां अभी कुल 70 वन्य प्राणी है।

वन्य-जीव अभयारण्य

अभयारण्य क्षेत्रफल वर्ग किमी स्थापना वर्ष प्रमुख वन्य जीव
दलमा अभयारण्य, जमशेदपुर (पूर्वी सिंहभूम) 193.22 1976 भेड़िया, मूसाहिरन, चीतल, हाथी, तेंदुआ, हिरण
हजारीबाग नेशनल पार्क, हजारीबाग 186।26 1976 नीलगाय, चीतल, जंगली बैल,तेंदुआ, बाघ।
बेताल राष्ट्रीय उद्यान, पलामू 223।67 1986 हाथी, गौर, चीतल,सांभर, नीलगाय,
पलामू, अभ्यारण्य पलामू 1026 1976
महुआडांड  वोल्फ अभयारण्य (पलामू) 63.26 1976 भेड़िया,चीतल, तेंदुआ, वाइल्ड बियर्स
तोपचांची अभयारण्य, धनबाद 8.75 1978 साँ भर,चीतल, तेंदुआ, भेड़िया आदि
लावालौंग अभयारण्य, चतरा 207.00 1978 बाघ, तेंदुआ, साँभर, नीलगाय, हिरण
कोडरमा अभयारण्य, हजारीबाग 150.62 1985 तेंदुआ,  सांभर, हिरण
पारसनाथ अभयारण्य गिरिडीह
49.33 1981  तेंदुआ, सांभर, हिरण, नीलगाय
पालकोट अभयारण्य, गुमला 183.18 1990 तेंदुआ, वाइल्ड बियर्स
उधवा जलपक्षी शरणस्थली, साहेबगंज 5.56 1991 खंजन, किंगफिशर आदि
गौतम बुद्ध अभयारण्य (कोडरमा) 121.142 1976 कबूतर, मधुमक्खी, बुलबुल, खंजन।

बिरसा मृग विहार

रांची शहर से 35 किलोमीटर दूर रांची खूँटी मार्ग पर एक रमणीक स्थल है, बिरसा मृग विहार इसका शिलान्यास 23 मार्च, 1981 को हुआ था और उद्घाटन  1 अगस्त 1986 को किया गया. प्रवेश द्वारा से अंदर दाखिल होने के बाद एक छोटी सी वाटिका नजर आती है, जहां एक गोलंबर पर बच्चों के मनपसंद खेल के साधन है एवं दर्शकों के विश्राम हेतु कुछ सुंदर विश्राम स्थल एवं कैंटीन भी बनाए गए हैं.  बिरसा मृग विहार 54 एकड़ वन क्षेत्र में फैला हुआ है.

जवाहरलाल नेहरू जैविक उधान

बोकारो स्टील सिटी का जवाहरलाल नेहरू जैविक उद्यान 122 एकड़ में फैला है तथा इसके विस्तार के लिए और 100 एकड़ भूमि के अधिग्रहण के प्रयास जारी है. अब तक पूरे उधान क्षेत्र में 30 हजार से ज्यादा वृक्ष लगाए जा चुके है जिनमें साल, शीशम ,और सागौन प्रमुख है। 14 जनवरी 1990 को एम. रामा. कृष्ण ने इसे जैविक उद्यान का उद्घाटन किया। यहां देश-विदेश से मंगा कर तरह तरह के पशु पक्षियों को सुविधा पूर्ण वातावरण में रखा गया है।

सृष्टि उधान

दुमका जिले में 4 किलोमीटर दूर कुरुआ की तीन पहाड़ियों को सृष्टि उधान का नाम दिया गया है।  80 एकड़ में फैले इस उद्यान में एक पहाड़ी पर ढेर सारे पौधों की किस्में है और दूसरी पर कैक्टस की किस्में, जबकि तीसरी पहाड़ी पर जड़ी बूटी वाले पौधे लगाए गए हैं।

पालकोट वन्य प्राणी अभयारण्य

गुमला में 1 वन्य प्राणी अभ्यारण की स्थापना की घोषणा 1990 में की गई थी। 183.18 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में स्थापित होने वाली इस अभयारण्य के लिए जमीन अधिग्रहण की कार्रवाही की शुरुआत 30 दिसंबर, 1992 को की गई। गुमला वन प्रमण्डल के विभिन्न क्षेत्र में पालकोट वन्य प्राणी आश्रयणी के नाम से अधिसूचित किया गया है। यह वन्य प्राणी अभयारण्य गुमला जिले के पूरे पालकोट प्रखंड तथा आंशिक रूप से सिमडेगा तथा रायडीह प्रखंड में स्थित है। इस आश्रयणी पूरब में कोयल नदी और पश्चिम में शंख नदी अवस्थित है तथा इन दोनों के बीच अधिसूचित वन भूमि ही मुख्यत: आश्रयणी के रूप में अधिसूचित है।

जीवाश्म उद्यान

साहेबगंज जिले के 37 ऐसे गांव है जहां मुख्यतः संथाल और पहाड़ी आदिवासी निवास करते हैं, जीवाश्म पाए जाते हैं। इनका यदि उचित संरक्षण और विकास कर आवश्यक सुविधाओं का विकास किया जा सके तो पर्यटकों और जीवाश्म का अध्ययन करने वालों के लिए यह एक अनमोल तोहफा होगा। मंदार नेचर क्लब मंडोर में एक जीवाश्म विधान का विकास कर रहा है।

टाटास्टील जूलॉजिकल पार्क

यह जमशेदपुर में स्थापित किया गया है।  इसका उद्घाटन 3 मार्च, 1994 को हुआ था। यह नया पार्क है इसलिए इसकी सुविधाओं में खासकर पशु पक्षियों की बीच की दिशा और देखभाल की कमी को दूर करने की बहुत आवश्यकता है।

वन्य प्राणी

वन्य प्राणी संख्या वन्य प्राणी संख्या
रैसेस मंकी 64,685 मोर 500
लंगूर 44,156 जंगल कुत्ता 537
चीतल 16,384 स्पाटिड डीयर 217
जंगली सूअर 18,550 शेर  135
सांभर 3,050 हाथी 115
बार्किंग डीयर 3,672 तेंदुआ 60
गौर 729 ऐन्टीलॉप 6
भालू 512

मछलीघर

रांची का मछलीघर 1994 में बनकर तैयार हुआ।  यह 20 लाख रुपए की लागत से बना है जिसका डिजाइन भोपाल के मछली घर की अनुकृति है।  रांची का मछली घर बच्चों और युवाओं के आकर्षण का केंद्र है।

महुआडाड़ भेड़िया अभयारण्य

यह अभयारण्य डाल्टनगंज से 94 किलोमीटर दूर महुआडाड़ की छेछारी घाटी में स्थित है।  इसकी स्थापना 1976 में तत्कालीन वन संरक्षक श्री एम.पी. शाही ने की थी। यह 63.26 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है।

बेताल नेशनल पार्क

झारखंड स्थित बेताल पार्क एक राष्ट्रीय पार्क है, जो झारखंड के पलामू जिले में अवस्थित है।  बेताल नेशनल पार्क में सांभर हिरणों का समूह देखा जा सकता है।

पक्षी विहार

तिलैया पक्षी विहार

तिलैया डैम बरही से 18 किलोमीटर दूर, राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 2,13 और 33 के मिलन स्थल पर स्थित है। यह कोडरमा से 19 किलोमीटर और हजारीबाग से 56 किलोमीटर दूर है। इस डेम को बराबर नदी के ऊपर बनाया गया है, जिसकी ऊंचाई 99 फीट और लंबाई 1200 फीट है।

तेनुघाट पक्षी विहार

तेनुघाट डैम एशिया का सबसे बड़ा मिट्टी का डैम है, जो बोकारो जिले में स्थित है और इसकी लंबाई 7 किलोमीटर है। जल जमाव का क्षेत्रफल 100 वर्ग किलोमीटर है। दिसंबर और जनवरी में लाखों की संख्या में यहां पनडु्बी पक्षी आ जाते हैं। पेटरबार, जो बोकारो रामगढ़ के बीचो-बीच है, से छोटी-बड़ी गाड़ियां तेनुघाट के लिए मिलती है, जो यहां से 16 किलोमीटर दूर है। गोमिया स्टेशन से तेनुघाट 15 किलोमीटर दूर है। इससे बोकारो इस्पात कारखाने को जल मिलता है। यहां से बोकारो तक 40 किलोमीटर लंबी नहर बनी है, जिसमें 24 घंटे पानी रहता है। इसी के तट पर तेनुघाट थर्मल पावर स्टेशन लालपनियाँ में स्थित है जिसके लिए जल भी यहीं से मिलता है।

चंद्रपुरा पक्षी विहार

डी.वी.सी. चंद्रपुरा ( बोकारो) स्थित रिज़र्वर (इंटेकवेल) जोड़ के मौसम से सयाबेरियन चिड़ियों से पट जाता है। लगभग 1*1\2 किमी क्षेत्र में फैले वॉटर रिज़र्वर में हजारों की संख्या में चिड़ियों को देखा जा सकता है।

ईचागढ़ पक्षी विहार

 स्वर्ण रेखा परियोजना के डूब क्षेत्रों में जमशेदपुर के ईचागढ़ व नीमडीह के दर्जनों पेड़ों पर वसेरा लेकर हर साल मई महीने में साइबेरियन पक्षी अंडे देते हैं और अपने बच्चों का लालन-पालन कर उन्हें उड़ने के काबिल बनाने के बाद यह नवंबर महीने में वापस रूस की लंबी यात्रा पर निकल पड़ते हैं।  प्रतिवर्ष लगभग 200 साइबेरियन पक्षी यहां आते हैं।

उधवा पक्षी विहार

यह पक्षी विहार साहेबगंज जिले में स्थित है।  सन 1991 ईस्वी में इसे पक्षी विहार के रूप में मान्यता मिली। यह 5.65 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां पर पथोरा झील में वर्ष भर पानी रहता है तथा यह उधवा डैम के चलते गंगा नदी से जुड़ा हुआ है।

मूटा मगर प्रजनन केंद्र

रांची से 35 किलोमीटर दूर उत्तर में ओरमांझी प्रखंड में सिकीदरी से 6 किलोमीटर जाने पर 3 किलोमीटर पैदल चलकर मूटा मगर प्रजनन केंद्र पहुंचा जा सकता है। मूटा के आसपास भेंड़ा नदी के कुल 15 दह जिसमें से 6 दहों में मगर पाए जाते हैं। जाड़े के दिनों में भेड़ा नदी के किनारे धूप में बैठे मगर आसानी से देखने को मिल जाते हैं। यहां दर्जनों छोटे-बड़े मगरमच्छ है।

More Important Article

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close