यौवनारंभ का सबसे अधिक दिखाई देने वाला परिवर्तन किशोर की लंबाई में एकाएक वृद्धि होना है। हाथों व पैरों की अस्थियों की लंबाई तेजी से बढ़ने के कारण पूरे शरीर की लंबाई बढ़ जाती है। प्रारंभ में लड़कों की तुलना में लड़कियों की लंबाई अधिक तेजी से बढ़ती है परंतु लगभग 18 वर्ष की आयु तक दोनों अपनी अधिकतम लंबाई पा लेते हैं। यौवनारंभ के बाद लंबाई धीरे-धीरे बढ़ती है।
सामान्य तौर पर किसी किशोर की लंबाई या अन्य शारीरिक लक्षण उसके माता-पिता से प्राप्त जीन पर निर्भर करते हैं परंतु संतुलित आहार लेने पर शरीर की अस्थियां, पेशियां व अन्य भाग सही ढंग से वृद्धि करें शरीर को सुडौल बना देते हैं। सही पोषण की कमी से शरीर का विकास व वृद्धि प्रभावित होती है।
यौवनारंभ के समय में लड़कों का स्वर यंत्र अपेक्षाकृत बड़ा होकर बाहर की ओर उभरा हुआ दिखाई देता है। लड़कों की आवाज स्वर यंत्र में वृद्धि के कारण भारी या फटी हुई हो जाती है। लड़कियों के स्वर यंत्र में इस प्रकार का अंतर दिखाई नहीं देता लड़कियों के स्वर यंत्र के छोटा होने के कारण इसकी आवाज पतली व सुरुली होती है।
किशोरावस्था में स्वेद व तैलग्रंथियों का स्त्राव बढ़ जाता है। इस बड़े हुए स्त्राव के कारण चेहरे पर फुंसियां व मुंहासे निकल जाते हैं।
यौवनारंभ मे नर के वृषण में शीशन और मादा में अंडाशय पूर्ण विकसित हो जाते हैं। वृषण शुक्राणुओं अंडाशय परिप्क्क्व अँड निर्मोचन करने लगता है।
किशोरावस्था में मानसिक व बौद्धिक विकास उच्च स्तर पर होता है। इस अवस्था में सीखने की क्षमता भी सर्वाधिक होती है। किशोर इस अवस्था में अत्यधिक संवेदनशील होते हैं और वह समझते हैं कि जो वे सोचते हैं वही ठीक है। माता-पिता (अभिभावकों) वह वरिष्ठ परिजनों के द्वारा लिए गए निर्णय उन्हें विवेकपूर्ण नहीं लगते। कई बार किशोर अपने आप को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं, जबकि इसका कोई कारण नहीं होता है। इस अवस्था में किशोर संवेदनशील होने के कारण प्यार वह घृणा चरम स्थिति तक करते हैं और इसे संदर्भ में अपने द्वारा लिए गए निर्णय को ही उचित मानते हैं।
अत: स्त्रावी ग्रंथियों के स्त्राव (हार्मोन) का स्थानांतरण नलिकाओं के बिना होता है। यह स्त्राव सीधे रक्त में मिलकर कार्य क्षेत्र तक पहुंचता है। इसलिए नलिकाओं के अभाव के कारण इन्हें नलिकाविहीन ग्रंथियां कहा जाता है।
जो पदार्थ स्त्रावी ग्रंथियों द्वारा स्रावित होते हैं, उन्हें हार्मोन कहते हैं। यह एक प्रकार के रासायनिक पदार्थ होते हैं जो जीवो की वृद्धि तथा विकास को नियंत्रित करने का कार्य करते हैं। मनुष्य में मिलने वाले तीन हार्मोन निम्नलिखित है-
यह ग्रंथि मस्तिष्क के निचले भाग में स्थित होती है। इसके द्वारा स्रावित हार्मोन से हड्डी तथा ऊतकों की वृद्धि को नियंत्रित किया जाता है। यह ग्रंथि ऐसे हार्मोन स्रावित करती है, जो अन्य ग्रंथियों के कार्य को नियंत्रित करते हैं। इसलिए इसे मास्टर ग्रंथि कहा जाता है।
डरावना दृश्य देखते ही अधिवृक्क ग्रंथि का स्त्राव ( एड्रीनलीन) बढ़ जाता है जिसकी अनुक्रिया के फल स्वरुप रक्त संचार में तेजी आ जाती है। शरीर के बाल खड़े हो जाते हैं, आंख की पुतलियां फैल जाती है। चेहरा लाल हो जाता है और मांसपेशियों की शक्ति में वृद्धि हो जाती है। इस अनुप्रिया को प्रतिवर्ती क्रिया कहा जाता है।
जब किशोरों के वृषण तथा अंडासय युग्मक ( शुक्राणु व अंडाणु) उत्पादित करने लगे, तब वे जन्म के योग्य हो जाते हैं। क्षत्रियों में जननाअवस्था का प्रारंभ 10 से 12 वर्ष की आयु में होता है और यह 45 से 50 वर्ष की आयु तक चलता रहता है। जनन काल की अवधि पुरुषों में स्त्रियों की तुलना से अधिक लंबी होती है। स्त्रियों में जनन काल की अवधि रजो दर्शन ( रजोधर्म) से रजोनिवृत्ति तक होती है।
रजोधर्म | रजोनिवृत्ति |
स्त्रीयों में यह प्रक्रिया 11 से 12 वर्ष की आयु में शुरू होती है। | स्त्रीयों में यह अवस्था लगभग 45 से 50 वर्ष की आयु में आती है। |
रजोधर्म प्रत्येक 28 से 30 दिन के बाद होता है। इसमें 4 से 7 दिन तक का रक्त स्त्राव होता है। | इस अवस्था में रक्त स्त्राव बंद हो जाता है। |
रजोधर्म का आरंभ यौवनारंभ का संकेत है। | रजोनिवृत्ति जन्म काल की समाप्ति का संकेत है। |
ऋतु स्त्राव चक्र का नियंत्रण हार्मोन द्वारा होता है। अंडाणु का परिपक्व, उत्पादन, गर्भाशय की दीवार का मोटा होना एवं निषेचन होने की स्थिति में उसका टूटना आदि सभी क्रियाएं हार्मोन द्वारा नियंत्रित होती है।
प्रत्येक मनुष्य में 23 जोड़े गुणसूत्रओं में से 22 जोड़े अलिंग और 23 वां जोड़ा अर्थात एक जोड़ा लिंगीं गुणसूत्र होता है। नर मे यह एक जड़ा XY गुणसूत्रों तथा मादा में XX गुणसूत्रों के रूप में पाया जाता है। मादा में Y गुणसूत्र पाया ही नहीं जाता। मादा और नर के द्वारा जो बच्चे पैदा किए जाते हैं उनमें XX, XY गुणसूत्रों के युग्म स्थानांतरित होते हैं। जिस बच्चे में XX गुणसूत्रों के युग्म पाया जाएगा वह लड़की होगी और जिस बच्चे में XY लिंगी गुणसूत्रों का युग्म पाया जाता है वह लड़का होगा। इस प्रक्रिया से स्पष्ट हो जाता है कि किसी भी दंपति के बच्चों में, लड़का या लड़की का निर्धारण केवल पुरुष में XY लिंगी गुणसूत्रों के युग्म पर निर्भर करता है। महिला में नर ( लड़के) के गुणसूत्र पाए ही नहीं जाते। उसके पास केवल XX गुणसूत्र ही होते हैं। अत: बच्चे का लिंग नर या मादा होने के लिए महिला उत्तरदायी नहीं है।
अंत स्त्रावी ग्रंथि का नाम | हार्मोन का नाम | कमी से होने वाले विकार |
थायराइड | थायरोक्सिन | गायटर |
अग्नाशय | इंसुलिन | मधुमेह |
एड्रिनेल | एड्रीनेलिन | तनाव |
थायराइड द्वारा स्रावित हार्मोन थायरोक्सिन इस प्रक्रिया का नियमित करता है। थायरोक्सिन का उत्पादन उसी स्थिति में संभव है जब जल में आयोडीन उपस्थित हो। यदि जल में आयोडीन का अभाव हो तो मेंढक का टैडपोल व्यस्क मेंढक में कायांतनरित नहीं हो सकता है।
संतुलित आहार, व्यक्तिगत स्वच्छता, शारीरिक व्यायाम, नशीली दवाओं ( ड्रग्स) का निषेध।
जिस आहार में आयु, व्यवसाय, लिंग तथा अवस्था के अनुसार वे सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में विद्यमान है जिनकी शरीर को आवश्यकता होती है, उसे संतुलित आहार कहते हैं। संतुलित आहार उचित मात्रा में चावल, रोटी, दाल, हरी पत्तेदार सब्जियां, पनीर, अंडा, मछली ( मांस) दूध ( दही), व जल के मिलने से बनता है। इस प्रकार का भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, विटामिन एवं खनिज का पर्याप्त मात्रा में समावेश होता है। भारतीय भोजन में रोटी ,दाल, सब्जियां आदि शामिल होते हैं। यह एक संतुलित आहार है। दूध भी संतुलित आहार है। फल हमें पोषण देते हैं। मां का दूध शिशुओं के लिए संपूर्ण पोषण देने वाला भोजन है।
नियमित व्यायाम हमारे शरीर के लिए उतना ही आवश्यक है जितना कि भोजन। व्यायाम हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में निम्न प्रकार से मदद करता है-
किशोरावस्था में व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक रूप से अधिक सक्रिय होने के कारण तनाव ग्रस्त हो जाता है। इस तनाव से मुक्ति पाने के लिए किस और नशीली दवाएं अर्थात लेना आरंभ कर देते हैं। कोकेन, हेरोइन, स्मैक,चरस, अफीम, गांजा आदि नशीले पदार्थों ( संवेदन मंदक पदार्थों) का सेवन खतरनाक होता है। इनके लगातार सेवन से आदमी इन का आदि हो जाता है। इनका सीधा प्रभाव दृष्टि, सुनने की शक्ति, सांस लेने, हृदय और परिसंचरण तंत्र पर पड़ता है। इनसे सबसे अधिक नुकसान केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का होता है जिससे व्यक्ति पूर्ण रूप से इन पदार्थों पर निर्भर हो जाता है। इनकी आदत छुड़ा पाना बहुत मुश्किल होता है। कुछ लोग इन्हें इंजेक्शन द्वारा लेते हैं जिसके कारण ऐड्स रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।
एक बार आदी हो जाने पर मनुष्य पूर्ण रूपेण इन का दास हो जाता है। इन्हें प्राप्त करने के लिए वह कोई भी उचित अनुचित कार्य करने को तत्पर हो जाता है। किशोरों को इन नशीले पदार्थों से बचना चाहिए।
काफी संख्या में किशोर तनाव से मुक्ति पाने हेतु ड्रग्स लेना आरंभ कर देते हैं। HIV सदूषित इंजेक्शन की सुई लेने पर यह खतरनाक विषाणु अन्य किशोरों में फैल जाता है। इस विषाणु के फैलने का अन्य कारण असुरक्षित लैंगिक संपर्क भी है। कई मामलों में यह विषाणु पीड़ित ( रोगी) मां से दूध द्वारा शिशु में फैल सकता है।
अत: किशोरों को अपने बहुमूल्य जीवन को HIV से बचने के लिए सचेत रहने की अति आवश्यकता है।
आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएँगे की अपने डॉक्यूमेंट किससे Attest करवाए - List…
निर्देश : (प्र. 1-3) नीचे दिए गये प्रश्नों में, दो कथन S1 व S2 तथा…
1. रतनपुर के कलचुरिशासक पृथ्वी देव प्रथम के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन सा…
आज इस आर्टिकल में हम आपको Haryana Group D Important Question Hindi के बारे में…
अगर आपका selection HSSC group D में हुआ है और आपको कौन सा पद और…
आज इस आर्टिकल में हम आपको HSSC Group D Syllabus & Exam Pattern - Haryana…