भारत एक कृषि प्रधान देश है, यहां की लगभग 50% जनसंख्या कृषि हुए उससे संबंधित कार्यों में लगी है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद कृषि, पशुपालन एवं मत्स्य पालन के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर की एक स्वायत्त सर्वोच्च संस्था है. जिसका प्रमुख कार्य इन क्षेत्रों में अनुसंधान करना, योजना बनाना एवं उन्हें खेतों तक क्रियावर्णित करना,तथा प्राथमिक कृषि प्रसार शिक्षा की व्यवस्था करने में विज्ञान एवं कृषि पर दोगी के कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देना है. शस्य विज्ञान कृषि की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जो फसल उत्पादन एवं भूमि प्रबंधन से संबंधित है.
विशेषता | खरीफ | रवि | जायद |
समय | मध्य जून- जुलाई से अक्टूबर -नवंबर | अक्टूबर- नवंबर से मार्च- अप्रैल | अप्रैल- मई से जून- जुलाई |
वातावरण | अधिक ताप एवं आर्द्रता (बोते समय) अधिक ताप तथा शुष्क ( काटते समय) | कम तापक्रम आर्द्रता ( सोते समय) शुष्क एवं गर्म वातावरण ( पकते समय) | शुष्क एवं गर्म वातावरण |
उदाहरण | धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंगफली, अरहर, मूंग, कपास, सोयाबीन, आदि. | गेहूं, चना, मटर, बरसीम, आलू, तंबाकू आदि | कद्दू वर्गीय अरहर, मूंग, उड़द, लोबिया, टमाटर आदि. |
किसी निश्चित समय में, निश्चित क्षेत्र पर तथा निश्चित क्रम में फसलों को उगाना ही फसल चक्र कहलाता है.
कृषि उत्पादन हेतु उपलब्ध किसी साधन छतरपुर वर्ष में क्षेत्र में अधिक से अधिक फसलें संघन खेती कहलाती है.
जीरो टिलेज प्रणाली में फसल को काटने के बाद अवशेष खेत में ही छोड़ दिया जाता है. इससे जहां उर्वरक की बचत होती है, वही क्षेत्र को बार-बार जोतने की आवश्यकता नहीं पड़ती है.
फसल का उचित पादप धन को प्राप्त करने हेतु रोग, कीट एवं यांत्रिक शेती से मुक्त लैंगिक अथवा वानस्पतिक सामग्री, जो फसल बोने अथवा रोकने के लिए प्रयोग की जाती है, बीज विज्ञान कहलाती है. बीजों के संदर्भ में भारत सरकार ने वर्ष 1966 में भारतीय बीज अधिनियम स्वीकृत किया, जो 1 अक्टूबर, 1969 से लागू हो गया.
इसके अंतर्गत पहले पीढ़ी के जो बीज प्राप्त किए जाते हैं, वह दो या दो से अधिक चौक पर गति कौशलों या वस कर्मों के संकरण से प्राप्त होते हैं. इन बीजों को प्रत्येक साल परिवर्तित करना पड़ता है.
जब किसी प्राकृतिक जिनमें कुत्रिम उपायों द्वारा किसी दूसरे पौधे या जंतु के जीन का कोई भाग जोड़ दिया जाता है, जिसका उद्देश्य पौधों में किसी विशिष्ट गुण या क्षमता का विकास करना होता है.
यह वह बीज है, जिसे एक बार फसल लेने के बाद अगली फसल के लिए किसानों को पुनः नया बीज खरीदना पड़ता है. यानि इस बीच उत्पन्न पौधे तथा उस पौधे से उत्पन्न बीज को बीज के रूप में दोबारा प्रयोग में नहीं लाया जा सकता.
पादप जनन वह कला व विज्ञान है, जिसमें अनुवांशिक सिद्धांतों का प्रयोग करके जीवो की प्रणाली मे स्वेछा से परिवर्तन किया जाता है.पादप जनन का प्रयोग अधिक पैदावार या ऊंचे उत्पादन चमकता युक्त पौधों को उत्पन्न करने में किया जाता है. HYV का पूरा नाम है (HIGH yielding variety) यानी उच्च उत्पादक किस्म.
पादप जनन की विधियां को 5 वर्गों में बांट सकते हैं
प्रिथककृत भूर्ण, पादपागों, ऊतकों में कोशिकाओं का किसी पात्र में यानी परखनली, प्लास्टिक आदि. निर्जन विवर्धन उत्तक संवर्धन कहलाता है. इस विधि द्वारा कम समय में एक समान पौधे अधिक संख्या में उत्पन्न किए जा सकते हैं. उत्तक संवर्धन तकनीक के अंतर्गत है उसको का सर्वधन किया जाता है. जिसके अंतर्गत बिना बीज के फलों को भी विकसित किया जा सकता है.
इस तकनीक को पार्थेनोकार्पी कहा जाता है. उत्तक संवर्धन तकनीक का प्रयोग बहू प्ररोहीका रहेगा उत्पादन कायिक भ्रूण विकास, रोगमुक्त पौधों के उत्पादन में तथा पूजनीय गणित पौधों की प्राप्ति में करते हैं.
खाद्य पदार्थों का किसी रासायनिक अथवा भौतिक प्रक्रिया द्वारा बिना किसी सती के उनके गुणों को बनाए रखने एवं उन्हें उनकी सामान्य जीवन अवधि से अधिक समय तक सुरक्षित रखना ही खाद्य प्रसंस्करण है. भारत में फलों एवं सब्जियों का प्रसंस्करण स्तर मात्र 2.2 प्रतिशत है.जबकि 75 प्रतिशत फिलीपींस में, USA में एवं 23% चीन में है.
खाद्य परिरक्षण के रूप में पोटेशियम मेटा बाई-सल्फाइड का प्रयोग फलों के रस को, साइट्रिक एसिड का प्रयोग अचार को तथा सोडियम बेंजोएट का प्रयोग सांस आदी को परिरक्षित करने में होता है. चाय की पत्तियों की संसाधन प्रक्रिया में बेलन से शुस्कन, किण्वन आदि प्रक्रम सम्मिलित होते हैं. सोडियम बेंजोएट का प्रयोग अनाज से उत्पादित खाद्य पदार्थों के परिरक्षण में भी किया जाता है.
कृषि विज्ञान की वह शाखा, जिसके अंतर्गत पालतू पशुओं का अध्ययन किया जाता है, पशुपालन कहलाती है. भारत में गौ- पशुओं की संख्या विश्व की कुल संख्या का 15.4 प्रतिशत है तथा पैसों की कुल संख्या 57 प्रतिशत है. पांचवी पंचवर्षीय योजना में दूध की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए ऑपरेशन फ्लड नामक योजना शुरू की गई.
भारत में पायी जाने वाली भैंस की प्रमुख नस्ल
नस्ल | प्रजाति | वितरण |
दुधारू | साहिवाल एवं सिंधी | पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य एवं बंगलुरु एवं गुवाहाटी |
द्विकाजी | गिर, रंगोली एवं थारपारकर | जूनागढ़, बंगलुरु, मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, आंध्र प्रदेश, अध्यक्ष, पूर्व सिंध, कछ एवं मारवाड़ |
भारवाही | मालवी | उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं हरियाणा |
नागौरी | उत्तर प्रदेश एवं पंजाब | |
अमृत महल | कर्नाटक | |
गंगा तेरी | उत्तर प्रदेश | |
सीरी | दार्जिलिंग एवं सिक्किम |
नस्ल | वितरण |
जमुनापारी | उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश |
बारबरी | उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान |
बीतल | पंजाब एवं हरियाणा |
सुरती | सूरत एवं बड़ौदा |
मारवारी | जोधपुर, बीकानेर, पाली, नागपुर, जालौर एवं जैसलमेर |
मेहसाना | गुजरात, मेहसाना, बनास कांठा, गांधीनगर एवं अहमदाबाद |
मकराना | राजस्थान एवं अलवर |
गद्दी | चंबा, कांगड़ा, बिलासपुर, कुल्लू, देहरादून, टिहरी गढ़वाल एवं चमोली |
मालाबारी | कालीकट, कन्नूर एवं केरल के मल्लापुरम |
बतख, टर्खी एवं मुख्यतया मुर्गी फिजेंट का पालन किया जाता है.
असील बसरा, बरहम आदि मुर्गे की भारतीय किस्में है.
भारत में आंध्र प्रदेश, मुर्गी एवं अंडा उत्पादन में प्रथम स्थान पर है तथा भारत विश्व में प्रथम 6 अंडा उत्पादक देशों में शामिल है.
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