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मध्यप्रदेश के वन, वृक्ष, वन्य जीव और अभयारण्य

वन स्थिति रिपोर्ट- 2017 के अनुसार में सर्वाधिक 77,414 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र मध्य प्रदेश में है, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 25.48% है। राज्य के कुल वन क्षेत्र का 65% आरक्षित वन 33% आरक्षित वन एवं 2% क्षेत्रफल वर्गीकृत के अंतर्गत आता है। आरक्षित वन क्षेत्र का सर्वाधिक क्षेत्रफल 4,978 वर्ग किलोमीटर बालाघाट जिले में विस्तृत है।

4 अप्रैल 2005 को मंत्री परिषद् की बैठक में राज्य की नवीन वन नीति को मंजूरी प्रदान की गई है, इससे पूर्व मध्य प्रदेश में विभाजित प्रदेश की 1952 में राज्य वन नीति लागू थी। वर्ष 1988 में भी सपुनरक्षित वन नीति घोषित की गई थी। मध्यप्रदेश में वनों की अधिकता का कारण यह है कि प्रदेश के पथरीले और पहाड़ी भागों में कृषि संभव नहीं है और यहां की मानसूनी जलवायु विकास में सहायक है।

उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन प्रदेश के सागर, जबलपुर, छिंदवाड़ा, छतरपुर, पन्ना, बेतूल, सिवनी और होशंगाबाद जिलों में पाए जाते हैं। उष्णकटिबंधीय अर्द्धपर्णपाती वन मंडला, बालाघाट, सिद्धि और शहडोल जिलों मैं विस्तृत है। उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन राज्य के शयोपुर, शिवपुरी, रतलाम, मंदसौर, टीकमगढ़, ग्वालियर तथा नीमाड, जिले में पाए जाते हैं।

100 से 200 सेंटीमीटर वर्षा क्षेत्र में पाए जाने वाले वनों को मानसूनी वन कहते हैं। इन वनों में सागौन, पीपल, नीम, आम, बांस, ताड़, जामुन आदि के वृक्ष अधिकता से मिलते हैं। राज्य के रीवा, बालाघाट, होशंगाबाद, इंदौर और दक्षिणी शिवपुरी जिले में इस प्रकार के वन पाए जाते हैं।

50 से 100 सेंटीमीटर औसत वर्षा वाले क्षेत्रों में शुष्क तथा कटीले वन पाए जाते हैं। इन वनों में वृक्षों की तुलना में कटीली झाड़ियां और घास अधिक मिलती है। इन वनों में शीशम, बबूल, नागफनी आदि वृक्ष मिलते हैं। इस प्रकार के इन वन राज्य के ग्वालियर, सीधी, शिवपुरी और मंडल आदि जिलों में पाए जाते हैं। आरक्षित वनों का प्रबंध सुव्यवस्थित ढंग से किया जाता है। इनकी सुरक्षा, उत्पादन और विकास की निश्चित योजनाएं होती है। इस प्रकार के वनों में लकड़ी काटना व पशुचारण निसिद्ध होता है। राज्य के कुल 1 क्षेत्र का 65.36% आरक्षित वन है।

संरक्षित वन मुख्यतः स्थानीय जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए होते हैं। इनके प्रबंध की कोई सुव्यवस्थित योजना नहीं होती है। मवेशियों और मनुष्यों द्वारा इनका अत्यधिक उपयोग होता है। राज्य में संरक्षित वन 33% है। अवर्गीकृत वन सरकार के नियंत्रण में नहीं है। प्रशासन का ध्यान ऐसे वनों की ओर कम है। लोग इच्छानुसार इन वनों में पशु चुराते हुए लकड़ी काटते हैं। राज्य के कुल वन क्षेत्र का 2% अवगीकृत है।

मध्य प्रदेश के वनों की उत्पादकता बढ़ाने और गुना क्षेत्र के बाहर सामुदायिक एवं निजी भूमि पर वनीकरण कार्य कर वनोपज की आवश्यकता की पूर्ति हेतु प्रदेश के 11 कृषि जलवायु क्षेत्रों यथा- भोपाल, जबलपुर, रीवा, ग्वालियर, सागर, इंदौर, खंडवा, झाबुआ, रतलाम, शिवनी एवं बेतूल में एक-एक अनुसंधान एवं विस्तार वृत स्थापित किए गए हैं।

मध्य प्रदेश के कुल वन के क्षेत्र के 17.28% भाग वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में  सौगान के वृक्ष पाए जाते हैं। सागौन के वृक्ष के लिए 75 से 125 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त होती है। होशंगाबाद की बोरी की घाटी में 3.4 मीटर परिमित के सागौन के वृक्ष मिलते हैं। सागौन की लकड़ी घर बनाने तथा अन्य लकड़ी के सामान में पर चैनल बनाने के काम आती है। राज्य के कुल वन क्षेत्र के 16.54 प्रतिशत भाग अर्थात 25,704 किलोमीटर का क्षेत्र पर साल की वृक्ष है। यह इतने संघन है कि बस्तर के साल के वनों में दोपहर में भी घना अंधकार छाया रहता है। इसकी लकड़ी मुख्य रूप से इमारतों के निर्माण व रेलवे स्लीपर बनाने के काम आती है।

मध्यप्रदेश में डेंड्रोकैलेमस स्ट्रिक्टस, प्रकार का बांस खाया जाता है। यह बालघाट, बेतूल, जबलपुर, सिवनी, मंडला, सागर, पश्चिमी भोपाल तथा झाबुआ वन वृतो में नदियों के किनारे पाया जाता है। बांस से कागज और लुगदी बनाई जाती है। राज्य के नेपा और अमलाई कागज कारखानों में बांस का उपयोग होता है। तेंदू पत्ता का उपयोग बिड़ी बनाने में किया जाता है। इसके उत्पादन में मध्यप्रदेश का स्थान देश में प्रथम है। राज्य के जबलपुर, सागर, रीवा, शहडोल आदि जिलों में यह अधिकता से मिलता है।

देश को बीड़ी पत्ता, उत्पादन का 60% भाग मध्य प्रदेश से ही प्राप्त होता है। मिलावा का प्रयोग स्याही और रंग बनाने के उपयोग में आता है। छिंदवाड़ा में इसका एक कारखाना है। वन विभाग एवं सामाजिक वानिकी परियोजना के तहत वर्ष 1998 और 99 में 1.80 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में वृक्षारोपण के अंतर्गत लाने का लक्ष्य था जिसके विरुद्ध 1.86 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में वृक्षारोपण किया गया।

इन वनों में मुख्यतः साल, बबूल, सलाई, तेंदू, महुआ, टिक, अंजन, हरा के वृक्ष है। इसके अतिरिक्त यहां टीक की लकड़ी के अच्छे स्रोत है। मध्य प्रदेश का संपूर्ण वन  क्षेत्र वन विभाग के नियंत्रण में है। प्रदेश में ऊंचे घनत्व वाले वन क्षेत्र मडला, बालाघाट, शहडोल, सिधी तथा इनके पूर्वी जिलों में पाए जाते है। इन भागों में प्रदेश के भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 47%  तथा वन्य क्षेत्र का 62% भाग वनाच्छादित है।

मध्यप्रदेश में सागौन के वन काली मिट्टी के क्षेत्र में है, जिसके लिए औसतन 75-125 सेंटीमीटर वर्षा की मात्रा प्राप्त होती है। होशंगाबाद की बोरी घाटी में 3.4 मीटर परिमाप के सागौन के वृक्ष है। साल वन प्रदेश की लाल व पीली मिट्टी में पाए जाते हैं। यहां औसतन 123 सेंटीमीटर या इससे अधिक वर्षा होती है।

मध्य प्रदेश की सागौन की लकड़ी में विकसित ग्रेन होती है, जिसे लकड़ी के सामान में एक विशेष सौंदर्य जाता है। अंतः संपूर्ण भारत में इसकी विशेष मांग रहती है। सामाजिक वानिकी परियोजना में निजी कंपनियों को बढ़ावा देने, सामुद्रिक भूमि में प्रदर्शन क्षेत्र का निर्माण और कृक्षकों को उनकी निजी भूमि पर वृक्ष खेती, कृषि वानिकी एवं मेड वृक्षारोपण हेतु प्रोत्साहन राशि देकर कृषि वानिकी को प्रोत्साहित किया जाता है।

मध्य प्रदेश राज्य वन विकास निगम की स्थापना 24 जुलाई 1975, को हुई थी। निगम अपनी प्राधिकृत पूंजी के अलावा अंश पूंजी, बैंक ऋण, तथा आंतरिक साधनों से अपनी वित्तीय व्यवस्था करता है. वर्तमान में प्रदत्त पूंजी 16.34 करोड रुपए है, जिसमें केंद्र का अंशदान 2.31 करोड रुपए है तथा मध्य प्रदेश शासन का अंशदान 14.03 करोड रुपए हैं।  मध्य प्रदेश राज्य लघु वनोपज व्यापार एवं विकास सहकारी संघ का गठन वर्ष 1984 में एक शीर्ष सहकारी संस्था के रूप में किया गया था। आदिवासियों की आर्थिक उत्थान तथा उनके कल्याण को प्रभावी रूप से साकार करने की वजह से वर्ष 1988-89 में घोषित नीति के अनुसार तेंदूपत्ता तथा अन्य लघु वनोपज व्यापार का कार्य सहकारिता के माध्यम से किया जाता है। राज्य में 1947 प्राथमिक सहकारी समिति गठित की गई है।

देहरादून स्थित फॉरेस्ट इंस्टीट्यूट एंड वन्य शोध और उपस्थित वन उपज तथा वन संबंधी प्रशिक्षण का मुख्य केंद्र है, इस इंस्टीट्यूट के चार क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्रों में से एक प्रदेश के जबलपुर में स्थित है। भारतीय वन अधिकारियों को आधुनिक व्यापारिक तकनीकी प्रशिक्षण देने के लिए सन 1978 में अहमदाबाद में इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर फॉरेस्ट मैनेजमेंट की स्थापना स्वीडिस इंटरनेशनल डेवलपमेंट एजेंसी की सहायता से की गई। सन 1979 में बाल घाट में वनराजिक महाविद्यालय की स्थापना की गई। सन 1980 में दूसरा वन महाविद्यालय बेतूल में स्थापित किया गया। वर्ष 1980 तक मध्यप्रदेश में कुल 3 राष्ट्रीय उद्यानों 21 अभ्यवन थे, वर्तमान में (जुलाई 2017 तक) राज्य मे 9 राष्ट्रीय उद्यान और 25 अभयारण्य हैं।

राज्य सरकार ने प्रदेश की 25 वीं वर्षगांठ के अवसर पर 1 नवंबर 1981 को हिरण जाति के बारहसिंघा को राज्य पशु घोषित किया गया है। यह वन्य प्राणी मध्यप्रदेश में अधिक संख्या में पाया जाता है। इसी तिथि को दूधराज ( पैराडाइज फ्लाईकैचर) के राज्य पक्षी घोषित किया गया है।

वन्य प्राणी संरक्षण के लिए कान्हा राष्ट्रीय उद्यान (मांडला) में प्रशिक्षण की व्यवस्था है।  1972 में भारतीय वन्यजीव (रक्षण) अधिनियम, वन्यजीवों की संख्या में अप्रत्याशित कमी आने के बाद बनाया गया है। कर्नाटक के बाद सर्वाधिक शेर मध्यप्रदेश में ही पाए जाते हैं। सबसे बड़ा अभ्यारण नौरादेही राष्ट्रीय उद्यान घड़ियाल अभ्यारण सागर में है। सबसे छोटा अभयारण्य सैलाना फ्लोरीकन रतलाम में है।

देश में सबसे अधिक राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य का क्षेत्र मध्य प्रदेश में है। राज्य में वन्यजीवों ( विशेष रूप से टाइगरस) की सुरक्षा एवं संरक्षण हेतु मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य के वन मंत्री की अध्यक्षता में मध्य प्रदेश टाइगरस फाउंडेशन की स्थापना की है। 24 अक्टूबर 1989 को घोषित राज्य शासन की अधिसूचना अनुसार वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम के तहत समूचे प्रदेश संपूर्ण वर्ष सभी प्रकार के वन्य प्राणियों एवं पक्षियों का शिकार पूर्णतया प्रतिबंध है।

बाघों की संख्या के संबंध में प्रारंभिक रिपोर्ट पर्यावरण एवं वन मंत्री प्रकाश जावेडकर को 20 जनवरी 2015 को सौंपी गई है। रिपोर्ट में मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या 2006-07 में 300 तथा 2010 में 257 बताई गई थी। जबकि 2001 -02 में मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या 711 थी। टाइगर स्टेट कहे जाने वाले राज्य मध्य प्रदेश में सर्वाधिक बाघ वाला प्रदेश है। भारत की भूमिका 12.4 प्रतिशत हिस्सा मध्य प्रदेश में है। यह जो विविधताओं से भरा पूरा राज्य है।


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