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धरांतल की ऊपरी परत जो पेड़ पौधों को उगने व बढ़ने के लिए जीवांश तथा खनिजांश प्रदान करती है। मिट्टी कहलाती है। मिट्टी चट्टान तथा जीवांश के मिश्रण से बनती है।
किसी प्रदेश में वनस्पति एवं कृषि के स्वरूप के निर्धारण में वहां की मिट्टी की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। फसलों का प्रादेशिक वितरण, उत्पादन की मात्रा, उधमिता एवं वनस्पति की भिन्नता वहां पाई जाने वाली मिट्टीओं की प्रकृति से निर्धारित होता।
मध्य प्रदेश भारत के दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठार का वह भूभाग है जहां विस्तृत प्रदेश में अवशिष्ट मिट्टी पाई जाती है। क्योंकि यहां की मिट्टी की प्रकृति का निर्धारण करने में यहां स्थित चटाने महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अंत जैव पदार्थ इस मिट्टी में बहुतायत से मिलते हैं।
मध्यप्रदेश अत्यधिक प्राचीन भूखंड का भाग है एवं प्राचीन चट्टानों का बना हुआ है। इसलिए मिट्टी भी उन्हीं चट्टानों से बनी हुई है। इसलिए नदियों के पत्थरों के अतिरिक्त लगभग संपूर्ण प्रदेश में प्रोढ़ मिट्टी पाई जाती है।
मध्यप्रदेश में पायी जाने वाली मिट्टी
- काली मिट्टी
- लाल और पीली मिट्टी
- जलोढ़ मिट्टी
- कछारी मिट्टी
- मिश्रित मिट्टी
काली मिट्टी गहरे रंग की दोमट मिट्टी है, जिसके दो प्रधान अवयव है- चिका एवं बालू। यह मिट्टी सफेद चिकायुक्त बहुत बारीक कण वाली होती है जिसमें चुना, मैग्नीशियम एवं कार्बोनेट्स का बहुत होता है। इस मिट्टी में लोहे, चुने एवं एल्युमीना की प्रधानता होती है। और फास्फेट, नाइट्रोजन, एवं जैव पदार्थ की कमी होती है। काली मिट्टी का प्रदेश मुख्यत वह है जहां दक्कन ट्रैप अथवा बेसाल्ट नामक आग्नेय चट्टानें बहुत मोटी तहों से मिलती है। इस काली चट्टान के धरने से यह काली मिट्टी बनी है।
मध्यप्रदेश में काली मिट्टी मुख्यतः सतपुड़ा के कुछ भाग नर्मदा घाटी एवं मालवा के पठार में मिलती है। यह मंदसौर, रतलाम, झाबुआ, धार, खंडवा, खरगोन, इंदौर, देवास, सीहोर, उज्जैन, शाजापुर, राजगढ़, भोपाल, रायसेन, विदिशा, सागर, दमोह, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, बेतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी, गुना, शिवपूरी, व सीधी जिलों में पाई जाती है।
मध्यप्रदेश में टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, सतना, रीवा में स्थित काली और लाल मिट्टी मिलती है।
बघेलखंड क्षेत्र के भू-भाग में लाल और पीली दोनों प्रकार की मिट्टी पाई जाती है।
मध्यप्रदेश के उत्तरी पश्चिमी भागों में मुख्यतः मुरैना, भिंड, ग्वालियर तथा शिवपुरी जिले में जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है। यह मीठे गंगा घाटी के साथ प्रदेश में लगभग 30 लाख एकड़ भू भाग पर फैली हुई है।
बाढ़ के समय नदियों द्वारा अपने अपवाह क्षेत्र में जमा की गई मिट्टी को कछारी मिट्टी कहते हैं। इस मिट्टी का विस्तार भिंड जिले की गोहद, भिंड तथा मेहगांव तहसीलों में मुरैना जिले की अंबाह, मुरैना, जोरा, सबलगढ़ में विजयपुर तहसीलों के अधिकांश भाग पर तथा ग्वालियर, श्योपुर व पोहरी तहसीलों के कुछ भाग पर है। इस प्रकार की मिट्टी में गेहूं, गन्ना, कपास की कृषि की जाती।
राज्य के नीति क्षेत्रों में लाल, पीली, काली, मिट्टी मिश्रित रूप में पाई जाती है। इस मिट्टी में फास्फेट, नाइट्रोजन में कार्बनिक पदार्थों की कमी रहती है। इस क्षेत्र में वर्षा का औसत भी कम रहता है। अत: इस भाग पर मोटे अनाज उगाए जाते हैं।
मध्यप्रदेश में अधिकांश भूमि पठारी एवं पहाड़ी तथा ढाल पर्याप्त है। अत: मानसूनी वर्षा तथा भूमि के गलत उपयोग के संयोजन से मृदा अपरदन की एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है।
चंबल की घाटी में भूमि क्षरण मध्य प्रदेश की ही नहीं बल्कि देश की गंभीर समस्या है। इस घाटी में महीन चिकनी अथवा दोमट मिट्टी पाई जाती है। पशुचारण से वितरित मिट्टी का क्षरण अपरदन रेंगती हुई मृत्यु कहा जाता है। इसके दुष्परिणाम से भूमि की उर्वरा शक्ति कम होने की से भूमि की पैदावार क्षीण हो जाती है। क्षेत्र के वनस्पति भी समाप्त हो गई है। अत: चंबल और उसकी सहायक नदियों के दोनों किनारों पर एक जोड़ी पेटी अत्यधिक गहरे गड्ढों में बदल गई है तथा यह खंड भूमि का ग्रास करते जा रहे हैं। लगभग 6 लाख एकड़ भूमि अत्यधिक गहरे गड्ढों में परिवर्तित हो चुकी है और इसमें वृद्धि जारी इसी प्रकार का भूमि सरंक्षण नर्मदा के किनारों पर भी हो रहा है।
कृषि विभाग के द्वारा भूमि संरक्षण की योजनाएं अपनाई जा रही, जिससे उपयुक्त भूमि उपयोग, कंटूर खेती, बांध इत्यादि के उपायों के द्वारा भूमि शरण की रोकथाम की जा रही है। कृषि विभाग के अतिरिक्त वन विभाग ने भी इस समस्या के समाधान के लिए वृक्षारोपण की योजना चलाई है।
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