किसी भी क्षेत्र में लंबे समय तक पाई जाने वाली तापमान की अवस्था, वर्षा का समय तथा मात्रा एवं हवा की गति पोस्ट अवस्था वहां की जलवायु के निर्धारण के मुख्य तत्व होते हैं। जलवायु एवं मौसम में मात्र इतनी सी भिन्नता है कि जलवायु में शीघ्र परिवर्तन नहीं होता वहीं मौसम में प्रतिदिन परिवर्तन दृष्टिगत होता है। समुन्द्र से दूर स्थित होने के कारण उत्तर का मैदानी भाग ग्रीष्म ऋतु में अधिक गर्म और शीत ऋतु में अधिक ठंडा रहता है।
विद्यांचल की पहाड़ी बाग में ग्रीष्म ऋतु में अधिक गर्मी नहीं होती और शीत ऋतु में साधारण ठंड नहीं पड़ती है। अमरकंटक और पंचमढ़ी स्वास्थ्यवर्धक 87 भाग में स्थित है। नर्मदा की घाटी के निकट से कर्क रेखा गुजरती है, अत: ग्रीष्म ऋतु अत्यधिक गर्म और शीत ऋतु में साधारण ठंड पड़ती है। मालवा के पठार की जलवायु साधारणतया सम है। यहां ग्रीष्म ऋतु में नए तो गर्मी पड़ती है और ना ही शीत ऋतु में अधिक ठंड होती है।
ग्रीष्म ऋतु मार्च से प्रारंभ होकर मानसून के आने तक अर्थात मध्य जून तक रहती है। मार्च के बाद तापमान बढ़ता जाता है जो मई में 40 डिग्री से. के लगभग हो जाता है। राज्य के उत्तर पश्चिमी भाग में मई माह में तापमान अधिक होता है, क्योंकि यह क्षेत्र अपेक्षाकृत सूखा है तथा वनस्पति भी कम है। इस भाग के ग्वालियर, मुरैना और दतिया जिले में तापमान 44 डिग्री सेल्सियस के ऊपर पहुंच जाता है।
मध्य प्रदेश में वर्षा ऋतु मध्य जून से अक्टूबर माह तक होती है। जून के महीने में बाबरी मानसूनी हवाएं दक्षिण दक्षिण पश्चिम दिशा की ओर चलने लगती है जिनसे वर्षा होती है। प्रदेश के पश्चिमी भाग में अरब सागर की ओर से आने वाली मानसूनी हवाओं से एवं पूर्वी भाग में बंगाल की खाड़ी से आने वाली हवाओं से वर्षा होती है। सबसे अधिक वर्षा जुलाई और अगस्त माह में होती है।
मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र में अरब के सागर एवं बंगाल की खाड़ी दोनों मानसून से वर्षा होती है। ऋतु संबंधी आंकड़ों को एकत्रित करने वाली ऋतु वेधशाला इंदौर में स्थित है।
मध्यप्रदेश में शीत काल में चक्रवातों से कभी कभी ओले भी गिरते हैं।
मध्य प्रदेश के उत्तर पश्चिमी भागों में वार्षिक वर्षा कम होती है जबकि दक्षिण तथा दक्षिणी पूर्वी भागों में अधिक वर्षा होती है। पूर्वी भाग में वर्षा 140 सेंटीमीटर से 165 सेंटीमीटर तथा पश्चिमी मध्य प्रदेश में 80 सेंटीमीटर के लगभग होती है। प्रदेश में वर्षा की मात्रा प्रति वर्ष बदलती रहती है। किसी किसी वर्ष इतनी अधिक वर्षा हो जाती है जिससे नदियों में बाढ़ आ जाती है जिससे धन-जन की हानि होती है।
वर्षा समाप्त होने पर नवंबर में शीत ऋतु प्रारंभ हो जाती है। तापमान में धीरे-धीरे गिरावट आने लगती है। दिसंबर और जनवरी में अधिक ठंड पड़ती है। प्रदेश के उत्तरी भाग में सर्दी अधिक रहती है, जबकि दक्षिणी भाग में सर्दी कम रहती है।
शीत ऋतु में अधिकतम मौसम सूखा रहता है। आकाश स्वच्छ रहता है तथा हवा की गति मंद होती है। रात्री का तापमान गिरने से ऊँचे पठारी और पहाड़ी भाग में पाला तथा कोहरा गिरता है। दिसंबर और जनवरी में उत्तरी पश्चिम मध्य प्रदेश में हल्की वर्षा चक्रवातों से हो जाती है। इन चक्रवातों के कारण मौसम अचानक परिवर्तित हो जाता है। दिसंबर जनवरी में होने वाली वर्षा गेहूं, चना, मसूर आदि फसलों के लिए लाभदायक होती है। मध्य प्रदेश में न्यूनतम तापक्रम शिवपुरी में पाया जाता है।
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