राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए उप स्वास्थ्य केंद्र प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खोले गए। मातृ एवं शिशु कल्याण कार्यक्रम के अंतर्गत प्रदेश के सभी जिलों में संपूर्ण टीकाकरण कार्यक्रम क्रियान्वित किया जा रहे हैं। जिसमें गर्भवती महिलाओं को टिटनेस के टीके बच्चों को पोलियो की दवा डी.पी.टी. और बी.सी.जी एवं खसरा के टीके लगाए जाते हैं।
डायलिसिस की सुविधा शासकीय जिला अस्पतालों में बीपीएल कार्ड धारकों को निशुल्क एवं अन्य वर्ग के रोगियों को न्यूनतम दरों पर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से मध्य प्रदेश में वित्तीय वर्ष 2015-16 से डायलिसिस योजना 26 जनवरी 2016 से प्रारंभ की गई। राष्ट्रीय अंधत्व निवारण कार्यक्रम एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है। यह कार्यक्रम प्रदेश में वर्ष 1978-79 से कार्यशील है तथा यह भारत शासन की शत-प्रतिशत व्यय भारित योजना है।
राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम प्रदेश में वर्ष 1962-63 से आरंभ किया गया। 45 जिलों में जिला क्षय केंद्र स्थापित है। दो अतिरिक्त जिला क्षय केंद्र बुरहानपुर (खंडवा) एवं कटनी (जबलपुर) में स्थापित किए गए हैं। इन केंद्रों में यूनिसेफ/शिडा/भारत शासन के सहयोग से मॉडल का कैमरा युक्त एक्स रे मशीन उपलब्ध है जिनके द्वारा रोगियों के परीक्षण एवं उपचार की समूचित सुविधा है।
शॉर्ट कोर्स केमोथेरपी कार्यक्रम वर्ष 1989-90 में प्रदेश के 10 जिलों- भोपाल, अलीराजपुर (झाबुआ), देवास, बालाघाट, नरसिंहपुर, राजनांदगांव, भिंड, टीकमगढ़ में प्रारंभ कर दिए जाने से कुल 21 जिलों में शॉर्ट कोर्स केमोथेरपी पद्धति प्रारंभ हो गई है। इस पद्धति से क्षय पीड़ितों का उपचार कम से कम समय में पूरा किया जाता है। राज्य में सन 1925 से कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम लागू है। सन 1954-55 से केंद्र शासन की शत-प्रतिशत आर्थिक सहायता से यह कार्यक्रम प्रदेश में चलाया जा रहा है।
प्रदेश में 44 मलेरिया इकाइयां स्वतंत्र रूप से कार्यरत है। राज्य के 4 जिलों (जिनका क्षेत्रफल कम है) को उनके निकटवर्ती जिले से जोड़ कर दो जिलों के लिए एक मलेरिया इकाई बनाई गई है। जैसे- उज्जैन तथा देवास, छतरपुर जिला टीकमगढ़, भोपाल तथा सीहोर, ग्वालियर तथा दतिया। राज्य में शहरी मलेरिया उन्मूलन योजना के अंतर्गत भोपाल, इंदौर, उज्जैन, मंदसौर, रतलाम, शिवपुरी में 6 इकाइयां कार्यरत है। जिनके द्वारा मच्छरों के प्रजनन स्थानों पर लारवा नाशक दवाइयों का छिड़काव किया जाता है। इस योजना प्रभात शासन द्वारा 50% अनुदान प्राप्त होता है।
प्रदेश में घेंगा रोग से प्रभावित एक बहुत बड़ा क्षेत्र आता है। जो विद्यांचल एवं सतपुड़ा की पहाड़ियों की तराई में बसे हुए जिलों में फैला है। यह जिले हैं- सिंधी, शहडोल, मंडल, दमोह, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, बेतूल, खंडवा, तथा बड़ावनी है। जिनकी कुल जनसंख्या 154.4 लाख में आदिवासी जनसंख्या 46.06 लाख है। इस रोग की रोकथाम तथा नियंत्रण की दृष्टि से प्रदेश के समस्त जिलों में साधारण नमक की बिक्री पर प्रतिबंध है और केवल आयोडीन युक्त नमक की बिक्री करने के निर्देश है।
राज्य प्रशासन द्वारा मुख्य रूप से औषधि एवं सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम 1940 तथा खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम 1954 का क्रियान्वयन किया जाता है। विशेष घटक योजना में आयुर्वेद औषधालय, होम्योपैथिक औषधालय तथा यूनानी औषधालय की स्थापना शामिल है।
डेनिडा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण परियोजना का द्वितीय चरण 1 अप्रैल 1989 से प्रारंभ हुआ। यह परियोजना 8 जिलों, भिंड, ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, सागर, टीकमगढ़ एवं दतिया में चलाई जा रही है। प्रयोजना का मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सेवाओं को सुदृढ़ करके उनके आधारभूत ढांचे को उन्यन तथा जनशक्ति विकास के साथ सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाना है।
मध्यप्रदेश में चाहत चिकित्सा महाविद्यालय, एक दंत चिकित्सा महाविद्यालय, एक नर्सिंग महाविद्यालय, 8 बड़े संबद्ध अस्पताल, तीन कैंसर अस्पताल, 6 स्कूल ऑफ नर्सिंग तथा 11 संस्थाओं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र।
मध्यप्रदेश शासन में मई 1955 से मोतियाबिंद के कारण होने वाले अंधेपन पर प्रभावी नियंत्रण के लिए अंधतव निवारण योजना प्रारंभ की है। इस योजना के क्रियान्वयन में विश्व बैंक 95 करोड की सहायता देगा। इस योजना के अंतर्गत निर्धारित किए गए लक्ष्यों के अनुसार आगामी 6 वर्षों में 18 लाख मोतियाबिंद के ऑपरेशन किए जाएंगे। इस समय विश्व में 3 करोड लोग दृष्टिहीन है। इनमें से एक करोड़ 20 लाख भारत में है और मध्य प्रदेश में इनकी संख्या 14 लाख है। जिनमें से 12,00,000 दृष्टिहीन मोतियाबिंद के कारण है।
मध्यप्रदेश में पहली बार लागू अरूणिमा योजना बच्चों के स्वास्थ्य के संरक्षण से संबंधित है। इस योजना के अंतर्गत प्रदेश में 22 जिलों के 170 आदिवासी विकास खंडों में संचालित स्कूलों, आवासीय संस्थाओं तथा शिक्षण केंद्रों में अध्ययनरत 14,00,000 बच्चों का निशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण का उद्देश्य निर्धारित किया गया है। इस योजना से माध्यमिक स्कूल के 70 तक के बच्चों लाभान्वित हो सकेंगे ।
शिशु स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के अंतर्गत लगभग 550 करोड खर्च किए जाने का प्रस्ताव किया गया है। केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई इस योजना को समुचित दिशा प्रदान की जाएगी। इस योजना के अंतर्गत गर्भावस्था के दौरान महिलाओं की उचित देखभाल और विभिन्न बीमारियों विशेषकर टिटनेस से बचाव के लिए टीकाकरण आदि क्रम कार्य चलाए जाएंगे। इसके अतिरिक्त दो बच्चों के जन्म के मध्य कम से कम 3 वर्ष का अंतराल सुनिश्चित करना, बच्चों की बीमारी के टीके लगवाना और अन्य बीमारियों से शिशु स्वास्थ्य की रक्षा करना भी इस योजना के प्रमुख पहलू होंगे।
क्षय रोग के अल्पकाल में ही पूर्ण निदान के लिए विश्व बैंक की सहायता से कार्य निवेदन किए गए संशोधन राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (कीमोथेरेपी) का विस्तार इस वर्ष (1998 में) पूरे राज्य में कर दिया जाएगा। अभी तक यह कार्यक्रम राज्य के 36 जिलों में ही चालू है।
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