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निशान लगाने वाले औजार

किसी नये भाग को बनाने के लिए व अन्य क्रियाएँ करने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी ड्राइंग के अनुसार सही मार्किंग की जाए मार्किंग के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।

  • मार्किंग करने से पूर्व उसकी ड्राइंग ठीक प्रकार पढ़ ले
  • सभी मापों को समझ ले।
  • डांट पंच द्वारा मार्किंग को स्थायी करने से पूर्व भली प्रकार जांच कर ले।
  • जिन स्थानों में ड्रिल करने हो वहां सेंटर पंच से गहरे निशान लगा दें।

मार्किंग औजार व उपकरण

मार्किंग करने के लिए निम्नलिखित औजारों व उपकरणों का प्रयोग किया जाता है।

  1. मार्किंग टेबल
  2. सर्फ़ेस प्लेट
  3. ऐंगल प्लेट
  4. ओडलैग कैलिपर
  5. सर्फेस गेज
  6. यूनिवर्सल सर्फ़ेस गेज
  7. ट्रैमल
  8. बी-ब्लॉक
  9. पंच
  10. हाइट-गेज

मार्किंग के लिए जॉब की सतह पर सर्वप्रथम चौक मिट्टी, कॉपर सल्फेट या पार्शियन ब्लू आदि का लेप किया जाता है।

मार्किंग के लिए संदर्भ मार्किंग विधि, केंद्रीय रेखा विधि अथवा टेंप्लेट मार्किंग विधि का प्रयोग किया जाता है

मार्किंग टेबल व सर्फ़ेस प्लेट

यह कास्ट आयरन की बनी होती है। इनकी उपरी सतह शुद्ध समतल होती है। इन पर केवल 10% से 20% तक हाई स्पॉट हो सकते हैं।

ऐंगल प्लेट

यह दो प्रकार की होती है

  • फिक्सड ऐंगल प्लेट
  • एडजस्टेबल ऐंगल प्लेट

यह अच्छे कास्ट आयरन की बनी होती है। यह 90 डिग्री पर बनी होती है। इसके साथ किसी जॉब को मार्किंग के लिए नट-बोल्ट से पकड़ा जाता है। इस पर वृत्तिय छिद्र तथा आयताकार स्लॉट बने होते हैं।

ओडलैग कैलिपर

इसे जैनी कैलिपर या हेर्मीफ़्रोडाइट कैलीपर भी कहते हैं। इसका उपयोग किसी गोल जॉब का चपटे सिरे पर केंद्र ज्ञात करने तथा जॉब की मार्किंग के लिए किया जाता है। यह अन्य कैलीपर के समान होता है। परंतु इसकी एक टांग सीधी व दूसरी टांग सिरे पर कुछ गोल मुड़ी होती है।

डिवाइडर

इसके द्वारा किसी जॉब पर वृत, रेखाओं की मार्किंग की जाती है। यह फर्म ज्वाइंट तथा स्प्रिंग ज्वाइंट के होते हैं।

स्क्राइबर

धातु से बने जोबों पर मार्किंग के समय सीधी रेखाएं खींचने के लिए स्क्राइबर प्रयोग किया जाता है। यह दो प्रकार के होते हैं।

स्टेट्स स्क्राइबर, बैंड स्क्राइबर

इसका एक सिरा नुकीला होता है। जिससे मार्किंग की जाती है। शेष भाग पर नर्लिंग की जाती है। यह कार्बन स्टील के मोटे तार द्वारा बनाए जाते हैं। इसके प्रयोग में निम्नलिखित सावधानियां अपनानी चाहिए।

  1. किसी जॉब पर रेखा खींचने की पूर्व जॉब की सतह पर पार्शियन  ब्लू, कॉपर सल्फेट या खड़िया का लेख करके सुखा लेना चाहिए। स्क्राइबर के जीरे का उपयोग न करना हो उस पर कार्क या कपड़ा लगा देना चाहिए।
  2. स्क्राइबर की नोक मोटी हो गई हो तो उसे ग्राइंडर पर नुकीला कर लेना चाहिए।’
  3. स्क्राइबर रेखा खींच के समय अधिक दबाव नहीं देना चाहिए तथा जिस और रेखा बढ़ाई जा रही है और स्क्राइबर को थोड़ा झुकाकर रखना चाहिए।

सर्फ़ेस गेज

यह दो प्रकार के होते हैं।

  1. सॉलिड सर्फ़ेस गेज
  2. यूनिवर्सल सर्फ़ेस गेज

सॉलिड सर्फ़ेस गैज से सामान्य मार्किंग की जाती है तथा लेथ मशीन पर जॉब को सेंटर में बांधने में सहायता की जाती है। यूनिवर्सल सर्फ़ेस गैज द्वारा निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं-

  • जॉब पर उसके आधार से समांतर रेखाएं खींचने के लिए
  • गोल जॉब के केंद्र ज्ञात करने के लिए
  • जॉब पर परस्पर समांतर रेखाएं खींचने के लिए

हाइट गेज के समान साधारण जॉब पर समांतर रेखा खींचने के लिए। इसमें निम्नलिखित मुख्य भाग होते हैं-

  1. बेस
  2. रोकर आर्म
  3. स्नग बोल्ट  
  4. पिलर रोड
  5. एडजस्टिंग स्क्रू
  6. गाइड पिन
  7. स्विवेल पोस्ट स्नग
  8. स्क्राइबर

ट्रेमल

इसके द्वारा बड़े जोबों पर वृत, चाप या समांतर रेखाएं खींची जाती है। इसमें 1 गोल या  चौकोर छेड़ होती है जिसे एक बार या बिम कहते हैं,’ इस बीम पर दो खिसकाएँ जाने वाली ड्रेमल लगे होते हैं। इन पर अलग-अलग प्रकार के पॉइंट लगाकर मार्किंग की जाती है।

वी-लॉक 

इसके सहारे किसी गोल या असयत जॉब की मार्किंग के लिए जॉब को क्लैम्प किया जाता है। यह तीन प्रकार के होते हैं-

  1. सॉलिड वी- ब्लॉक
  2. क्लैंपिंग वी- लॉक
  3. चुम्बकीय वी-ब्लॉक

पंच

यह टूल स्टील द्वारा बनाए जाते हैं। कार्य के अनुसार यह निम्न प्रकार के प्रयोग किए जाते हैं।

सेंटर पंच 

इसका पॉइंट 90 पर बना होता है। इसके द्वारा पतली सीटों पर छिद्र किए जाते हैं तथाड्रिलिंग के लिए जॉब के उस बिंदु को कुछ गहरा किया जाता है जिससे ड्रिल सरकने न पाए।

डांट पंच

इसका प्वाइंट्स 60 पर बनता है. इसके द्वारा मार्किंग की गई  रेखाओं आदि को स्थाई किया जाता है।

प्रिंक पंच

इसका पॉइंट 30 पर  बना होता है। इसके द्वारा पतली सीटों पर छिद्र किए जाते हैं।

ठोस पंच 

यह हाई कार्बन स्टील के बने होते हैं। इनको सुम्बी भी कहा जाता है।इसके द्वारा गर्म धातु मे सुराख किए जाते हैं। इससे बने सुराख साफ नहीं बन सकते।

होलों पंच

इसके द्वारा पतली सीटों, चमड़े  या गते आदि पर साफ सुराख किए जाते हैं। मुख्य रूप से गैस्केट के सूराखों को इससे काटा जाता है। यह एक है सेठ के रूप में अलग अलग है नाप में आते हैं। यह खोखले बनाए जाते हैं। इन से कम समय में अधिक संख्या में सुराख होते हैं।

वेल पंच

एक छोटी घंटी के समान इसका आकार होता है। किसी गोल जॉब के केंद्र की मार्किंग सरलता से सीधे होगी हो जाती है। इसके केंद्र में एक पंच लगा होता है जो सफरिंग द्वारा ऊपर उठा रहता है। मार्किंग के समय इस पंच को दबाकर मार्किंग की जाती है।

ऑटोमेटिक पंच

इसके एक पति तथा सुप्रीम के साथ है नर्लिंग की हुई बॉडी वर्क होती है। पंच प्रयोग के समय केप को दबाया जाता है। इसका पॉइंट 60 या 90 डिग्री पर बना होता है।

पंच प्रयोग में सावधानियां- पंच प्रयोग करते समय निम्नलिखित सावधानियां ध्यान में रखनी चाहिए-

  • जॉब की बनावट कार्य में धातु के अनुरूप पंच का चुनाव करें।
  • छोटे  पंच पर बड़ा हैमर प्रयोग ना करें।
  • पंच का कोण नाव ले।
  • हालों पंच का प्रयोग मोटी सीट पर ना करें।
  • पंच का  पॉइंट खराब हो तो नुकीला कर ले।

मार्किंग करने की विधियां

  1. जॉब की ड्राइंग भली प्रकार समझा ले।
  2. जॉब की दो साइड समतल एवं फिनिश तैयार करें।
  3. मार्किंग वाली सतह पर पर्शियन ब्लू, कॉपर सल्फेट या खड़िया का लेप करें।
  4. लेप सूखने के बाद उचित मार्किंग यंत्रों का चुनाव करें।
  5. ड्राइंग के अनुसार मार्किंग करें।
  6. मार्किंग करने के बाद जांच करें तथा सही होने पर डांट पंच द्वारा स्थाई करें।

मार्किंग करने की पद्धतियां

कार्य/जॉब पर मार्किंग करने की निम्नलिखित तीन प्रकार की पद्धतियां प्रचलित है-

  1. निर्देश रेखा विधि- इस विधि में जॉब की दो निकटवर्ती भुजाओं को शुद्ध फिनिश करके 90 डिग्री के कोण पर तैयार किया जाता है। फिर इन दोनों फ्रिज की हुई निकटवर्ती सताओं के संदर्भ में जॉब की संपूर्ण मार्किंग की जाती है।
  2. केंद्र रेखा विधि:  इस विधि द्वारा ऐसे जॉब की मार्किंग की जाती है जिनकी कोई भी बुझा फिनिश नहीं की गई हो। इन जोब्स पर मार्किंग करने के लिए पहले अनुमान से एक केंद्र रेखा लगा ली जाती है। केंद्र रेखाके संदर्भ में मार्किंग की अन्य रेखाएं खींची जाती है।
  3. टेंप्लेट या फिर में से  मार्किंग करना: अधिक संख्या के जॉब्स की एक जैसी मार्किंग करने के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में जॉब के आकार के अनुसार पतली चादर से एक फर्मा तैयार कर लिया जाता है और इस फर्मे में को जॉब पर रखकर स्क्राइबर की सहायता से रेखाएं लगाकर मार्किंग की जाती है।

सावधानियां

  1. जॉब की सतह पर मार किंग मीडिया की अधिक मोटी परत नहीं होनी चाहिए।
  2. जॉब की सतह पर  मार्किंग मीडिया का लेप एक समान होना चाहिए।
  3. मार्किंग मीडिया का लेप जॉब की जगह पर है लगाने के पश्चात इसे हाथ से नहीं छूना चाहिए।
  4. मार्किंग मीडिया जॉब की जगह पर है जब सूख जाए, तभी मार्किंग करनी चाहिए।

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