किसी नये भाग को बनाने के लिए व अन्य क्रियाएँ करने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी ड्राइंग के अनुसार सही मार्किंग की जाए मार्किंग के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।
मार्किंग करने के लिए निम्नलिखित औजारों व उपकरणों का प्रयोग किया जाता है।
मार्किंग के लिए जॉब की सतह पर सर्वप्रथम चौक मिट्टी, कॉपर सल्फेट या पार्शियन ब्लू आदि का लेप किया जाता है।
मार्किंग के लिए संदर्भ मार्किंग विधि, केंद्रीय रेखा विधि अथवा टेंप्लेट मार्किंग विधि का प्रयोग किया जाता है
यह कास्ट आयरन की बनी होती है। इनकी उपरी सतह शुद्ध समतल होती है। इन पर केवल 10% से 20% तक हाई स्पॉट हो सकते हैं।
यह दो प्रकार की होती है
यह अच्छे कास्ट आयरन की बनी होती है। यह 90 डिग्री पर बनी होती है। इसके साथ किसी जॉब को मार्किंग के लिए नट-बोल्ट से पकड़ा जाता है। इस पर वृत्तिय छिद्र तथा आयताकार स्लॉट बने होते हैं।
इसे जैनी कैलिपर या हेर्मीफ़्रोडाइट कैलीपर भी कहते हैं। इसका उपयोग किसी गोल जॉब का चपटे सिरे पर केंद्र ज्ञात करने तथा जॉब की मार्किंग के लिए किया जाता है। यह अन्य कैलीपर के समान होता है। परंतु इसकी एक टांग सीधी व दूसरी टांग सिरे पर कुछ गोल मुड़ी होती है।
इसके द्वारा किसी जॉब पर वृत, रेखाओं की मार्किंग की जाती है। यह फर्म ज्वाइंट तथा स्प्रिंग ज्वाइंट के होते हैं।
धातु से बने जोबों पर मार्किंग के समय सीधी रेखाएं खींचने के लिए स्क्राइबर प्रयोग किया जाता है। यह दो प्रकार के होते हैं।
स्टेट्स स्क्राइबर, बैंड स्क्राइबर
इसका एक सिरा नुकीला होता है। जिससे मार्किंग की जाती है। शेष भाग पर नर्लिंग की जाती है। यह कार्बन स्टील के मोटे तार द्वारा बनाए जाते हैं। इसके प्रयोग में निम्नलिखित सावधानियां अपनानी चाहिए।
यह दो प्रकार के होते हैं।
सॉलिड सर्फ़ेस गैज से सामान्य मार्किंग की जाती है तथा लेथ मशीन पर जॉब को सेंटर में बांधने में सहायता की जाती है। यूनिवर्सल सर्फ़ेस गैज द्वारा निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं-
हाइट गेज के समान साधारण जॉब पर समांतर रेखा खींचने के लिए। इसमें निम्नलिखित मुख्य भाग होते हैं-
इसके द्वारा बड़े जोबों पर वृत, चाप या समांतर रेखाएं खींची जाती है। इसमें 1 गोल या चौकोर छेड़ होती है जिसे एक बार या बिम कहते हैं,’ इस बीम पर दो खिसकाएँ जाने वाली ड्रेमल लगे होते हैं। इन पर अलग-अलग प्रकार के पॉइंट लगाकर मार्किंग की जाती है।
इसके सहारे किसी गोल या असयत जॉब की मार्किंग के लिए जॉब को क्लैम्प किया जाता है। यह तीन प्रकार के होते हैं-
यह टूल स्टील द्वारा बनाए जाते हैं। कार्य के अनुसार यह निम्न प्रकार के प्रयोग किए जाते हैं।
इसका पॉइंट 90 पर बना होता है। इसके द्वारा पतली सीटों पर छिद्र किए जाते हैं तथाड्रिलिंग के लिए जॉब के उस बिंदु को कुछ गहरा किया जाता है जिससे ड्रिल सरकने न पाए।
इसका प्वाइंट्स 60 पर बनता है. इसके द्वारा मार्किंग की गई रेखाओं आदि को स्थाई किया जाता है।
इसका पॉइंट 30 पर बना होता है। इसके द्वारा पतली सीटों पर छिद्र किए जाते हैं।
यह हाई कार्बन स्टील के बने होते हैं। इनको सुम्बी भी कहा जाता है।इसके द्वारा गर्म धातु मे सुराख किए जाते हैं। इससे बने सुराख साफ नहीं बन सकते।
इसके द्वारा पतली सीटों, चमड़े या गते आदि पर साफ सुराख किए जाते हैं। मुख्य रूप से गैस्केट के सूराखों को इससे काटा जाता है। यह एक है सेठ के रूप में अलग अलग है नाप में आते हैं। यह खोखले बनाए जाते हैं। इन से कम समय में अधिक संख्या में सुराख होते हैं।
एक छोटी घंटी के समान इसका आकार होता है। किसी गोल जॉब के केंद्र की मार्किंग सरलता से सीधे होगी हो जाती है। इसके केंद्र में एक पंच लगा होता है जो सफरिंग द्वारा ऊपर उठा रहता है। मार्किंग के समय इस पंच को दबाकर मार्किंग की जाती है।
इसके एक पति तथा सुप्रीम के साथ है नर्लिंग की हुई बॉडी वर्क होती है। पंच प्रयोग के समय केप को दबाया जाता है। इसका पॉइंट 60 या 90 डिग्री पर बना होता है।
पंच प्रयोग में सावधानियां- पंच प्रयोग करते समय निम्नलिखित सावधानियां ध्यान में रखनी चाहिए-
कार्य/जॉब पर मार्किंग करने की निम्नलिखित तीन प्रकार की पद्धतियां प्रचलित है-
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