किसी राज्य के पृथक्करण के पीछे दीर्घकालीन आर्थिक, राज-नैतिक, सामाजिक उपेक्षा व शोषण है जिससे शनैः शनैः क्षेत्रीय असंतोष जन्म लेता है। जिसका सामयीक निराकरण न होने पर, जनआक्रोश के फलस्वरुप पृथक राज्य की कामना का उदय होता है।
अग्रांकित बिंदु पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग के मूल कारण को स्पष्ट करता है-
- छत्तीसगढ़ अपनी भाषा, बोली, रहन-सहन व विशिष्ट संस्कृति से शेष मध्य प्रदेश से अलग है।
- मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से छत्तीसगढ़ की प्रशासनिक की दूरी अधिक होने से नीतिगत फैसलों को करने में उन्हें क्रियान्वित करने में भी भारी देरी होती है।
- छत्तीसगढ़ की आबादी मालदीव, कुवैत, इराक, नेपाल व श्रीलंका जैसे राष्ट्रों से भी अधिक है।
- छत्तीसगढ़ का क्षेत्रफल के राज्यों के क्षेत्रफल से भी अधिक है।
- छत्तीसगढ़ से एकत्रित राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ को विकास हेतु प्रावधान नहीं दिया जाता था। अकेले बस्तर जिले से सालाना 120 करोड रुपए का राजस्व प्राप्त होता था, जबकि विकास के लिए वस्त्र को सिर्फ ₹5 करोड़ ही दिए जाते थे।
- मध्य प्रदेश के गठन के समय से ही छत्तीसगढ़ के साथ भेदभाव किया गया। उच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय की खंडपीठ राजस्व मंडल, परिवहन आयुक्त आबकारी आयुक्त, महालेखाकार, भू राजस्व, विजय मंडल, राज्य उद्योग निगम, औद्योगिक विकास निगम, राज्य निर्यात निगम, हैंडल वाले संचालन, माइनिंग कॉर्पोरेशन, वित्त निगम आदि सभी प्रमुख कार्यालय से मध्य प्रदेश को मिलेगा छत्तीसगढ़ जैसे विस्तृत क्षेत्र को उपेक्षित रखा गया।
- औद्योगिक विकास की प्रकृति अपेक्षाकृत चैस मध्यप्रदेश में ही हुई है। यहां का विकास तो केवल क्षेत्रीय खनिज संपदा के दोहन तक सीमित होकर रह गया।
- छत्तीसगढ़ का क्षेत्र की निम्न साक्षरता का लाभ लेकर बाहर के लोगों अपने यहां के मूल निवासियों का शोषण किया है। क्षेत्र में विशाल रेल मंडल है, लेकिन पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, तमिलनाडु, के लोग यहां रोजगार कर रहे हैं।
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