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साइमन आयोग एवं नेहरू रिपोर्ट

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साइमन आयोग एवं नेहरू रिपोर्ट

सन 1919 के भारत सरकार अधिनियम की उपलब्धियों की जांच के लिए अक्टूबर, 1927 में ब्रिटेन की सरकार ने एक आयोग की नियुक्ति की, जिसके सभी सदस्य अंग्रेज थे तथा सर साइमन आयोग के अध्यक्ष थे. इस आयोग में किसी भी भारतीय के न होने के कारण कांग्रेस ने आयोग के विरोध का निर्णय कर लिया. यह आयोग फरवरी, 1928 में मुंबई पहुंचा. हर नगर में साइमन वापस जाओ के नारे गूंजने लगे. असहयोग का वातावरण एक बार फिर से जीवित हो उठा. कांग्रेस ने एक सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन मार्च 1928 में दिल्ली में किया तथा इसमें साइमन आयोग के बहिष्कार के साथ-साथ मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति गठित की. इस समिति को भारत के संविधान के सिद्धांतों का प्रारूप 1 जुलाई, 1928 से पहले तैयार करना था. नेहरू रिपोर्ट के नाम से प्रसिद्ध इस प्रारूप में राज्य अथवा औपनिवेशिक स्वराज्य को आधार बनाया गया था.

अगस्त में एक बार फिर लखनऊ में सर्वदलीय सम्मेलन आयोजित किया गया. राजा महमूदाबाद के भव्य महल के बाग में यह सम्मेलन आयोजित किया गया. नेहरू रिपोर्ट के विरोध स्वरूप जवाहरलाल नेहरू तथा सुभाष चंद्र बोस ने इस सम्मेलन में न कोई प्रस्ताव रखा और ना ही बहस में हिस्सा लिया.

इंडिपेंडेंस फॉर इंडिया लीग की स्थापना जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस ने की थी. संगठन ने युवकों, मजदूरों तथा कृषक संगठनों को पिछले कुछ वर्षों में अपनी और आकर्षित किया था. सोवियत क्रांति की सफलता से उत्साहित तथा मार्क्स लेनिन के सिद्धांतों में चमत्कृत नेहरू इस विद्रोही युवा वर्ग के नेता बन चुके थे. इस समूह ने उनके नेतृत्व में नेहरू रिपोर्ट का जमकर विरोध किया. उसने पिता के निर्देशों पर जिस रिपोर्ट को उन्होंने स्वयं लिखा था उसी को जवाहरलाल नेहरू ने इस सम्मेलन में पूरी तरह खारिज कर दिया कि यह रिपोर्ट हिंदू संप्रदायवादियों की जीत के समान है न की प्रतिक्रियावादी ब्रिटिश साम्राज्यवादी की. अलीबंधु का मोह भी खिलाफत आंदोलन के समापन तथा उसके बाद प्रारंभ हिंदू-मुस्लिम दंगों के कारण अब कांग्रेस से पूरी तरह समाप्त हो चुका था. मोतीलाल नेहरू तथा हिंदू महासभा के उनके समर्थकों ने जिन्ना की इस मांग को मोतीलाल, नेहरू तथा हिंदू महासभा के उनके समर्थकों ने पूरी तरह अस्वीकार कर दिया कि केंद्रीय विधान सभा में मुसलमानों को एक तिहाई प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए.

30 अक्टूबर, 1928 को लाहौर में साइमन आयोग के आगमन के विरोध में एक बहिष्कार जुलूस का आयोजन किया गया था. 64 वर्षीय लाला लाजपत राय इस जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे. लाला लाजपत राय पर पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज में घायल हो गए कि कुछ सप्ताह बाद हृदय गति रुक जाने से उनकी मृत्यु हो गई. पूरा देश उनकी असामयिक मृत्यु से शोक \ग्रस्त व क्रोध से भर उठा.

साइमन आयोग को नवंबर के अंतिम दिनों में लखनऊ आना था. उसी समय लखनऊ विश्वविद्यालय में उपाधि वितरण समारोह भी होना था जिसमें आज के समारोह में बहिष्कार करने की अपील जवाहरलाल नेहरू ने की थी लखनऊ में आयोजित योग विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करते हुए पुलिस की लाठियां खानी पड़ी. अगले दिन रेलवे स्टेशन पर किए गए विरोध जुलूस का नेतृत्व भी जवाहरलाल नेहरू ने किया यहां भी उनसे पुलिस कि लाठियों का सामना करना पड़ा.

नेहरू की राजनीतिक प्रतिष्ठा को लखनऊ में पुलिस की लाठियां खाने के बाद चार चांद लग गए. बोस ने दिसंबर, 1928 के कोलकाता अधिवेशन में रिपोर्ट में संशोधन कांग्रेस के लक्ष्य को पूर्ण संविधानता  प्रदान करने का प्रस्ताव रखा. नेहरू ने इसका समर्थन किया, परंतु गांधी के हस्तक्षेप के बाद यह समझौता पत्र स्वीकार कर लिया गया कि यदि भारत को एक 31 दिसंबर 1929 तक औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान किया गया तो, कांग्रेस असहयोग आंदोलन तथा कर बंदी का आंदोलन प्रारंभ कर देगी.

सरकार की तरफ से इस 1 वर्ष में कोई ठोस आश्वासन भी नहीं प्राप्त हो चुका. इसी बीच लखनऊ में 28 दिसंबर, 1928 को ए. आई सी सी की बैठक हुई जिसमें जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस का अगला अध्यक्ष निर्वाचित किया गया. अंततोगत्वा दिसंबर, 1929 में कांग्रेस का अधिवेशन लाहौर में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता से प्रारंभ हुआ. पूर्ण सविधान ता को पूर्ण इस अधिवेशन में कांग्रेस का लक्ष्य घोषित किया गया तथा नेहरू रिपोर्ट को रद्द कर दिया गया. प्रतिनिधियों ने 31 दिसंबर की आधी रात को पंडाल से बाहर निकल कर पूर्ण संविधान था का झंडा फहराया. एक बार फिर से पूरा देश गांधी की तरफ देखने लगा था.

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