G.K

उत्तर प्रदेश गांधी युग का आरंभ और स्वराजवादी

उत्तर प्रदेश गांधी युग का आरंभ और स्वराजवादी, gaandhi yudh ki shuruwaat, gaandhi yug, gandhi aur savraajvaadi, savrajvaadi ke baare mein janakari

More Important Article

उत्तर प्रदेश गांधी युग का आरंभ और स्वराजवादी

गांधी युग का आरंभ

अब तक भारतीय राजनीति में ऐसे व्यक्ति का आगमन हो चुका था जो भारत की आजादी का मसीहा बनने वाला था. दक्षिण अफ्रीका में मोहनदास करमचंद गांधी नामक इस महान आत्मा ने अप्रवासी भारतीयों के अधिकार के संग रस का सफलतापूर्वक नेतृत्व करने का कारण अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर ली थी. भारतीय राष्ट्रवाद में एक नई दिशा का दौर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गांधी के प्रवेश के साथ ही प्रारंभ हो गया था. गांधीवादी राष्ट्रवाद मात्र भारत के राजनीतिक आजादी तक सीमित नहीं रहा बल्कि इसमें भारत की आर्थिक, धार्मिक, संस्कृतिक, तथा सामाजिक क्रांति का नवीन दर्शन भी निरूपित किया. भारत की राजनीतिक आजादी मात्र इसकी पहली सीढी थी. गांधी ने इसे सर्वागीण क्रांति के दर्शन को अहिंसा पर सत्य के धागों से बुना था. औधौगिक, राजनीतिक, तथा धार्मिक पूंजीवाद के लिए सत्याग्रह इस समय तक पहुंचने का एकमात्र था.

गांधीजी सन 1914 में दक्षिण अफ्रीका से आ चुके थे. सत्य, अहिंसा, वह सत्याग्रह की ख्याति भारत उनके आने के पूर्व ही भारत पहुंच चुकी थी. गौरव द्वारा चंपारण जिले में नील की खेती करने वाले किसानों पर किए जाने वाले अत्याचारों के विरुद्ध तथा गुजरात के खेड़ा जिले के अकाल ग्रस्त किसानों पर लगने वाले लगान के विरुद्ध गांधी ने सत्याग्रह प्रारंभ कर दिया.

सरकार द्वारा फरवरी 1919 रौलेट कमेटी की संस्तूतियों को लागू करने की घोषणा के बाद गांधी ने क्षण भर भी इंतजार नहीं किया. इस कानून के अंतर्गत क्रांतिकारी राष्ट्रवादी ऊपर राजद्रोह का मुकदमा चलाकर उन्हें बिना कारण बताए गिरफ्तार किया जा सकता था तथा भारत रक्षा कानून के अंतर्गत नजरबंद व्यक्तियों को कानून समाप्त हो जाने के बाद भी बंद रखा जा सकता था. इसमें किसी प्रकार की अपील की संभावना नहीं थी. गांधी ने विश्वयुद्ध को समाप्त हो जाने के बाद भी कमेटी के प्रस्तावों को स्वीकार करने के विरूद्ध सत्याग्रह सभाओं की स्थापना कर 30 मार्च से देशभर में हड़ताल तथा उपवास की घोषणा कर दी. बाद में हड़ताल का दिन 6 अप्रैल, 19 कर दिया गया. जवाहरलाल नेहरू सहित अनेक युवाओं को गांधी की सत्याग्रह सद्भाव ने अपनी तरफ आकर्षित किया.

उत्तर प्रदेश कांग्रेस का प्रांतीय सम्मेलन अक्टूबर 1920 को मुरादाबाद में आयोजित किया गया. जिसकी अध्यक्षता डॉक्टर भगवान दास ने की. सम्मेलन में गांधी, मालीवीय, मोतीलाल, जवाहरलाल, श्रद्धानंद, हकीम अजमल खान, मौलाना शौकत अली, मौलाना मोहम्मद अली तथा मौलाना हसरत मोहानी जैसी राजनीतिक हस्तियों की उपस्थिति ने एक महत्वपूर्ण सम्मेलन बना दिया था. इस सम्मेलन में गांधी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया तथा दिसंबर 1920 का नागपुर अधिवेशन गांधीमय अधिवेशन में बदल चुका था. यहां बहुमत से उनके असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पारित हो गया. कांग्रेस का एक नया संविधान जिस पर गांधी की नीतियों का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा था सम्मेलन में स्वीकार किया गया था. यहीं से कांग्रेस के अंदर खादी, अस्पृश्यता निवारण, नशाबंदी तथा राष्ट्रीय शिक्षा जैसे रचनात्मक सामाजिक कार्यों का प्रारंभ हुआ.

भारत के इतिहास में पहली बार तथा किसी एक व्यक्ति के आहान पर एक साथ खड़ा हो गया. छात्रों ने स्कूल छोड़ दिए और सरकारी नौकरों ने अपनी नौकरियां. पटना अहमदाबाद, तथा पुणे की तरह राष्ट्रीय शिक्षा के विकास के लिए बनारस में विद्यापीठ और अलीगढ़ में मुस्लिम विद्यापीठ की स्थापना की गई. मोती लाल नेहरू, देशबंधु चितरंजन दास, बाबू राजेंद्र प्रसाद, असद अली तथा राजगोपाल चारी जैसे प्रमुख वकीलों ने अपनी वकालत छोड़ दी. विदेशी कपड़ों की होली जलाई जाने लगी तथा हजारों की संख्या में सत्याग्रही गिरफ्तार कर लिए गए. गांधी के अतिरिक्त देश के सभी बड़े-बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए.

अंग्रेजी शासन गांधी को गिरफ्तार करने का साहस नहीं कर पा रहा था. उन्होंने स्थानीय स्तर पर प्रांतीय समितियों को सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ करने की स्वीकृति दे दी. उत्तर प्रदेश में अवध प्रांत के किसानों ने बिहार और उड़ीसा की तरह गैर कानूनी उगाही के विरुद्ध आंदोलन कर दिया. इसी समय ब्रिटेन के राजकुमार वेल्स ने भारत यात्रा प्रारंभ की. उत्तर प्रदेश कांग्रेस का राजनीति सम्मेलन आगरा में अक्टूबर, 1921 में मौलाना हसरत मोहनी की अध्यक्षता में प्रारंभ हुआ. इस सम्मेलन में ब्रिटिश शिवराज के बहिष्कार को पूरी तरह सफल बनाने का निश्चय किया गया.

गांधी ने जनवरी, 1922 के सर्वदलीय सम्मेलन के अनुरोध पर एक माह के लिए आंदोलन स्थगित करवा दिया, परंतु जब सरकारी दमन फिर भी नहीं रुका तब गांधी ने बारदोली में सामूहिक आंदोलन प्रारंभ करने का निर्णय लिया, परंतु बारदोली का आंदोलन आरंभ होने के पूर्व उत्तर प्रदेश के चोरी चोरा नामक स्थान पर एक ऐसी घटना हो गई जिसने स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को एक नया मोड़ दे दिया.

5 फरवरी, 1922 को उत्तर प्रदेश (संयुक्त प्रांत) के गोरखपुर जिले के एक छोटे से कस्बे चोरी चोरा में सत्याग्रहियों का एक जत्था अपराहन में आयोजित होने वाली एक जनसभा में भाग लेने के लिए सभा स्थल की तरफ जा रहा था, जहां सायंकाल तक एक राष्ट्रीय नेता के आने की सूचना थी. सत्याग्रही अत्यंत उत्साहित थे. स्वयंसेवक खादी की बनी टोपियां खरीद और बेच रहे थे. इस जत्थे और पुलिस वालों में थाने के सिपाहियों द्वारा गाली देने पर झगड़ा हो गया. सिपाहियों ने इस जाति के सत्याग्रहियों को मारना शुरू कर दिया इसकी सूचना मिलते ही एक एकत्रित लोगों की क्रोधित भीड़ ने सिपाहियों को घेर लिया. सिपाहियों ने तत्काल गोली चलानी प्रारंभ कर दी, गांधी जी के शब्दों मे उनके ( पुलिस) पास थोड़े से कारतूस थे, वे चूक गए तब वे सुरक्षा के लिए थाने में घुस गए भीड़ ने तब मेरे सम्वादप्रेषक सूचना के अनुसार थाने में आग लगा दी. थाने के अंदर बंद सिपाहियों को तब अपनी जान बचाने के लिए बाहर आना पड़ा और तब उनके टुकड़े टुकड़े कर दिए गए और उनकी लाश को लोथोड़ा को आग में झोंक दिया,

इन सिपाहियों की कुल संख्या 22 थी. गांधी को इस दुर्घटना में अत्यंत आहात कर दिया. इस घटना को उन्होंने अपने सिद्धांतों तथा कार्यक्रमों के विपरीत बताया तथा 12 फरवरी को बारदोली में कांग्रेस को बैठक बुलाकर तत्काल आंदोलन को समाप्त कर देने की घोषणा कर दी. गांधी के इस निर्णय से चितरंजन दास, लाला लाजपत राय, मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस आदि सभी हक्के बक्के रह गए. अपने सिद्धांती की रक्षा के लिए इतना बड़ा त्याग करने का साहस निश्चय ही मात्र गांधी में था. इस अवसर पर लाभ उठाकर गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया. उनके ऊपर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया तथा 6 वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया.

स्वराजवादी

आंदोलन के प्रारंभ से ही गांधी के साथ जोड़ने पर गांधी की अहिंसा और सत्याग्रह में पूर्ण आस्था रखने वाले भी मजबूर हो गए थे, परंतु बांध की गिरफ्तारी तथा आंदोलन की वापसी के बाद सन 1922 में इस वर्ग ने गाया कांग्रेस अधिवेशन के विधान परिषद में प्रवेश का प्रस्ताव रखा. यह प्रस्ताव असहयोग के घोषित कार्यक्रम के विपरीत था. चितरंजन दास तथा मोतीलाल नेहरू, के नेतृत्व में यह दलील थी कि आंदोलन के वापस हो जाने के बाद आंदोलन के कार्यक्रम भी समाप्त हो गए हैं. अब यह वर्ग विधान परिषदों में पुन: प्रवेश कर अंदर से संघर्ष जारी रखने की नीति अपनाना चाहता है. इसके विपरीत दूसरा वर्ग आंदोलन के किसी कार्यक्रम में गांधी का अनुपस्थिति में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहता था.

इस प्रकार गया कांग्रेसी परिवर्तन वादियों और परिवर्तन विरोधियों नामक दो भागों में विभाजित हो गया. राजगोपालचारी तथा राजेंद्र प्रसाद आदि परिवर्तन विरोधियों का नेतृत्व कर रहे थे. चितरंजन दास का प्रस्ताव 860 के विरुद्ध 1740 मतों से गिर गया. चितरंजन दास ने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया तथा मोतीलाल नेहरू, विट्ठलभाई पटेल, मदन मोहन मालवीय और जयकर को लेकर कांग्रेस के अंदर ही सन 1923 में इलाहाबाद में एक अन्य दल स्वराज पार्टी की स्थापना कर दी.

सन 1993 में इस दल के चुनाव में हिस्सा लिया तथा प्रांत में बहुमत प्राप्त किया. बंगाल में भी इसे दूसरा स्थान मिला, परंतु संयुक्त प्रांत तथा बंगाल में इसे स्पष्ट बहुमत नहीं मिल सका. उन्होंने केंद्रीय विधान परिषद में 101 जगहों में से 42 जगह प्राप्त कर ली. राज्यों ने सरकार के समक्ष मांग रखी की सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया जाए, क्रूर कानूनों को निरस्त कर दिया जाए तथा प्रांतों को स्वायत्तता प्रदान कर परिषदों द्वारा सरकार चलाई जाए, जिसके लिए इन्होंने गोलमेज सभा आयोजित करने की मांग रखी थी.

गांधी जी के स्वास्थ्य के आधार पर फरवरी में जेल से रिहा कर दिया गया. उन्होंने जेल से छूटने के बाद स्वराज वादियो के चुनाव लड़ने के निर्णय को अपना समर्थन दे दिया. परिवर्तन विरोधियों के अनुसार समाजवादियों के समक्ष यह गांधी का आत्मसमर्पण था. मोतीलाल नेहरु 16 जून, 1925 को चंद्र दास की मृत्यु के बाद समाजवादियों के एकमात्र नेता बन गए, परंतु मदन मोहन मालवीय जी से उत्पन्न उनके मतभेद से विभाजित कर दिया. जयकर और लाला लाजपत राय के साथ मिलकर नेशनलिस्ट पार्टी, के नाम से एक नई पार्टी बना ली. इस संयुक्त प्रांत में सन 1926 के चुनाव में 3 सीटें प्राप्त हुई और स्वराजवादी पूरी तरह टूट गए.

Recent Posts

अपने डॉक्यूमेंट किससे Attest करवाए – List of Gazetted Officer

आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएँगे की अपने डॉक्यूमेंट किससे Attest करवाए - List…

23 hours ago

CGPSC SSE 09 Feb 2020 Paper – 2 Solved Question Paper

निर्देश : (प्र. 1-3) नीचे दिए गये प्रश्नों में, दो कथन S1 व S2 तथा…

6 months ago

CGPSC SSE 09 Feb 2020 Solved Question Paper

1. रतनपुर के कलचुरिशासक पृथ्वी देव प्रथम के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन सा…

6 months ago

Haryana Group D Important Question Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको Haryana Group D Important Question Hindi के बारे में…

6 months ago

HSSC Group D Allocation List – HSSC Group D Result Posting List

अगर आपका selection HSSC group D में हुआ है और आपको कौन सा पद और…

6 months ago

HSSC Group D Syllabus & Exam Pattern – Haryana Group D

आज इस आर्टिकल में हम आपको HSSC Group D Syllabus & Exam Pattern - Haryana…

6 months ago