सूक्ष्म जीव- जैसे- विषाणु, जीवाणु, माइकोप्लाज्मा, इत्यादि का अध्यन सूक्ष्मजीव विज्ञान के अंतर्गत किया जाता है.
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विषाणु की खोज वर्ष 1882 ईस्वी में रूसी वैज्ञानिक इवानोसकी ने, तंबाकू की पत्ती में मोजेक रोग के कारण को खोजने के दौरान की, यह अति सूक्ष्म, परजीवी, अकोशिकीय एवं विशेष न्यूक्लियो प्रोटीन कण है. इनके अंदर सजीव व निर्जीव दोनों लक्षण पाए जाते हैं.
ऐसा विषाणु है, जो केवल जीवाणुओं के ऊपर ही आश्रित रहता है. यह गुण की विधि द्वारा प्रजनन करते हैं. विषाणु सामान्यतया प्रोटीन से घिरे न्यूक्लिक अम्ल होते हैं.
यह हरितलवक रहित एककोशिकीय अथवा बहुकोशिकीय, प्रोकैरियोटिक सूक्ष्म जीव है, जो वास्तव में पौधे नहीं होते, क्योंकि इनकी कोशिका भित्ति का संगठन पौधों से भिन्न होता है. कुछ जीवाणुओं प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में भाग लेते हैं, परंतु इनमें उपस्थित हरित लवक, पौधों में उपस्थित हरितलवक से पूर्णतया अलग होता है. इनमें जनन विखंडन प्रक्रिया द्वारा होता है. इनकी वृद्धि को वृद्धमापी द्वारा मापा जा सकता है.
जीवाणुओं के बहुत से लाभ हैं, जैसे- भूमि की उर्वरता में वृद्धि करते हैं साथ ही दूध से दही का, सिरके का, प्रतिजैविके औषधियों का निर्माण जीवाणुओं के माध्यम से ही होता है. माइकोप्लाज्मा सूक्ष्मतम एक कोशिकीय है, बहुरूपी, प्रोकैरियोटिक जीव है. जिनमें DNA तथा RNA होते हैं.
रॉबर्ट कोच- ने कोलेरा (हैजा) एवं तपेदिक के जीवाणुओं की खोज की तथा रोग के जन्म सिद्धांत को बताया. एडवर्ड जेनर ने चेचक के प्रति टीकाकरण की खोज की एजोटोबैक्टर, एजोस्पाइरिल्म आदि को जीवाणु स्वतंत्र रूप से निवास करते हुए नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं.
रोग | जीवाणु | प्रभावित अंग |
निमोनिया | डिप्लोकोकस न्यूमोनी | फेफड़े |
टिटेनस | क्लोस्ट्रीडियम टिटेनी | तंत्रिका तंत्र तथा मांसपेशियां |
मियादी बुखार ( टाइफाइड) | साल्मोनेला टाइप | आज का रोग |
कुष्ठ रोग | माइकोबैक्टीरियम ले फ्री | तथा तथा तंत्रिकाएं |
भेजा | वीबरियो कोलोरी | आत्या आहार नाल |
डिप्थीरिया | कोरिनोबैक्टीरियम | श्वास नली |
काली खांसी | बेसिलस परट्यूसिस | श्वसन तंत्र |
सिफिलिस | ट्रेपोनेमा पेलीडम | जनन अंग, मध्य एवं तंत्रिका तंत्र |
प्लेग | पार्टयुरेला पेस्टिस | फेफड़े एवं लाल रुधिर कणिकाएं |
मेनिनजाइटिस | निशेरिया मेनिनजाइटिस | मस्ती के ऊपर की विधियां एवं मस्ती के |
रोग | प्रभावित अंग | रोग | प्रभावित अंग |
स्वाइन फ्लू | संपूर्ण शरीर | चिकनगुनिया | मांसपेशियों एवं शरीर के जोड़ों में दर्द |
गलसुआ | पैरोटिड लार ग्रंथियां | खसरा | संपूर्ण शरीर |
डेंगू | मांसपेशी एवं जोड़ | चेचक | संपूर्ण शरीर विशेषकर चेहरा तथा हाथ पांव |
फ्लू या इन्फ्लूएंजा | श्वसन तंत्र | पोलियो | तंत्रिका तंत्र कार्ड के मोटर तंत्रिका की क्षति |
रेबीज या हाइड्रोफोबिया | तंत्रिका तंत्र | हर्पिस | तत्व एवं श्लेष्मकला |
रोग | कवक | प्रभावित अंग |
दमा | अलटरेनेरिया एवं एस्प्र्जील्स | फेफड़े |
दाद | ट्राईकोफाइटोन | त्वचा |
पदार्थ | जीवाणु |
बटर मिलक | लैक्टोबैसिलस बुल्गारिकस |
योगहर्ट | लैक्टोबैसिलस, वल्गेरिस था स्ट्रेप्टोकोकस |
दही | स्ट्रेप्टोकोकस लैक्टिक तथा लैक्टोबैसिलस |
ऐसे जीव, जो जटिल पदार्थों को सरलतम अकार्बनिक पदार्थ में परिवर्तित कर देते हैं.
टिकाकरण एक विधि है, जिसके द्वारा व्यक्ति में रोग को फैलने से रोकने के लिए निष्क्रिय किए गए अथवा कमजोर कर दिए गए रोगाणुओं या तैयार किए गए विशाक्त उत्पादों को व्यक्ति के शरीर में सुई द्वारा अथवा मुहँ द्वारा प्रवेश कराया जाता है, ताकि ग्राही व्यक्ति में संबंधित रोग के रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता उत्पन्न हो सके.
अनेक रोगों के विरुद्ध प्रतिरक्षीयों के उत्पन्न करने के लिए प्रतिजन को कमजोर करके या मारकर उसे शरीर के अंदर अंत: क्षेपित कर देते हैं. इस प्रतिजन से प्रतिरक्षी तंत्र प्रेरित होकर समृति कोशिकाएं बना लेता है, जो कि अगली बार इसी रोगाणु द्वारा आक्रमण होने पर तुरंत मार्ग कोशिकाओं को जन्म देती है. ऐसे कमजोर प्रतिजन को टीका कहते हैं.
निर्देश : (प्र. 1-3) नीचे दिए गये प्रश्नों में, दो कथन S1 व S2 तथा…
1. रतनपुर के कलचुरिशासक पृथ्वी देव प्रथम के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन सा…
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