आज इस आर्टिकल में हम आपको स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार के विद्यार्थियों का योगदान के बारे में बताने जा रहे है.
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स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार के विद्यार्थियों का योगदान
भारतीय स्वतंत्र आंदोलन के दिनों में बिहार के शैक्षिक संस्थाओं में भी सफलता के विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए युवा शक्ति को संगठित किया. शिक्षकों के सहयोग से बिहार के छात्रों ने आंदोलन के रास्ते पर कदम बढ़ाया. अंग्रेजों ने हालांकि शिक्षण संस्थाओं और छात्रों पर नए-नए कठोर नियम बनाकर आंदोलन और विद्रोह को दबाने का प्रयास किया.
दरभंगा में 1901 में एक फूस के घर में सरस्वती अकादमी की स्थापना हुई. अकादमी (स्कूल) देशप्रेम की शिक्षा का केंद्र था. कमलेश्वरी चरण सिन्हा, ब्रज किशोर प्रसाद, हरनंदन दास, सतीश चंद्र चक्रवर्ती आकादमी से जुड़े थे. 1906 में श्रीकृष्ण सिंह और श्री तेजस्वी प्रसाद ने बिहार स्टूडेंट कॉन्फ्रेंस की स्थापना की. यह दोनों सुरेंद्रनाथ बनर्जी से प्रभावित थे.
राजेंद्र प्रसाद कोलकाता से अपने अध्ययन काल में ही स्वतंत्रता प्रेमियों के संपर्क में आए. इसी उद्देश्य से कोलकाता में सर्वेंट ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना हुई. मुजफ्फरपुर में बाबू रामदयालु सिंह और मुंगेर का कृष्णा प्रसाद, कानून का छात्र था, इस सोसाइटी से प्रभावित थे.
चंपारण दौरे के समय गांधी जी द्वारा 1917 में चंपारण के बडहरवा लखनसेन नामक गांव में एक स्कूल स्थापित किया. गांव की शिव गुलाम लाल नामक एक उदार व्यक्ति ने स्कूल के लिए अपना घर दान कर दिया था. 1919 में चंपारण में गांधी स्कूल के प्रधानाध्यापक के नेतृत्व में हड़ताल हुई.
अंग्रेजों की दमन नीति के विरोध 6 अप्रैल, 1919 को पटना सिटी के किला मैदान में राजेंद्र प्रसाद, मजहरुल हक आदि के नेतृत्व में एक विशाल सभा हुई, जिसमें पटना के अधिकांश छात्र उपस्थित थे. पटना लॉ कॉलेज के छात्र सैयद मोहम्मद शेर और बी एन कॉलेज के छात्र अब्दुल बारी ने अक्टूबर 1920 में कॉलेज छोड़ दिया और घूम-घूमकर जनता को जागृत करने लगा.
1920 ई. के अंत तक पटना में विभिन्न कॉलेजों एवं स्कूलों के छात्र अपनी पढ़ाई छोड़ चुके थे. कुछ छात्रों के लिए पटना के सदाकत आश्रम में रहने की व्यवस्था की गई. मुजफ्फरपुर के भूमिहार ब्राह्मण कॉलेजिएट स्कूल के छात्र भी काफी उद्धेलित थे. गांधीजी ने छात्रों से स्कूलों एवं कॉलेजों के छोड़ने और आजादी की लड़ाई में भाग लेने की अपील की.
टी.एन जे कॉलेज, भागलपुर के 40 छात्रों ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया. दरभंगा के नार्थ बुक्र जिला स्कूल, मधुबनी के वाटसन स्कूल, हाजीपुर हाई स्कूल तथा बगहा मिडिल स्कूल आदि शैक्षणिक संस्थाओं पर असहयोग का प्रबल प्रभाव था. राजेंद्र बाबू ने पटना विश्वविद्यालय के सिनेट एवं सिडीकेट कि सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया.
मुजफ्फरपुर के बी.बी. कॉलेजिएट स्कूल, दरभंगा के सरस्वती अकैडमी, छपरा के कॉलेजिएट स्कूल तथा गया के एक स्कूल को राष्ट्रीय विद्यालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया और इसका संचालन विशुद्ध रूप से राष्ट्रीय ढंग से किया गया. बिहार स्टूडेंट्स कॉन्फ्रेंस का 16वां अधिवेशन अक्टूबर 1921 को हजारीबाग में हुआ. इस अधिवेशन की अध्यक्षता श्रीमती सरला देवी ने की.
1928 में मोतिहारी में बिहारी छात्र सम्मेलन का आयोजन बिहार युवक संघ के प्रो ज्ञान सहाय के नेतृत्व में हुई. ब्रिटिश सरकार प्रोग्राम साहब को अतिवादी विचारधारा का क्रांतिकारी समझती थी. छात्रों के निमंत्रण पर 1929 में सरदार पटेल भागलपुर आए. 1930 में नालंदा कॉलेज के छात्रों के प्रयास से बिहार शरीफ में युवक संघ की एक शाखा की स्थापना हुई.
सन 1931 में आरा में बिहारी छात्रों का 24वां सम्मेलन हुआ, जिसमें ग्रामीणों का सहयोग प्राप्त करने के लिए कार्य करने का निश्चय किया. 1940 में बिहार के कई स्थानों पर विद्यार्थियों ने स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाग लिया. स्वतंत्रता दिवस मनाने के कारण कई कॉलेजों के छात्र कठोर रूप से दंडित किए गए.
मुंगेर के अली अशरफ तथा सुनील मुखर्जी जैसे कम्युनिस्ट छात्र नेता कैद कर लिए गए. जयप्रकाश नारायण की गिरफ्तारी के विरोध में 14 मार्च, 1940 को सारे प्रांत में जयप्रकाश दिवस मनाया गया. लगातार जारी विरोध, प्रदर्शन, आंदोलन के कारण 22 अप्रैल 1946 को उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया. अप्रैल 1940 में दरभंगा में छात्र सम्मेलन का आयोजन हुआ.
16 नवंबर, 1940 को छात्र संघ के तत्वाधान में पटना, मुजफ्फरपुर दरभंगा में छात्रों द्वारा दमन विरोधी दिवस मनाया गया. अगस्त 1941 में बिहार प्रांतीय सम्मेलन में सर्वपल्ली राधाकृष्ण उद्घाटन भाषण दिया. 1942 के अगस्त क्रांति के समय राजेंद्र प्रसाद की गिरफ्तारी की सूचना मिलते ही बीएन कॉलेज के छात्रों ने जुलूस निकाला तथा इंजीनियरिंग कॉलेज, पटना रनिंग कॉलेज, साइंस कॉलेज आदि संस्थानों के भवनों एवं छात्रावास के ऊपर झंडे लहराए गए.
छात्रों ने बिहार केंद्रीय छात्र परिषद नामक एक एक गुप्त संगठन भी बनाया. सरकार के अनेक कठोर कार्रवाई के पश्चात भी छात्रों का आंदोलन समाप्त नहीं हुआ. 1942-43 के पश्चात बिहार के कई छात्र राष्ट्रीय स्तर के नेता के रूप में संपूर्ण भारतवर्ष में लोकप्रिय हो गए.