पृथ्वी के चारों ओर स्थित विशाल अंतरिक्ष को विश्व कहा जाता है। विश्व में तारे, ग्रह, उपग्रह तथा अन्य खगोलीय पिंड सम्मिलित होते हैं। किसी को पता नहीं कि हमारा विश्व कितना विशाल है और इसकी क्या सीमा है। पृथ्वी ग्रह, जिस पर हम रहते हैं, विश्व में एक अत्यंत सूक्ष्म कणों के समान है। इसी प्रकाश सूर्य, जो पृथ्वी पर समस्त जीवन को बनाए रखने वाला है, विश्व में उपस्थित असंख्य तारों में से एक है।
चंद्रमा के चमकदार भाग की आकृति प्रतिदिन परावर्तित प्रतीत होती है। इसलिए इसके आकार में निरंतर परिवर्तन आता रहता है। पूर्णिमा वाले दिन चंद्रमा पूरा दिखाई देता है। इसके अगले दिनों में इसके चमकदार बात किया करती निरंतर घटती प्रतीत होती है तथा अमावश्य वाले दिन चंद्रमा बिल्कुल दिखाई नहीं देता। इसके अगले दिनों में चंद्रमा का चमकदार भाग निरंतर बढ़ता रहता है और हम दोबारा पूर्ण चंद्रमा की आकृति देख सकते हैं। इन्हें चंद्रमा की कलाए कहा जाता है।
चंद्रमा का अपना प्रकाश नहीं होता है बल्कि अपने पर पड़ने वाले सूर्य के प्रकाश को हमारी और परावर्तित कर देता है। इसलिए हम चंद्रमा को उसी भाग को देख पाते हैं जिस भाग से सूर्य का परावर्तित प्रकाश शाम तक पहुंचता है।
चंद्रमा पृथ्वी की अपनी एक परिक्रमा 27.3 दिन में पूरी करता है। परंतु इस समय में पृथ्वी अपनी कक्षा में थोड़ी आगे बढ़ जाती है। इसलिए पृथ्वी से देखने पर, किसी अमावस्या की रात से अगली अमावस्या की रात के बीच, चंद्रमा पृथ्वी के परित एक परिक्रमा करने में 291/2 दिन का समय लेता हुआ दिखाई पड़ता है। चांद्र कैलेंडर का निर्माण इसी आधार पर किया जाता है। :
तारे ऐसे खगोलीय पिंड है, दो लगातार प्रकाश एवं ऊष्मा उत्सर्जित करते हैं। यह पृथ्वी से बहुत दूर होने के कारण आकार में छोटे दिखाई देते हैं। सूर्य एक मध्यम वर्ग का तारा है। दिन के समय आकाश में सूर्य प्रकाश की धमक के कारण हमें तारे दिखाई नहीं देते। तारों का प्रमुख अभिलक्षण यह है कि पृथ्वी से देखने पर यह टिमटिमाते हुए दिखाई पड़ते हैं। रात्रि के आकाश में विशेषकर वर्षा ऋतु के बाद साफ आकाश में हम नंगी आंखों से लगभग 3000 तारों को देख सकते हैं।
प्रकाश द्वारा 1 वर्ष में तय की गई दूरी को प्रकाश वर्ष कहते हैं। एक प्रकाश वर्ष लगभग 9.4 X 1012 किलोमीटर के बराबर होता है।
प्रकाश वर्ष तारों के बीच की दूरी को मापने का मात्रक है। सूर्य के बाद पृथ्वी सबसे निकट स्थित है तारा एल्फा सेटारी 4.3 प्रकाश वर्ष दूर है। दूरी को मापने का एक और मात्रक पारसेक है।
आकाशीय पिंड पूर्व से पश्चिम की ओर गति करते दिखाई देते हैं क्योंकि पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है जबकि हमेशा देखता है कि पृथ्वी स्थिर है। यही कारण है कि विभिन्न आकाशीय पिंड पूर्व से पश्चिम की ओर गति करते दिखाई देते हैं। पृथ्वी अपने अक्ष पर 24 घंटे में एक चक्कर पूरा करती है।
आकाश का सबसे अधिक चमकीला तारा सीरियस (लुब्धक) ओरॉयन तारामंडल के समीप दिखाई देता है। ओरायन के मध्य 3 तारों में से गुजरने वाली रेखा के अनुदिश पूर्व दिशा में एक चमकीला तारा पाया जाता है। यही सिरियस तारा है।
यह सर्दियों में रात्रि के प्रथम पहर में दिखाई देता है। इस की आकृति W या M के बिगड़े रूप जैसी होती है।
सूर्य अपना परिवार है जिसे सूर्य परिवार या सौरमंडल कहा जाता है। सूर्य परिवार में सूर्य, 8 ग्रह ,उपग्रह, ग्र्हीकाएँ, धूमकेतु, उल्का तथा उल्का पिंड सम्मिलित है।
सूर्य का उर्जा स्त्रोत नाभिकीय सलयन (न्यूक्लियस संलियन) अभिक्रिया है क्योंकि सूर्य के आंतरिक भाग में उपस्थित है हाइड्रोजन संयमित होकर विलियम में परावर्तित होती रहती है। इस अभिक्रिया के दौरान अपार मात्रा में ऊर्जा निकलती है।
सूर्य के चारों ओर निश्चित कक्षों में चक्कर लगाने वाले आकाशीय पिंडों को ग्रह कहते हैं। सूर्य परिवार में आठ ग्रह हैं। इनके नाम निम्नलिखित है-
बुध (मरकरी), शुक्र (वीनस), पृथ्वी (अर्थ), मंगल (मार्स), बृहस्पति (जूपिटर), सनी (सैटरन), यूरेनस, नेप्टयुन।
तारे | ग्रह |
तारे हाइड्रोजन गैस तथा कुछ हीलियम गैस के बने होते हैं। | गृह चट्टानों से धातुओं के बने होते हैं। |
तारों का अपना प्रकाश होता है। | ग्रहों का अपना प्रकाश नहीं होता। यह सूर्य के परावर्तित प्रकाश से चमकते हैं। |
तारे यह असंख्य है। | ग्रह केवल 8 है। |
सन 2006 तक सौर परिवार में नौ ग्रह थे। सन 2006 में अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ ने ग्रह की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए, प्लूटो की श्रेणी से बाहर कर दिया। अब सौर परिवार में नौ ग्रहों के स्थान पर आठ ग्रह ही है।
सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर अपनी अपनी कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं। कभी भी कोई ग्रह अपनी कक्षा को छोड़कर दूसरे ग्रह की कक्षा में नहीं जाता। इसलिए सूर्य की परिक्रमा करने वाले ग्रहों की तभी भी परस्पर टककर नहीं होती है।
सभी ग्रहों में शुक्र ग्रह चमकीला है। इसके चमकीले पेन का करण इसका घने बादलों से युक्त वायुमंडल है, जो अपने ऊपर पड़ने वाले सूर्य के प्रकाश के लगभग तीन चौथाई भाग को परावर्तित कर देता है।
पृथ्वी का विषुवत वृत्त का तल एक पृथ्वी का विषुवतीय तल कहलाता है जिस तल पर पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, पृथ्वी का कक्षीय तल कहलाता है। यह दोनों दल एक-दूसरे से 23.5 डिग्री के कोण पर झुकी है। अंतर पृथ्वी का अक्ष अपने कक्षा तल से 66.5 के कोण पर झुका है।
सूर्य के निकटतम पड़ोसी बुध और शुक्र है। इनके चारों ओर वायुमंडलीय आवरण इतना ही नहीं है, जो ऊष्मीय आवरण की भांति कार्य करता हो, परंतु यह दोनों ग्रह सूर्य के इतने निकट है कि दिन के समय सूर्य की ऊष्मा से बच ही नहीं सकते और अत्यधिक गर्म हो जाते हैं। सूर्यास्त के पश्चात यह अत्यधिक ठंडे हो जाते हैं। केवल पृथ्वी और मंगल ही ऐसे ग्रह है जिन पर वायुमंडलीय और और सूर्य की उनसे दूरी में सही संतुलन बना हुआ है। यही संतुलन इन दोनों ग्रहों पर दिन व रात के तापमान ओं में अत्यधिक परिवर्तन नहीं होने देता।
मंगल ग्रह की त्रिज्या पृथ्वी की त्रिज्या की आधे से कुछ अधिक है जबकि इसका द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान की तुलना में केवल 1/9 गुना है। मंगल ग्रह का वायुमंडल पृथ्वी की तुलना में विरल है अर्थात के वायुमंडल की मोटाई बहुत कम है। इसके अतिरिक्त पृथ्वी ग्रह पर जीवन का अस्तित्व है जबकि मंगल ग्रह जीवन पर जीवन का अस्तित्व नहीं है। पृथ्वी का केवल एक प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा है जबकि मंगल के दो प्राकृतिक उपग्रह फोबोंस तथा डिबोस है।
शुक्र ग्रह के वायुमंडल में लगभग 95% कार्बन डाइऑक्साइड गैस होती है जिसके कारण यह बहुत गर्म है क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड गैस पौधा घर प्रभाव पैदा करती है। इसलिए शुक्र ग्रह पर कोई जीवन संभव नहीं है।
बृहस्पति ग्रहों में सबसे विशाल है। इसका द्रव्यमान से सभी ग्रहों के सम्मिलित द्रव्यमान से भी अधिक है। सूर्य से बृहस्पति की दूरी दूरी से अधिक है, जो पहले चार ग्रहों की सूर्य से दूरी युवाओं को जोड़ने से प्राप्त होती है। अत:सूर्य से इस तक पहुंचने वाले प्रकाश और ऊष्मा की मात्रा पृथ्वी एवं मंगल की तुलना में बहुत कम होती है। फिर भी यह ग्रह शुक्र और कभी-कभी मंगल के अतिरिक्त से सभी ग्रहों की तुलना में बहुत अधिक चमकदार दिखाई देता है। बृहस्पति की यह चमक इसके घने वायुमंडल के कारण हैं, जो इसके ऊपर पड़ने वाले अधिकांश प्रकाश को परावर्तित कर देता है। बृहस्पति मुख्य थे हाइड्रोजन एवं हीलियम गैसों से बना है। इसके बाद लोगों जैसी बाहरी भाग में, मेथेन गैस के रूप में जबकि अमोनिया क्रिस्टलीय ठोस कणों के रूप में विद्यमान है। सन 2002 तक बृहस्पति के 28 प्राकृतिक उपग्रह थे। इसके चारों और धुंधले से वलय भी दिखाई पड़ते हैं।
पत्थर तथा खनिज पदार्थों की बनी छोटी-छोटी ठोस वस्तु है जो मंगल ग्रह वह बृहस्पति ग्रह के पथ के मध्य में घूमती रहती है, उन्हें क्षुद्रग्रह या ग्र्हीकाएँ कहा जाता है। यह पदार्थ के टुकड़े हैं जो आपस में मिलकर ग्रह नहीं बना सके। यह सूर्य के इर्द गिर्द ऐसे कक्षों (आर्बिटो) में घूमते हैं जो काफी दूर तक फैले हुए हैं तथा एक पट्टी बनाते हैं। इन्हें दूरदर्शी की सहायता से देखा जा सकता है। इनका कार कुछ मित्रों से लेकर कुछ से 100 किलोमीटर तक होता है।
यह सौर परिवार के बराहत्म ग्रह है जिन्हें दूरदर्शको की सहायता से देखा जा सकता है। यूरेनस शुक्र की भांति पूर्व से पश्चिम दिशा में घूर्णन करता है। इसका घूर्णन अक्ष का झुकाव इसकी विलक्षणता है। यह अपनी कक्षीय गति पर लुढकता सा प्रतीत होता है। नेप्टयुन के चारों और वलय निकाय है। दोनों ग्रहों के काफी संख्या में उपग्रह भी पाए जाते हैं।
तारा | टूटता तारा |
यह प्रायः हाइड्रोजन तथा हीलियम गैसों के बने होते हैं। | यह प्राय खनिज के बने होते हैं। |
इनका अपना प्रकाश होता है। | इनका अपना प्रकाश नहीं होता है। |
तारे स्थिर होते है। | यह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। |
यह टिमटिमाते दिखाई देते हैं। | यह क्षण भर के लिए रात की रोशनी की धारा के रूप में दिखाई देते हैं। |
धूमकेतु बहुत छोटे हम आमाप के खगोलीय पिंड है जो अत्यधिक दृग वृत्तीय कक्षाओं में सूर्य की परिक्रमा करते हैं। वे पृथ्वी से सूर्य के बहुत निकट आ जाने पर दिखाई पड़ते हैं। इनके विशेष अभिलक्षण हैं- एक छोटा चमकदार शीर्ष उसके पीछे एक लंबी पुंछ। जैसे -जैसे कोई धूमकेतु सूर्य के निकट है पहुंचता है इसकी पूंछ की लंबाई बढ़ती जाती है और फिर फिर सूर्य से दूर होते समय इसकी पूंछ की लंबाई घटती जाती है और अंत में अदृश्य हो जाती है। धूमकेतु की पूंछ सदैव सूर्य से विपरीत दिशा में होती है। कुछ धूमकेतुओं के बारे में हम जानते हैं कि वे एक निश्चित समयवधि के बाद बार-बार प्रकट होते रहते हैं। हैलेका धूमकेतु एक ऐसा ही धूमकेतु है जो लगभग 76 वर्ष के बाद प्रकट होता है। अंतिम बार हैलेका धूमकेतु सन 1986 में दिखाई दिया था।
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