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उत्तराखंड प्रसिद्ध नगर, धार्मिक और पर्यटक स्थल

उत्तराखंड प्राकृतिक सौंदर्य का भंडार है। उत्तराखंड पर्यटकों को हिमालय नैसर्गिक दृश्य व सुंदरता हेतु धनी पर्यटक स्थलों को दर्शान करता है।  उत्तराखंड को उसकी भाषा एवं रीति रिवाज के आधार पर पुराणों ने दो खंडों में बांटा है- केदारखंड (गढ़वाल), मानसखंड (कुमाऊ)। कुमाऊं मंडल में जहां नैनीताल, अल्मोड़ा, रानीखेत, पिथौरागढ़, मुक्तेश्वर, मिलस, कार्बेट नेशनल पार्क, भीमताल, द्वाराहाट, बागेश्वर, बैजनाथ,  पिंडारी ग्लेशियर, चितई मंदिर ( न्याय देवता), पाताल भुवनेश्वर, दूनागिरी चंपावत, विनसर जागेश्वर, कौसानी आदि है। वहीं गढ़वाल मंडल में औली, रुपकुंड यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ , ग्वालदम, पौड़ी, श्रीनगर,  गंगोत्री, लैंसडाउन, चकराता, तपोवन, मसूरी, हेमकुंड आदि रमणीक स्थल अपनी रेशमी डोर से पर्यटकों को बांध देता है।

हिमालय की उपत्यका में स्थिति कुमाऊं गढ़वाल या कहे उत्तराखंड ग्रीष्म ऋतु का स्वर्ग है जहां प्रतिवर्ष हजारों पर्यटक स्वास्थ्य लाभ तथा प्रकृति की लीला को देखने आते हैं। प्राचीन भारत में पर्यटन के रूप में मान्यता प्राप्त थी। पर्यटन के महत्व को दृष्टि में रखते हुए तत्कालीन समाज में पर्यटन को तीर्थ यात्रा के रूप में सांस्कृतिक स्वरुप प्रदान किया था। आज पर्यटन का रुप बदल चुका है। आधुनिक पर्यटन का आरंभ काल यूरोप में 200 वर्ष से माना जाता है और गत महायुद्ध (1939) के बाद इसका विकास हुआ। यूरोप में सर्वप्रथम 1952 में पर्यटन आयोग की स्थापना हुई थी जिसमें यूरोप के 16 राष्ट्र सम्मिलित थे। आज पर्यटन को उद्योग का स्थान प्राप्त है। भारत में सर्वप्रथम यातायात मंत्रालय के अधीन पर्यटन केंद्रों की स्थापना की गई और पर्यटन को अलग मंत्रालय बनाया है।

उत्तराखंड में पर्यटक नैनीताल, बद्रीनाथ ही जाते हैं, जो राजनीतिक व धार्मिक कारणों से प्रसिद्धि पा चुके हैं, जबकि उत्तराखंड में कई स्थल ऐसे हैं, जो इनसे भी अधिक रमणीक है। कौसानी, मसूरी, बद्रीनाथ, रानीखेत के सामने गंभीर एवं अंचल हिमालय बोलता ही प्रतीत होता है जिसके श्वेत शिखरों पर खेलती सूरज की किरणें, चहचाहते पक्षी एवं घने काले मंडराते बादल, शांत एवं विस्तृत झीले, मोहक पुष्पों की सौगंध, शांत एवं एकांत वातावरण ऐसा प्रतीत होने लगता है कि वास्तव में यही स्वर्ग है। अधिकांश स्थल पैदल यात्रा के है जिससे यात्रियों को पर्यटन में कठिनाई होती है। पर्यटकों की सुविधा के लिए सरकार ने नैनीताल, अल्मोड़ा, रानीखेत, रामनगर, देहरादून, मसूरी, श्रीनगर आदि स्थानों में पर्यटन कार्यालय खोले हैं जहां से यात्रियों को उचित सलाह और दर्शनीय स्थलों की जानकारी मिल सकती है।

उत्तराखंड में पर्यटन की व्यवस्था कुमाऊं मंडल विकास निगम व गढ़वाल मंडल विकास निगम द्वारा संचालित होती है। कुमाऊं मंडल विकास निगम द्वारा कुमाऊं में 33 स्थानों पर पर्यटक आवास गृह संचालित हो रहे हैं। उत्तराखंड में पर्यटन के दो पक्ष है- एक पक्ष में ग्रीष्म की गर्मी से सुरक्षा हेतु पहाड़ियों में शीतल जलवायु एक आनंद लेने तथा दूसरे पक्ष में विभिन्न स्थानों में घूमकर प्रकृति के मनोरम दृश्यों का आनंद लिया जा सकता है। उत्तराखंड में घूमने के लिए मार्च से अक्टूबर का समय उचित है। सितंबर मास पर्यटन के लिए सर्वश्रेष्ठ है। प्राकृतिक दृश्यों का स्वस्थ रूप इसी समय देखने को मिलता है। उत्तराखंड अपने प्राकृतिक सौंदर्य, शीतलता, शांत वातावरण व हृदय प्रसन्नचित, सुख व स्वास्थ्यवर्धक जलवायु के लिए ही नहीं, अपितु प्राकृतिक, ऐतिहासिक तथा प्राकृतिक आश्चर्य के लिए भी प्रसिद्ध है।

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पाताल भुवनेश्वर

पिथौरागढ़ में पाताल भुवनेश्वर की गुफाएं प्रसिद्ध है। ये गुफाएं स्वत: प्राकृतिक रूप से निर्मित, कलापूर्ण, अभेद्य व अगम्य है। कहां इस गुफा का अंत होगा, कहा नहीं जा सकता है, कुछ तो पृथ्वी के गर्भ में सुरंग की तरह न जाने कहां गई है? पाताल भुनेश्वर में शिव मंदिर प्रसिद्ध है, इसकी अंधकारपूर्ण एवं गहन गुफा में प्रवेश का प्रयास स्थानीय में विदेशी पर्यटकों ने भी किया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल सकी। गुफा में जाने के लिए 82 सीढ़ी बनी है। अंदर विशाल मंच पर कलयुग, सतयुग, द्वापर तथा त्रेतायुग के दरवाजे हैं। साथ में कलयुग के दो पत्थर है। कहावत है कि इनके आपस में मिलने से कलयुग का अंत हो जाएगा।

आगे बढ़ने पर कामधेनु गाय का थन है जिससे दूध की धारा निकलती है तथा जमीन पर पहुंचते ही पानी बन जाती है। कुंड शिवजी की विशाल जटाएं हैं जिनमें भागीरथी बहकर आती है। आगे चलने पर कुछ बाहर से लाई गई मूर्तियां हैं जो 12वीं शताब्दी की है। इस स्थान से ऊपर जाने का रास्ता है। इसमें आगे का खंड गोपनीय है।
भू-वैज्ञानिक कहते है कि गुफाएं लाइमस्टोन तथा डोलोमाइट के पत्थरों की है, जोकि पानी के रिसाव से अंदर ही अंदर एक बहुत बड़ा छिद्र हो जाने से बनी है। इस रिसाव से गुफा की छत पर दीवारों में जमीन पर विचित्र आकृतियां बनी है। इस तरह की गुफाएं यूगोस्लाविया तथा इटली में भी पाई जाती है, लेकिन जो भी है। ये गुफाएं अपने आप में विचित्र आश्चर्य है।

परमाणु युग में पाषण युद्ध : देवी धुरा

विशाल शिलाखंडों के मध्य प्राकृतिक रूप से निर्मित गुफा में स्थित मंदिर है। वाराही देवी जिसमें पर जाने के लिए एक संकरी गुफा से होकर जाना पड़ता है अत्यंत कठिनाई से झुककर पर आश्चर्य की बात है जब एक मोटे तगड़े भैंसा को बलि से पूर्व इसी गुफा से होकर गुजरना पड़ता है। वह बिना दीवारों को स्पर्श किए आराम से निकल जाता है। देवीधुरा में प्रतिवर्ष रक्षाबंधन के अवसर पर परमाणु युग में पाषाण युग के लिए विख्यात अटूट आस्था व विश्वास के प्रतीक लगभग 1 सप्ताह के लिए चलने वाले मेले का आयोजन किया जाता है।  श्रावण पूर्णिमा को यहाँ महर या फर्त्याल जाति के लोग एकत्र होकर एक दूसरे वर्ग पर पत्थर फेंकते हैं। इससे जो रक्त एक मनुष्य के बराबर बहता है वह बलिदान माना जाता है, तब मैदान में मैदान पत्थरो से अपने आप साफ हो जाता है। देवी की कृपा से आज तक इन पत्थरो की मार से ना कोई मरा है, न घायल हुआ है।

हरिद्वार

गंगा के किनारे स्थित यह भारत का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह दून घाटी का प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र है, क्योंकि यहां रेल मार्ग और स्थल मार्ग दोनों ही मिलते हैं।  यहां चाय, आलू और पत्थर का व्यापार अधिक होता है। गंगा के किनारे स्थित हर की पौढ़ी यहां का बहुत प्रसिद्ध स्थान है, जहाँ कुंभ के समय लाखों नर नारी पर्व स्नान के लिए आते हैं। यहां भारत हैवी इलेक्ट्रिकल से, लिमिटेड का गौरवशाली संस्थान तथा धार्मिक शिक्षा व साधु संतों का प्रमुख केंद्र है। यहाँ प्रति 12 वर्ष के बाद कुंभ के मेले का आयोजन किया जाता है।

बद्रीनाथ (चमोली जिला)

हरिद्वार से 384 किलोमीटर दूर हिमालय की गोद में स्थिति बद्रीनाथ देश के चार प्रमुख धामों में से एक है। महाभारत काल से पहले भी यह हिंदुओं का तीर्थ स्थान रहा है।  बाद में बौद्ध मत का प्रभाव यहां रहा। शंकराचार्य द्वारा हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना यहां की गई है। ऋषि गंगा एवं अलकनंदा नदियों के किनारे बसा यह पर्यटक स्थल नर और नारायण दो पर्वत श्रखलाओं के बीच में स्थित है। यहां के दर्शनीय स्थल में बद्रीनाथ का मंदिर, तृप्तकुंडा, नारद कुंड, पंचशिला, बह्रा कपाल, उर्वशी मंदिर, चरणपादुका, माता मूर्ति, गणेश गुफा, भीमपुल आदि प्रमुख है। यहां उत्तर का धाम हिमालय का नैसर्गिक एक दृश्य के दर्शन और आत्मा को शांति व स्वास्थ्य के लिए लाभकारी स्थान है।

केदारनाथ

रुद्रप्रयाग में गुप्तकाशी से आगे मुख्य सड़क से 14 किलोमीटर अंदर पहाड़ों की वादियों में स्थित है। कहा जाता है कि केदारनाथ का मंदिर पांडवों ने बनवाया था। पूरा केदार मंडल क्षेत्र (हरिद्वार से लेकर तिब्बत तक) महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान से बड़ा पड़ा है। यह मंदिर यात्रियों के लिए मई और अक्टूबर के बीच खुला रहता है।  लगभग 3,581 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पर्यटक स्थल पर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक स्थापित है जोकि मंदाकिनी घाटी के ऊपर भाग में स्थित है यहां पर नंदी बैल शंकराचार्य का समाधि स्थल, भैरव मंदिर, मधु गंगा, क्षीर गंगा, शिवकुंड, रुधिर कुंड के प्रमुख दर्शनीय स्थल है।

देहरादून

उत्तराखंड की राजधानी महत्वपूर्ण प्रतिष्ठित संस्थान यहां पर स्थित है- फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम, इंडियन मिलिट्री अकादमी, राष्ट्रीय अन्न केंद्र।

पिथौरागढ़

नेपाल तिब्बत सीमा से मिलती अंतर्राष्ट्रीय सीमा सुदूरस्थ नैना सैनी हवाई पट्टी नेपाल व तिब्बत से इसी शहर से व्यापार होता है।

हल्द्वानी

उभरता उद्योग नगर

  • धार्मिक केंद्र- केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, हरिद्वार, ऋषिकेश
  • पहाड़ी  केंद्र- नैनीताल, रानीखेत, मसूरी, अल्मोड़ा, लैंसडाउन, पौढ़ी , पिथौरागढ़, चंपावत, बागेश्वर।
  • नवीन केंद्र- भीमताल, कौसानी, डाक पत्थर (नैनीताल)।

नैनीताल

उत्तराखंड का सबसे प्रमुख और आकर्षक पर्यटन स्थल कुमाऊ की प्रवृत्ति नगरी नैनीताल को कहा जाता है।  इस स्थान की खोज सन 1841 को में शाहजहांपुर के एक अंग्रेज व्यापारी ने की थी। जिसका नाम बैरो था। बाद में अंग्रेजों ने ही इसे एक प्रमुख हिल स्टेशन का रूप दिया। सन 1949 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया। यह स्थान समुद्रतल से 1938 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। यहां पर एक झील है। यह झील सैलानियों के लिए आमोद प्रमोद का स्थान है। इसे सरोवर नगरी भी कहा जाता है।

अन्य आकर्षक स्थान

चायना पीक (जहां से चीन की विशालतम दीवार शक्तिशाली दूरबीन द्वारा देखी जा सकती है) स्नो व्यू। यहां नैना देवी मंदिर के दर्शनों के लिए भी यात्री आते हैं। हनुमानगढ़ी के निकट राज्य की ओर आँब्ज़रवेटरी है, जिसके द्वारा पृथ्वी के उपग्रह की परिक्रमा देखी जा सकती है। किलबरी के वन और टिफिन टॉप अन्य मनोरंजन के स्थान है। नैनीताल तक पहुंचने के लिए अंतिम रेलवे स्टेशन लालकुआं पर उतरकर बस द्वारा यात्रा करनी पड़ती है, जो रेलवे स्टेशन से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नगरी के पास ही कुछ अन्य सुंदर झीलें भी है- जैसे- नैनीताल, सातताल, और ,दमयंती ताल, नैनीताल के इर्द-गिर्द भ्रमण स्थल है, जिनके प्रमुख है – भुवाली ( तपेदिक का सेनेटोरियम), रामगढ़ (कुमाऊ के फलों के बागों का गढ़) नोकुचीया ताल और मुक्तेश्वर। मुक्तेश्वर में इंडियन वैटरनरी रिसर्च इंस्टिट्यूट है।

सुखा ताल

गोविंद बल्लभ पंतजी (उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री) की जन्मभूमि में सूखा ताल नामक रहस्यमय ताल है।  इस साल में आपको वर्षा ऋतु में एक बूंद भी जल नहीं मिलेगा, परंतु वर्षा के बाद यह ताल स्वयं अपने आप भर जाता है। एक महीने बाद पुनः जल सूख जाता है। बाद में उसके कृषि खेती करते हैं। पानी के आने जाने का कोई मार्ग नहीं है। पानी कहां से आता है और कैसे सूखता है? यह आश्चर्य है।

उत्तराखंड के ऐतिहासिक व प्राकृतिक आश्चर्य

  • पाताल भुवनेश्वर –  पिथौरागढ़
  • देवीधुरा का पाषण युद्ध – चंपावत
  • हाट कालिका – पिथौरागढ़
  • सूखा ताल – अल्मोड़ा
  • नल दमयंती ताल – नैनीताल
  • चितई मंदिर (परमोच्च न्यायालय) – अल्मोड़ा
  • नल दमयंती ताल

भीमताल से लगभग 5 किलोमीटर अंदर एक स्थान है जहां नल दमयंती जुआ हारने के बाद आए थे। यहीं पर कर्कोटक नाग का मंदिर है। कहते हैं इस ताल के पास मछली मारकर उन्होंने काटकर  चूल्हे पर रखा त्योंही वे उड़कर ताल में चली गई। आज भी इस साल में हजारों में मछलियां है। कोई तो 50 या 100 किलो वजन तक है। रंग बिरंगी मछलियां कोई कटे सिर की, कोई पूछ रहीत, कोई सिर व पूछ से रहित अनेक रूप की मछलियां इस साल में मौजूद है।

हेमकुंड साहिब

सिखों का यह पवित्र तीर्थ स्थल नदी के किनारे चारों ओर से उनके ऊंची-ऊंची  चट्टानों से घिरा है। सिख तीर्थयात्री प्रतिवर्ष अगस्त सितंबर महा में हेमकुंड साहिब के दर्शन के लिए तराई व पंजाब से यहां पहुंचते हैं। नदी किनारे का यह दृश्य अद्भुत वैभवशाली व रोमांचकारी है।

मसूरी

उत्तराखंड के पहाड़ी स्थानों में से सबसे अधिक मनोरंजक स्थान मसूरी है।  यह देहरादून रेलवे स्टेशन से 35 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। मसूरी को पर्वतों की रानी की संज्ञा दी जाती है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई लगभग 1,971 मीटर है। इसका इतिहास बड़ा रोचक है। सन 1811 में इसे एक यूरोपियन मेजर हीदरसे ने खरीदा था। सन 1812 में उसने इसे ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों बेच दिया। अंग्रेजों ने इस स्थान का उपयोग अपने सुख सुविधा स्वास्थ्यवर्धक मौसम एवं मनमोहक दृश्यों से आत्मा की शांति के लिए करते थे। यहां पर कंपनी बाग देखने योग्य है तथा लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान देहरादून से मसूरी के लिए नियमित बसे हैं। यहां सड़क के चक्करदार बनी है। इन मोड़ों पर गुजरने का अनुभव ही अलग है। हरिद्वार देहरादून रेलवे लाइन बिछ जाने के बाद इसका विकास लोकप्रिय पर्वतीय नगर के रूप में हुआ है।  गर्मियों में यहां की जलवायु आनंददायक होती है। यह प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त अनेक स्थान है- जैसे चकरौता, सहस्त्रधारा, केम्प्टी और मैसी जलप्रपात है, यहां से हिमालय की चोटियों बहुत आकर्षक लगती है।

राष्ट्रीय जिम कार्बेट पार्क है (नैनीताल जिला)

यह पार्क देश का सबसे प्रथम स्थापित है किया गया पार्क है। यह पहले हेली नेशनल पार्क के नाम से जाना जाता था। सन 1935 में तत्कालीन गवर्नर सर मलकाम हेली ने इसे स्थापित किया था। भारत के स्वतंत्र होने के बाद इसको रामगंगा राष्ट्रीय उद्यान नाम दिया गया और अंत में इसका पुणे नामकरण 1957 में सुविख्यात प्रकृति प्रेमी जिम कार्बेट के नाम पर कार्बेट नेशनल पार्क किया गया। जिम कार्बेट ने अपने जीवन की लंबी अवधि इसी क्षेत्र में व्यतीत की थी।

दिल्ली से 240 किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व में यह पार्क स्थित है। यहां पहुंचने के लिए दो रेलवे स्टेशन रामनगर और हल्द्वानी है। रामनगर से धिकाला (पार्क का मुख्य विश्राम गृह) 47 किलोमीटर की पक्की सड़क है।

यह पार्क प्रदेश का दर्शनीय उद्यान है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य अपूर्व वनाच्छादित पहाड़ियों और घाटियों के मध्य से रामगंगा कल कल निनाद करती हुई बहती है। कभी-कभी इसके तट पर घड़ियाल भी देखे जाते हैं। जंगलों में हाथी, चीता, तेंदुआ, सांभर, और यदा कदा काले भालू भी देखे जाते हैं।  यहां प्रतिवर्ष हजारों पर्यटक पहुंचते हैं।

रानीखेत

देवदार और बलूत के वृक्षों से घिरा रानीखेत बहुत ही रमणीक एक लघु हिल स्टेशन है। यहाँ सितंबर में घूमना बहुत ही उचित एवं मनोहरी है। काठगोदाम रेलवे स्टेशन से 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह अच्छी पक्की सड़क से जुड़ा है। इस स्थान से हिमाच्छादित मध्य हिमालय श्रेणी देखी जा सकती है। रानीखेत से सुविधापूर्वक भ्रमण के लिए पिंडारी ग्लेशियर, कौसा’नी, चौबटिया और कालिका पहुंचा जा सकता है। चौबटिया में प्रदेश सरकार के फलों के उधान है। यह स्थान प्रदेश के अल्मोड़ा जिले के अंतर्गत है। इस पर्वतीय नगरी का मुख्य आकर्षण यहां विराजती नैसर्गिक शांति है। रानीखेत में कुमाऊँ रेजिमेंट का सेंटर है और गोल्फ प्रेमियों के लिए एक सुंदर पार्क भी है। यहां पर कई राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री आ चुके हैं। राहुल सांकृत्यायन जैसे महान लेखकों को यह शहर काफी भाता था।

द्वाराहाट

रानीखेत से 21 किलोमीटर उत्तर में मोटर मार्ग पर है जहाँ पर कचहरी मानियाँ और रतनदेव के मंदिर समूह हैं। चौथा गुजर देव का मंदिर है। इन मंदिरों में पत्थरो शिलाओ पर नर्तकी, मैथुनमूर्ति, प्रेमालिंगन करती हुई मूर्तियों के चित्र है। ये मंदिर जीर्ण शीर्ण हालात में है। अधिकांश मंदिर मूर्ति विहीन है। कला की दृष्टि से यह मंदिर प्रसिद्ध है। इसलिए इसे उत्तराखंड का खजुराहो कहा जाता है।  यहीं पर कुमाऊ इंजीनियरिंग कॉलेज है।

कटारमल

रानीखेत से अल्मोड़ा जाने वाले मार्ग पर कटारमल उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है। यह मंदिर मोटर मार्ग से ऊपर पहाड़ी पर है। मंदिर में सूर्य देवता की मूर्ति 3 फुट 8 इंच ऊंची, 2 फुट चौड़ी है। सूर्य देव कमल के बाद आसन पर बैठे हैं। मूर्ति भूरे रंग के पत्थर की है। इसे 12वीं शताब्दी की प्रतिमा मानते हैं।

तपोवन

ऋषिकेश के पास गंगा के दाहिने किनारे पर बसा तपोवन एक छोटा सा गांव है। इसका धार्मिक महत्व ऋषिकेश जैसा ही है। पुरानी कथाओं के अनुसार भगवान राम के अनुज लक्ष्मणजी ने तपस्या की थी। यहां का लक्ष्मण झूला सभी के लिए आकर्षण की वस्तु है। यहां भगवान विष्णु का प्राचीन मंदिर है। तीर्थयात्री लक्ष्मण मंदिर दर्शननार्थ आते हैं।

बैजनाथ

जिला अल्मोड़ा से लगभग 64 किलोमीटर उत्तर की ओर बैजनाथ एक बड़ा ही रमणीय स्थल है। कत्यूरी घाटी के नाम से प्रसिद्ध है। बैजनाथ में पत्थर की शिला पर अनेक चित्र खुदे हैं। आज भी उन शिलाओं पर अंकित उन कलात्मक चित्रों को आसानी से देखा जा सकता है।

ऋषिकेश

हरिद्वार से 24 किलोमीटर दूर हिमालय के चरणों में ऋषिकेश का मनोहारी स्थान है। हरिद्वार से ऋषिकेश का मार्ग अत्यधिक सुंदर है। यहीं पर 250 मीटर लंबा झुका पुल है। रूस के सहयोग से यहां पर प्रसिद्ध एंटीबायोटिक कारखाना स्थापित किया गया है। लेकिन कुछ कारणों से यह बंद पड़ा है।

अल्मोड़ा

यह प्रदेश की पर्वतीय नगरों में से एक है और इसका ऐतिहासिक महत्व सोलवीं सदी में चंद राजाओं का यह प्रमुख नगर था। बाद में यहां गौरखा शासन हो गया तथा इनसे युद्ध के उपरांत इसे अंग्रेजों ने जीत लिया। तब से इसका दर्शनीय स्थल के रूप में विकास किया जा रहा है यह बहुत शांत पर्वतीय स्थल है तथा प्राकृतिक छटाओं से भरपूर है। सड़क से जुड़ा यह श्हर मार्च से अक्टूबर तक पर्यटन के लिए उत्तम है। शिक्षा से जुड़ा कुमाऊँ विश्वविद्यालय परिसर अल्मोड़ा, आकाशवाणी केंद्र व विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान है।

उत्तराखंड के प्रमुख नगरों के प्रतीक नाम

  • नैनीताल- झीलों का नगर
  • हरिद्वार- कुंभनगर, गंगाद्वार, पावन नगरी, तीर्थ नगरी
  • अल्मोड़ा- बाल मिठाई का नगर
  • पिथौरागढ़ – छोट कश्मीर
  • देहरादून- दून, लीची नगर, सैनिक नगर, वन नगर
  • मसूरी- पहाड़ों की रानी
  • ऋषिकेश- गंगानगर, संतनगर
  • काठगोदाम – कुमाऊँ का द्वार
  • कौसानी – भारत का स्विट्जरलैंड
  • द्वाराहाट – मंदिरों की नगरी
  • कोटद्वार – गढ़वाल का द्वार

चितई मंदिर (परमोच्च न्यायालय)

इस मंदिर में कूर्मांचलीय समाज का परमोच्च न्यायालय के समान आस्था का अटूट विश्वास है। यह अल्मोड़ा से लगभग 12 किलोमीटर दूर बस मार्ग पर है। इस मंदिर में अन्याय से पीड़ित व्यक्ति जब अपनी गाथा लेकर भैरवनाथ को निर्णय हेतु देता है तो तुरंत ही अन्ययाकर्ता को दंड मिलता है। श्री भैरवदेव मनोकामना पूर्ण करने हेतु प्रसिद्ध है जिसका प्रमाण मंदिर में टंगी लाखों घंटियाँ है जिन्हें मनोकामना पूर्ण होने पर भगत समर्पित करते हैं।

कौसानी

बागेश्वर बैजनाथ पिंडारी ग्लेशियर के रास्ते से अल्मोड़ा से 48 किलोमीटर पर कौसानी है। 1962 के भारत-चीन युद्ध से ही कौसानी में भारतीय सेना की एक प्लाटून तैनात है। यहीं पर हेलीपेड का मैदान है। चाय के बागान है। इसकी तलहटी में खेतों को देखकर ऐसा लगता है जैसे त्रिशूल को छूने के लिए सीढ़ियां बनाई हो, प्रहरी की भांति हर क्षण सजग हिमालय यहां से अडिग खड़ा हुआ दिखता है। लेखकों, चितको, प्रकृति प्रेमियों के लिए यह सर्वोत्तम सफल है। महात्मा गांधी यहां पर काफी दिनों ठहरे। यहां पर है उन्होंने गीता भाष्य लिखा और इसे भारत का स्विट्जरलैंड कहा। डॉ धर्मवीर भारती ने अपनी रचना ठेले पर हिमालय में इसकी नैसर्गिक सुंदरता का वर्णन किया है। काका कालेलकर ने कहा है- यहां का अध्यात्मिक वायुमंडल बड़ा पोषक है। भारतरत्न से सम्मानित कवि सुमित्रानंदन पंत यहीं के निवासी थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में इसी हिमालय की नैसर्गिक सुंदरता का वर्णन किया है। आज पंत जी का मकान पंतवीथिका नाम से प्रसिद्ध है। जिसमें प्रतिवर्ष 20 मई को पंत के जन्मदिन के अवसर पर राष्ट्रीय कवि सम्मेलन होता है।

टिहरी

इस नगर को सन 1820 में राजा सुदर्शन शाह ने बसाकर इसे अपनी राजधानी बनाया। टिहरी बड़ा सुंदर स्थान है। पर्यटकों को काफी लुभाता है। टिहरी जिले में ही देवप्रयाग स्थान पर भागीरथी और मंदाकिनी नदी का मिलन होता है। दोनों मिलने पर ही गंगा बन जाती है। सन 1815 में अंग्रेजी शासन आने के बाद अंग्रेजों ने सन 1820 में राजा सुदर्शन शाह से मसूरी क्षेत्र को 80 वर्ष की लीज पर हिल स्टेशन बनाने के लिए लिया। यही हिल स्टेशन आज पर्वतों की रानी के उपनाम से पुकारा जाता है। यहां से दर्शनीय स्थलों में चकरौता, सहस्त्रधारा, केम्प्टी और मैसी जलप्रपात है। यहां से हिमालय की चोटियां बहुत आकर्षक लगती है।

फूलों की घाटी

चमोली जिले में जिला मुख्यालय से लगभग 150 किलोमीटर दूरी पर हेमकुंड साहिब व बद्रीनाथ के बीच में स्थित है। 1982 में इस घाटी को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा देकर संरक्षण प्राप्त हुआ। इसका क्षेत्रफल 87 वर्ग किलोमीटर है। चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा यह स्थान बीच में घाटी है। हल्की ढलान लिए यहां पर हजारों किस्म की वानस्पतिक प्रजाति हैं, तथा कई दुर्लभ प्रजातियां भी यहां मौजूद हैं सितंबर माह में जब चारों तरफ हरियाली छा जाती है तब इसकी ढलान पर बैठकर प्रकृति प्रदत्त मखमली घास कालीन जैसी लगती है। नीचे घाटी में रंग बिरंगे फूल मन को मोहित कर देते हैं तथा पुष्पों की शौन्धी-शौन्धी खुशबू दिल दिमाग में तरंग उत्पन्न कर देती है। यह स्थान देश में ही नहीं वरन विदेशों में भी विश्व विख्यात है लेखको, चिंतकों वनस्पतिशास्त्री, प्रकृति प्रेमी, पर्यटक सभी को अपने आकर्षण से बांध देता है। यहां फूल हमेशा खिले रहते हैं। उत्तराखंड पर्यटन में फूलों की घाटी का दर्शन अनिवार्य करना चाहिए।

पिंडारी ग्लेशियर

यह  स्थान बागेश्वर से 100 किलोमीटर दूर उत्तर में 13,000 फीट ऊंचाई पर है। चारों ओर रास्ते में जंगली फूल स्वागत करते हैं। यह वह स्थान है जहां पर नंदादेवी व अन्य चोटियों से गिरते हुए श्वेत हिम से उत्पन्न  झील है। 2 मील लंबा 270 मीटर चौड़ा ग्लेशियर दूध की झील प्रतीत होता है। पास ही सुंदर मैदान है, जो संगमरमर की भांति चमकता शोभित रहता है। पिंडारी नदी का उद्गम इसी स्थान से है रास्ते में जगह-जगह सुख सुविधापूर्ण डाक बंगले हैं। यह स्थान बहुत ठंडा है यहां हमेशा तापमान 0 से + 5 या – 10 तक रहता है। यह ग्लेशियर बहुत सुंदर है।

मिलम

यह स्थान पिथौरागढ़ जिले में मुनस्यारी से आगे है। यहां पर भारत तिब्बत सीमा पुलिस है कि प्लाटून रहती है। तीनों ओर से घिरा स्थानीय हुआ स्थान नीचे बहुत बड़ा मैदान है. यह भारत तिब्बत सीमा के निकट है। यहां से आगे जाने के लिए सीमा पुलिस से आज्ञा लेनी पड़ती है। इसमें पंचचूली पर्वत चोटी से बर्फ गिरती है। यहां पंचचूलि का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। इससे थोड़ा आगे जाने पर कुंगरी-बिंगरी दर्रा पड़ता है। जो मानसरोवर का रास्ता है। इसी दर्रे से तिब्बत की भूमि में प्रवेश किया जाता है। मिलम में यात्री विश्राम करते हैं, लेकिन यह स्थान भी काफी ठंडा है। इन ग्लेशियरों में हमेशा बुरा पर्वतों की चोटी से विशाल हिम खंडों के टूटने गिरने से आती है रहती है।

उत्तराखंड में प्रमुख मेले

मेले स्थान
चतुदर्शी मेल गढ़वाल
ताड़केश्वर मेला पौढ़ी
भुनेश्वरी मंदिर मेला पौढ़ी गढ़वाल
दनगल मेला पौढ़ी गढ़वाल
कुस्नापुरी मेला टिहरी गढ़वाल
चंद्रबदनी मेला टिहरी गढ़वाल
रणभूत मेला टिहरी गढ़वाल
विकास मेला टिहरी गढ़वाल
हरियाली पूड़ा मेला  चमोली
गोचर मेला चमोली
नुणाई मेला देहरादून
टपकेश्वर मेला देहरादून
चंडीदेवी मेला देहरादून
भद्रराज मेला देहरादून
झंडा मेला देहरादून
कुंभ मेला हरिद्वार
पिरान कलियर रुड़की
उत्तरायणी मेला गढ़वाल/कुमाऊं

उत्तराखंड में पर्यटन के विकास हेतु उपाय

  • पर्यटक स्थलों की खोजकर उनके बारे में पर्याप्त जानकारी जुटानी होगी।
  • पर्यटक स्थलों तक सड़क मार्गों का निर्माण व सभी पर्यटक स्थलों को दूरसंचार से जोड़ना होगा।
  • पर्यटक प्रदूषित न हो इसके लिए इको टूरिज्म को बढ़ावा देना उद्योगों को ऐसे स्थलों से दूर लगाना होगा।
  • पर्यटक स्थलों के सौंदर्यीकरण के लिए पर्याप्त व्यवस्था साथ ही प्रदूषण फैलाने वाले उत्पाद को पर्यटक स्थल पर प्रतिबंध लगाना जैसे पॉलिथीन
  • सूचना क्रांति के दौर में इंटरनेट से आज भौगोलिक दूरी नगण्य हो चुकी है इसलिए सरकार को पर्यटन से संबंधित सभी जानकारियों को वेबसाइट पर उपलब्ध कराना, ताकि इस वैभवशाली रोमांचक उत्तराखंड के बारे में देश विदेशों में प्रचार हो सके तथा साथ ही अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्सो में भी इसके बारे में प्रचारित करना चाहिए।
  • सरकार को पर्यटन क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए पर्यटकों के लिए जीप, कार, टैक्सी व परिवहन की व्यवस्था तथा दुभाषीय गाईर्डों की भी व्यवस्था करनी चाहिए।
  • पर्यटक स्थलों तक अच्छी सड़क, जीप, टैक्सी, टूरिज्म एवं टूर एजेंसियां, बंगले आदि सुविधाओं से युक्त होटल, अंतरराष्ट्रीय टेलीफोन सेवा, इंटरनेट सेवा में पर्यटक की सहायता के लिए पर्यटक पुलिस की व्यवस्था करनी चाहिए जहां पर पर्यटक स्थल हो।
  • कुमाऊं मंडल विकास निगम व गढ़वाल मंडल विकास निगम की एक महत्वाकांक्षी योजना है जो पर्यटकों को हेलीकॉप्टर द्वारा पर्यटक स्थलों तक पहुंचाने की थी। यदि उत्तराखंड सरकार उसमें रुचि रखकर निवेश करती है तो निश्चित ही उत्तराखंड में पर्यटन के नए आयाम खोलेंगे फिर उत्तराखंड किसी भी मायने में स्विट्जरलैंड से कम नहीं होगा।
  • द्वाराहाट, दूधातोती, जोरासी, चौखुटिया (हवाई पट्टी हेतु उपयुक्त जगह) में हवाई पट्टी स्थापित कर उड़ान सेवा चालू की जाए।
  • उत्तराखंड में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मारिश्स, गोवा, स्विट्ज़रलैंड ऊटी की तरह सुविधा प्राप्त करनी होगी जहां पर पर्यटक धन खर्च कर सके।
  • पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ तीर्थाटन व साहसिक खेलों आइस हॉकी, आइस स्केटिंग। वहां पर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताएं कराए जाए।
  • पर्वतारोहण, रौकक्लाइंबिंग, ट्रैकिंग व साहसिक खेलों से संबंधित केंद्र खोले जाए, जहां पर अल्प दीर्घकालीन कोर्स कराए जाएं।
  • उत्तराखंड सरकार ने 2014 और 2015 में 327 स्थानों को पर्यटन स्थल के रूप में मान्यता प्रदान की है। वर्ष 2016 में उत्तराखंड में कुल 317.77 लाख पर्यटक आए जिनमें 316.64 लाख भारतीय एवं 1.13 लाख विदेशी पर्यटक थे।

अन्य तथ्य

  • उत्तराखंड में नंदादेवी बायोस्फीयर रिजर्व विश्व धरोहर स्थल घोषित है।
  • जोशीमठ-औली रोप-वे अक्टूबर 1993 में शुरू किया गया था।
  • महात्मा गांधी ने उत्तराखंड में कौसानी को भारत का स्विट्जरलैंड कहा था।
  • बद्रीनाथ मंदिर चमोली में स्थित है
  • नेहरू पर्यावरण संस्थान उत्तरकाशी में स्थित है।
  • 1841 में नैनीताल की खोज पीटर बैरने ने की थी।
  • उत्तराखंड का पिथौरागढ़ छोटा कश्मीर के नाम से विख्यात है।
  • गंगाद्वार के नाम से हरिद्वार को जाना जाता है।
  • चितई मंदिर को प्रमोच्च न्यायालय माना जाता है।
  • ताड़ीखेत गांधी कुटी तथा गुलू देवता के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
  • शंकरमठ के गर्भ गृह में भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी की प्रतिमा स्थित है।
  • वशिष्ट गुफा टिहरी में स्थित है।

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