Technical

वेल्डिंग ट्रेड के बारे में जानकारी

धातु खंडों को ऊष्मा देकर दाब या बिना दाब तथा पूरक पदार्थ भरकर या बिना इसके जोड़ने के प्रक्रम को वैल्डन या साधारण बोल-चाल की भाषा में वेल्डिंग कहते हैं।

पूरक पदार्थ का गलनांक  जोड़े जाने वाली धातुओं के गलनांक से कम होता है। उपयोग वैल्डन क्रिया या उपयोग निम्नलिखित स्थानों तथा उद्योगों में किया जाता है-

  1. सामग्री में टैंक फिटिंग, रॉकेट, जेट इंजन, तोप, बमद्ध लड़ाकू, विमान आदि बनाने में।
  2. मशीन बनाने के कारखाने में- लेथ मशीन, ड्रिलिंग मशीन, मिलिंग मशीन आदि बनाने में।
  3. हवाई जहाज के निर्माण में हवाई जहाज के मुख्य भागों में निर्माण में जैसे इंजन माउंटिंग, मफलर, कास्ट मैनीफोल्ड, गैस एवं लिक्विड टैंक, हिल बोल्ट आदि।
  4. स्वचालित वाहन उद्योग में- जैसे कार, स्कूटर, ट्रक, टैंकर, आदि।
  5. अंतरिक्ष अनुसंधान में जैसे- अंतरिक्ष को रॉकेटों के निर्माण तथा अनुसंधान कार्य में।
  6. पुल तथा बांध में पुल तथा बड़े-बड़े बाधों को बनाने में जैसे- खंबे बनाना, सेक्शन बनाना आदि।
  7. भवन निर्माण में
  8. औद्योगिक इकाइयों में
  9. फर्नीचर निर्माण में
  10. कृषि यंत्रों में
  11. खनिज उद्योग में
  12. विद्युत सप्लाई में
  13. पुराने ढांचे आदि उखाड़ने में
  14. मरम्मत के कार्य में

धातु खंडों को जोड़ने की विधियां

  1. स्थाई विधि: इस विधि में धातु खंडों को जोड़ने के बाद यदि अलग करना चाहे तो अलग होने के बाद सुरक्षित रहते हैं।
  2. जैसे- नट बोल्ट, सटड, की, काटर,स्क्रू, आदि।
  3. अर्ध स्थाई विधि:  इस विधि में ऐसे बंद का प्रयोग है करते हैं जिन्हें दातों खंडों के खोलने या अलग करने में स्वय खराब हो जाते हैं लेकिन धातु खंड सुरक्षित रहते हैं जैसे- रिवेटन तथा झालन।

वेल्डन तथा रिवेटन किए हुए/ढलाई किए हुए धातु में अंतर

  1. वेल्डन किए हुए धातु खड
  2. यह धातु खंड स्थाई विधि से जोड़ी गई है।
  3. वेल्डन करने के लिए किसी प्रकार की गणना नहीं करनी पड़ती।
  4. इसके लिए किसी प्रकार के प्रतिरूप की आवश्यकता नहीं होती।
  5. वेल्डन किए हुए धातु खंड भार में हल्के होते हैं।
  6. इनके द्वारा अधिक भार सहन किया जाता है।
  7. यह झटके सहन कर सकते हैं।
  8. इन्हें तैयार करने में कम समय लगता है।
  9. यह देखने में सुंदर लगता है।
  10. इन्हें आसानी से सख्त या नरम किया जा सकता है।
  11. वेल्डन कहीं भी की जा सकती है।
  12. वेल्डन कार्य सस्ता होता है।

रिवेटन/ढलाई किए हुए धातुखंड

  1. यह धातुखंड अस्थाई की  गई विधि से जोड़ी गई है,।
  2. रिवेटन करने के लिए जोड़े जाने वाले धातुखडो के सुराखों का व्यास तथा सूराखों की संख्या की गणना आवश्यक है।
  3. ढलाई किए जाने वाले धातुखंडो के लिए प्रतिरूप की आवश्यकता होती है।
  4. ढलाई किए गए  धातुखंड भार में भारी होते हैं।
  5. इसके द्वारा अधिक भार सहन नहीं किया जा सकता है।
  6. यह झटके सहन नहीं कर सकते हैं तथा टूट जाते हैं।
  7. इसे तैयार करने में अधिक समय लगता है।
  8. यह अधिक सुंदर दिखाई नहीं देता है।
  9. रिवेटन  कार्यशाला में ही की जाती है।
  10. ढलाई व रिवेटन  कार्य महंगा होता है।

वेल्डन के लाभ तथा हानियां

वेल्डन के लाभ

  1. समान तथा असमान धातुखंड सुगमता पूर्वक  वेल डन किए जा सकते हैं,
  2. एक अच्छा वेल्डिंग रोड उतना ही मजबूत होता है जितना कि जोड़े जाने वाले धातुखंड  होता है।
  3. वेल्डन  क्रिया द्वारा या संवचालित की जा सकती है।
  4. वेल्डिंग क्रिया द्वारा धातुख्नड का स्वतंत्रता पूर्वक किसी भी प्रकार का डिजाइन बनाया जा सकता है।
  5. वेल्डन किए गए धातुखंडो को आसानी से मशीनन किया जा सकता है।
  6. वेल्डन क्रिया द्वारा कार्य खंड को बिंदु वेल्डन या संस्तर वेल्डन तथा अन्य कई विधियों से जोड़ा जा सकता है।
  7. वेल्डन उपकरण सुबाह्रा होते हैं। अंततः इन्हें आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सकता है।
  8. वेल्डन किए गए सामान सस्ते होते हैं।
  9. आधुनिक वेल्डिंग क्रिया द्वारा विभिन्न प्रकार की धातुओं की वेल्डन आसानी से पुरस्कृत की जाती है।
  10.  वेल्डन कार्य में अधिकतर गैस तथा बिजली का प्रयोग किया जाता है जो कि आसानी से तथा शक्ति प्राप्त होती।

वेल्डन की हानियां

  1. वेल्डिंग क्रिया करते समय उससे निकलने वाली पराबैंगनी किरणें आंखों के लिए हानिकारक होती है।
  2. वेल्डन क्रिया से कार्य करने में पर्याप्त प्रतिबल तथा विरूपण होता है। अन्य कार्य खंड योग्य नहीं रह पाता है।
  3. वेल्डन से निकलने वाला धुआं वेल्डर के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है।
  4. गैस वेल्डिंग करते समय निकलने वाली गैस वायुमंडल को प्रदूषित करती है, जो प्राणियों के लिए हानिकारक होती है।
  5. वेल्डन किए गए कार्य खंड को प्रतिबंधित करने के लिए उसका ऊष्मा उपचार करना पड़ता है।
  6. वेल्डन कार्य करने वाला व्यक्ति कुशल होना चाहिए क्योंकि वर्ल्ड किए गए कार्य कांड को एक बार वर्ल्ड होने के पश्चात उसे ठीक नहीं किया जा सकता है।

वेल्डन शाला में प्रयोग होने वाले मुख्य सुरक्षा उपकरण

  1. चमड़े के दस्ताने
  2. बूट
  3. चमड़े का चोगा
  4. छत्रक
  5. लेगार्ड
  6. वेल्डिंग एनक
  7. चलती फरती वेल्डन स्क्रीन
  8. हेलमेंट

अग्नि शमन यंत्र– यह आग बुझाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह कार्यशाला में उचित स्थान पर रखे जाते हैं। इसमें आग के प्रकार के अनुसार गए तथा रसायन भरे होते हैं।

  1. फोम टाइप : यह ज्वलनशील तरल, तेलों, चरबी एवं स्प्रिट आदि की आग बुझाने में प्रयोग होते हैं।
  2. फायल ब्लेंकेंट: इसे अपने कपड़ों की सुरक्षा के लिए ऊपर से पहनते हैं।
  3. कार्बन डाइऑक्साइड गैस: यह विधि तथा ज्वलनशील तरलों की आग बुझाने के लिए है।
  4. बी सी एफ प्रकार : यह विधि तथा ज्वलनशिल कर लो की आग बुझाने के लिए है।

वेल्डिंग के खतरे

आर्क की चकाचौंध : आर्क वैल्डन करते समय नंगी आंखों से कुछ सेकेंड तक आर्क की चमक देखने पर आंखें खराब होकर  शूज जाती है, इन में पानी आता है तथा दर्द काफी होता है, इसी तकलीफ या दुख को आर्क की चकाचौंध कहते हैं।

विकिरण संकट: वैल्डन के समय एक्स किरणें तथा गामा किरणें की तरह लंबी तरंग धैर्य की किरणे उत्पन्न होती है जिसे विकिरण संकट कहते हैं। इसमें बचाव के लिए वेल्डर को चमड़े की जैकेट है, चमड़े का चोगा, चमड़े के दस्ताने आदि पहनने चाहिए।

शब्दावली

  • एनोड बिजली के धमकी और प्रकट करता है। यह बिजली का धन पोल है।
  • एनिल ताप उपचार द्वारा पदार्थों को नरम करने की क्रिया को एनिल कहते हैं।
  • एंपियर करंट कि वह मात्रा है जो एक ओह्रा के रिजटेन्स में से 1 वोल्ट के बिजली के दबाव से प्रभावित होती है।
  • एमेलगेमेशन -यह दो धातुओं को परस्पर पूरी तरह मिलाने के उपरांत प्राप्त धातु है।
  • एसिटिलीन  यह एक हाइड्रोकार्बन गैस है जिसका कोई रंग नहीं होता है। यह हाइड्रोजन तथा कार्बन का रासायनिक मिश्रण है।
  • एडाप्टर :  यह सोच कर कि प्रकार का काम पकड़ने का साधन है। इसको प्रेशर रेगुलेटर आदि को सिलेंडर आदि के साथ जोड़ने  के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
  • एड्रीजन – यह जोड़ के दोनों किनारों को परस्पर जोड़ने को प्रकट करता है, जब जोड़ में ठीक प्रकार की फ्यूजन अथवा पेनिट्रेशन की कमी हो।
  • अलाइनमेंट- यह शब्द जोड़कर बाघों की ठीक सीध को प्रकट करता है।
  • एलॉय यह दो अथवा दो से अधिक धातुओं का बनाया मिश्रण है।
  • अल्टरनेटिंग करंट –  बिजली के करंट की वह धारा जो अपनी दिशा निरंतर बदलती रहती है।
  • ए.सी. वेल्डिंग- व वेल्डिंग कि वह क्रिया जिसमें बिजली की लाट अल्टरनेटिंग करंट के प्रयोग द्वारा बनाई जाती है।
  • आर्क : बिजली की लाट जो सर्किट में डाली गई दूरी मैं से करंट के गुजरने के कारण उत्पन्न होती है।
  • आर्क ब्लो यह डीसी आर्क  वेल्डिंग में पड़ने वाला दोष है। इसमें आर्क  अपने ठीक पथ से दूर जाने का प्रयत्न करती है।
  • आर्क फ्लेम- पीले रंग की लॉट जो आर्क  स्ट्रीम के बाहर की ओर जलती है।
  • आर्क स्ट्रीम या नीले रंग की रोशनी की लाइट है जो आर्क कौर के आसपास बनती है।
  • आर्क वोल्टेज  यह आर्क के किनारों में मापी गई वोल्टेज है, यह आर्क  स्टीम वोल्टेज, एनोड ग्रुप तथा केथोड़े ड्रॉप का जोड़ है।
  • आर्क वेल्डिंग मशीन यह वेल्डिंग के लिए करंट प्राप्त करने का स्रोत है। इससे करंट की मात्रा को कंट्रोल किया जा सकता है।
  • एस्बाएस्टोस यह  रेशेदार खनिज पदार्थ है।  यह बिजली तथा रासायनिक क्रिया का अच्छा रोधक है।
  • ऑटोमेटिक वेल्डिंग- वेल्डिंग कि वह किया जो संपूर्ण रूप से मशीनों की सहायता से पूरी की जाती है।
  • एक्सीज ऑफ वेल्ड- जोड़ की जड़ में से निकल रही जोड़ की समांतर रेखा।
  • बैक अप प्लेट- जोड़ के नीचे वर्ल्ड मीटर को टेक देने के लिए रखी गई प्लेट।
  • बैंक फायर- यह गैस वेल्डिंग के समय पड़ने वाला दोष है। उसमें लाख पटाखा मारकर पीछे की ओर जाती है तथा फिर आगे आती है।
  • बैंक हैंड वेल्डिंग- यह गैस वेल्डिंग की विशेष तकनीक है जिसमें लाट की दिशा पूरे किए वेल्ड की ओर की जाती है तथा जोड़ पूर्ण करने की दिशा के विपरीत होती है।
  • बैंक स्टेप  वेल्डिंग- इसमें छोटे-छोटे वर्ड वेल्डिंग करने की दिशा के विपरीत है आपस में जोड़े जाते हैं। वेल्डर जोड़ के छोटे-छोटे भागों में आगे से पीछे की ओर कम करते हुए पूरा करता है।
  • बेअर इलेक्ट्रोड- वह तारा तारा इलेक्ट्रोड जिस पर फ्लक्स की पर्त्न न चड़ी हो।
  • बेस मेटल- यह धातु जिसे वेल्ड करना है। इसे पेटेट  मेंटल भी कहते हैं।
  • बीड फिलर धातु की जमाई गई एक परत है।
  • बिडिग वेल्डिंग रोड की बिल्डिंग के बिना लगाए गए बिडे।
  • बैंड टेस्ट है यह वर्ल्ड की हुई धातु को मुड़ कर देखने का निरीक्षण है। इससे धातु की डक्टिलिटी का पता चलता है।
  • बेवल  किनारे को तिरछा करना या संपूर्ण के अतिरिक्त कोई अन्य कोण मापनी अथवा बनाने का यंत्र। ब्लो होल गैस अथवा किसी अन्य भारी पदार्थ के कारण वर्ल्ड धातु के खाली बचे स्थान को ब्लो होल कहते हैं।
  • ब्लाक ऑफ कोक यह एसिटिलीन का अतिरिक्त प्रेशर कम करने के लिए प्रयोग किया जाने वाला एक वाल्व है। एसिटिलीन गैस के सिलेंडर पर सेफ्टी वाल्ब काम करता है।
  • ब्लोपाइप गैस वेल्डिंग टॉर्च को ब्लॉक  पाइप कहते हैं।
  • बॉन्ड वेल्ड धातु तथा बेस धातु के जोड़ को बॉन्ड कहते हैं।
  • बटाल यह स्टील का बना हुआ सिलेंडर है।
  • ब्रास या तांबे एवं जस्ते की मिश्र धातु है।
  • ब्रेजिंग पीतल या चांदी के साथ लगाए गए टांगे को ब्रेजिंग कहते हैं।
  • ब्रेजीग वायर पीतल को लगाए गए टांके को ब्रेजिंग कहते हैं।
  • ब्रिटिश थर्मल यूनिट यह ताप ऊर्जा को मापने की इकाई है। यह वह ताप है जो 1 पौंड पानी को 1 F तक गर्म करने में आवश्यक होता है ।
  • ब्राउज़र तांबे अथवा कलई की मिश्र धातु होती है।
  • बकलिंग वेल्डिंग क्रिया द्वारा उत्पन्न ताप से जॉब के टेढ़े हो जाने को वाकलिंग कहते हैं।
  • बट जोड़े मध्य टक्कर जोड़ को बट जोड कहते हैं।
  • बटरिंग रन जोड़ पुरा करने से पूर्व इसके तलों पर लगाई गई वेल्ड बीड़ अथवा रन।
  • कुकिंग इस क्रिया द्वारा रोड प्रूफ बनाए जाते हैं। इसमें एक बारी के कुद छेनी के समान टूल के धातु के किनारों को फैला दिया जाता है।
  • वेल्डिंग वह किया है जिसके द्वारा हम दोनों को एक उचित तापमान पर दबाव या बिना दबाव के जोड़ सकते हैं।
  • वेल्डिंग एक प्रकार का स्थाई जोड़ है।
  • जोड़ की खाली जगह को जोड़ने के लिए फिलर मेंटल का प्रयोग किया जाता है।
  • फीलर मेंटल का गलनांक जोड़ी जाने वाली धातु के गलनांक से कम होता है।
  • रिवेटिंग एक अर्ध स्थाई जोड होता है।
  • ब्रेकिंग एक स्थाई जोड़ होता है।
  • ब्रेजिंग के लिए सुहागा को फ्लक्स के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • सोल्डर शिशा तथा टिन का मिश्रण होता है।
  • सोल्डर का गलनांक 300 डिग्री सेल्सियस होता है।
  • सोल्डरिंग का प्रयोग पतली सीटों को जोड़ने के लिए किया जाता है।
  • वेल्डिंग के लिए स्थाई विधि उपयोग हो,
  • वेल्डिंग शॉप में मापने वाले उपकरण स्टील रूल, स्टेप तथा प्लंबर बॉब है।
  • स्टील टेप की लंबाई 25 से 100 फुट होती है।
  • बेवल प्रोटेक्टर एक मापने वाला औजार है। जिसके द्वारा 1 डिग्री की शुद्धता में कोण पर जाते हैं।
  • बेवल प्रोटेक्टर की लंबाई 300 मिमी होती है।
  • ब्रेजिग करते समय स्पैल्टर  का प्रयोग फीलर मेटल के रुप में किया जाता है।
  • दो एक ही प्रकार की धातुओं को उसी धातु की फिलर रोड से जोड़ने की प्रक्रिया ऑटो नियस कहलाती है।
  • अलग-अलग प्रकार की धातुओं को जोड़ने की प्रक्रिया हर्ट्रोरोजेनियस वेल्डिंग चलाती है।
  • पानी के नीचे की जाने वाली वेल्डिंग को हाईपर बारीक वेल्डिंग कहते हैं।
  • TIG वेल्डिंग में इलेक्ट्रोड के रूप में टंगस्टन का प्रयोग किया जाता है।
  • रजिस्टेंस वेल्डिंग में धातु के किनारे पिंगलाए नहीं जाते।
  • तापमान बढ़ाने पर जब पार्ट धातु पर पपड़ी जम जाती है तो इस दोष को दूर करने के लिए फ्लक्स का प्रयोग किया जाता है।
  • फर्स्ट के रूप में  रेत (बालू) , नमक, सुहागा का प्रयोग किया जाता है।
  • कास्ट आयरन, तांबा, एलुमिनियम आदि को कार्बन अर्क वेल्डिंग द्वारा जोड़ा जाता है।
  • मेंटल इनर्ट  गैस वेल्डिंग द्वारा फेरस व नॉन फेरस  दोनों प्रकार की धातुऑ को आसानी से वर्ल्ड किया जाता है।
  • मेंटल इंनर्ट गैस वेल्डिंग में DC  धारा का प्रयोग किया जाता है।
  • गैस वेल्डिंग में ऑक्सीजन सिलेंडर का रंग मेहरून होता है।
  • फ्लेम जलाने के लिए पहले ऐसाटीलिंन गैस को जोड़ा जाता है।
  • गैस वेल्डिंग समाप्त करने पर ब्लू पाइप में ऑक्सीजन गैस को पहले बंद करना चाहिए।
  • ऑक्सीजन सिलेंडर केवलम में दाएं हाथ की चूड़ी होती है।
  • एसिटिलीन का रासायनिक सूत्र C2H2  होता है।
  • एसिटिलीन गैस कैल्शियम कार्बाइड से तैयार किया जाता है।
  • ऑक्सीजन के सिलेंडर में गैस का दबाव 120 से 150 Kg\cm2 होता है, जबकि एसिटिलीन सेंटर में 15 से 16 kg\cm2  होता है।
  • एसिटिलीन गैस 85 डिग्री सेल्सियस ताप कर्म पर ठोस अवस्था में पाई जाती है।
  • फौजी वेल्डिंग का तापक्रम 1200 सो डिग्री सेल्सियस होता है।
  • एसिटिलीन का ऑक्सीजन के साथ है पूर्ण ध्यान होता है तब co2  तथा जल पैदा होता है।
  • ऑक्सी- एसिटिलीन फ्लेम के मुख्यतः तीन भाग होते हैं।
  • ले फॉरवर्ड वेल्डिंग में किल्लर रोड ब्लॉ पाइप से आगे आगे चलाई जाती है।
  • राइटवर्ड बिल्डिंग में फिलर रोड ब्लो पाइप से पीछे पीछे चलाई जाती है।
  • पीतल की वेल्डिंग के लिए ब्लॉक पाइप को 60 डिग्री से 70 डिग्री के कोण पर रखा जाता है।
  • पीतल की  वेल्डिंग के लिए ऑक्सिडाइजिंग फ्लेम का प्रयोग किया जाता है।
  • पीतल की सोल्डरिंग में फ्लक्स के रूप में जिंग क्लोराइड का प्रयोग किया जाता है।
  • आर्गन गैस सिलेंडर का रंग नीला होता है।
  • ऑक्सी एसिटिलीन गैस वेल्डिंग को फ्यूजन विधि के नाम से जाना जाता है।
  • हाइड्रोजन सिलेंडर का रंग लाल होता है/
  • एसिटिलीन तथा कोल गैस सिलेंडर में बाएं हाथ की चूड़ियां होती है।
  • वेल्डिंग में बिजली का उपयोग 19वीं सताब्दी में शुरू।
  • तांबे की वेल्डिंग के लिए दी ऑक्साइड तांबे का प्रयोग किया जाता है।
  • तांबे की ब्रोज वेल्डिंग में फील्ड वर्ल्ड में इलेक्ट्रोड को 15 डिग्री के कोण पर पकड़ा जाता है।
  • तांबे की बिल्डिंग में 50 मीमी की लंबाई के ज्वाइंट की टेकिंग करनी चाहिए।
  • हाथ द्वारा चलाए जाने वाले वेल्डिंग को मैनुअल मैटालिक आर्क वेल्डिंग कहते हैं।
  • वेल्डिंग मशीनों की वोल्टेज 65 से 100 वर्ष तक होती है।
  • डीसी वेल्डिंग में आर्क बनाने के लिए कम से कम 40 वोल्ट की जरूरत होती है।
  • एसी आर्क वेल्डिंग की दक्षता 85 जबकि डीसी वेल्डिंग की दक्षता 65 होती है।
  • इलेक्ट्रोड होल्डर तांबा का बना होता है।
  • राइटवर्ड तकनीक में क्षेतिज ऊर्ध्वाधर पोजीशन में सिंगल पास वेल्डिंग की जाती है।
  • आर्क वेल्डिंग करते समय दांतो के छोटे-छोटे कणों इधर-उधर बिखर जाते हैं स्पेटर्स कहलाते हैं।
  • आर्क वेल्डिंग में बीड़ को चलाने के लिए 60 डिग्री का कोण लिया जाता है।
  • बट ज्वाइंट में फ्लैटों के किनारे एक दूसरे के साथ समतल रखे जाते हैं।
  • लैप ज्वाइंट में प्लेटो को एक दूसरे के ऊपर रखा जाता है।
  • टी जॉइंट में प्लेटो को एक दूसरे को 90 डिग्री के कोण पर रखा जाता  है।
  • मूल धातु का सही न होने से वेल्ड में क्रेक का दोष उत्पन्न होता है।
  • Aआर्क वेल्डिंग में कार्बन का इलेक्ट्रोड प्रयोग किया जाता है।
  • रॉट आयरन को वर्ल्ड करते समय तांबे की परत चढ़ी माइल्ड स्टील धातु का फिलर रोड प्रयोग होता है।
  • नाइट्रोजन गैस का रंग ग्रे होती है।
  • लो प्रेशर गेज 50Kg\cm 2 की रीडिंग दिखाती है।
  • तांबा  लाल रंग का  तथा पीतल पीला रंग का होता है.
  • तांबे का गंदा 1083 डिग्री सेल्सियस तथा पीतल का गलनांक 950 डिग्री सेल्सियस होता है.
  • वेल्डिंग का दूसरा नाम आरक वेल्डर है.
  • फिलर धातु के ऊपर बिखर कर गोलियों के रूप में जम जाने को स्पेटर कहते हैं.
  • कार्बन आर्क द्वारा कास्ट आयरन, तांबा, एलुमिनियम धातुओं को वेल्ड किया जाता है।
  • वेल्डिंग के लिए आर्गन में 1.5% ऑक्सीजन मिलाई जाती है। होज पाइप की लंबाई कम होजो पाइप की लंबाई कम से कम 5 मीटर होनी चाहिए।
  • वेल्डिंग रोड का व्यास लगभग प्लेट की मोटाई के बराबर होनी चाहिए।
  • फिलर रोड का प्रयोग जोड़ों को खाली स्थान भरने के लिए किया जाता है।
  • आर्क  से उत्पन्न हुई गर्मी के तापक्रम लगभग 34 डिग्री सेल्सियस होता है।
  • गैस वेल्डिंग में फ़िलर रोड जोड़ की मजबूती बढ़ाने का कार्य करती है।
  • कम गलनांक बिंदु वाली धातुओं की वेल्डिंग के लिए न्यूट्र्ल फ्लेम ऑक्सी एसिटिलीन प्रयोग की जाती है।
  • धातु की सतह पर कठोर धातुऑ की परत चढ़ाने को हाई फेसिंग कहते हैं।
  • कास्ट आयरन, तांबा, एलुमिनियम आदि को कार्बन आर्क वेल्डिंग द्वारा जोड़ा जाता है।
  • टेक आदि बनाने में इलेक्ट्रोंस स्लोग वेल्डिंग का प्रयोग किया जाता है।
  • ब्लोपाइप का दूसरा नाम गैस पाइप होता है।
  • एसिटिलीन सिलेंडर का दूसरा नाम डी ए सिलेंडर है।
  • वेल्डिंग कार्य में प्रयुक्त होने वाली गैस ऑक्सीजन तथा जलने वाली गैस एसिटिलीन है।
  • वेल्डिंग के लिए जोड़े जाने वाले किनारे को पिलाने की क्रिया फ्यूजन कल आ विधि आयुक्तती है।
  • ब्रेंजिग के लिए प्रयुक्त बोरेक्स है।
  • सोने के गहनों की ब्रेंजिग के लिए  ब्लॉपाईप पर ब्रेंजिग विधि प्रयुक्त होता है।
  • फ़िलर मेंटल में कार्बन, सिलिकॉन, गंधक आदि तथा मिला रहता है।
  • गंधक के बुरे प्रभावों को खत्म करने के लिए फिलर मेंटल में मैगनीज का प्रयोग होता है।
  • वेल्डिंग के लिए आवश्यक करट स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर के द्वारा प्राप्त की जाती है।
  • वोल्टेज को बढ़ाने वाले ट्रांसफार्मर स्टेप अप ट्रांसफॉर्मर कल आते हैं।
  • हेड शिल्ड में लगे शीशे का सेट 5-14  नवंबर तक उपलब्ध होता है।
  • वेल्डिंग ऐनक में लगे शीशे का रंग गहरा काला होता है।
  • स्टील रूल स्टील का बना होता है।
  • गरम जॉब को पकड़ने के लिए टोग का प्रयोग किया जाता है।
  • इलेक्ट्रोड को वेल्डिंग करते समय विशेष प्रकार से घुमाने को विनिंग कहते हैं/
  • इलेक्ट्रिक आर्क की खोज 1801 में हुई थी।
  • इलेक्ट्रोड का भंडारण एयर टाइट तथा शुष्क स्थान पर करना चाहिए।
  • पाइपों को सीधा रखने के लिए बैंकिंग तथा लाइनर का प्रयोग किया जाता है।
  • स्टेट बिल्डिंग मेड को पकड़ने के लिए एक विशेष प्रकार की स्टेट बिल्डिंग गन प्रयोग की जाती है।
  • सटड वेल्डिंग द्वारा पिन, बोल्ड, रोड आदि को जोड़ा जाता है।
  • जिस समय वेल्डर वेल्डिंग ना करके दूसरे कार्य करता है, उस समय को डाउन समय कहा जाता है।
  • पाइप का साइज अंदर के व्यास से लिया जाता है।
  • ट्यूब का साइज बाहर के व्यास से लिया जाता है।
  • जिसके द्वारा जॉब की सतह पर शुद्ध समांतर रेखाएं खींची जाती है उसे मार्किंग कहते हैं।
  • गैस वेल्डिंग में ऑक्सीजन एवं एसिटिलीन गैस का प्रयोग किया जाता है।
  • आर्क वेल्डिंग में कार्बन के इलेक्ट्रोड का प्रयोग किया जाता है।
  • पाइप काटने के लिए फाइन पिच ब्लेड का प्रयोग किया जाता है।
  • एसिटिलीन गैस में 92.3% कार्बन तथा 7.7% हाइड्रोजन की मात्रा होती है।
  • एसिटिलीन सिलेंडर का रंग मेरुन होता है।
  • ऑक्सीजन की  रबर होज का रंग काला होता है।
  • कास्ट आयरन को वैध करने में सुपर सिलिकॉन कास्ट आयरन का फिलर रोड प्रयोग किया जाता है।
  • यह ग्राम LPG 50 किलो जुल की ताप ऊर्जा देती है।
  • तांबे की वेल्डिंग के लिए कॉपर सिल्वर फ्लक्स का प्रयोग होता है।
  • पाइपों को जंग से बचाने के लिए  गेल्वनाइजिंग,पेंटिंग या इलेक्ट्रो प्लेटिंग किया जाता है।
  • वेल्डिंग सिंबल दोबारा जोड़ के प्रकार और वेल्ड फिनिश का पता चलता है।
  • वेल्ड सत्तह का पता सप्लीमेंट्री चिन्हों द्वारा किया जाता है।
  • नर्म धातुओं के पार्टों की सतह पर हार्ड धातुओं की परत चढाने को हार्ड सर्फेसिंग कहते है.

More Important Article

Recent Posts

अपने डॉक्यूमेंट किससे Attest करवाए – List of Gazetted Officer

आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएँगे की अपने डॉक्यूमेंट किससे Attest करवाए - List…

1 week ago

CGPSC SSE 09 Feb 2020 Paper – 2 Solved Question Paper

निर्देश : (प्र. 1-3) नीचे दिए गये प्रश्नों में, दो कथन S1 व S2 तथा…

6 months ago

CGPSC SSE 09 Feb 2020 Solved Question Paper

1. रतनपुर के कलचुरिशासक पृथ्वी देव प्रथम के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन सा…

6 months ago

Haryana Group D Important Question Hindi

आज इस आर्टिकल में हम आपको Haryana Group D Important Question Hindi के बारे में…

7 months ago

HSSC Group D Allocation List – HSSC Group D Result Posting List

अगर आपका selection HSSC group D में हुआ है और आपको कौन सा पद और…

7 months ago

HSSC Group D Syllabus & Exam Pattern – Haryana Group D

आज इस आर्टिकल में हम आपको HSSC Group D Syllabus & Exam Pattern - Haryana…

7 months ago