विद्युत चुम्बकत्व
विद्युत धारा के तीन प्रमुख प्रभावों में से एक है उसका चुंबकीय प्रभाव। सर्वप्रथम सन 1819 में वैज्ञानिक ओरस्टेड ने सिद्ध किया था कि किसी धारावाही चालक के निकट चुंबकीय सुई ले जाने पर वह उस चालक से प्रभावित होती है, अर्थात धारावाही चालक चुंबकीय क्षेत्र स्थापित करता है।
विधुत धारा प्रवाह के कारण किसी चालक के चारों और चुंबकीय क्षेत्र पैदा हो जाना, विद्युत-चुम्बकत्व कहलाता है।
विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव के अंतर्गत कार्य करने वाली युक्ति विद्युत-चुंबक कहलाती है।
विद्युत् चुम्बकीय शब्द
चुंबकीय फ्लक्स
चुंबकीय क्षेत्र में चुंबकीय बल रेखाओं के लम्बवत तल में से गुजरने वाले चुंबकीय बल रेखाओं की कुल संख्या, चुंबकीय फ्लक्स (फ़ाई) कहलाती है। इसका मात्रक मैक्सवेल और SI मात्रक वेबर है।
1 मैक्सवेल = 1 चुंबकीय बल रेखा
1 वेबर = 10-8 मैक्सवेल
NI\Rm वेबर
यहां N = कुंडली की लपेट संख्या
I = धारा एंपीयर में
Rm = प्रतिष्ठम्भ, एंपियर -टर्न\वेबर में
प्रतिष्ठम्भ
वैद्युत परिपथ के प्रतिरोध के सम्मान में ही चुंबकीय परिपथ में, चुंबकीय फ्लक्स के मार्ग में पदार्थ के द्वारा प्रस्तुत की गई बाधा, उस पदार्थ का प्रतिष्ठ्म्भ (Rm)कहलाती है। इसका मात्रक एंपियर-टर्न\वेबर है।
Rm = Fm\o एंपियर-टर्न\वेबर
यहां Fm = चुंबक वाहक बल एंपियर – टर्न में
चुंबक वाहक बल या चू. वा. ब.
जिस प्रकार वैद्युत परिपथ में चुंबक वाहक बल, इलेक्ट्रॉनों को चालक के आर-पार प्रवाहीत करता है, उसी प्रकार चुंबकीय वाहक बल (Fm) चुंबकीय परिपथ में चुंबकीय फ्लक्स के गतिमान करता है। इसका मात्रक एंपियर-टर्न है।
Fm = N.I एमपीयर टर्न
चुम्बकीय फ्लक्स घनत्व
चुंबकीय क्षेत्र में किसी चुंबकीय बल रेखा के लंबवत बल की इकाई क्षेत्रफल में से गुजरने वाले चुंबकीय बल रेखाओं की संख्या चुंबकीय फ्लक्स घनत्व (B) कहलाती है। इसका मात्रक वेबर\मी2 है।
B = Φ\A वेबर\मी2
हिस्टरेसिस
किसी चुंबकीय पदार्थ पर चुंबकन का बल आरोपित करने तथा उसे समाप्त करने में, पदार्थ में पैदा हुए चुम्बकत्व (B) को पिछड़ जाने का गुण हिस्टोरेसिस कहलाता है।
चुम्बकीय पदार्थों को हिस्टोरेसिस के आधार पर ही उनका चयन अस्थाई व स्थाई बनाने के लिए किया जाता है।
जिन उपकरणों में लोहे पदार्थ जो कुछ क्रोड़ प्रयोग की जाती है उनमें हिस्टरेसिस के कारण विद्युत ऊर्जा को जो क्षति होती है वह हिस्टरेसिस क्षति कहलाती है।
चुंबकशीलता
हवा अथवा निर्वात की तुलना में किसी पदार्थ पर समान चुम्बकन बल लगाने से उत्पन्न चुंबकीय फ्लक्स घनत्व, उस पदार्थ की चुंबकशीलता कहलाती है।
= B\H (कोई मात्रक नहीं)
यहां B = चुंबकीय फ्लक्स घनत्व, वेबर\मीटर2 में
H = चुम्बकन बल, न्यूटन\वेबर में
अवशिष्ट चुम्बकत्व
किसी पदार्थ को चुंबक बनाने के लिए उस पर आरोपित किए गए चुम्बकन बल को हटा लेने पर भी उस पदार्थ में कुछ चुंबकत्व शेष रह जाता है जो विशिष्ट चुंबकत्व कहलाता है। चुंबकीय पदार्थ का यह गुण धारणशीलता कहलाता है।
चुंबकीय पदार्थों का वर्गीकरण
विभिन्न चुंबकीय पदार्थों को उनकी चुंबकशीलता के आधार निम्नलिखित इन वर्गों में रखा जाता है।
अनु चुंबकीय पदार्थ
जिन पदार्थों को धागे से बांध कर चुंबकीय क्षेत्र में सफलतापूर्वक लटकाने पर वे चुम्बकीय क्षेत्र के बल रेखाओं के समांतर अर्थात कमजोर क्षेत्र से हटकर शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र में चले जाते हैं, अनु चुंबकीय पदार्थ कहलाते हैं, जैसे AL, Cr, Pt, Mn,Pd , Os, Na आदि.
प्रति-चुंबकीय पदार्थ
जिन पदार्थों को धागे से बांध कर चुंबकीय क्षेत्र में सफलतापूर्वक लटकाने पर वे शक्तिशाली क्षेत्र से हटकर कमजोर क्षेत्र में यथार्थ चुंबकीय बल रेखाओं के लंबवत आकर ठहर जाते हैं, प्रति चुंबकीय पदार्थ कहलाते हैं, जैसे Bi, Sb, Zn, Cu, Ag, Pb, Au,P, Hg आदि.
लोहा चुंबकीय पदार्थ
जिन पदार्थों को धागे से बांध कर चुंबकीय क्षेत्र में सफलतापूर्वक लटकाने पर वे समान ध्रुवों के साथ विकसित तथा असमान ध्रुवों के साथ आकर्षित हो जाते हैं और चुम्बक बन जाते हैं, लौह चुंबकीय पदार्थ कहलाते हैं, जैसे लोहा, कोबाल्ट, निकील, तथा इनकी मिश्र धातु है।
चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात करने के नियम
कार्क स्क्रू नियम
यदि किसी विद्युत् धारावाही चालक के एक सिरे पर बोतल की कॉर्क खोलने वाले पेच की नोक, चालक में विद्युत धारा प्रवाह की दिशा में आगे बढ़े तो पेंच की घुमाओ दिशा, चुंबकीय बल रेखाओं की दिशा होगी।
दाया हस्त नियम
यदि किसी विद्युत धारावाही चालक को दाएं हाथ से इस प्रकार पकड़े की अंगूठा विद्युत धारा प्रवाह की दिशा को इंगित करें तो अंगुलिया, चुंबकीय बल रेखाओं की दिशा को इंगित करेगी।
हेलीक्स का नियम
यदि किसी कुंडली को दाएं हाथ से इस प्रकार पकड़े की उंगलियां, कुंडली में से विद्युत धारा प्रवाह की दिशा को इंगित करें तो अंगूठा, उत्तरी ध्रुव को इंगित करेगा।
सिरे का नियम
यदि किसी कुंडली को एक सिरे को ध्यानपूर्वक देखने पर उसमें विद्युत धारा प्रवाह है, घड़ी की सुईयों के चलने के लिए सार्थक दक्षिणर्वात दिशा में है, तो वह सिरा उत्तरी ध्रुव होगा। यदि विद्युत् धारा प्रवाह की दिशा में है, तो वह सिरा उत्तरी ध्रुव
विद्युत चुंबकीय प्रेरण-
यदि किसी चालक का किसी चुम्बकीय क्षेत्र में इस प्रकार गतिमान किया जाए कि उसकी गति से चुंबकीय बल रेखाओं का छेदन होता है तो चालक में विद्युत वाहक बल पैदा हो जाता है, यह सिद्धांत विद्युत चुंबकीय प्रेरण कहलाता है। इस सिद्धांत की खोज माइकल फैराडे नामक वैज्ञानिक ने की थी। इसका उपयोग डीसी जनरेटर आदि में किया जाता है।
फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण के नियम
प्रथम नियम
यदि किसी चालक में गुजरने वाले तो चुम्बकीय फ्लक्स की मात्रा में परिवर्तन होता है, तो उस चालक में विद्युत वाहक बल पैदा हो जाता है और इस प्रकार पैदा हुए विद्युत वाहक बल का अस्तित्व तभी तक रहता है जब तक कि चुम्बकीय फ्लक्स की मात्रा में परिवर्तन होता रहता है।
द्वितीय नियम
प्रेरित विद्युत वाहक बल (e) का मान, चुंबकीय पदार्थ की मात्रा में परिवर्तन की दर (o-o1\t) के अनुक्रमानुपाती होता है
प्रेरित विद्युत वाहक बल
विद्युत-चुंबकीय प्रेरण के फलस्वरुप किसी चालक में पैदा होने वाला विद्युत वाहक बल, प्रेरित विद्युत वाहक बल कहलाता है और इसके कारण चालक में प्रवाहित होने वाली धारा, प्रेरित धारा कहलाता है।
किसी चालक में प्रेरित विद्युत वाहक बल निम्नलिखित दो प्रकार से पैदा होता है-
गतिजन्य प्रेरित विद्युत वाहक बल
जब कोई चालक किसी चुंबकीय क्षेत्र में इस प्रकार गति करता है कि उसके द्वारा चुंबकीय फ्लक्स का छेदन होता है, तो उसमें प्रेरित होने वाला विद्युत वाहक बल, गटजन्य प्रेरित विद्युत वाहक बल (e) कहलाता है।
E = B.l.v.sinθ वोल्ट
यहां B = चुंबकीय फ्लक्स घनत्व, वेबर\मीटर2 में
l = चालक की लंबाई, मी. में
V = चालक की गति, मी. में
sinθ= चालक की गति दिशा व चुंबकीय फ्लक्स के बीच के कोण की ज्या।
स्थितिजन्य प्रेरित विद्युत वाहक बल
यदि कोई चालक किसी प्रत्यावर्ती चुंबकीय क्षेत्र में उपस्थित हो, तो वह स्थित अवस्था में ही चुंबकीय अलग से परिवर्तन में बाधा डालता है और फलस्वरुप उसमें प्रेरित होने वाला विद्युत वाहक बल, स्थितिजन्य प्रेरित विद्युत वाहक बल कहलाता है।
e= N.dΦ\dt x 10-8 वॉल्ट
यहां N = कुंडली के लपेट की संख्या ।
लेंज नियम
किसी चालक मे प्रेरित विद्युत वाहक बल जनित प्रेरित धारा की दिशा सदैव इस प्रकार की होती है कि वह उस कारण विरोध करती है जिसके कारण वह पैदा होती है।
प्रेरकत्व
प्रेरक
जब किसी कुंडली मे से प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित कि जाती है, तो उसके चारों और एक प्रत्यावर्ती चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित किया जाता है, इस चुम्बकीय क्षेत्र मे अवस्थित उसी कुंडली अथवा दुसरी कुंडली अथवा दूसरी कुंडली फेरोड के नियमानुसार एक विधुत वाहक बल पैदा हो जाता है, यह प्रभाव प्रेरण कहलाता है।
टिप्पणी
डीसी परिपथों में प्रेरण का कोई अस्तित्व नहीं होता ।
प्रेरण के लिए दो कुंडलियों का आपस मे स्पर्श करने कि कोई आवश्यकता नहीं होती।
प्रेरकत्व
जब किसी कुंडली मे से प्रत्यावर्ती धारा प्र्वाहित कि जाती है, तो उसमे एक विरोधी करता है। कुंडली का यह गुण उसका प्रेरकत्व कहलाता है। इसका प्रतीक L है और मात्रक हैनरी (h) है।
1 हैनरी = 1वॉल्ट\1 कुलाम
किसी कुंडली के प्रेरकत्व की गणना निम्नलिखित सूत्र से की जाती है.
1 = N = NΦ\1 हैनरी
यहाँ N = कुंडली की लपेट संख्या
o = कुंडली में सभी करने वाला चुंबकीय फ्लक्स फेबर में।
1 = कुंडली मे से गुजरने वाली धारा एम्पियर में।
स्व-प्रेरकत्व
किसी कुंडली मे से प्रत्यावर्ती धारा प्र्वहित करने पर उस कुंडली द्वारा, धारा मान मे हो रहे परिवर्तनों का विरोध करने का गुण उसका स्व-प्रेरकत्व कहलाता है। इसका प्रतीक L और मात्रक हैनरी (H) है।
सह-प्रेरकत्व
जब किसी कुंडलों मे से प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित कि जाती है, तो उस कुंडली द्वारा स्थापित प्रत्यावर्ती चुम्बकीय क्षेत्र मे अस्थित सभी कुंडलीय मे विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार दो या दो से अधिक कुंडलियों का वह गुण जो उनमें से प्र्वहित हो रही है, विदयुत धारा के मान मे हो रहे परिवर्तनों का विरोध करता है, सह-प्रेरकत्व कहलाता है। इसका प्रतीक M और मात्रक हैनरी (H) है।
M= L1, L2
कपलिंग गुणाक
जब दो कुंडलियों इस प्रकार अवस्थित हों की वह कुंडली से दूसरी कुंडली मे विधुत ऊर्जा का स्थानातरण होता,तो दोनों कुंडलियों परस्पर युग्मित कहलाती है और युग्मन का प्रतिशत उनका कपलिंग गुणाक (K) कहलाता है।
K = M\ L1,L2
कुंडलियों का समूहन
परिपथ की आवश्यकता के अनुसार प्रतिरोध की भांति ही कुंडलियों को निम्नलिखित दो संयोजन मे संयोजित किया जाता है।
श्रेणी-क्रम मे कुंडलियाँ
कुल प्रेयरकत्व,LT = L1 + L2 + L3 + …….. हैनरी यदि दो कुण्डलिया केई मध्य युग्मन भी उपस्थित हो, टीओ कुल प्रेरकत्व
LT = L1+ L2 + 2K / L1.L2 हैनरी
समानान्तर-क्रम मे कुंडलियों
कुल प्रेरकत्व,
1\LT = 1\L1 + 1\L2 + 1/L3+……. हैनरी
प्रेरकीय प्रतिघात
किसी कुण्डली द्वारा प्रत्यावर्ती धारा प्र्वाह के लिए प्रस्तुत किया जाने वाला विरोध उसका प्रेरकीय प्रतिघात कहलाता है। इसका प्रतीक x तथा ओम है।
x = 2 f.L. ओम
यहाँ f = आवृति, हर्ट्ज मे
L = प्रेरकत्व, हैनरी में।
समय नियातक
किसी कुंडली मे धारा का शून्य मान से अपने अधिकतम मान के 63% मान तक पहुचने मे लगा समय उसका समय नियांतक (t) कहलाता है। इसका मात्रक सेंकण्ड है।
t= L\R सेकंड
यहाँ L = प्रेरकत्व हैनरी मे
R = परिपथ का प्रतिरोध, ओम मे
भंवर धारएं
यदि किसी चालक को प्रत्यावर्ती चुम्बकीय क्षेत्र में रख दिया जाता है उस में उत्पन्न हुए प्रेरित धाराएं चालक में ही चक्कर काटती रहती है और इसलिए इन्हें भंवर धाराएं कहते हैं। इनकी खोज फ़ूको नामक वैज्ञानिक ने की थी। यह धाराएं लेंज के नियमों का अनुपालन करती है।
भवर धाराओं के कारण चुंबकीय फ्लक्स का जो अपव्यय होता वह है वह भंवर क्षति कहलाता है।
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