जिसका कोई निश्चित भार होता है और जो स्थान घेरता है.i वह पदार्थ कहलाता है. पृथ्वी पर पदार्थ तीन रूपों में पाया जाता है- ठोस, द्रव, तथा गैस।
प्रत्येक पदार्थ छोटे-छोटे कणों से निर्मित होता है जो अणु कहलाते हैं। किसी पदार्थ का वह छोटे-से-छोटा कण जिसमें उस पदार्थ के सभी भौतिक तथा रासायनिक गुण विद्यमान हो और जो स्वतंत्र अवस्था में विद्यमान रह सके, अणु कहलाता है। पृथ्वी पर पाए जाने वाले पदार्थों की कुल संख्या निश्चित नहीं है इसलिए अणुऑ की किस्मों की संख्या भी निश्चित नहीं है।
पदार्थ का प्रत्येक अणु, अपने से छोटे कणों से निर्मित होता है जो परमाणु कहलाते है। किसी का वह छोटे-से-छोटा कण जो रासायनिक क्रियाओं में भाग ले सके अथवा उनके द्वारा पृथक किया जा सके और स्वतंत्र अवस्था में विद्यमान न रह सके परमाणु कहलाता है।
एक ही प्रकार के परमाणुओं से निर्मित पदार्थ तत्व कहलाते हैं। जबकि दो या दो से अधिक प्रकार के परमाणुओं से निर्मित पदार्थ यौगिक कहलाते हैं। पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से प्राप्त तत्वों की संख्या 92 है और अब तक 13 तत्व कृत्रिम रूप से प्रयोगशालाओं में बनाए जा चुके हैं। वैज्ञानिक मेंडलीफ के अनुसार तत्वो की अधिकतम संभावित संख्या 108 है।
परमाणु की सूक्ष्मतम कण नहीं है। यह मुख्यतः प्रोटीन, न्यूट्रॉन तथा इलेक्ट्रॉन से बना होता है। इनके अतिरिक्त परमाणु में कुछ अस्थाई, कण पोजिट्रोन, एंटी न्यूट्रोन, मैसोन, पायोन, केयान, आदि भी होते हैं।
इनमें से प्रथम चारों और विभिन्न कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन की अधिकतम संख्या 2n2 सूत्र से ज्ञात की जा सकती है जबकि n कक्ष की संख्या है.
कक्षाओं को उप कक्षाओं में विभाजित किया जाता है जो s, p, d, f अक्षरों से व्यक्त की जाती है.
किसी कक्षा में 2n2 सूत्र के द्वारा निर्धारित संख्या में इलेक्ट्रॉन पूर्ण हो जाने के बाद ही इलेक्ट्रॉन दूसरी कक्षा में जाते हैं.
अंतिम कक्षा में 8 से अधिक तथा उससे पहली कक्षा में 18 से अधिक इलेक्ट्रॉन नहीं होते
किसी कक्षा में 8 इलेक्ट्रॉन पूर्ण हो जाने पर ही नई कक्षा का निर्माण प्रारंभ हो सकता है.
किसी तत्व के परमाणु के नाभिक में अवस्थित प्रोटॉनों तथा न्यूट्रॉनों की कुल संख्या उसका परमाणु भार कहलाती है.
किसी तत्व के परमाणु की अंतिम कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रॉन दूसरे परमाणु के साथ संयोजी बन्ध स्थापित करते हैं, इसलिए उन्हें संयोजी इलेक्ट्रॉन कहा जाता है। प्रत्येक परमाणु का यह स्वाभाविक प्रयास रहता है कि वह अपनी अंतिम कक्षा में आठ इलेक्ट्रॉन पूर्ण कर ले (हाइड्रोजन को छोड़कर) इसके लिए या तो वह अपनी अंतिम कक्षा में परिक्रमण करने वाले केवल एक दो इलेक्ट्रॉन दूसरे परमाणु को देखकर अंतिम से पहली कक्षा पूर्ण रखे अथवा दूसरे परमाणु से 12 इलेक्ट्रॉन लेकर अपनी अंतिम कक्षा में 8 इलेक्ट्रॉन पूर्ण कर लें। परमाणु के इसी प्रयास के फल स्वरुप विभिन्न तत्वों के परमाणुओं में रासायनिक क्रियाएँ संपन्न है और नए यौगिकों का निर्माण होता है।
अधिकांश धातुओं की अंतिम कक्षा में केवल कल-दो इलेक्ट्रॉन होते हैं और इन्हें दूसरे परमाणुओं द्वारा आरोपित थोड़े से आकर्षण बल के द्वारा परमाणु से विस्थापित किया जा सकता है। इसका कारण यह है कि अपने नाभिक से दूर होने के कारण इनमें अपने नाभिक के प्रति आकर्षण का मान बहुत कम रह जाता है। इस प्रकार के लिए इलेक्ट्रोन लगभग मुक्त अवस्था में रहते हैं और मुक्त इलेक्ट्रॉन कहलाते हैं।
आयन. आवेश प्रमाण पत्र प्रमाण वो का समूह है आयन कहलाता है। जब किसी परमाणु में 1-2 इलेक्ट्रॉन की कमी अथवा अधिकता पैदा हो जाती है तो वह वैदिक रूप से उदासीन नहीं रहता, अर्थात आवेश युक्त हो जाता है और आयन कहलाता है। आयन दो प्रकार के होते हैं
धनयान
जिस परमाणु में निर्धारित संख्या की तुलना में इलेक्ट्रॉन की कमी पैदा हो जाती है वह धनायन कहलाता है।
जिस परमाणु में निर्धारित संख्या की तुलना में इलेक्ट्रॉनों की अधिकता पैदा हो जाती है वह ऋण आयन कराता है।
परमाणु तत्व प्रमाणु समूहों के आयन बनाने की प्रक्रिया आयनीकरण कहलाती है। अकार्बनिक पदार्थ में अधिकांश रासायनिक क्रिया के रूप में ही संपन्न होती है।
किसी तत्व अथवा पदार्थ में से इलेक्ट्रॉन का प्रभावित धारा कहलाता है। प्रारंभ बौद्ध प्रवाह धरा वस्तु से ऋण की ओर होती है। परंतु इलेक्ट्रॉन की खोज एवं परमाणु संरचना ज्ञात हो जानी के बाद पता चलता है कि इलेक्ट्रॉनों की अधिकता वाली वस्तु से कम वाली वस्तु की अर्थात ऋण वस्तु से धन वस्तु की ओर होती है। इस नवीन अवधारणा को इलेक्ट्रॉन का प्रवाह कहा जाता है।
पदार्थ का वह स्वाभाविक गुण जिसके कारण वह अपने में से होने वाले विद्युत धारा प्रभा का विरोध करता है, प्रतिरोध कहलाता है। इसका प्रतीक R तथा मात्रक Ω है।
नियम तापमान तथा नियत भौतिक परिस्थितियों में किसी बंद वैदिक डी.सी. परिपथ में किसी प्रतिरोधक के सिरों पर पैदा होने वाला विभवांतर (V) उस प्रतिरोधक में से प्रवाहित होने वाली धारा के मान के अनुक्रमानुपाती होता है।
V a 1
या v\1 = नियातक
या V\1 = R
या R = V\1 या V = IR या 1 = V\R
यहां R = प्रतिरोध, ओम में
V = विभवांतर, वॉल्ट मे
1 = धारा एंपीयर में
विशिष्ट प्रतिरोध : किसी पदार्थ की प्रतियोगिता अर्थात किसी पदार्थ की इकाई लंबाई तथा अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल वाले टुकड़े का प्रतिरोध उसका विशिष्ट प्रतिरोध कराता है।
p = Ra/1
विशिष्ट प्रतिरोध का मात्रक ओम-सेंमी अथवा ओम-मीटर होता है। तांबे का विशिष्ट प्रतिरोध 172 x 10-6 ओम सेंटीमीटर तथा नाइक्रोम का विशिष्ट प्रतिरोध 1085 x 10-5 ओम-सेंमी होता है।
जब किसी पदार्थ के टुकड़े अथवा उससे बने तार के एक अंश को एक निश्चित प्रतिरोध मान प्रस्तुत करने वाले पुर्जे का रूप दे दिया जाता है तो वह प्रतिरोधक कहलाता है। मानव शरीर का प्रतिरोध 10000 से 50000 के बीच होता है प्रतिरोध मुख्यतः दो प्रकार से बनाए जाते हैं।
दोनों प्रकार के प्रतिरोधक नियम मान परिवर्ती मान किस्मों बनाए जाते हैं।
नियत मान कार्बन प्रतिरोधको का आकार इतना छोटा होता है कि उनकी बॉडी पर रंगों की पटिटया के द्वारा उनका मान अंकित किया जाता है।
रंग | पहला अंक | दूसरा अंक | गुणांक | सहनसीमा |
काला | 0 | 0 | 1 | – |
भूरा | 1 | 1 | 10 | +1% |
लाल | 2 | 2 | 102 | +2% |
नारंगी | 3 | 3 | 103 = K | +3% |
पीला | 4 | 4 | 104 | +4% |
हरा | 5 | 5 | 105 | – |
नीला | 6 | 6 | 106 – M | – |
बैंगनी | 7 | 7 | – | – |
सलेटी | 8 | 8 | – | – |
सफेद | 9 | 9 | – | – |
सुनहरी | – | – | 0.1 | +5% |
चांदनी | – | – | 0.01 | +10% |
कोई रंग नहीं | – | – | – | +20% |
आवश्यकतानुसार प्रतिरोधको को निम्न तीन प्रकार से संयोजित किया जा सकता है-
जटिल प्रकार के डी.सी. परिपथों में विद्युत धारा की गणना के लिए रूसी वैज्ञानिक किरचोफ ने दो नियम प्रतिपादित किए थे जो निम्न प्रकार है-
धारा नियम : किसी बंद डी.सी. परिपथ में चालकों के संगम विद्युत् धाराओं का बीजगणितीय योग शून्य होता है ।
I1 + I 2 – I3 -I4 – I5 = 0 या 1 =0
किसी बंद डी.सी. परिपथ में आरोपीत वि. वा. बलों का बीजगणितीय योग परिपथ घटकों के वोल्टता – स्तनों के बीज गणितीय योग के तुल्य होता है।
विद्युत शक्ति कार्य करने की दर शक्ति कहलाती है।
P = VI या P = 1-2,R या P = V2\R
1kW = 1000 W, IMW = 1000 kW
कार्य करने की क्षमता उर्जा कहलाती है.
विद्युत ऊर्जा E = P .t या E = V.L .t या = I2.R.t या E = V2* t\R
B.O.T (Board of Trade) Unit
1 kwh = वाट x घंटे\ 1000
1 kWh = 1.34 HP (ब्रिटिश)
= 1.366 HP (मैट्रिक)
जब किसी चौक में से विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो वह गर्म हो जाता है। जल चालक में पैदा हुए ऊष्मा की मात्रा विधि द्वारा मान के वर्ग तथा प्रतिरोध व समय के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती होती है।
H = 12 R .. t. जुल
H = 1.2 R. t\4.18 कैलोरी
प्रतिरोध का विलोम चालकता कहलाता है। इसका पर G तथा मात्रक साइमन (S) है।
G= 1\R
एंपियर, वॉल्ट, ओम, व्हाट आर दी वेडिंग राशियों के मापन के लिए क्रमश: एमीटर, वोल्टमीटर, ओम मीटर, वाटमीटर राधे यंत्र प्रयोग किए जाते हैं। यंत्र मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं (I) एंनलॉग यंत्र, (ii) डिजिटल यंत्र। पहले प्रकार के यंत्र मिरासी का मान 1 संकेतक दर्शाता है, जबकि दूसरे प्रकार के यंत्र में राशि कमान इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल डिसप्ले के द्वारा सीधे ही अंको में दर्शाया जाता है।
यंत्र | उपयोग | संयोजन विधि |
वॉल्ट मीटर | विभवांतर तथा | लोड\ श्रोत के समांतर क्रम |
वि वा ब मापन | मैं परिपथ में | |
ओम मीटर | प्रतिरोध मापन | परीथक किए गए प्रतिरोधक को |
यंत्र के श्रेणी क्रम में | ||
वॉट मीटर | वाटेज मापन | लाइन तथा लोड की श्रेणी क्रम में |
एनर्जी मीटर | kWH मापन | लाइन तथा लोड की श्रेणी क्रम में |
सेलों का समूह बैटरी कहलाता है ।
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