जिस धारा की दिशा और मान एक निश्चित दर पर परिवर्तित होते रहते हैं, वह प्रत्यावर्ती धारा या ए.सी. कहलाती है।
उचत्तम मान : ए.सी. के चक्कर में धन अथवा ऋण दिशा में धारा अथवा वोल्टता का का उच्चतम मान, सम्मान कहलाता है। इसे Emax से दर्शाया जाता है और इसे आया हम भी कहते हैं।
औसतन मान : jज्या वक्र रूप ए सी के 1 चक्कर में धारा अथवा वोल्टता का oऔसत शून्य होता है। अंतर ऐसी के अर्द्ध चक्कर में धारा अथवा वॉल्टता के तत्कालिक मानो का उस पर ही ऐसी का औसत मान कहलाता है।
E = 0.637 max
I ave = 0.637 L max
रूट मीन स्क्वेयर आर.एम.एस. मान : किसी ने नियतमान की दिष्ट धारा नियत समय मैं जितनी ऊष्मा पैदा करती है, उतने ही समय में उतनी ही उस्मा करने के लिए आवश्यक प्रत्यावर्ती धारा का मान, उसका आर एम एस का मान कहलाता है.
E RMS = 0.707 E max
I RMS = 0.707 I max
आकृति गुणक (Form Factor)
Kf = ERMS\Eave = 0.707Emax\E max = 1.11
आयाम गणक
K = Emax\ERMS = Emax\0.707Emax = 1.414
आवृत्ति : एक सेकंड समय में पूर्ण होने वाले चक्रों की संख्या आवृत्ति कहलाती है. इसका प्रतीक f तथा मात्रक हर्ट्ज (Hz) है।
f = P.N\120 हर्ट्ज
यहाँ, N = आल्टरनेटर के आर्मेचर की घूर्णन गति, RPM में ।
1 kHz =103 Hz
1 MHz = 106 Hz
1 GHz = 109 Hz
समय अंतराल – एक चक्र पूर्ण होने में लगा समय, समय अंतराल कहलाता है. इसका प्रतीक T तथा मात्रक सेकंड है.
T = 1\f सेकंड
तरंगदैर्ध्य: एक चक्र समय में किसी तरंग द्वारा तय की गई सीधी दूरी उसकी तरंगदैर्ध्य कहलाती है. इसका प्रतीक λ (लैंबडा) तथा मात्रक मीटर है।
λ∞1\f मीटर
या λ.f= नियतांक
या v = f λ
यहां, v = तरंग की गति, मीटर/ से में.
फ्लेमिंग का बाएं हाथ का नियम- यदि बाएं हाथ की प्रथम और द्वितीय अँगुलियों तथा अंगूठे को परस्पर संपूर्ण बनाते हुए फैलाएं और प्रथम उंगुली चुंबकीय क्षेत्र की दिशा तथा द्वितीय उंगली आरोपित वि. वा. ब. या धारा की दिशा में हो, तो अंगूठा, चालक की गति दिशा को इंगित करेगा। इस नियम का उपयोग मोटरों में आर्मेचर की घूर्णन दिशा ज्ञात करने के लिए किया जाता है।
फ्लेमिंग का दाएं हाथ का नियम : यदि दाएं हाथ की प्रथम और द्वितीय मूल्य तथा अंगूठे की परस्पर समकोण बनाते हुए फैलाएं और प्रथम उंगूली चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में हो और अंगूठा चालक की गति दर्शाए तो द्वितीय उंगली प्रेरित वी वा ब की दिशा दगीत करेगी।
इस नियम का उपयोग जरनेटर तथा अल्टरनेटर्स में प्रेरित होने वाले वि. वा. ब. की दिशा ज्ञात करने में किया जाता है।
परिभाषा: ए.सी. परिपथ ने वास्तविक शक्ति एवं आभासी शक्ति का अनुपात, पावर फैक्टर कहलाता है?
PF = वास्तविक शक्ति/आभासी शक्ति या PF = V.I cosθ\V.I. = cosθ
मान: पावर फैक्टर का अधिकतम मान इकाई अर्थात 1 होता है. इसका कोई मात्रक नहीं होता।
ए.सी. परिपथ में प्रतिरोध ,कुंडलिया संधारित्र में से एक, दो या तीन नो घटक श्रेणी और समांतर संयोजन में ऐसी स्रोत से जुड़े हो वह ऐसी परिपथ कहलाता है. एसी परिपथ ओं के प्रमुख सूत्र निम्न प्रकार है-
श्रेणी RL परिपथ Z = R2 + XL2
श्रेणी RC परिपथ Z = R2 + XX2C
श्रेणी RLC परिपथ Z = R2 + (XL – XC)2
समांतर RC परिपथ Z = RX C \R22 + X2C
समांतर RLC परिपथ 1\Z = Y 1\R2 (1\XL- 1\XC)2
शक्ति घटक
सभी प्रकार के श्रेणी पदों के लिए COS = R\Z
सभी प्रकार के समांतर परिपथ को के लिए COS Z\R
शक्ति व्यय – सभी प्रकार के श्रेणी एवं समांतर परिपथ के लिए –
P = VI cos
जहां R = प्रतिरोध, ओम
XL = प्रेरकीय प्रतिघात, ओम मैं
XC = प्रेरकीय प्रतिघात, ओम मैं
Z = अपघात, ओम मे
Y = प्रवेशयता ( एडमिटेस) साइमन में
cos = शक्ति घटक
V = वोल्टता, वॉल्ट मे
I = धारा, एंपियर में
ए.सी. परिपथ में वह स्थिति जिसमें प्रेरकिय प्रतिघात का मान धारकीय प्रतिघात के बराबर हो अनुवाद कहलाती है।
अनुनाद आवृति fr= 1\2π\LC हर्ट्ज
स्टार संयोजन
लाइन धारा फेज धारा
या IL = IF
लाइन वोल्टता = √3 x फेज वोल्टता
या EL = √3E P
उपयोग: 3 फेज दिखाते कल फेज विद्युत वितरण में इसका उपयोग किया जाता है। 5 अश्व-शक्ति से कम शक्ति की ए.सी. मोटरों को स्टार संयोजन में ही चलाया जाता है।
लाइन धारा = √3 x फेज धारा
या IL = \ 3I P
लाइन वोल्टता फेज वोल्टता अर्थात EL = EP
उपयोग: अश्वशक्ति से अधिक शक्ति की ऐसी मोटरों को 7 दिन में स्टार्ट चंदन में चलकर अधीक शक्ति प्राप्त होती है।
संतुलित लोड के लिए : एक सिंगल फेज वाट मीटर से एक फेज वाट मीटर से एक फेज का शक्ति व्यय नाप कर उसे तीन गुणा करके कुल शक्ति व्यय प्राप्त किया जाता है।
असंतुलित लोड के लिए : तीनों फेस में एक-एक सिंगल फेज वाट संयोजित कर कुल शक्ति व्यय ज्ञात किया जाता है
PT = P1 + P2 +P3
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