आज इस आर्टिकल में हम आपको बिहार के प्राचीन शिक्षा केंद्र के बारे में बता रहे है जिसकी मदद से आप न सिर्फ BPSC की बल्कि Anganwadi, AIIMS Patna, BPSC, BRDS, BSPHCL, Bihar Education Project Council, IIT Patna, RMRIMS, Bihar Agricultural University, District Health Society Arwal, Bihar Police, Bihar Steno, Bihar Constable, BSSC के एग्जाम की तैयारी आसानी से कर सकते है.
नालंदा विश्वविद्यालय भारत के सर्वश्रेष्ठ बौद्ध शिक्षा केंद्र के रूप में चर्चित रहा है. इसकी स्थापना गुप्त सम्राट शक्रादित्य, जिसकी पहचान कुमार गुप्त प्रथम (415-454 ई.) के रूप में की गई है, ने बौद्ध धर्म के प्रति अपनी गहरी आस्था को प्रदर्शित करने के लिए की थी.
इस विश्वविद्यालय के बारे में अधिकतम जानकारी के मुख्य स्रोत चीनी यात्री हैनसांग के विवरण कन्नौज नरेश यशोवर्मन के नालंदा अभिलेख हैं. कुमार गुप्त के पुत्र बुद्धगुप्त ने भी वहां एक बौद्ध विहार का निर्माण करवाया. आगे चलकर सम्राट हर्षवर्धन ने भी यहां एक विहार बनवाया. हर्षवर्धन के समय नालंदा महाविहार एक अंतरराष्ट्रीय शिक्षण संस्थान के रूप में विख्यात हो गया.
यहां अध्ययन के लिए भारत के अलावा जावा, तिब्बत, चीन, कोरिया और श्रीलंका के छात्र प्रवेश लेते थे. इस विश्वविद्यालय में सभी विषयों की शिक्षा दी जाती थी, लेकिन बौद्ध धर्म की महायान शाखा की शिक्षा विशेष रूप से उल्लेखनीय थी. नालंदा विश्वविद्यालय में रत्नोंदघी, रतन सागर, रतन राजपूत नामक 3 भवनों में धरमगंज नमक विशाल पुस्तकालय अवस्थित था. 9 मंजिला पुस्तकालय भवन एक दर्शनीय स्थापत्य कृति थी. शीलभद्र यहां के प्रख्यात कुलपति रहे हैं.
धर्मपाल, चंद्र पाल, गुणमती, स्थिरमिति, प्रभा मित्र, जिनमित्र, दिगनाग, ज्ञान चंद्र, नागार्जुन, वसुबंधु, असंग, धर्मकीर्ति, आदि नालंदा विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध आचार्य थे. नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा का माध्यम पाली भाषा थी. पाली वंश शासक धर्मपाल ने नालंदा महाविहार को 200 ग्राम दान स्वरूप दिए थे.
जावा और सुमात्रा के शैलेंद्र वंशीय शासक बालपुत्रदेवा ने वहां 1 मठ बनवाया, तथा उसके निर्वाह के लिए अपने मित्र बंगाल के पालवंशी शासक देवपाल से नालंदा में एक बौद्ध मंदिर, बनाने की अनुमति प्राप्त की. उस मंदिर की देखरेख के लिए देव पाल ने 5 गांव तथा आर्थिक सहायता (अनुदान के रूप में) दी, बख्तियार खिलजी के आक्रमण से 12वीं शताब्दी के अंतिम दशक में (प्रारंभिक मध्यकाल) नालंदा विश्वविद्यालय को विनष्ट हो गया.
2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने नए राष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय स्थापित करने हेतु मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को प्रेरित किया. 2007 में बिहार विधानमंडल में इस वी. वी. की स्थापना संबंधी प्रस्ताव पारित हुआ तथा इसी वर्ष मेंटर ग्रुप का गठन हुआ. 2007 और 2009 में लाओस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम, जर्मनी, जापान ऑस्ट्रेलिया आदि अनेक देशों ने इसके निर्माण में सहयोग की इच्छा प्रकट की है.
2010 में संसद में इस यूनिवर्सिटी का बिल पास हुआ. 2012 में नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्यसेन को मेंटर ग्रुप का चीफ चूना गया. डॉ गोपाल को इस विश्वविद्यालय का पहला कुलपति बनाया गया. दो विषयों- हिस्टोरिकल स्टडीज और इकोलॉजी एवं इन्वायरमेंटल स्टडीज की पढ़ाई के साथ इसके प्रथम सत्र की शुरुआत है हालांकि 1 सितंबर, 2014 को हुई, किंतु इस विधिवत, उद्घाटन 19 सितंबर, 2014 को, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा किया गया. 12 अगस्त, 2016 को वी. वी. का पहला दीक्षांत समारोह आयोजित हुआ.
ओदंतपुरी वर्तमान बिहार नामक नगर अथवा बिहार शरीफ का प्राचीन नाम था. ओउदंतपुरी विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के प्रथम शासक गोपाल (730-749 ई. ) ने की थी. महारक्षित, चंद्र कृति, धर्मरक्षित, शीलरक्षित ओदंतपुरी विश्वविद्यालय के प्रमुख विद्वान थे.
इसके समृद्धि काल में यहां 1000 विद्यार्थी शिक्षा पाते थे. यहां के प्रमुख विद्यार्थियों में आतशा दीपंकर श्रीमान था, जिस ने बौद्ध धर्म का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया. यहां बुध द्वारा आविकृत भौक्षुकी लिपि प्रचलित थी. 13वीं सदी के आरंभ में बख्तियार खिलजी के पुत्र मुहम्मद ने इसे नष्ट कर दिया.
विक्रमशिला विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म वज्रयान शाखा का प्रमुख केंद्र था. यहाँ न्याय तत्वज्ञान एवं व्याकरण की शिक्षा प्रदान की जाती थी. वर्तमान भागलपुर शहर से लगभग 24 मील पूर्व की ओर पत्थर घाट नामक पहाड़ी पर सचिन विक्रमशिला महाविहार की स्थापना पाल वंश के शासक धर्मपाल (775-800 ई.) ने की थी.
इस विश्वविद्यालय के महान विद्वानों में रक्षित, विरोचन, ज्ञानभद्र, रत्नाकर, शांति ज्ञान श्रीमित्र, अभयंकर गुप्त, तथागत, रतनवज्र का नाम प्रमुख है. दीपंकर श्री ज्ञान यहां के प्रतिष्ठित विद्वान एवं विश्वविद्यालय के कुलपति थे.
विक्रमशिला विश्वविद्यालय में 6 महाविद्यालय थे तथा प्रत्येक विश्वविद्यालय में प्रवेश हेतु द्वारपंडित द्वारा अभ्यार्थियों के परीक्षण किए जाने की परंपरा थी. इसी परीक्षण में सफलता के उपरांत ही किसी का विश्वविद्यालय में प्रवेश संभव था.
इस विश्वविद्यालय को भी खिलजी ने नष्ट किया था. इस घटना का उल्लेख समकालीन इतिहासकार मिनहाज-उस-सिराज ने अपने ग्रंथ तबकात-ए-नासिरी में किया.
तिलधक मगध में प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र था इस महाविद्यालय का उल्लेख चीनी यात्रियों हेनसांग ने अपने यात्रा विवरण में किया है. यहां महायान संप्रदाय का केंद्र था. इसके प्रसिद्ध विद्वान प्रज्ञाभद्र थे. तिलधक महाविद्यालय की स्थापना का श्रेय हर्यक वंश के शासक को जाता है. नालंदा के समीप क्लास गांव के रूप में इस महाविद्यालय को पहचाना गया है.
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