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छत्तीसगढ़ का प्राकृतिक स्वरूप

प्राकृतिक रूप से अत्यंत समृद्ध छत्तीसगढ़ राज्य की समृद्धि का कारण महानदी तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा निर्मित 80 किलोमीटर चौड़े तथा 322 किलोमीटर लंबे उस मैदानी भू-भाग को दिया जाता है जो छत्तीसगढ़ के मध्य स्थित है। यह मैदान 300 मीटर ऊंचा है। इस मैदानी क्षेत्र के अंतर्गत रायपुर, बिलासपुर एवं दुर्ग के दक्षिणी भाग आते हैं। प्राकृतिक (भौतिक) रूप से इस राज्य को निम्नलिखित चार भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  • बघेलखंड प्रदेश
  • जसपुर समारी (पाट) प्रदेश
  • महानदी बेसिन
  • दंडकारण्य पठार

बघेलखंड प्रदेश

यह प्रदेश छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तरी भाग में स्थित है। इसमें सरगुजा तथा कोरिया जिलों के भाग आते हैं। उत्तर में उत्तर प्रदेश, उत्तर पश्चिम में मध्य प्रदेश, उत्तर पूर्व में झारखंड, दक्षिण-पूर्व में जशपुरसामरी पाट प्रदेश एवं दक्षिण में महानदी बेसिन है।

बघेलखंड का प्राचीनतम भूखंड का भाग है। कोरिया एवं सरगुजा के अधिकांश भागों में खाद्य महाकल्प कि चट्टानें मिलती है। आद्य महाकल्प शैल समूह में धारावाडयुगीन शैलें आती है। कोरिया तथा समीपवर्ती भागों में मटीले बलुआ पत्थर की विषम पहाड़ियां मिलती है यह औसत रूप से 760 से 915 मीटर ऊंची है। इस प्रदेश में रिहंद, हसदो, कनहर प्रमुख नदियां हैं।

कर्क रेखा इस प्रदेश के लगभग बीच से गुजरती है। अंत यहां की जलवायु मानसूनी है। यहां गर्मी उष्णार्द्र एवं शीतऋतु सामान्य एवं शुष्क पाई जाती है। यहां मई में सर्वाधिक तापमान पाया जाता है। यहां ग्रीष्मकालीन औसत तापमान 35 सेंटीग्रेट तथा शीतकाल में 10 से 12 सेंटीग्रेड तक पाया जाता है। सरगुजा में वर्षा का वार्षिक औसत 154 सेंटीमीटर पाया जाता है। दक्षिणी सरगुजा के मैनपाट क्षेत्र में बंगाल की खाड़ी से आने वाली आर्द्र हवाएँ वर्षा करती है।

जशपुर – सामरी (पाट) प्रदेश

यह प्रदेश छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तरी-पूर्वी भाग में बहुत छोटे भाग में स्थित है। इसमें जशपुर जिला तथा कुछ भाग सरगुजा जिले सामरी (कुसमी) तहसील सम्मिलित है। इसे पाट प्रदेश कहा जाता है। इस प्रदेश को पूर्व में छोटा नागपुर का पठार, पश्चिमी में बघेलखंड का पठार (सरगुजा का पठार) तथा दक्षिण पश्चिम में महानदी बेसिन सीमांकित करते हैं।

जशपुर सामरी पाट प्रदेश एक पठारी क्षेत्र है जो महानदी के मैदान से ऊपर उठकर छोटा नागपुर के पठार में मिल जाता है। इस प्रदेश का धरातल सीधी के समान है जिसमें कई समतल तल जो तीव्र ढालों के द्वारा एक-दूसरे से पृथक है। दक्षिण में सबसे नीचा तल है जो लगभग 300 मीटर ऊंचा है। ढाल के ऊपर-चढ़ने पर जो 400 से 1000 मीटर ऊंचा है, वहीं पाट प्रदेश कहलाता है। पाट शब्द समतल शिखर वाले मीसा रूपी पठारों के लिए प्रयुक्त होता है।

इस प्रदेश की संरचना अत्यंत प्राचीन शैलों से निर्मित है जिसमें (1) अवर्गीकृत रवेदार नीस, धारवाड़, दक्षिण का लावा और लेटेराइट प्रमुख है। इस प्रदेश में अधिकांशत आर्कियन शैलें हैं। यह अंतवर्धी आग्नेय चट्टाने (ग्रेनाइट, नीस, एवं शिष्ट) आदि है।

इस प्रदेश में तीन नदी प्रणालियां हैं – महानदी की शाखा ईब नदी, ब्राह्मणी नदी की सहायक शंख नदी तथा, गंगा की सहायक सोन की सहायक कंतर नदी।

जशपुर- सामरी पाट प्रदेश का उत्तरी भाग जिसमें संपूर्ण सामरी (कुसमी) तहसील तथा जशपुर तहसील सम्मिलित है, उत्तरी-पश्चिमी किनारे का भाग सम्मिलित है, कनहर तथा गेयोर नदियों द्वारा सोन नदी में अपवाहित होता है।

यहां की जलवायु उष्णकटिबंधीय मानसूनी है। जशपुर की ऊंचाई 771 मीटर है अंत: समीपवर्ती मैदानी भाग से गर्मी कम रहती है।

महानदी बेसिन 

प्राचीनकाल में इसे कौशल के नाम से जाना जाता था। महानदी के ऊपरी अपवाह क्षेत्र में पड़ता है। इसके अंतर्गत रायगढ़,  कोरबा, बिलासपुर, जांजगीर, कवर्धा, रायपुर, महासमुंद, दुर्ग, राजनंदागांव, धमतरी आदि जिले सम्मिलित है। इसका विस्तार 1947 तथा 237 उत्तरी अक्षांश से 8017 पूर्वी देशांतर से 8352 पूर्वी देशांतर तक है। इसका क्षेत्रफल लगभग है 68,064 वर्ग किलोमीटर है। इसके उत्तर में बघेलखंड के छोटे-छोटे पठार, पश्चिम में मैकल श्रेणी, दक्षिण में दंडकारण्य का पठार तथा दक्षिण-पूर्व में रायपुर उच्च भूमि स्थित है। पूर्व की ओर महानदी एक संकरी मार्ग द्वारा उड़ीसा के मैदान में उतरती है। भूगर्भिक संरचना की दृष्टि से यह प्रदेश कडप्पा शैलसमूह से निर्मित है। इसमें धारावाड एवं गोंडवाना शैलसमूह भी पाए जाते हैं।

महानदी बेसिन समुद्र तल से 300 मीटर से कम होता है। यह पूर्व की और थोड़ी झुकी तश्तरी के समान है। इस भाग में उच्चावच बहुत कम है एवं धरातल बहुत समतल है इसके किनारे की और ऊँचाई तथा उच्चाराव दोनों ही बढ़ते जाते हैं और बेसिन की उतरी सीमा पर ऊंचाई कहीं-कहीं 1000 मीटर से भी अधिक है। इस बेसिन को दो स्थलाकृति प्रदेशों में विभाजित किया जा सकता है।

छत्तीसगढ़ का मैदान

इसका आकार पंखेनुमा है। इसका क्षेत्रफल 31600 वर्ग किलोमीटर है। यह अवसादी शैलों का बना है। इसके अंतर्गत हसदों-मांड का मैदान, बिलासपुर का मैदान, शिवनाथ पार का मैदान, महानदी-शिवनाथ दोआब तथा महानदी पार क्षेत्र सम्मिलित है। इस मैदान की औसत ऊंचाई 220 मीटर है जो उच्च भूमि क्षेत्र की ओर बढ़ती गयी है।

सीमात उच्च भूमि क्षेत्र

छत्तीसगढ़ मैदान के लगभग चारों ओर की घिरा सीमांत उच्च भूमि क्षेत्र है जो 36,464 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इसकी औसत ऊँचाई 330 मीटर है जो पूर्वोत्तर एवं पश्चिमोत्तर सीमा क्षेत्रों में 1000 मीटर से भी अधिक ऊंचा है। भू-वैज्ञानिक संरचना में विविधता एवं नदियों द्वारा विच्छेदन के कारण उच्च भूमि कई पहाड़ियों, श्रेणियों एवं द्रोणियों में विभाजित है। इसके अंतर्गत उच्च भूमि, मैकल श्रेणी तथा दक्षिणी उच्च भूमि सम्मिलित है।

इस क्षेत्र की प्रमुख नदी महानदी है। इसकी प्रमुख सहायक नदिया शिवनाथ हसदो,, मांडपेटी, जोंक, सुरंगी तथा हैल आदि है।

दंडकारण्य प्रदेश

यह महानदी बेसिन के दक्षिण में स्थित है। इसे बस्तर का पठार भी कहा जाता है। इसका विस्तार 1746 उत्तर से 2034 उत्तर तथा 8015 पूर्व से 821 पूर्व तक लगभग 39,060 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में है।

दंडकारण्य प्रदेश अत्यंत प्राचीन शैलों से निर्मित है। इस शैल समूह में विंध्य, कडप्पा, प्राचीन लावा, आद्य ग्रेनाइट व नीस तथा धारवाड़ शैल समूह भी सम्मिलित है। धारवाड़ शैल समूह कायांतरित अवसादी शैलों का है जिसमें भ्रंशन तथा उत्तर-दक्षिण अक्ष वाला वलन पाया जाता है। इसमें शिस्ट, सलेट, बलुआ पत्थर, क्वार्टजाईट, हेमेटाइट, क्लोराइड, ग्रेनाइट आदि शैलें पायी जाती है। आद्यशैल समूह में आद्य ग्रेनाइट आध ग्रेनाइट और निस शेलों की प्रधानता है। इसमें क्वार्टजाईट, फेल्सपार, अब रखता था और बग्लैंड कनेरी मिलते हैं। प्राचीन लावा बेसाल्ट शैलों से बना क्षेत्र है। कडप्पा शैल समूह में क्वार्टजाईट बलुआ पत्थर, चूना पत्थर तथा शैल मिलता है। विंध्य शैल समूह में क्वार्टजाईट बलुआ पत्थर की प्रधानता है।

दंडकारण्य प्रदेश की औसत ऊंचाई 150 मीटर और अधिकतम ऊंचाई 800 मीटर तक है। इस प्रदेश को उतरी मैदान, उत्तरी-पूर्वी पठार, अबूझमाड़ की पहाड़ियां, दक्षिणी पठार, दक्षिणी मैदान आदि कई भागों में बांटा जा सकता है।

इस प्रदेश में गोदावरी व महानदी जलप्रवाह तंत्रों की प्रधानता है। गोदावरी की सहायक नदी इंद्रावती है जो दंडकारय प्रदेश के मध्य से होकर पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। इंद्रावती की सहायक नदियों में उत्तर की ओर से नारंगी बौरढिग गुडरा, निबरा कोटरी तथा दक्षिण की ओर से दंतेवाड़ा, बेरुदी तथा चिंतावामू आदि छोटी नदियां है। गोदावरी की एक सहायक नदी सबरी भी है जो दंडकारण्य प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी भाग में बहती है

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