यहाँ इस आर्टिकल में हम आपको छत्तीसगढ़ की मिट्टी और वन के बारे में बताने जा रहे है जिसकी मदद से आप छत्तीसगढ़ की मिट्टी और वन के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते है
चट्टानों के टूटने-फूटने तथा उनमें भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन के फलस्वरूप जो तत्व एक अलग रूप ग्रहण करता है वह अवशेष ही मिट्टी कहलाता है।
छत्तीसगढ़ में पांच प्रकार की मिट्टियां पाई जाती है – लाल और पीली मिट्टी, लेटराइट मिट्टी, काली मिट्टी, लाल बलुई मिट्टी और लाल दोमट मिट्टी।
संपूर्ण छत्तीसगढ़ प्रदेश के भू-भाग में प्रमुखता: लाल व पीली मिट्टी पाई जाती है, जिसकी उत्पत्ति गोंडवाना चट्टान से हुई है, जिसमें बालू, पत्थर शैल इत्यादि पाए जाते हैं। आवश्यक ह्यूमस व नाइट्रोजन की कमी के कारण है इसकी उर्वरता कम होती है। प्रदेश में यह मिट्टी महानदी बेसिन के पूर्वी जिलों सरगुजा, कोरिया, बिलासपुर, जांजगीर, रायगढ़, जसपुर, रायपुर, धमतरी, महासमुंद, कांकेर, दंतेवाड़ा बस्तर में विस्तृत है।
लैटेराइट मिट्टी
यह मिट्टी लाला शैलों से निर्मित होने के कारण इसका रंग लाल ईंट के समान होता है। इस प्रकार की मिट्टी सरगुजा जिले के मैनपाट पठार के दक्षिणी भाग तथा उससे जुड़े बिलासपुर कोरबा, जांजगीर, दुर्ग में बेमेतरा तथा बस्तर संभाग में जगदलपुर के आस-पास पायी जाती है इस प्रकार की मिट्टी में ऐलुमिना, सिलिका, तथा लोहे के ऑक्साइड की अधिकता तथा चूना, पोटाश तथा फास्फोरिक एसिड का अभाव होता है।
काली मिट्टी रायपुर जिले के मध्य क्षेत्र, बिलासपुर, व राजनंदगांव जिले के पश्चिमी भाग, कवर्धा जिले में पायी जाती है। लोहा तथा जीवांश की उपस्थिति के कारण मिट्टी का रंग काला होता है। पानी पड़ने पर यह मिट्टी चिपकती है तथा सूखने पर बड़ी मात्रा में दरार पड़ती है। यह मिट्टी ज्वालामुखी द्वारा नि:सृत लावा शैलों के तोड़-फोड़ से बनने के कारण अनेक खनिज तत्व मिलते हैं। इसके मुख्यत: लोहा, मैग्नीशियम, चूना तथा अल्युमिना खनिजों तथा जीवाशों की पर्याप्तता तथा फास्फोरस, नाइट्रोजन पोटाश का अभाव होता है।
दुर्ग, राजनंदगांव पश्चिमी रायपुर का बस्तर संभाग में इसका विस्तार है, इसके रवे महीने तथा रेतीले होते हैं। इसमें लाल हेमेटाइट और पीले लिमोनाइट या लोहे के ऑक्साइड के मिश्रण के रूप में होने से लाल, पीला या लालपन लिए हुए रंग होता है। इसमें लोहा, अल्युमिना तथा क्वार्टज के अंश मिलते हैं।
दक्षिणी पूर्वी बस्तर जिले में यह मिट्टी पाई जाती है, इसका निर्माण निस डायोराइट आदि चिकाप्रधान व अम्लरहित चट्टानों द्वारा होता है.
स्टेट फॉरेस्ट रिपोर्ट 2015 के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य का 55.586 वर्ग किलोमीटर भू-भाग वनों से आच्छादित है, जो छत्तीसगढ़ प्रदेश के कुल भू-क्षेत्रफल का 41.12% है, जो मध्य प्रदेश (77.462 वर्ग किलोमीटर) अरुणाचल प्रदेश (67.248 वर्ग किलोमीटर), के बाद तीसरा सर्वाधिक वनिकृत क्षेत्रफल वाला प्रदेश है। यहां साल के वन सर्वत्र मिलते हैं। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा प्रकाशित आर्थिक समीक्षा 2016 और 2017 के अनुसार राज्य में आरक्षित वन 25782 वर्ग किलोमीटर ( 40.12%),सरक्षित वन ने 24036,(40.21% ) एवं अवर्गीकृत क्षेत्र 9954 वर्ग किलोमीटर है वन क्षेत्र है।
जसपुर सामरी पाट प्रदेश में उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन पाए जाते हैं। यह 1 पत्तियां ग्रीष्म ऋतु में गिरा देते हैं। जसपुर सामरी पाट प्रदेश के दक्षिणी दो तिहाई भाग में उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन मिलते हैं जबकि उतरी एक तिहाई भाग में उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन मिलते हैं। या साल के वन अधिकार तेजपुर तहसील में पाए जाते हैं। सामरी तहसील में अधिकतर मिश्रित वन पाए जाते हैं। यहां साल के अतिरिक्त बिजा, जामुन, महुआ तथा सेजा पाए जाते हैं।
महानदी बेसिन के छत्तीसगढ़ मैं वनों का क्षेत्र में नगण्य है। जब की उच्च भूमि वाली तहसीलों में आधे से अधिक भूमि वनों से आच्छादित है। यहां पाए जाने वाले वनों में सागौन तथा मिश्रित वन मिलते हैं। बेसिन के दक्षिणी पश्चिमी क्षेत्र को छोड़ कर सभी भागों में साल के वन पाए जाते हैं या फिर मिश्रित वन मिलते हैं। सागवान के वन दक्षिणी तथा पश्चिमी भागों में पाए जाते हैं। साल तथा साबुन के अतिरिक्त अन्य प्रकार के वृक्ष भी मिलते हैं
दंडकारण्य प्रदेश में पाई जाने वाली वनस्पति उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन है जिनमें साल के वृक्षों की प्रधानता है। साल के अतिरिक्त सागौन वृक्ष पाए जाते हैं। साल एवं साबुन के अतिरिक्त बीजा, धौर, जामुन, महुआ तथा सेंजा के वृक्ष पाए जाते हैं। कहीं-कहीं बांस के वन पाए जाते हैं।
वनों से साल, सागौन, बांस आदि प्रमुख संपत्ति प्राप्त होती है जबकि गौण संपत्ति में लाख है, तेंदू पत्ता, कत्था , हर्रा,विभिन्न प्रकार के गोंद, दवाओं के लिए पौधे तथा विभिन्न प्रकार की घांसे, है। खैर के वृक्ष सरगुजा में बहुतायत से मिलते हैं। लाख के कारखाने धमतरी, रायगढ़, महेंद्रगढ़, पेंड्रा, शक्ति आदि में है। तेंदूपत्ता, बिलासपुर, रायपुर, सरगुजा, बस्तर, कांकेर आदि में उत्तम किस्म का पाया जाता है। बांस का प्रयोग पेपर मिलो में किया जाता है।
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